14वीं व 15वीं सदी में यूरोप में अनेक परिवर्तन हुए | इन परिवर्तनों का प्रभाव समाज, धर्म व राजनीति आदि हर क्षेत्र पर पड़ा | इन परिवर्तनों के कारण समाज के क्षेत्र में पुनर्जागरण तथा धर्म के क्षेत्र में धर्म सुधार आंदोलन, राजनीति के क्षेत्र में राष्ट्रवाद तथा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में वाणिज्यवाद का उदय कहा जा सकता है |
वाणिज्यवाद का अर्थ ( Vanijyavad Ka Arth )
वाणिज्यवाद का अर्थ बताना कठिन है क्योंकि भिन्न-भिन्न देशों में इसका स्वरूप भिन्न था | फिर भी सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि व्यापार एवं उद्योग को नियमित करके रुपया प्राप्त करने की नीति वाणिज्यवाद कहलाती है |
वस्तुतः वाणिज्यवाद एक प्रकार की व्यापारिक क्रांति थी | इसलिए इसे व्यापारवाद भी कहा जाता है | सर्वप्रथम एडम स्मिथ ने 1776 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘वेल्थ ऑफ नेशंस’ में ‘वाणिज्यवाद’ शब्द का प्रयोग किया था |
वाणिज्यवाद के उद्देश्य ( Vanijyavad Ke Uddeshya )
वाणिज्यवाद के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे : —
(क ) वाणिज्य तथा विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करना |
(ख ) सोने-चांदी का अधिक से अधिक संचय करना |
(ग ) राज्य एवं समाज का आर्थिक एकीकरण करना |
वाणिज्यवाद का काल ( Vanijyavad Ka Kaal )
वाणिज्यवाद के काल को लेकर विद्वानों में मतभेद है | कुछ विद्वान मानते हैं कि वाणिज्यवाद का उदय 14वीं सदी के अंतिम तथा 15वीं सदी के आरंभिक वर्षों में हुआ | कुछ अन्य विद्वान मानते हैं कि वाणिज्यवाद का उदय 17वीं सदी में हुआ | यह विचार एक दूसरे से भिन्न हैं | इन दोनों विचारों को सत्य नहीं माना जा सकता परंतु यह निष्कर्ष अवश्य निकाला जा सकता है कि वाणिज्यवाद 16वीं सदी से 18वीं सदी तक प्रचलित रहा |
वाणिज्यवाद के उदय के कारण ( Vanijyavaad Ke Uday Ke Karan )
वाणिज्यवाद के उदय के अनेक कारण थे जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारणों का विवरण निम्नलिखित है —
(1) पुनर्जागरण
पुनर्जागरण से पहले मनुष्य अंधविश्वासी था | उसका मुख्य लक्ष्य अगले जन्म का सुधार करना था परंतु पुनर्जागरण ने मनुष्य की सोच में परिवर्तन ला दिया | धर्म तथा मोक्ष का स्थान भौतिक सुखों ने ले लिया | वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ | धन कमाने के नवीन व सरल तरीकों की खोज शुरू हो गई | मानव-जीवन को सुखी बनाने के प्रयास शुरू हो गए | इसलिए वाणिज्यवाद की विचारधारा को प्रोत्साहन मिला |
(2) भौगोलिक खोजें
उत्तर मध्यकाल में अनेक भौगोलिक खोजें हुई | इसका कारण यह था कि 1453 ईस्वी में तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया | इससे एशिया व यूरोप के बीच मार्ग अवरुद्ध हो गया | एशिया से मसाले, कपड़े आदि आने बंद हो गए | अतः यूरोपवासी नए मार्गों की खोज में निकल पड़े | 1492 ईस्वी में कोलंबस ने अमेरिका की तथा 1498 में वास्को-डी-गामा ने भारत की खोज की | इससे यूरोप के देशों ने अनेक नए देशों में व्यापार का प्रसार किया | फलत: व्यापारिक क्रांति हुई, जिसे वाणिज्यवाद कहा जा सकता है |
(3) राष्ट्रीय राज्यों का उदय
वाणिज्यवाद के उदय का एक प्रमुख कारण था – राष्ट्रीय राज्यों का उदय | शक्तिशाली सम्राटों ने सामंतों का दमन शुरू कर दिया | उन्होंने स्थायी सेना रखनी शुरु कर दी तथा सामंतों की सैनिक शक्ति को समाप्त कर दिया | उनके दुर्गों को नष्ट कर दिया | इस प्रकार राष्ट्रीय राज्यों के उदय से सामंतवाद को ठेस पहुंची | शांति और सुरक्षा का माहौल स्थापित हुआ | यह बात वाणिज्यवाद के लिए वरदान सिद्ध हुई |
सम्राट अपने राज्यों का और अधिक विस्तार करना चाहते थे | इसके लिए धन की आवश्यकता थी | अतः इन शक्तिशाली राष्ट्रीय राज्यों ने व्यापार को विकसित करने की नीति अपनाई |
(4) धर्म सुधार आंदोलन
धर्म सुधार आंदोलन भी वाणिज्यवाद के उदय का प्रमुख कारण बना | धर्म-सुधार आंदोलन के नेताओं ने चर्च की आलोचना की | चर्च द्वारा आम जनता पर लगाए अनेक प्रतिबंधों की आलोचना की तथा मानव स्वतंत्रता का समर्थन किया | किस आंदोलन का एक प्रभाव यह पढ़ा की चर्च की शक्ति कमजोर पड़ने लगी, राष्ट्रीय राज्यों के उदय को बल मिला | चर्च द्वारा शोषित आम जनता भी राष्ट्रीय राज्यों के अधीन सुरक्षित अनुभव करने लगी |
धर्म-सुधार आंदोलन के नेताओं ने मानव की आर्थिक स्वतंत्रता का समर्थन भी किया जिसमें व्यक्तिगत संपत्ति रखने का अधिकार तथा निर्बाध व्यापार करने का अधिकार भी शामिल था | इससे वाणिज्यवाद की प्रवृत्ति का विकास हुआ |
(5) जनसंख्या वृद्धि
यूरोप में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या भी वाणिज्यवाद के उदय का कारण बनी | जनसंख्या वृद्धि दो प्रकार से वाणिज्यवाद के लिए सहायक बनी | एक ; जनसंख्या वृद्धि के कारण वस्तुओं की मांग बढ़ गई | मांग बढ़ने से वस्तुओं की कीमत बढ़ गई | अतः व्यापार तथा उद्योग को प्रोत्साहन मिला | दूसरे ; जनसंख्या वृद्धि के कारण अधिक मजदूर मिलने लगे | अतः मजदूरी सस्ती हो गई | इससे उद्योगों का विकास हुआ जिससे वाणिज्यवाद को प्रोत्साहन मिला |
(6) आर्थिक परिवर्तन
मध्यकाल के मध्य व अंतिम वर्षों में कुछ ऐसे आर्थिक परिवर्तन हुए जिन्होंने वाणिज्यवाद को बढ़ावा दिया | मध्यकाल के आरंभ में लोग वस्तुओं के बदले वस्तुओं का व्यापार करते थे परंतु बाद में मुद्रा का प्रचलन हो गया जिससे व्यापार सरल हो गया | इसके पश्चात बैंकों का उदय हुआ | कालांतर में सोने-चांदी के नए भंडारों के बारे में पता चला | इस क्षेत्र में विकास की अधिक संभावनाएं देखते हुए बड़े-बड़े प्रभावशाली लोग व्यापार के क्षेत्र में कूदने लगे | फलत: व्यापार में प्रतियोगिता आरंभ हो गई | यह सब बातें वाणिज्यवाद में सहायक सिद्ध हुई |
(7) राजनीतिक परिवर्तन
मध्यकाल में अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुए | सामंतवाद का पतन हो गया, राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ, चर्च की शक्ति के स्थान पर राज्य की शक्ति का महत्व बढ़ गया | समकालीन विद्वानों ने भी राज्य की शक्ति का समर्थन किया | जनता का विश्वास भी राज्य में बढ़ने लगा | राज्यों ने भी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए | इन बदली हुई परिस्थितियों में व्यापारी भी अब पहले की अपेक्षा अधिक उत्साह से व्यापार करने लगे | राज्य उनका संरक्षण करने लगा | इस प्रकार राजनीतिक परिवर्तन वाणिज्यवाद के उदय का प्रमुख कारण बने |
उपरोक्त विवेचन के आलोक में कहा जा सकता है कि वाणिज्यवाद वास्तव में एक व्यापारी क्रांति थी जिसके लक्षण 14वीं सदी के अंतिम वर्षों में देखे जाने लगे थे और जो 16वीं सदी के उत्तर्राद्ध में अपने चरम पर था | वाणिज्यवाद के उत्थान के लिए अनेक कारक उत्तरदायी थे जिनमें से पुनर्जागरण, नवीन अविष्कार, नई भौगोलिक खोजों आदि को प्रमुख माना जा सकता है | इनके परिणामस्वरूप कुछ ऐसे राजनीतिक व आर्थिक परिवर्तन हुए जो वाणिज्यवाद के पोषक बने |
वाणिज्यवाद की विशेषताएँ / लक्षण ( Vanijyavad Ki Visheshtaen /Lakshan )
वाणिज्यवाद की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं : —
(क ) सोने-चाँदी के संचय पर बल
वाणिज्यवाद में सोने-चांदी के संचय पर बल दिया गया | सोना-चांदी को संचित करने का एक प्रमुख कारण यह था कि अन्य वस्तुओं की तुलना में इनको संचित करना आसान था | दूसरे ; इनके द्वारा युद्ध सामग्री व अन्य महत्वपूर्ण सामग्री को खरीदा जा सकता था |
(ख ) विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन
सभी वाणिज्यवादी विचारक मानते थे कि वाणिज्यवाद में विदेशी व्यापार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है | उनके अनुसार अपने धन को बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका विदेशी व्यापार है |
(3) अनुकूल व्यापारिक संतुलन
अनुकूल व्यापारिक संतुलन का अर्थ है – आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक होना | सभी वाणिज्यवादी विचारक मानते हैं कि कोई भी देश विदेशी व्यापार के द्वारा दूसरे देश से बहुमूल्य धातुएँ प्राप्त कर सकता है परंतु यह तभी संभव है जब वह विदेशों को अधिक मात्रा में वस्तुएँ बेचे तथा कम से कम मात्रा में विदेशों से वस्तुएँ मंगवाए |
(4) उपनिवेशों की स्थापना पर बल
वाणिज्यवादी विचारकों के अनुसार विदेशी व्यापार की सुनिश्चितता के लिए उपनिवेशवाद आवश्यक है | उपनिवेशों की स्थापना से दो लाभ थे – (1) उपनिवेशों में तैयार माल को बेचा जा सकता था, (2) उपनिवेशों से आवश्यक कच्चा माल सस्ती कीमत पर खरीदा जा सकता था |
(5) औद्योगिक व व्यापारिक नियंत्रण
वाणिज्यवादियो ने औद्योगिक व व्यापारिक नियंत्रण का परामर्श दिया | इस संबंध में दो बातों को महत्व दिया गया – (1) आयात को प्रतिबंधित करना या कुछ विशेष कंपनियों को ही आयात की सुविधा देना, (2) निर्यात को बढ़ाने तथा आयात को कम करने के लिए अनेक प्रकार के करों को लागू करना |
(6) जनसंख्या वृद्धि पर बल
लगभग सभी वाणिज्यवादियों में जनसंख्या बढ़ाने का सुझाव दिया | उन्होंने जनसंख्या को राष्ट्र की राजनीतिक, आर्थिक व सैन्य शक्ति का सूचक माना |
अतः स्पष्ट है कि वाणिज्यवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें व्यापार पर बल दिया जाता है | सोने-चाँदी का संचय, अनुकूल व्यापार संतुलन, उपनिवेशों की स्थापना आदि इसकी मुख्य विशेषताएं हैं |
वाणिज्यवाद का मूल्यांकन ( Vanijyavad Ka Mulyankan )
वाणिज्यवाद का मूल्यांकन करने के लिए इसकी त्रुटियाँ तथा इसके महत्व को जानना आवश्यक होगा —
वाणिज्यवाद की त्रुटियां या हानियाँ
(2) वाणिज्यवाद संकुचित राष्ट्रीयता के सिद्धांत पर आधारित था |
(2) यह लोक कल्याण की भावना के विरुद्ध था | इसमें श्रमिक वर्ग का अत्यधिक शोषण किया गया |
(3) इससे कृषि को हानि पहुंची |
(4) वाणिज्यवाद ने उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया | वाणिज्यवादी देशों ने अपने अधीन उपनिवेश ओं का खूब शोषण किया |
(5) वाणिज्यवाद के कारण उद्योगों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया |
संभवत: उपर्युक्त त्रुटियों के कारण ही वाणिज्यवाद का पतन हुआ |
वाणिज्यवाद का महत्व
(1) वाणिज्यवाद ने राज्य को शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया | वाणिज्यवाद सामंतवाद के पतन का महत्वपूर्ण कारण बना |
(2) वाणिज्यवाद के कारण चर्च की शक्तियों पर अंकुश लगा |
(3) वाणिज्यवाद के कारण विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला | वास्तव में अंतरराष्ट्रीय व्यापार वाणिज्य वाद की ही देन है | विभिन्न देशों की पारस्परिक निर्भरता बढ़ने लगी |
(4) इंग्लैंड जर्मनी फ्रांस आदि यूरोपीय देश वाणिज्यवाद के कारण ही विश्व शक्ति बनकर उभरे |
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