संपादक ( Sampadak ) समाचार पत्र रूपी जलयान का कप्तान होता है | वह समाचार पत्र के विभिन्न क्षेत्रों का संचालन व नियमन करता है | वह संस्था के विभिन्न कर्मचारियों – संवाददाता, उप-संपादक, सह-संपादक , विज्ञापन-प्रबंधक आदि के मध्य समन्वय स्थापित करता है | समाचार पत्र की नीति के परिपालन का दायित्व उसका होता है | जनहित का संरक्षण भी वही करता है |
संपादक व संपादन कला ( Sampadak V Sampadan Kala )
सामान्य शब्दों में समाचार पत्र में जो कुछ छपता है उसका चयन और नियंत्रण करने वाला व्यक्ति संपादक ( Sampadak ) कहलाता है | यह परिभाषा संपादक के कार्य की ओर संकेत करती है परंतु इससे संपादक की कला पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता | संपादक अपनी जिस विशेष योग्यता, प्रतिभा, परिश्रम के बल पर अपने कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देता है, उसे संपादन कला ( Sampadan Kala ) कह सकते हैं |
संपादकीय पृष्ठ ( Sampadakiy Prishth )
प्रत्येक समाचार पत्र के मध्य में एक पृष्ठ होता है जिसमें समाचार पत्र के संचालकों की रीति-नीति, संपादक के लेख, कुछ स्थायी स्तंभ तथा संपादक के नाम पाठकों के पत्र होते हैं | इस पृष्ठ को संपादकीय पृष्ठ कहा जाता है |
प्रायः देखने में आता है कि सामान्य पाठक इस पृष्ठ को सबसे अंत में पढ़ते हैं या पढ़ते ही नहीं हैं | इस बात का ज्ञान संपादकों को भी होता है परंतु वे अपने संपादकीय सामान्य पाठकों के लिए लिखते भी नहीं है, वह इस पृष्ठ को उन पाठकों के लिए लिखते हैं जो जनमत को प्रभावित करते हैं या कर सकते हैं | ऐसे पाठकों में वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, साहित्यकार, व्यापारी, उद्योगपति आदि होते हैं जो सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में समाज का नेतृत्व करते हैं | लेकिन अगर सामान्य पाठक भी संपादकीय को रुचिपूर्वक पढ़ रहा है तो इससे संपादक की कुशलता झलकती है |
संपादकीय लेख ( Sampadkiy Lekh )
जहां तक संपादकीय लेखों का संबंध है, ये प्रायः दो या तीन होते हैं |यह लेख समाचार पत्र की रूचि एवं विचारधारा के परिचायक होते हैं | बड़े समाचार पत्रों में इस कार्य के लिए कई व्यक्ति होते हैं जो संपादकीय टिप्पणियों के लिए प्रतिदिन बैठक करते हैं और उसमें तय करते हैं कि किस विषय पर लेख हो और उसके प्रति क्या दृष्टिकोण हो | छोटे समाचार पत्रों में संपादकीय लेख लिखने का कार्य संपादक करता है परंतु मध्यम समाचार पत्रों में इस कार्य को सहायक संपादक संपन्न करते हैं |
संपादकीय प्रायः तात्कालिक और महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा जाता है |
सम्पादक के गुण ( Sampadak Ke Gun )
किसी समाचार पत्र या पत्रिका के प्रकाशन में संपादक की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है | एक अच्छे संपादक में निम्नलिखित गुण अपेक्षित हैं —
(1) निष्पक्ष दृष्टिकोण
सम्पादक का दृष्टिकोण निष्पक्ष होना चाहिए | सम्पादक यदि किसी विचारधारा का पक्षधर होता है तो वह अपनी विचारधारा से विभिन्न विषयों के साथ न्याय नहीं कर सकेगा | वह समाचार पत्र के स्वामियों और अन्य लोगों के विचारों में सामंजस्य तभी स्थापित कर सकेगा जब वह तटस्थ भाव से वस्तुओं को देखेगा |
(2) विषद ज्ञान
संपादक को विभिन्न विषयों का विशद ज्ञान होना चाहिए | तभी वह विभिन्न विषयों पर टिप्पणी कर सकेगा | इसके साथ-साथ संपादक को तकनीक का ज्ञान भी होना चाहिए क्योंकि आज के युग में समाचार पत्रों के प्रकाशन में नई-नई तकनीक आ रही है जिनके प्रयोग से समाचार पत्र को आकर्षक व प्रभावी बनाया जा सकता है |
(3) नेतृत्व क्षमता
सम्पादक अपने समाचार पत्र का मुखिया होता है | उसके साथ उप संपादक, सह संपादक, संवाददाता, टेक्नीशियन, समाचार पत्र के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी काम करते हैं | उन सबको साथ लेकर चलना और उनसे अच्छा काम करवाना संपादक का कार्य है | सभी कर्मचारियों से सफलतापूर्वक काम करवाने के लिए नेतृत्व क्षमता का होना अनिवार्य है |
(4) भाषा-ज्ञान
संपादक को उस भाषा का अच्छा ज्ञान होना चाहिए जिस भाषा में वह समाचार पत्र प्रकाशित होता है | उस भाषा के व्याकरण व शब्दकोश की व्यापक जानकारी होने पर ही सम्पादक एक आकर्षक और प्रभावी संपादकीय लिख सकेगा और दूसरे लेखकों के द्वारा लिखे गए लेखों की भली प्रकार जांच कर सकेगा |
(5) मधुरता व विनोद-प्रियता
संपादक की वाणी में मधुरता और स्वभाव में विनोद-प्रियता होनी चाहिए ताकि संपादन जैसे गंभीर कार्य को वह सरल बना सके और कार्यालय के कर्मचारियों के साथ उसके अच्छे संबंध स्थापित हो सकें |
(6) कुशल प्रबंधक
संपादक का कार्य केवल संपादकीय लिखना और दूसरे लेखकों द्वारा लिखे गए लेखों की जांच करना ही नहीं है बल्कि समाचार पत्र के प्रकाशन से जुड़े हुए प्रत्येक कार्य का प्रबंधन करना भी है | अत: सम्पादक के लिए एक अच्छा प्रबंधक होना अति आवश्यक है |
(7) धैर्यवान
समाचार पत्र के प्रकाशन का कार्य एक जटिल कार्य है | अतः संपादक का धैर्यवान होना आवश्यक है | समाचार पत्र समाज को प्रभावित करते हैं | इसलिए उस में छपने वाली प्रत्येक सामग्री पर गहनता से विचार करना आवश्यक है | जल्दबाजी में लिया गया कोई भी निर्णय समाज के लिए खतरनाक हो सकता है | गलत सामग्री प्रकाशित करने पर समाचार पत्र की छवि धूमिल हो सकती है |
संपादक के दायित्व या कार्य ( Sampadak Ke Dayitv Ya Karya )
संपादक ही किसी पत्र अथवा पत्रिका का मुख्य संचालक होता है | संपादक को अपने पत्र अथवा पत्रिका के सफल संचालन हेतु निम्नलिखित कार्यों या दायित्वों का निर्वहन करना होता है —
(1) विभिन्न स्रोतों से समाचारों का संकलन करना |
(2) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों से प्रकाशन हेतु उपयुक्त समाचारों का चयन करना |
(3) समाचारों को उनके महत्व के अनुसार एक क्रम में व्यवस्थित करना |
(4) विभिन्न विद्वानों और विषय-विशेषज्ञों के लेख प्राप्त करना और उन्हें प्रासंगिक माहौल में प्रकाशित करना |
(5) समाचार पत्र या पत्रिका को उपयोगी एवं समसामयिक बनाए रखना |
(6) सरकार और जनता के बीच कड़ी का काम करना |
(7) सरकार की नीतियों को जनता तक पहुंचाना तथा सरकार को निरंकुश होने से रोकना |
(8) अपने समाचार पत्र की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए विज्ञापनों का प्रकाशन करना |
(9) अपने समाचार पत्र के प्रचार -प्रसार हेतु प्रयत्न करना |
(10) अपने संपादकीय लेखों में जन कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुए समसामयिक एवं समाजोपयोगी विषयों का चयन करना |
यह भी देखें
अनुवाद : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप
मशीनी अनुवाद : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप व प्रकार
टिप्पण या टिप्पणी : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएं और प्रकार
प्रयोजनमूलक भाषा का अर्थ व प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्गीकरण ( Prayojanmulak Hindi Ka Vargikaran )
प्रयोजनमूलक हिंदी का स्वरूप ( Prayojanmoolak Hindi Ka Swaroop )
पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )
संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )
1 thought on “संपादक : गुण व दायित्व ( Sampadak : Gun V Dayitv )”