जीवन-परिचय
बाबू बालमुकुंद गुप्त भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार हैं | उनका जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के गुड़ियाना गांव में 14 नवम्बर, 1865 ईo को हुआ | इनके पिता का नाम पूरनमल तथा पितामह का नाम लाला गोवर्धनदास था | इनका परिवार बख्शी राम वालों के नाम से प्रसिद्ध था | 15 वर्ष की आयु में इनका विवाह रेवाड़ी के एक प्रतिष्ठित परिवार में अनार देवी से हुआ | वे एक होनहार छात्र थे परंतु पारिवारिक कारणों से वे केवल आठवीं कक्षा तक ही विधिवत शिक्षा हासिल कर सके |
बालमुकुंद गुप्त जी अपने काल के लोकप्रिय लेखक थे | अनेक विद्वान उन्हीं भारतेंदु युग तथा द्विवेदी युग की कड़ी मानते हैं | उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया | उन्होंने उर्दू भाषा में छपने वाले ‘अखबार-ए-चुनार’ तथा ‘कोहेनूर’ का संपादन किया | 1886 ईस्वी के पश्चात उन्होंने तीन दैनिक पत्रों ‘हिंदोस्तान’, ‘हिंदी बंगवासी’ तथा ‘भारत मित्र’ का संपादन भी किया | 42 वर्ष की अल्पायु में 18 सितम्बर, सन 1907 को उनका देहांत हो गया |
प्रमुख रचनाएँ
बालमुकुंद गुप्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | उन्होंने गद्य तथा पद्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई | परंतु व्यंग्यात्मक निबंध के क्षेत्र में उन्होंने विशेष ख्याति हासिल की | बालमुकुंद गुप्त की प्रमुख रचनाएं ( Balmukund Gupt Ki Pramukh Rachnaen ) इस प्रकार हैं —
निबंध संग्रह – शिव शंभू के चिट्ठे, चिट्ठे और खत, खेल तमाशा |
काव्य संग्रह – स्फुट कविताएँ |
साहित्यिक विशेषताएँ
बालमुकुंद गुप्त के साहित्य की प्रमुख विशेषताएं ( Balmukund Gupt Ke Sahitya Ki Pramukh Visheshtaen ) निम्नलिखित हैं : —
(1) देश प्रेम की भावना — बालमुकुंद गुप्त जी में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है | संभवत: लोगों में देश-प्रेम की भावना का प्रचार करने तथा अंग्रेजों की शोषण व दमनकारी नीतियों की पोल खोलने के लिए ही उन्होंने साहित्य-रचना आरंभ की | उन्होंने व्यंग्यात्मक शैली में ब्रिटिश सरकार की भारत-विरोधी नीतियों पर प्रहार किया | उन्होंने भारतीयों की हीन भावना को दूर करने का प्रयास किया | संसार में भारतवासियों को श्रेष्ठ बताते हुए एक स्थान पर वे लिखते हैं – “श्रम में, बुद्धि में, विद्या में, काम में, वक्तृता में, सहिष्णुता में, किसी बात में देश के निवासी संसार में किसी जाति के आदमियों से पीछे रहने वाले नहीं हैं वरंच एक-दो गुण भारतवासियों में ऐसे हैं कि संसार भर में किसी जाति के लोग उनका अनुसरण नहीं कर सकते |”
(2) व्यंग्यात्मकता — उन्होंने अपने निबंधों तथा कविताओं में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है | ‘शिव शंभू के चिट्ठे’ नामक निबंध-संग्रह उनका सर्वाधिक लोकप्रिय निबंध-संग्रह है जिसमें व्यंग्य की प्रधानता है | ‘पीछे मत फेंकिए’ निबंध में वे अंग्रेजी सरकार पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं – “इस धराधाम में अब अंग्रेजी प्रताप के आगे कोई उंगली उठाने वाला नहीं है | इस देश में एक महान प्रतापी राजा का वर्णन इस प्रकार किया जाता था कि इंद्र उसके यहाँ जल भरता था, पवन उसके यहाँ चक्की चलाता था, चाँद-सूरज उसके यहाँ रोशनी करते थे, इत्यादि | पर अंग्रेजी प्रताप उससे भी बढ़ गया है | समुद्र अंग्रेजी राज्य का मल्लाह है, पहाड़ों की उपत्यकाएँ ( पर्वत के ऊपर की समतल भूमि ) बैठने के लिए कुर्सी, मूढ़े, बिजली कलें चलाने वाली दासी और हजारों मील खबर लेकर उड़ने वाली दूती इत्यादि |”
इसी प्रकार मांस-मदिरा का प्रयोग करने वाले लोगों पर व्यंग्य करते हुए वे लिखते हैं –
“अगल बगल में बिस्कुट मारो बोतल रखो पास |
आँख मूँदकर ध्यान लगाओ छह ऋतु बारह मास | |
(3) ब्रिटिश शासन का विरोध — गुप्त जी ने अपने निबंधों के द्वारा ब्रिटिश शासन का कड़ा विरोध किया है | वे अपने जीवन काल में अनेक समाचार पत्रों के संपादक रहे और उन्होंने हमेशा अंग्रेजों की भारत विरोधी नीतियों का विरोध किया | ‘आशा का अंत’, ‘विदाई संभाषण’, ‘पीछे मत फेंकिए’ आदि निबंधों में गुप्त जी ने ब्रिटिश सरकार को आड़े हाथों लिया | ‘विदाई संभाषण’ तथा ‘आशा का अंत’ निबंधों में उन्होंने वायसराय लार्ड कर्जन की नीतियों की भर्त्सना की | ‘सच्चाई’ नामक कविता में वे लिखते हैं –
है कानून जबान हमारी, जो नहीं समझे वे अनाड़ी |
हम जो कहें वही कानून, तुम तो हो कोरे पतलून ||
(4) समाज सुधार की भावना — द्विवेदी युग के अन्य साहित्यकारों की भांति गुप्त जी के साहित्य में भी समाज-सुधार की भावना दिखाई देती है | उनकी यह भावना सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों रूपों में दिखाई देती है | एक तरफ वे जहाँ भारतीय संस्कृति का गुणगान करते हैं और लोगों को उनके स्वर्णिम अतीत की याद दिलाते हैं, वहीं भारतीय समाज की कुरीतियों पर भी करारा प्रहार करते हैं | उन्होंने धार्मिक आडंबरों को दूर करने तथा नारी-उद्धार पर बल दिया |
(5) इतिवृतात्मकता – अन्य द्विवेदी युगीन साहित्यकारों की भाँति उनके साहित्य में भी इतिवृतात्मकता मिलती है | उनका संपूर्ण साहित्य श्रृंगार रस से रहित है | आदर्शवाद, सात्विकता और सामाजिक जागरण इनके साहित्य की प्रमुख प्रवृतियां हैं | इतिवृत्तात्मकता के कारण उनकी कविता में लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, कल्पनाशीलता व चित्रात्मकता का अभाव है | ये सीधे-सपाट शब्दों में अपनी बात कहते हैं |
अपनी कविता ‘पॉलिटिकल होली’ में हुए कहते हैं —
टोरी जावें लिबरल आवें | होली है, भई होली है |
भारतवासी खैर मनावें | होली है, भई होली है |
लिबरल जीते टोरी हारे | हुए मार्ली सचिव हमारे |
भारत में तब बजे नगारे | होली है, भई होली है |
बालमुकुंद गुप्त के साहित्य की भाषा ( Balmukund Gupt Ke Sahitya Ki Bhasha )
बालमुकुंद गुप्त जी ने सरल, सहज एवं व्यवहारिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है | उनकी भाषा तत्कालीन हिंदी भाषा है जिसे हम परिष्कृत हिंदी भाषा नहीं कह सकते | उनकी भाषा में उर्दू तथा सामान्य बोलचाल वाले शब्दों का अधिक प्रयोग मिलता है फिर भी उन्होंने खड़ी बोली को साहित्य रूप प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया | कुल मिलाकर उनकी भाषा तत्सम, तद्भव, अंग्रेजी तथा उर्दू के शब्दों का मिश्रण है | लेकिन तत्कालीन दृष्टि से उनकी भाषा वास्तव में हिंदी का विकसित रूप थी | इनकी मृत्यु पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने कहा था – “अच्छी हिंदी बस एक व्यक्ति लिखता था |”
उन्होंने अपने निबंधों में व्यंग्यात्मक, विचारात्मक तथा विवेचनात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया |
Other Related Posts
आशा का अंत : बालमुकुंद गुप्त ( Asha Ka Ant : Balmukund Gupt )
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय ( Aacharya Ramchandra Shukla Ka Sahityik Parichay )
नरेश मेहता का साहित्यिक परिचय ( Naresh Mehta Ka Sahityik Parichay )
डॉ धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय ( Dr Dharamvir Bharati Ka Sahityik Parichay )
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय ( Mathilisharan Gupt Ka Sahityik Parichay )
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय ( Tulsidas Ka Sahityik Parichay )
सूरदास का साहित्यिक परिचय ( Surdas Ka Sahityik Parichay )
कबीरदास का साहित्यिक परिचय ( Kabirdas Ka Sahityik Parichay )
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )
14 thoughts on “बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय”