भाषा के विविध रूप / भेद / प्रकार ( Bhasha Ke Vividh Roop / Bhed / Prakar )

सामान्य शब्दों में भाषा शब्द का प्रयोग मनुष्य की व्यक्त वाणी के लिए किया जाता है | भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है और दूसरों के विचार समझ पाता है | यद्यपि कुछ कार्य संकेतों और शारीरिक कष्टों के द्वारा किया जा सकता है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है | वास्तव में भाषा ध्वनि-चिह्नों की एक व्यवस्था है जिसके द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करते हैं | भाषा के अनेक प्रकार हैं |

किसी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा के देश, काल और जाति के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप दिखाई देते हैं जिन्हें हम पारिभाषिक शब्दावली में मूल भाषा, मातृ भाषा बोली, विभाषा, परिनिष्ठित भाषा साहित्यिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, अंतरराष्ट्रीय भाषा, मानक भाषा आदि नाम देते हैं |

भाषा के भेद या प्रकार

भाषा के विभिन्न भेद या प्रकार हैं जिनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है : —

1️⃣  बोलचाल की भाषा या बोली ( Boli )

‘बोलचाल की भाषा’ को समझने के लिए ‘बोली’ (Dialect) को समझना जरूरी है। ‘बोली’ उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है। विश्व में जब किसी जन-समूह का महत्त्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकी बोलचाल की बोली ‘भाषा’ कही जाने लगती है, अन्यथा वह ‘बोली’ ही रहती है। स्पष्ट है कि ‘भाषा’ की अपेक्षा ‘बोली’ का क्षेत्र, उसके बोलने वालों की संख्या और उसका महत्त्व कम होता है। एक भाषा की कई बोलियाँ होती हैं क्योंकि भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है। जब कई व्यक्ति-बोलियों में पारस्परिक सम्पर्क होता है, तब बालेचाल की भाषा का प्रसार होता है। आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुई आपसी व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता है। इसे ‘सामान्य भाषा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भाषा बडे़ पैमाने पर विस्तृत क्षेत्र में प्रयुक्त होती है।

2️⃣  मानक भाषा ( Manak Bhasha )

भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं। भाषाविज्ञान कोश के अनुसार ‘किसी भाषा की उस विभाषा को परिनिष्ठित भाषा कहते हैं जो अन्य विभाषाओं पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती है तथा उन विभाषाओं को बोलने वाले भी उसे सर्वाधिक उपयुक्त समझने लगते हैं।

मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होती है। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती है। मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं। इसी भाषा में पाठ्य-पुस्तकों का प्रकाशन होता है। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, संस्कृत तथा ग्रीक इत्यादि मानक भाषाएँ हैं।

किसी भाषा के मानक रूप का अर्थ है, उस भाषा का वह रूप जो
उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य-रचना, शब्द और शब्द-रचना, अर्थ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, प्रयोग तथा लेखन आदि की दृष्टि से, उस भाषा के सभी नहीं तो अधिकांश सुशिक्षित लोगों द्वारा शुद्ध माना जाता है।

मानकता अनेकता में एकता की खोज है, अर्थात यदि किसी लेखन या भाषिक इकाई में विकल्प न हो तब तो वही मानक होगा, किन्तु यदि विकल्प हो तो अपवादों की बात छोड़ दें तो कोई एक मानक होता है। जिसका प्रयोग उस भाषा के अधिकांश शिष्ट लोग करते हैं। किसी भाषा का मानक रूप ही स्वीकार्य माना जाता है। उस
भाषा के लगभग समूचे क्षेत्र में मानक भाषा का प्रयोग होता है।
मानक भाषा एक प्रकार से सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होती है।
उसका सम्बन्ध भाषा की संरचना से न होकर सामाजिक स्वीकृति से होता है।

मानक भाषा को इस रूप में भी समझा जा सकता है कि समाज में एक वर्ग मानक होता है जो अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है तथा समाज में उसी का बोलना-लिखना, उसी का खाना-पीना, उसी के रीति-रिवाज़ अनुकरणीय माने जाते हैं। मानक भाषा मूलत: उसी वर्ग की भाषा होती है।

3️⃣  सम्पर्क भाषा ( Sampark Bhasha )

अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है, उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्क भाषा दोनों ही हो सकती है। आज भारत मे सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दी प्रतिष्ठित होती जा रही है जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी सम्पर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई है।

सम्पर्क भाषा के रूप में जब भी किसी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा अथवा राजभाषा के पद पर आसीन किया जाता है तब उस भाषा से कुछ अपेक्षाएँ भी रखी जाती हैं।

जब कोई भाषा ‘lingua franca’ ( सम्पर्क भाषा ) के रूप में उभरती है तब राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर वह प्रभुतासम्पन्न भाषा बन जाती है। यह तो जरूरी नहीं कि मातृभाषा के रूप में इसके बोलने वालों की संख्या अधिक हो पर द्वितीय भाषा के रूप में इसके बोलने वाले बहुसंख्यक होते हैं।

4️⃣  राजभाषा ( Rajbhasha )

जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है, उसे राजभाषा कहते हैं |

कुछ लोग राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अन्तर नहीं करते और दोनों को समानार्थी मानते हैं। लेकिन दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं।

राष्ट्रभाषा सारे राष्ट्र के लोगों की सम्पर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार के कामकाज की भाषा है। भारत के संविधान के अनुसार हिन्दी संघ सरकार की राजभाषा है। राज्य सरकार की अपनी-अपनी राज्य भाषाएँ हैं। राजभाषा जनता
और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की उसकी अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है। विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की अपनी स्थानीय भाषाएँ राजभाषा है । आज हिन्दी हमारी राजभाषा है।

5️⃣  राष्ट्रभाषा ( Rashtrabhasha )

देश के विभिन्न भाषा-भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय की भाषा को राष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं, पढ़ते हैं या बोलते हैं। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के नागरिकों के लिए गौरव, एकता, अखंडता और अस्मिता का प्रतीक होती है। महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा दी है। एक भाषा कई देशों की राष्ट्रभाषा भी हो सकती है; जैसे अंग्रेजी आज अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा इत्यादि कई देशों की राष्ट्रभाषा है।

भारतीय संविधान में हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं दिया गया हे लेकिन इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषा कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में राजभाषा के रूप में हिन्दी, अंग्रेजी की तरह न केवल प्रशासनिक प्रयोजनों की भाषा है, बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्रभाषा के रूप में भी है। वह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की भाषा है।

महात्मा गांधी जी के अनुसार किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज और सुगम हो; जिसको बोलने वाले बहुसंख्यक हों और जो पूरे देश के लिए सहज रूप में उपलब्ध हो। उनके अनुसार भारत जैसे बहुभाषी देश में हिन्दी ही राष्ट्रभाषा के निर्धारित अभिलक्षणों से युक्त है।

वस्तुत: उपर्युक्त सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। इसलिए यह प्रश्न निरर्थक है कि राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा आदि भाषा के प्रकारों में से भाषा का कौन सा भेद या प्रकार सर्वाधिक महत्त्व है, केवल और केवल हिन्दी को अधिक व्यवहार में लाने की आवश्यकता है ।

यह भी देखें

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