इटली एक प्राचीन देश है | यह हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों का शिकार रहा | इसका उत्तरी भाग ऑस्ट्रिया के अधीन था | दक्षिण भाग पर बूर्वो वंश के शासकों का अधिकार था | इस प्रकार इटली अनेक छोटे-छोटे भागों में बटा हुआ था | इटली का एकीकरण एक लंबे संघर्ष के बाद सम्भव हुआ जिसने न केवल यूरोप बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया |
इटली का एकीकरण ( Italy Ka Ekikaran )
इटली के एकीकरण ( Italian Unification ) को निम्नलिखित चरणों में बांटा जा सकता है :–
(क ) प्रथम चरण : राष्ट्रीय जागृति और असफल प्रयास
इटली के एकीकरण के प्रथम चरण में उन सभी कारणों, अवस्थाओं व प्रयासों को लिया जा सकता है जिन्होंने इटली में राष्ट्रीय जागरण में महती भूमिका निभाई | इटली में राष्ट्रीयता की भावना के उदय में निम्नलिखित कारण महत्वपूर्ण थे —
(1) 1789 ईस्वी की फ्रांस की क्रांति और इटली
1789 ईस्वी की फ्रांस की क्रांति से पूर्व इटली अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बटा हुआ था | इटली के उत्तरी भाग पर ऑस्ट्रिया, मध्य भाग पर हैप्सबर्ग वंश तथा दक्षिण में बूर्वो वंश का शासन था | रोम पर पोप का नियंत्रण था | 1789 ईस्वी की क्रांति का यहां कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा परंतु स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृता के सिद्धांत धीरे-धीरे लोगों तक अवश्य पहुंचने लगे |
(2) नेपोलियन तथा इटली
नेपोलियन ने इटली में अनेक विजयें प्राप्त की | इससे इटली एक सूत्र में बंधने लगा | कुछ प्रजातंत्रात्मक संस्थाओं की स्थापना हुई | लोगों में राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होने लगी |
(3) वियना संधि और इटली
वियना संधि 1815 ईस्वी में हुई | इससे इटली में फ्रांस की क्रांति का प्रभाव समाप्त हो गया | लोंबार्ड़ी और वेनेशिया के राज्य ऑस्ट्रिया के अधीन कर दिए गए, मध्य इटली के राज्य हैप्सबर्ग वंश के शासकों को सौंप दिए गए, नेपल्स व सिसली में बूर्वो वंश का शासन हो गया |इससे इटली पूरी तरह से विखंडित हो गया |
(4) मेटरनिख और इटली
इटली में मेटरनिख का प्रभाव था | इसलिए वहाँ विचारों का दमन किया गया | समाचार पत्रों और जनसभाओं पर रोक लगा दी गई | उदारता और राष्ट्रीयता को कुचल दिया गया परंतु देशभक्तों ने साहस नहीं छोड़ा | गुप्त संगठन बनाए गए | मेटरनिख इन संगठनों की सभी योजनाओं को असफल बनाता रहा जिससे राष्ट्रीयता की भावना व इटली के पुनः एकीकरण के प्रयासों को गहरा धक्का लगा |
(5) इटली के एकीकरण की विभिन्न योजनाएं
इटली के एकीकरण के बारे में नेताओं में मतभेद था | मैजिनी गणतंत्र के पक्ष में था | कुछ अन्य नेता इसके पक्ष में नहीं थे | वह पोप के अधीन संघ बनाने के पक्ष में थे | कुछ नेता सार्डिनिया-पिडमांट के नेतृत्व में इटली का एकीकरण चाहते थे | 1848 ईस्वी की क्रांति के पश्चात | पिडमांट की सरकार ने इटली के एकीकरण का कार्यभार संभाला |
(6) 1848 ईस्वी की क्रांति का प्रभाव
1848 ईस्वी की क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप के कई देशों में क्रांति हुई | ऑस्ट्रिया में भी क्रांति हुई | मेटरनिख को देश छोड़कर भागना पड़ा | पिडमांट को स्वर्णिम अवसर मिला | उसने ऑस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया परंतु आरंभिक सफलताओं के बाद हार का सामना करना पड़ा | योजना असफल हो गई |
(ख ) दूसरा चरण : पिडमांट के अधीन एकीकरण
इटली के एकीकरण के दूसरे चरण में पिडमांट के प्रधानमंत्री कैवूर और उसके सेनापति गैरीबाल्डी के प्रयासों को शामिल किया जा सकता है जिनका वर्णन निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है –
(1) कावूर का प्रधानमंत्री बनना
1852 ईस्वी में कावूर / कैवूर पीडमांट का प्रधानमंत्री बना और एक नए युग का आरंभ हुआ | उसने पीडमांट को शक्तिशाली बनाने के लिए अनेक प्रयास किए | कृषि क्षेत्र में अनेक सुधार किए गए | सेना का पुनर्गठन किया गया | दुर्गों का पुनर्निर्माण करवाया गया, पुराने दुर्गों की मरम्मत की गई | सड़क और रेल लाइनों का निर्माण करवाया गया | थोड़े ही समय में पीडमांट एक शक्तिशाली राज्य बन गया |
(2) क्रीमिया का युद्ध ( 1854-56 )
कावूर जानता था कि बिना विदेशी सहायता के इटली का एकीकरण असंभव है | 1854-56 ईस्वी के क्रीमिया के युद्ध में उसे यह अवसर मिला | उसने रूस के खिलाफ इंग्लैंड और फ्रांस का साथ देने की योजना बनाई | योजना सफल हुई | रूस की पराजय हुई | कावर को इंग्लैंड और फ्रांस का समर्थन मिल गया |
(3) मध्य इटली के राज्यों पर अधिकार
पीडमांट की ऑस्ट्रिया पर विजय का यह प्रभाव पड़ा कि मध्य इटली के प्रदेशों में भी लोगों ने विद्रोह कर दिया | यह राज्य थे – टस्की, परमा, मेडोना आदि | इन राज्यों ने पीडमांट के साथ विलय की इच्छा प्रकट की | 1860 ईस्वी में जनमत द्वारा इन्हें इटली में शामिल कर लिया गया |
(ग ) तीसरा चरण : दक्षिणी राज्यों का विलय
नेपल्स और सिसली दक्षिण के राज्य थे | इन पर बूर्वो वंश का शासन था | यह राज्य भी पीडमांट के अधीन विलय चाहते थे | गैरीबाल्डी ने 1860 ईस्वी में नेपल्स और सिसली में विजय प्राप्त की | वहाँ के लोगों ने जनमत के आधार पर पीडमांट के साथ विलय स्वीकार कर लिया |
(घ ) चौथा चरण : ऑस्ट्रिया का प्रभाव समाप्त
1861 ईस्वी में कावूर की मृत्यु हो गई | वेनेशिया अभी ऑस्ट्रिया के अधीन था | रोम पर पोप का अधिकार था | इटली के एकीकरण के अगले चरण में प्रशा और उसके महान नेता बिस्मार्क ने पिडमांट का साथ दिया |
ऑस्ट्रिया -प्रशा युद्ध (1866 ईस्वी )
1866 ईस्वी में प्रशा और ऑस्ट्रिया का युद्ध हुआ | प्रशा के बिस्मार्क ने इटली से गुप्त संधि की जिसके अनुसार इटली को प्रशा की सैनिक सहायता करनी थी | इस युद्ध में इटली ने ऑस्ट्रिया को वेनेशिया में व्यस्त रखा | ऑस्ट्रिया दो तरफ के हमले से कमजोर पड़ने लगा | परिणामस्वरूप प्रशा ने ऑस्ट्रिया को सेडोना के स्थान पर पराजित कर दिया | इस युद्ध के पश्चात प्राग के स्थान पर एक संधि हुई | इस संधि के अनुसार वेनेशया पर इटली का अधिकार हो गया |
(ङ ) पाँचवाँ और अंतिम चरण : पोप के प्रभाव का अंत
रोम की प्राप्ति के बिना इटली का एकीकरण अधूरा था | रोम की रक्षा फ्रांस की सेना करती थी | रोम की विजय और पोप के प्रभाव का अंत फ्रांस-प्रशा युद्ध ( 1870-71 ) के पश्चात हुआ |
फ्रांस-प्रशा युद्ध (1870-71 )
1870-71 ईस्वी में फ्रांस और प्रशा का युद्ध हुआ | फ्रांस के लाखों सैनिकों को बंदी बना लिया गया | नेपोलियन तृतीय ने फ्रांसीसी सेना बुला ली परंतु उसे पराजय का सामना करना पड़ा | विक्टर इमैनुअल द्वितीय ने रोम पर अधिकार कर लिया | पोप ने थोड़े से विरोध के बाद हथियार डाल दिए | 1871 ईस्वी में रोम को संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया | इस प्रकार इटली के एकीकरण का दुष्कर कार्य संपन्न हुआ | फ्रांस-प्रशा युद्ध ने जर्मनी का एकीकरण ( Unification of Germany ) करने में भी निर्णायक भूमिका निभाई |
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि इटली का एकीकरण विक्टर इमैनुअल द्वितीय का नेतृत्त्व, कावूर की राजनीति, गैरीबाल्डी की सैनिक योग्यता और मैजिनी की देशभक्ति का परिणाम था |
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