सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है । यह सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता व सुमेरियन सभ्यता ( Sumerian Civilization ) के समकालीन मानी जाती है ।
हड़प्पा सभ्यता की खोज
इस सभ्यता की पहली झलक 1921 ई० में मिली जब दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा में खुदाई हुई । तत्पश्चात 1922 ई० में राख़ाल दास बैनर्जी के नेतृत्व में मोहन जोदड़ो में खुदाई हुई और इस खुदाई से एक अति प्राचीन सभ्यता का अनुमान पुख़्ता हो गया । सन 1924 में सर जॉन मार्शल ने सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की ।
सिंधु घाटी की सभ्यता का समय
सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) के काल निर्धारण को लेकर विद्वानों में मतभेद है । इस सभ्यता का सर्वमान्य काल 2500 ई० पू० से 1750 ई० पू० माना जाता है । ( रेडियो कार्बन की c-14 पद्धति के अनुसार )
सिंधु-सभ्यता का विस्तार
सिंधु घाटी की सभ्यता एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी । इसका आकार त्रिभुजाकार था । इसका कुल क्षेत्रफल 12 लाख ,99 हज़ार , 600 वर्ग किलोमीटर था ।
सिंधु सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू – कश्मीर में चिनाब नदी पर स्थित माँड़ा से दक्षिण में उत्तरी – महाराष्ट्र में प्रवार नदी पर स्थित दैमाबाद तक तथा पश्चिम में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में दाश्त नदी पर स्थित सुत्क़ागेन्डार से लेकर पूर्व में उत्तर प्रदेश में हिन्डन नदी पर स्थित आलमगीरपुर तक था ।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो इसके सबसे प्रमुख नगर थे ।
सिंधु घाटी की सभ्यता पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब प्रांतों तथा भारत के जम्मू-कश्मीर , पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश ,राजस्थान , गुजरात तथा महाराष्ट्र प्रांतों में फैली थी ।
सैंधव सभ्यता के प्रमुख स्थल
हड़प्पा ( Harappa )
हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी ज़िले में स्थित है । यह शहर रावी नदी के किनारे पर स्थित है । हड़प्पा की खोज 1921 ई० में दयाराम साहनी ने की ।
प्राप्त वस्तुएँ : 6 अन्नागार , 16 अग्निकुंड , गोबर की राख , कोलतार , काँसा गलाने का पात्र , cemetery R- 37, मोहरें ( 890 से अधिक ), दो पत्थर की मूर्तियाँ जिनमें एक पुरुष का धड़ तथा दूसरी नर्तकी की मूर्ति है ।
मोहन जोदड़ो ( Mohan Jodaro )
मोहन जोदड़ो का अर्थ है – मृतकों का टीला । मोहन जोदड़ो ( Mohan Jodaro ) पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है । इसकी खोज राख़ाल दास बैनर्जी ने 1922 ई० में की । मोहन जोदड़ो सिंधु घाटी की सभ्यता की हडप्पा के बाद दूसरी राजधानी माना जाता है । मोहन जोदड़ो की सड़कें सीधी थी तथा एक दूसरे को समकोण पर काटती थी । मुख्य सड़कें 33 फ़ुट चौड़ी तथा अन्य सड़कें 9 फ़ुट से 12 फ़ुट तक चौड़ी थी ।
प्राप्त वस्तुएँ / अवशेष : विशाल स्नानागार , विशाल अन्नागार , सभा भवन , काँसे की नर्तकी की मूर्ति , पुजारी की मूर्ति , मुद्रा पर अंकित पशुपति ।
लोथल ( Lothal )
लोथल ( Lothal ) गुजरात राज्य के अहमदाबाद ज़िले के धोलका ताल्लुका में स्थित है । यह स्थान भोगवा व साबरमती नदी के संगम पर स्थित है । यह सैंधव सभ्यता में एक प्रमुख बंदरगाह था । इसकी खुदाई डॉ० एस०आर० राव ने 1957 ई० में करवाई ।
प्राप्त वस्तुएं : बंदरगाह के अवशेष , गोदी के अवशेष ,मनके बनाने का कारखाना ,धान ,फारस की मोहरें ,घोड़े की मिट्टी की मूर्तियाँ ,अग्निकुंड ,तकली,कपडा आदि | एक स्थान पर करवट लिए हुए एक शव तथा एक अन्य स्थान पर एक-दूसरे से लिपटे दो शव मिले हैं |
कालीबंगा ( Kalibangan )
कालीबंगा ( Kalibangan ) राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घघ्घर नदी के तट पर स्थित है | इसकी खुदाई 1953 ई० में श्री अमलानंद घोष ने करवाई |यह मोहनजोदडो की अपेक्षा दीनहीन बस्ती थी | यहाँ मकानों में कच्ची इंटों का प्रयोग मिलता है | यहाँ से क़ब्रिस्तान, हवनकुंड व जुता हुआ खेत मिला है |
चन्हुदड़ो ( Chanhudro )
चन्हुदड़ो ( Chanhudaro ) पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में सिन्धु नदी के किनारे पर स्थित है | इसकी खोज 1931 ई० में एन० जी० मजुमदार ने की | यहाँ किसी प्रकार के दुर्ग होने का प्रमाण नहीं मिलता | यहाँ मनके , सीप ,मुद्राएं ,आभूषण व मनके बनाने का कारखाना मिला है |
कोटदीजी ( Kotdiji )
यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है | इसकी खुदाई 1955 ई० में धुर्ये ने करवाई | यहाँ से कांसे की चूड़ियां व मातृदेवी की मूर्ती मिली है |
सुरकोटदा ( Surkotda )
सुरकोटदा ( Surkotda ) गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में स्थित है | इसकी खोज 1964 ई० में जगतपति जोशी ने की | यहाँ क़ब्रिस्तान व घोड़े की अस्थियाँ मिली हैं |
धोलावीरा ( Dholavira )
धोलावीरा ( Dholavira ) गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में स्थित है |इसकी खुदाई सर्वप्रथम 1967 ई० में जगतपति जोशी ने करवाई परन्तु इसकी व्यापक खुदाई 1990-91 में आर० एस० बिष्ट के नेतृत्त्व में हुई | यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है | यह तीन भागों में विभक्त है |
सुतकागेंडोर ( Sutkagendor )
यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दाश्त नदी पर स्थित है | इसकी खुदाई 1927 ई० में आर० एल० स्टाइन ने करवाई | यह स्थान सिन्धु सभ्यता की पश्चिमी सीमा का निर्धारण करता है | यहाँ से मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की चूड़ियाँ , राख से भरा बर्तन व ताम्बे की कुल्हाड़ी मिली है |
आलमगीरपुर ( Alamgirpur )
आलमगीरपुर (Alamgirpur ) उत्तरप्रदेश में मेरठ जिले में हिंडन नदी के किनारे पर स्थित है | यह सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) की पूर्वी सीमा का निर्धारण करता है | यहाँ मिट्टी के बर्तन व मिट्टी के मनके मिले हैं |
सैन्धव सभ्यता के कुछ स्मरणीय बिंदु
⚈ क्षेत्रफल की दृष्टी से प्राचीन सभ्यताओं में सिन्धु सभ्यता का विस्तार सर्वाधिक था | सिन्धु सभ्यता का विस्तार 12 लाख , 99 हजार , 600 वर्ग किलोमीटर था |
⚈ सर जॉन मार्शल ने विशाल स्नानागार ( मोहन जोदडो ) की खोज की |
⚈ सुत्कागेंडोर ,डाबरकोट , सुत्काकोह नामक सिन्धु स्थल पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हैं |
⚈ मोहन जोदड़ो , अमरी , चन्हुदड़ो , पकिस्तान के सिंध प्रान्त में हैं |
⚈ संघोल , रोपड़ ,बाड़ा व चंडीगढ़ भारत के पंजाब प्रान्त में हैं |
⚈ स्वतंत्रता के पश्चात् सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में मिले हैं |
⚈ मोहन जोदड़ो में मिला विशाल अन्नागार सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है |
⚈ सर्वप्रथम सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) से ही ‘स्वास्तिक’ चिह्न के अवशेष मिले हैं | इससे सूर्य उपासना का संकेत मिलता है |
⚈ सिन्धु सभ्यता में ईंट का अनुपात 4:2:1 था |
⚈ पहली बार कपास उगाने का श्रेय हड़प्पा सभ्यता को है |
⚈ चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से मिले हैं |
⚈ सैन्धव मोहरों पर एक शृंगी सांड के चित्र सर्वाधिक मिले हैं |
⚈ कालीबंगा एवं लोथल से हवनकुंड / अग्निकुंड के साक्ष्य मिले हैं |
⚈ लोथल ( Lothal ) से एक शव प्राप्त हुआ है जो कब्र में करवट लिए हुए लिटाया गया है जिसका सिर पूर्व तथा पैर पश्चिम दिशा में है | लोथल में ही एक अन्य कब्र में दो शव एक-दूसरे से लिपटे हुए मिले हैं | लोथल से फारस की मोहरें भी मिली हैं |
⚈ कालीबंगा का अर्थ है – काली चूड़ियाँ| कालीबंगा से काली मिट्टी की चूड़ियाँ मिली हैं | काली बंगा में मिट्टी के एक बर्तन पर सूती वस्त्र की छाप मिली है | फर्श में अलंकृत ईंटों का प्रयोग केवल कालीबंगा में मिलता है | यहाँ से जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं |
⚈ हड़प्पा से विशाल अन्नागार मिला है जो हड़प्पा सभ्यता ( Harappan Civilization ) की सबसे बड़ी इमारत है | इसका प्रवेश द्वार नदी की ओर है | हड़प्पा के बर्तनों पर लेख व मानव आकृतियाँ मिली हैं | यहाँ की मोहरों पर एक शृंगी सांड का अंकन सर्वाधिक है | एक मोहर पर गरुड़ का अंकन भी मिला है | हड़प्पा से तांबे का बर्तन व तांबे से बनी इक्का गाडी म भी मिली है |
⚈ मोहन जोदड़ो ( Mohen Jodaro ) को सिंध का नखलिस्तान ( बाग ) भी कहा जाता है | मोहनजोदड़ो से प्राप्त किसी भी बर्तन पर लेख नहीं मिला है | यहाँ से 5 बेलनाकार मुद्राएँ मिली हैं | मोहन जोदड़ो से विशाल स्नानागार तथा कांसे की नर्तकी की मूर्ती मिली है | मोहन जोदड़ो की खुदाई में सात परतें मिली हैं जिससे ज्ञात होता है की यह नगर सात बार बसाया गया था | मोहन जोदड़ो की सबसे चौड़ी सड़क दस मीटर चौड़ी है जिसे राजपथ कहा गया है |
⚈ रंगपुर गुजरात में मादर नदी के किनारे स्थित है |
⚈ चन्हुदड़ो ( Chanhudro ) से मनके बनाने का कारखाना तथा एक पात्र में जला हुआ कपास मिला है |
⚈ सिधु सभ्यता में मंदिर का कोई प्रमाण नहीं मिलता | पशुपति , मातृदेवी , लिंग-योनि, पीपल व कूबड़ वाला बैल पूजनीय थे |
⚈ सिन्धु काल की अधिकांश मोहरें सेलखडी से बनी थी | ये मोहरें वर्गाकार , चतुर्भुजाकार तथा बेलनाकार थी | बटन के आकार की मोहरें भी मिली हैं जिन पर स्वास्तिक चिह्न मिला है |
⚈ सिन्धुवासी गाय तथा लोहे से अपरिचित थे | ढाल , तलवार , कवच जैसे हथियारों का ज्ञान नहीं था |
⚈ टिन व तांबा मिला कर कांसा बनाया जाता था | टिन मध्य एशिया से तथा तांबा खेतड़ी ( राजस्थान ) से मंगाया जाता था | सोना दक्षिण भारत से मंगाया जाता था लाजवर्द मेसोपोटामिया से मंगाया जाता था |
⚈ ‘मेलुहा’ ( Meluha ) सिधु क्षेत्र का प्राचीन नाम था | ऋग्वेद में हड़प्पा सभ्यता को ‘हरियूपिया ‘ कहा गया है |
⚈ सिन्धु सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) की लिपि चित्रमय थी | ये चित्र भावों या वस्तुओं के प्रतीक थे | विभिन्न स्थानों की खुदाई से लगभग 400 लिपि चिह्न मिले हैं | यह लिपि बाएं से दाएं लिखी जाती थी |
सिंधु घाटी की सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
(1) नगर-योजना (Town Planning)
सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों की योजना उच्च कोटि की थी। आधुनिक भारत का नगर चण्डीगढ़ और इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध नगर लंकाशायर जैसे नियोजित नगरों के साथ सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों की तुलना की जाती है। एक चबूतरे पर सार्वजनिक भवन बने हुए थे। नगर चबूतरे से कुछ दूर थे। नगरों की सड़कें गलियों से अधिक चौड़ी थीं। कई सड़कों की चौड़ाई 20 फुट तक थी। ये पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर बनाई जाती थीं। ये सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ऐसा पवनों की दिशा को ध्यान में रखकर किया गया था। जब भी वायु चलती वह सड़कों का कूड़ा-करकट साथ ही उड़ा ले जाती थी। इससे नगर खण्डों में बँट जाता था। खण्डों में तंग गलियाँ भी थीं। सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष होते थे। रात के समय प्रकाश का प्रबन्ध भी होता था। एक सड़क की चौड़ाई 36 फुट से भी अधिक है, शायद यह राजमार्ग रहा होगा।
हड़प्पा घाटी सभ्यता की नगर-योजना की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं —
(i) निवास स्थान (Residence) — निवास स्थान भी हड़प्पा घाटी की सभ्यता की नगर-योजना की एक मुख्य विशेषता थी। मकान एक निश्चित योजना के आधार पर बनाए जाते थे। मकान में पक्की ईंटों का प्रयोग होता था। मकानों में गारा तथा चूने का प्रयोग होता था। मकानों के द्वार भिन्न-भिन्न प्रकार के होते थे। मकान तीन मंजिल तक होते थे। छतों के लिए शहतीर, बल्लियाँ और चटाई प्रयोग की जाती थीं। छत पर जाने के लिए सुन्दर सीढ़ियों का प्रबन्ध था। हर मकान में कुआँ, रसोई, कूड़ादान और स्नानघर थे। रसोईघर में छोटे-छोटे चबूतरे थे। मकान में हवा और प्रकाश का विशेष प्रबन्ध था। प्रत्येक मकान के बीच एक फुट का अन्तर होता था। मकानों का कोई भी हिस्सा सड़क अथवा गली की ओर नहीं होता था। सड़कों के मोड़ पर मकानों की दीवारों को गोल कर दिया जाता था। ऐसा पशुओं तथा बैलगाड़ियों की सुविधा के लिए किया जाता था। मकानों के निर्माण में गोल, चपटी तथा बड़े आकार की ईंटों का प्रयोग किया जाता था। मकानों के दरवाज़े और खिड़कियाँ सड़क की ओर नहीं खुलते थे। दरवाजों का आकार मकानों के अनुरूप होता था उनमें सांकल और कुण्डों की व्यवस्था थी। कुछ दरवाजे 18 फुट तक चौड़े मिले हैं।
(ii) विशाल भवन (Big Buildings) — मोहनजोदड़ो में मिला सबसे बड़ा भवन 230 फुट लम्बा और 78 फुट चौड़ा है। सम्भवतः यह किसी प्रशासक का निवास स्थान होगा। खुदाई से एक बड़ा हाल भी मिला है, जो नगरपालिका हाल समझा जाता है। एक बड़ा गोदाम और शिक्षा संस्था के भवन भी मिले हैं। गोदाम को एक चबूतरे पर इसलिए बनाया गया है ताकि वह बाढ़ से सुरक्षित रह सके।
खुदाई में एक विशाल स्नानघर भी मिला है, जिसकी लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 108 फुट है। इसमें एक पक्का तालाब है, जो 39.5 फुट लम्बा, 23.5 फुट चौड़ा तथा 8 फुट गहरा है। इसके एक ओर 8 स्नानघर भी मिले हैं। इनमें गर्म पानी की व्यवस्था थी। तालाब के पानी को बाहर निकालने का प्रबन्ध भी था। इस तालाब के समीप ही एक कुँआ बना हुआ है जो इस बात की पुष्टि करता है कि इससे तालाब में पानी भरा जाता था। इतिहासकारों का मत है कि यह तालाब धार्मिक अवसरों पर लोगों के नहाने के लिए प्रयोग किया जाता होगा। इस स्नानागार के विषय में डॉ० आर०के० मुकर्जी (Dr. R.K. Mukerjee) ने लिखा है — “The construction of such a swimming bath reflects great credit on the engineering of those days.”
इन भवनों में याद रखने योग्य एक अन्य बात यह है कि वे सुन्दर होने की अपेक्षा मज़बूत अधिक थे।
(iii) निकासी व्यवस्था ( Drainage System ) — खुदाई से पता चला है कि सिन्धु घाटी के नगरों की नालियाँ बहुत सुन्दर थीं । कुछ नालियाँ खुली हुई थीं तथा कुछ ढँकी हुई थीं। नालियों के ऊपर लगे पत्थरों को आसानी से हटाया जा सकता था। घरों की नालियाँ, मुख्य नालियों से मिलकर नगर के बाहर चली जाती थीं। घरों की छतों का पानी मिट्टी के पक्के पाइपों द्वारा नीचे लाने का विशेष प्रबन्ध था। कुछ बरसाती नाले भी मिले हैं। लोग सफाई का विशेष ध्यान रखते थे। घरों का कूड़ा नगर के बाहर गड्ढों में डाला जाता था। इतिहासकार ए०एल० बाशम (A.L. Basham) के अनुसार — “रोमन सभ्यता के काल तक किसी अन्य सभ्यता में नालियों की इतनी अच्छी व्यवस्था नहीं थी। “
(2) सामाजिक जीवन (Social Life)
हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक जीवन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं —
(i) भोजन (Food) — लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ, चावल, दूध तथा सब्जियाँ होती थीं। इस भोजन में गेहूँ को ओखली में कूटकर आटा बनाया जाता था। खुदाई से खजूर की गुठलियाँ भी मिली हैं। घरों और गलियों में पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली पकड़ने के काँटे भी मिले हैं। कछुओं की अनेक खोपड़ियाँ मिली हैं, जो ये सिद्ध करती हैं कि कुछ लोग माँसाहारी भी थे।
(ii) वेश-भूषा (Dress) — खुदाई के साधनों से पता चला है कि लोग सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े मौसम के अनुसार पहनते थे। उनके वस्त्र आजकल के वस्त्रों जैसे ही थे। पुरुष धोती पहनते थे और कन्धे पर शाल या चद्दर डालते थे। स्त्रियाँ रंगदार और बेलबूटों वाले वस्त्र पहनती थीं।
(iii) आभूषण (Ornaments) — पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही आभूषण पहनते थे। उस समय के आभूषण हार, कंगन, अँगूठी, चूड़ियाँ, बालियाँ आदि थीं। पाँव में कड़े पहनने का रिवाज था। अमीर लोग सोने, चाँदी और हाथी-दाँत के आभूषण तथा गरीब लोग ताँबे के आभूषण पहनते थे। इन आभूषणों की चमक आज भी यथावत है ।
(iv) साज-श्रृंगार — पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही शृंगार-प्रेमी थे। स्त्रियाँ सुरमा, सुर्खी, सुगन्धित तेल तथा कांस्य के दर्पण का प्रयोग करती थीं। भिन्न-भिन्न प्रकार से बालों को सँवारा जाता था। पुरुष भी मूछें, कलमें और बाल विचित्र ढंग से सँवारते थे। बालों को सँवारने के लिए हाथी दाँत के कन्धे प्रयोग होते थे। स्त्रियों को रूप-सज्जा का बहुत शौक था।
(v) मनोरंजन (Entertainment) — मनोरंजन के लिए प्रायः घरेलू खेल खेले जाते थे। नाचना एवं गाना लोगों के मनोरंजन के साधन थे। मोहरों से पता चलता है कि लोग जुआ भी खेलते थे। आधुनिक शतरंज जैसा भी एक खेल होता था। बच्चों के लिए अनेक प्रकार के खिलौने भी होते थे। ये खिलौने पत्थर, हाथी-दाँत, मिट्टी और ताँबे के बने होते थे। कुछ लोग शिकार भी करते थे। एक नाचने वाली लड़की का चित्र भी मिला है। झुनझुने और बैल-गाड़ियाँ आदि प्रमुख खिलौने भी मिले हैं।
(3) आर्थिक जीवन (Economic Life)
हड़प्पा सभ्यता के आर्थिक जीवन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं —
(i) कृषि (Agriculture) — लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। प्रायः गेहूँ, जौ और कपास की खेती की जाती थी। फल भी उगाए जाते थे। अनाज रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम भी मिले हैं। सिंचाई का प्रबन्ध भी जान पड़ता है।
(ii) पशुपालन (Animal Husbandry) — कृषि के कारण पशुओं का महत्त्व भी बढ़ गया था गया था। गाय, बैल, बकरी, भेड़, कुत्ते और सुअर पाले जाते थे। कुछ पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। कुछ बर्तनों पर भी अनेक पशुओं के चित्र अंकित किए हुए मिले हैं।
(iii) व्यापार (Trade) — व्यापार काफी उन्नत था। विदेशों से भी व्यापार होता था। व्यापार भूमि और समुद्री दोनों रास्तों से होता था। मिस्र तथा मेसोपोटामिया से उन लोगों के व्यापारिक सम्बन्ध थे। दजला-फरात की घाटियों के बाजारों में सिन्धु सभ्यता के लोगों का माल बिका करता था। अफगानिस्तान से सोना, चाँदी, शीशा आदि मँगवाया जाता था। वस्तुएं तोलने के लिए तराजू और बाट का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा में काँसे की एक घड़ी मिली है। इस घड़ी पर निश्चित दूरी पर चिह्न लगे हुए हैं। सम्भवतः यह घड़ी किसी पैमाने का काम देती थी। व्यापार सिक्कों द्वारा होता था। नदियाँ और पशु व्यापार के लिए प्रयोग होते थे। लोथल एवं रंगपुर की बन्दरगाहें थीं, जहाँ समुद्री जहाजों के बने हुए चित्र भी मिले हैं। जिससे पता चलता है कि व्यापार के लिए जल-मार्ग का प्रयोग भी होता है |
(iv) कुटीर उद्योग (Cottage Industries) — लोग काँसा, पीतल और मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। उच्च कोटि के खिलौने बनते थे। रुई कातना, कपड़ा बुनना, ईंटें बनाना, मकान बनाना, आभूषण बनाना आदि का काम सुन्दर ढंग से किया जाता था। उनके उद्योग-धन्धे बहुत उन्नत थे।
(4) राजनीतिक जीवन (Political Life)
राजनीतिक जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। परन्तु कुछ भवनों और वस्तुओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय राजनीतिक एकता की ओर संकेत था। चाहे उस समय के राजाओं और शासकों की उपाधियों का ज्ञान नहीं मिलता, फिर भी उनके कुशल शासन-प्रबन्ध का ज्ञान अवश्य होता है। उनके नियोजित नगरों, सड़कों का निर्माण, पक्की गलियाँ और नालियों का प्रबन्ध सराहनीय है। उस समय की सरकार प्रजा-हितों का ध्यान रखती थी। इसके अतिक्ति मोहनजोदड़ो और हड़प्पा किसी क्षेत्र की राजधानी थे, क्योंकि यहाँ अनेक प्रकार की मोहरें मिली हैं। भूमि-कर आय का मुख्य साधन था। विशाल गोदामों से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कर अनाज के रूप में लिया जाता था और उसे गोदामों में रखा जाता था। लोगों के पास कुछ शस्त्र भी थे। परन्तु लोग शान्तिप्रिय थे। उनके शस्त्र ताँबे, काँसे और सख्त पत्थर के बने होते थे। कुल्हाड़े, बरछे, भाले और छुरे उनके मुख्य हथियार थे। सिन्धु सभ्यता के लोग आक्रमणकारी नहीं थे, इसलिए उनके शस्त्र प्रायः बचाव के लिए थे।
(5) धार्मिक जीवन (Religious Life)
सिन्धु घाटी की सभ्यता के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —
(i) शिव की उपासना (Worship of Lord Shiva) — मोहरों पर एक देवता की मूर्ति मिली है। इसके तीन मुख हैं। यह चित्र चार पशुओं के साथ योग मुद्रा में है। सर जॉन मार्शल के अनुसार — “यह शिव का चित्र है। इसके चारों ओर पशुओं के चित्र अंकित हैं। इसके दाहिनी ओर हाथी और सिंह, बाईं ओर गैंडा और भैंसा तथा सम्मुख एक हिरण आदि के चित्र विद्यमान हैं।”
(ii) मातृदेवी (Mother Goddess) — मोहरों पर एक अर्ध-नग्न नारी का चित्र भी मिला है। उसकी कमर पर भाला है और उसका विशेष वस्त्र है। सर जॉन मार्शल ने उसे मातृदेवी कहा है। समय के साथ-साथ इस देवी को, हिन्दू धर्म में शक्ति का नाम दिया गया था।
(iii) मानव देवता (Man as a God) — उनके देवताओं के चित्र अधिकतर मानव के रूप में मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता के लोग अपने देवताओं को मानव के रूप में पूजते थे।
(iv) मूर्ति-पूजा (Idol Worship) — लिंग एवं योनि की अनेक मूर्तियों से सिद्ध होता है कि उन लोगों का मूर्ति-पूजा में विश्वास था। इसकी उपासना करके सम्भवतः वे लोग ईश्वर की सृजनात्मक शक्ति की उपासना करते होंगे। लिंग और योनि की पूजा आज भी हिन्दू धर्म में प्रचलित है।
(v) पशु-पूजा (Animal Worship) — खुदाई से पता चला है कि लोग कुबड़े बैल, बिल्ली, चीता आदि की पूजा करते थे। पशुओं को देवता माना जाता था। कुछ पशु विशेष प्रकार के हैं | कहीं उनका आधा शरीर मनुष्य का और आधा शरीर पशु का है और कहीं आधा हाथी का और आधा सांड का है। विद्वानों का विचार है कि अन्य पशुओं के साथ-साथ इन विचित्र पशुओं की भी पूजा होती थी। कुछ मोहरों पर नागों के चित्रों से अनुमान लगाया जाता है कि उस समय नाग-पूजा प्रचलित थी। सांड को शिव का वाहन मानकर उसकी पूजा की जाती थी।
(vi) मृतक का अन्तिम संस्कार (Last Rites of the Dead) — मृतक का अन्तिम संस्कार तीन प्रकार से किया जाता था। शवों को जलाकर, उन्हें दफनाकर और उन्हें निर्जन स्थान पर फेंककर अन्तिम संस्कार किया जाता था।
(vii) अन्य धार्मिक विश्वास (Some other Beliefs) — सिन्धु सभ्यता के लोग नीम और पीपल के वृक्षों की पूजा करते थे। एक घुग्धी ( फाख्ता ) पक्षी की पूजा का प्रमाण भी मिला है। साँप एवं नदियों की भी सम्भवतः पूजा होती थी। लोग अन्धविश्वासी थे और जादू-टोनों में विश्वास रखते थे। कुछ ताबीज़ों, मालाओं एवं सिक्कों से इस बात का संकेत मिलता है।
इससे यह सिद्ध हो जाता है कि सैंधव लोग किसी एक धर्म के अनुयायी न होकर मिश्रित धर्मों के अनुयायी थे। कुछ मोहरों पर स्वास्तिक और सूर्य के चारों ओर पाए जाने वाले चक्र को देखने से विद्वानों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि उन दिनों सूर्य की उपासना खुदाई में मिले हवनकुण्ड अग्नि की पूजा के प्रचलन का संकेत देते हैं। देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए संगीत और नृत्य का प्रयोग भी प्रचलित था।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि सिन्धु घाटी के लोगों की हिन्दू धर्म को बहुत देन है। शिव, मातृदेवी, लिंग-योनि, वृक्षों, पशुओं आदि की पूजा आज भी हिन्दू धर्म में प्रचलित है। डॉ० आर०सी० मजूमदार (Dr. R.C. Majumdar) के अनुसार — “We must therefore hold that there is an organic relationship between the ancient culture of the Indus valley and the Hinduism of today.”
(6) कला (Art) — हड़प्पा सभ्यता के लोग लेखन-कला से परिचित थे। खुदाई से कला की लगभग 400 मोहरें मिली हैं। उनकी लिपि चित्रमयी है। यह लिपि मिस्र एवं सुमेर देशों की लिपि से मिलती है। इस लिपि की गुत्थी सुलझने के बाद ही नए तथ्य सामने आएँगे। कुछ मोहरों पर पक्षियों और पशुओं के चित्र भी मिले हैं। बैल एवं सांडों के चित्र उनकी चित्रकला के सर्वोत्तम नमूने हैं। बर्तनों पर भी प्रकृति के दृश्य दर्शाए गए हैं। कुछ मकानों पर भी चित्रकारी मिली है। मूर्ति-कला के प्रमाण भी मिले हैं। नरम पत्थर और भूरी चट्टानों को काटकर सुन्दर मूर्तियाँ बनाई गई थीं। सांड की मूर्ति और शाल ओढ़े हुए योगी की मूर्तियाँ बहुत आकर्षक हैं। नग्न नर्तकी की मूर्ति भी बहुत सुन्दर है। सर जॉन मार्शल के अनुसार, इन मूर्तियों पर चौथी शताब्दी का यूनान भी गर्व कर सकता है। वे लोग संगीत एवं नृत्य-कला में भी निपुण थे। तबले और ढोलों के अनेक चित्र मिले हैं। पक्षियों के पंखों से सीटी बजाने का काम लिया जाता था। एक नर्तकी की नृत्य मुद्रा की मूर्ति मिली है, जो इस बात का संकेत है कि वे लोग नृत्य-कला में भी निपुण थे।
उपर्युक्त विवेचन से पता चलता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता अपने समय की महानतम सभ्यताओं में से एक थी | अपनी नगर योजना, कृषि, व्यापार आदि के आधार पर यह सभ्यता वैदिक सभ्यता से कहीं आगे थी |
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मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )
वाकाटक वंश व चालुक्य वंश ( Vakataka And Chalukya Dynasty )
पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )
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