हरियाणवी कविता की परंपरा ( Haryanvi Kavita Ki Parampara ) अत्यंत प्राचीन है | कुछ विद्वान हरियाणवी कविता का इतिहास भी हिंदी कविता के समानांतर मानते हैं | श्री राजाराम शास्त्री ने हरियाणवी कविता का आरंभ सातवीं-आठवीं सदी से माना है | अनेक आलोचक उनके मत को अस्वीकार करते हैं और इसे अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं | लेकिन फिर भी अधिकांश विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि हरियाणवी और उसकी बोलियों का प्रभाव नाथ साहित्य से लेकर भक्तिकाल की संत काव्य धारा, सूफी काव्य धारा, राम काव्य धारा एवं कृष्ण काव्य धारा में रहा है |
जहां तक आधुनिक हरियाणवी कविता का प्रश्न है उसे स्वतंत्रता के बाद से माना जा सकता है | आधुनिक हरियाणवी कविता में राष्ट्रीय चेतना, हरियाणवी संस्कृति का उद्घाटन, धार्मिक भावना आदि प्रवृत्तियों पर विशेष रूप से बल दिया गया है |
हरियाणवी कविता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —
(1) हरियाणा का गुणगान
आधुनिक हरियाणवी कवियों ने अपनी कविताओं में हरियाणा की प्रशंसा की है | उन्होंने अपनी कविताओं में हरियाणा की पावन भूमि के साथ-साथ यहां के लोगों की जीवन-शैली की भूरी-भूरी प्रशंसा की है | इन कवियों के अनुसार हरियाणा के लोग भोले-भाले, मेहनती, सदाचारी, देश-प्रेम की भावना तथा मानवता के गुणों से युक्त हैं |
देवी शंकर प्रभाकर ने हरियाणा की माटी की वंदना करते हुए लिखा है –
“हरियाणा की पावन धरती तेरा वंदन तेरा पूजन,
तेरी माटी शीश चढ़ाकर, हम कर ले तेरा अभिनंदन |”
(2) सामाजिक चेतना
आधुनिक हरियाणवी कविता अपने समाज का यथार्थ चित्रण करती है | इस कविता में समाज की यथार्थ झांकी मिलती है | हरियाणवी कविता में आज के जीवन में व्याप्त अनेक विषमताओं पर प्रकाश डाला गया है | भौतिकतावाद के कारण समाज में बढ़ते वैमनस्य, पारिवारिक क्लेश, बेरोजगारी के कारण व्याप्त निराशा, महंगाई, दहेज-प्रथा, कन्या-भ्रूण हत्या आदि विषयों को आधुनिक हरियाणवी कविता में स्थान दिया गया है | साथ ही प्रेम, सदभाव, व त्याग जैसे उदात्त गुणों को जीवन में अपनाने पर बल दिया गया है |
परिवार के सदस्यों में पारस्परिक प्रेम की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए हुए भारत भूषण सांघीवाल लिखते हैं —
“जिस घर में एक्का नहीं, रोज रहे तकरार |
नहीं कदे भी हो सकै, उसका बेड़ा पार ||”
(3) राष्ट्रीय-एकता व देश प्रेम की भावना
आधुनिक हरियाणवी कविता के माध्यम से कवियों ने केवल हरियाणा का ही गौरव-गान नहीं किया अपितु राष्ट्रीय-एकता की भावना पर भी बल दिया | इसमें देश की प्राकृतिक छटा का अत्यंत सुंदर एवं यथार्थ वर्णन मिलता है | देश की स्वतंत्रता से पहले हरियाणवी कविता में राष्ट्रीय आंदोलन की प्रेरणा मिलती है | स्वतंत्रता के पश्चात की हरियाणवी कविता में देश की स्वतंत्रता की रक्षा के साथ-साथ देश के विकास के लिए भी भारतीयों को प्रेरित किया गया है |
भारत भूषण सांघीवाल राष्ट्रीय-एकता और देश-प्रेम की भावना का संदेश देते हुए कहते हैं —
“भारतवासी भारत की तम लाज बचाइयो |
भाइयो, गोरयां के पैण्यां तै, मां न छुटवाइयो ||
जब मां के बेटे सां हम सब भाई-भाई |
हिंदू-मुसलमान चहे हों सिक्ख-ईसाई ||”
(4) भक्ति-भावना
भक्ति-भावना आधुनिक हरियाणवी कवियों की प्रमुख विशेषता कही जा सकती है | हरियाणवी कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं में विष्णु, राम, कृष्ण, शिव, गणेश, बुद्ध आदि देवी-देवताओं की महिमा का गान किया है | हरियाणवी कवियों ने देवी-देवताओं की लोक-प्रचलित कथाओं व प्रसंगों का वर्णन किया गया है |
जगदीश चंद्र वत्स अपनी एक कविता में कृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए लिखते हैं —
“दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर खा लिया |
दुःखिया निर्धन विप्र सुदामा झट, झट छाती कै ला लिया |”
(5) शोषितों के प्रति सहानुभूति तथा शोषकों के प्रति घृणा
आधुनिक हरियाणवी कविता प्रगतिवादी विचारधारा से स्पष्ट रूप से प्रभावित नजर आती है | अनेक हरियाणवी कवियों ने अपनी कविता में शोषितों के प्रति सहानुभूति तथा शोषकों के प्रति घृणा को उजागर किया है | मजदूरों और किसानों के शोषण को देखकर ये कवि चित्कार कर उठते हैं —
“देखे रोंगट खड़े होगे या मेरी छाती धड़कै |
गरीब किसान की ज़िन्दगी क्यूकर बितै सै मर पड़कै ||
गर्मी म्हं आकाश तपै सै कोरी आग बरसती |
निचै धरती आग उगलती दुनिया पड़े तरसती ||
(6) आशावादी स्वर
आधुनिक हरियाणवी कविता में आस्था और विश्वास का स्वर भी यत्र-तत्र दिखाई देता है | ये कवि अभाव, संघर्ष, दुख को जीवन का एक अंग तो मानते हैं परंतु उन्हें चिरस्थाई नहीं मानते | समय सदैव एक समान नहीं रहता | मनुष्य यदि साहस, परिश्रम और धैर्य से काम ले तो उसका जीवन फिर से सुखमय बन सकता है | कुछ परिस्थितियों में सुख-दुख केवल हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है | आधुनिक हरियाणवी कवियों की कविता में आशावाद का एक उदाहरण देखिए —
“एक बै ताऊ हँस कै तो देख ले रै,
खुद तै दूर हट कै तो देख ले रै |
राह में पत्थर ए नई सैं फूल बी सैं,
थोड़ा आँख खोल कै तो देख ले रै ||”
(7) हास्य-व्यंग्य
हास्य-व्यंग्य हरियाणवी कविता की पहचान रही है | इसे हरियाणवी कविता की प्रमुख विशेषता कहा जा सकता है | जहां एक तरफ आधुनिक हरियाणवी कवियों ने हास्य-व्यंग्य के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न बुराइयों पर प्रहार किया गया है वहीं हास्य-व्यंग्य के नाम पर फूहड़ अश्लीलता को भी परोसा गया है | वर्तमान में इस प्रकार के साहित्य ने हरियाणवी कविता की छवि को धूमिल किया है | आधुनिक हरियाणवी कविता में सार्थक व्यंग्य का एक उदाहरण देखिए —
“ईब का इंसान
भीतर तै कटपीस ऊपर तै थान |
ईब की नारी
ब्याह तै पैहलम तलाक की तैयारी |
ईब का नेता
जनता तै डबल रोल करण वाला अभिनेता |”
(8) कला-पक्ष
आधुनिक हरियाणवी कविता का कला-पक्ष भी भाव-पक्ष की भांति उत्कृष्ट है | हरियाणवी कवियों ने हरियाणा प्रदेश की लोक-भाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है | हरियाणवी कविता में मुख्यतः हरियाणवी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें तत्सम तथा तद्भव शब्दों के साथ-साथ देशी-विदेशी शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है | मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा आकर्षक, स्वाभाविक तथा प्रभावोत्पादक बन गई है | भाषा प्रसाद गुण संपन्न है | अत: अधिकांशत: अभिधामूलक शब्दावली का प्रयोग किया गया है | लेकिन विषयानुकूल लक्षणा तथा व्यंजना शब्द-शक्तियों का प्रयोग भी किया गया है |
जहाँ तक शैली का प्रश्न है, आधुनिक हरियाणवी कवियों ने वर्णनात्मक, संबोधन, प्रतीकात्मक, आत्मकथात्मक, विवरणात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है |
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