पदोन्नति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं व आधार या सिद्धांत

पदोन्नति का अर्थ व सिद्धांत

पदोन्नति का अर्थ जानने के लिए इसकी व्युत्पत्ति को जानना आवश्यक होगा |

पदोन्नति को अंग्रेजी भाषा में ‘प्रमोशन’ ( Promotion ) कहते हैं जो लैटिन भाषा के ‘प्रियोवीर’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है – पद, स्तर या सम्मान में वृद्धि होना या आगे बढ़ना |

पदोन्नति की परिभाषा ( Padonnati Ki paribhasha )

पदोन्नति की परिभाषा अनेक विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से दी है |

डॉ प्रकाश चंद्र के अनुसार — “पदोन्नति का अर्थ है निम्नतर श्रेणी से उच्चतर श्रेणी की ओर जाना तथा अधिक कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना |”

डॉक्टर एल डी व्हाइट के अनुसार — “पदोन्नति का अर्थ है निम्न पद से उच्च पद की ओर गति करना जिससे कार्य, सम्मान तथा वेतन में वृद्धि होती है |”

पदोन्नति की विशेषताएं ( Padonnati Ki Visheshtaen )

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर पदोन्नति की निम्नलिखित विशेषताएं पता चलती हैं —

(1) उच्च पद की प्राप्ति

(2) पहले से अधिक तथा महत्वपूर्ण कार्य

(3) वेतन में वृद्धि

(4) उत्तरदायित्व में वृद्धि

(5) कर्मचारी के पदनाम में परिवर्तन |

उपर्युक्त परिभाषाओं एवं विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि पदोन्नति कर्मचारी के सम्मान का सूचक है | जिसमें उसे वर्तमान पद की अपेक्षा उच्च पद प्रदान किया जाता है जहां उसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य सौंपे जाते हैं तथा इसके लिए उसे अधिक वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं |

पदोन्नति के आधार या सिद्धांत ( Padonnati Ke Aadhar Ya Siddhant )

किसी भी संगठन में उच्च पद सीमित होते हैं | अतः इन उच्च पदों के लिए कुछ निश्चित सिद्धांतों की आवश्यकता होती है | यह सिद्धांत पूर्व परिभाषित होने चाहिए नहीं तो कर्मचारियों में आपसी संघर्ष, उदासीनता व हीनता की भावना आ सकती है | प्रायः पदोन्नति के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों को अपनाया जाता है —

(क ) वरिष्ठता का सिद्धांत

(ख ) योग्यता का सिद्धांत

(ग ) वरिष्ठता एवं योग्यता का सिद्धांत |

(क ) पदोन्नति का वरिष्ठता सिद्धांत ( Padonnati Ka Varishthata Siddhant )

वरिष्ठता से अभिप्राय किसी विशेष पद या श्रेणी में सेवा की अवधि से है | यह एक सामान्य सिद्धांत है | इसमें मात्र सेवा की अवधि ही पदोन्नति का आधार है | इसके अनुसार दीर्घ सेवा की अवधि वालों को ही पदोन्नति दी जाती है | जो लोग वरिष्ठता क्रम में सबसे ऊपर आते हैं, सबसे पहले पदोन्नति पाते हैं | इस सिद्धांत में वरिष्ठता की एक सूची बनाई जाती है तथा सेवा की अवधि के आधार पर उनका वरिष्ठता क्रमांक निर्धारित किया जाता है |

वरिष्ठता सिद्धांत के गुण या लाभ

वरिष्ठता सिद्धांत के कुछ गुण निम्नलिखित हैं —

(1) यह सिद्धांत लोकतांत्रिक है | इसमें बिना भेदभाव के सभी को पदोन्नति के समान अवसर मिलते हैं |

(2) इस सिद्धांत में अनुभव को महत्व दिया जाता है | अनुभवी व्यक्ति संगठन के लिए लाभदायक सिद्ध होते हैं |

(3) इस सिद्धांत से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है | कर्मचारी पूर्ण निष्ठा से अपना काम करते हैं |

(4) यह सिद्धांत वस्तुनिष्ठता पर आधारित है | इसमें व्यक्ति की शक्ल का नहीं बल्कि उसकी सेवा का आधार लिया जाता है |

(5) पदोन्नति के वरिष्ठता सिद्धांत का एक अच्छा गुण यह है कि इसमें प्रायः अधिक उम्र वाले लोग उच्च पद हासिल करते हैं | इससे कम उम्र वाले निम्न अधिकारी आसानी से उनके आदेश मान लेते हैं | यदि कम उम्र के व्यक्ति को उच्च पद मिल जाए तो शायद अधिक उम्र वाले निम्न अधिकारी उसकी आज्ञा का पालन न करें या उच्च अधिकारी को ही उनको आदेश देने में संकोच का अनुभव हो |

(6) पदोन्नति के वरिष्ठता सिद्धांत के कारण लोक सेवा में लोगों का आकर्षण बढ़ता है | उनकी पदोन्नति सुनिश्चित होती है | अतः वे इस लोक सेवा को ही अपनी आजीविका बनाना चाहते हैं |

(7) इस सिद्धांत के कारण सेवाओं में स्थायित्व बना रहता है क्योंकि कर्मचारी को विश्वास होता है कि उसकी पदोन्नति अवश्य होगी | इसलिए वह दूसरी सेवाओं की ओर नहीं भागते और दिल लगाकर वहीं बने रहते हैं |

वरिष्ठता सिद्धांत के दोष या अवगुण

पदोन्नति के वरिष्ठता सिद्धांत में यदि कुछ गुण है तो कुछ दोष भी हैं | इस सिद्धांत के कुछ अवगुण निम्नलिखित है —

(1) इस सिद्धांत का सबसे बड़ा दोष यह है कि वरिष्ठता के आधार पर अयोग्य व्यक्ति भी कई बार पदोन्नति पाकर उच्च अधिकारी बन जाते हैं | इससे अधीनस्थ अधिकारियों में निराशा उत्पन्न हो जाती है |

(2) इस सिद्धांत से एक हानि यह है कि कर्मचारी अपनी योग्यता बढ़ाने का प्रयास नहीं करते | कर्मचारियों में परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है |

(3) यह सिद्धांत युवा व होनहार कर्मचारियों के लिए अन्यायपूर्ण है |

(4) पदोन्नति के वरिष्ठता सिद्धांत में योग्य व्यक्तियों को अलग से कोई पारितोषिक नहीं मिलता | योग्य तथा अयोग्य सभी को एक ही लाठी से हाँका जाता है |

(5) यह सिद्धांत रूढ़िवादिता को जन्म देता है क्योंकि इस सिद्धांत के आधार पर पदोन्नति हासिल करने वाले कर्मचारी प्रायः रूढ़िवादी होते हैं | वे परंपरागत ढंग से काम करते हैं | वे नवीन व वैज्ञानिक तरीकों को नहीं अपनाते |

(6) पदोन्नति का वरिष्ठता सिद्धांत इस आधार पर अलोकतांत्रिक है कि इसमें उच्च पद केवल वरिष्ठ कर्मचारियों के लिए आरक्षित हो जाते हैं और सभी कर्मचारियों को उच्च पदों के लिए प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के समान अवसर नहीं मिलते |

(ख ) पदोन्नति का योग्यता सिद्धांत ( Padonnati Ka Yogyata Siddhant )

पदोन्नति के आधारों में योग्यता का सिद्धांत सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | इस सिद्धांत के अनुसार सबसे अधिक योग्य व्यक्ति को पदोन्नति का अवसर मिलना चाहिए | यह सिद्धांत विश्वास करता है कि जो व्यक्ति अधिक योग्य, परिश्रमी तथा प्रतिभावान है उसे ही पदोन्नत किया जाना चाहिए | अक्षम व अयोग्य व्यक्तियों को पदोन्नति से वंचित रखना चाहिए |

योग्यता सिद्धांत के गुण

पदोन्नति के योग्यता सिद्धांत को अपनाने के निम्नलिखित लाभ हैं —

(1) पदोन्नति के योग्यता सिद्धांत को अपनाने से योग्य, कुशल एवं परिश्रमी व्यक्ति लोक सेवक के रूप में मिलते हैं | इससे प्रशासन में कुशलता आती है |

(2) इस सिद्धांत का एक लाभ यह है कि लोक सेवक अपनी योग्यता को सिद्ध करने के लिए कठिन मेहनत करते हैं | वे अधिक लगन से काम करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो पदोन्नति से पिछड़ जाएंगे |

(3) यह सिद्धांत व्यक्तियों की क्षमताओं पर ध्यान देता है | अतः यह सिद्धांत वैज्ञानिक व न्यायसंगत है |

(4) योग्यता सिद्धांत को अपनाने से योग्य व्यक्ति लोक सेवा की ओर आकृष्ट होते हैं |

(5) योग्यता सिद्धांत को अपनाने से कर्मचारी निरंतर अपनी योग्यताओं को बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं | इससे प्रशासन में कुशलता आती है |

योग्यता सिद्धांत के अवगुण या दोष

पदोन्नति के योग्यता सिद्धांत के कुछ अवगुण निम्नलिखित हैं —

(1) इस सिद्धांत का एक दोष यह है कि योग्यता निर्धारण की ऐसी कोई विधि नहीं है जिसे पूर्ण कहा जा सके | योग्यता निर्धारण की प्रतीक विधि में कुछ दोष हैं |

(2) पदोन्नति के योग्यता सिद्धांत को अपनाने से कई बार अनुभवी लोग पदोन्नति से वंचित रह जाते हैं |

(3) पदोन्नति के योग्यता सिद्धांत में पक्षपात की संभावना सदैव बनी रहती है | इस सिद्धांत में योग्यता निर्धारित करने वाले व्यक्ति कई बार किसी चापलूस व्यक्ति को योग्य करार दे देते हैं तथा कई बार व्यक्तिगत कारणों से किसी योग्य व्यक्ति को भी अयोग्य घोषित कर देते हैं |

(ग ) पदोन्नति का वरिष्ठता एवं योग्यता सिद्धांत ( Padonnati Ka Varishthata Avam Yogyata Siddhant )

उपर्युक्त विवेचन से हम जान चुके हैं कि वरिष्ठता एवं योग्यता दोनों सिद्धांतों के कुछ गुण-दोष है | ऐसी अवस्था में पदोन्नति के लिए तीसरी विधि कहीं अधिक कारगर सिद्ध होगी जिसमें वरिष्ठता एवं योग्यता दोनों का समन्वय मिलता है | यही कारण है कि भारत में पदोन्नति के लिए वरिष्ठ का सिद्धांत, योग्यता सिद्धांत व वरिष्ठता-सया-योग्यता सिद्धांत ; तीनों का प्रचलन मिलता है |

भारत में पदोन्नति निम्नलिखित तीन बिंदुओं पर आधारित होती है —

(1) उच्च स्तरीय पदों पर पदोन्नति योग्यता सिद्धांत के आधार पर होती है |

(2) मध्य-स्तरीय पदों पर पदोन्नति वरिष्ठता-सया-योग्यता सिद्धांत के आधार पर होती है |

(3) निम्न स्तरीय पदों पर पदोन्नति वरिष्ठता के सिद्धांत के आधार पर होती है |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि पदोन्नति के लिए अपनाए जाने वाले सिद्धांतों में योग्यता का सिद्धांत अधिक उपयोगी है परंतु योग्यता निर्धारण की विधि न्यायसंगत, निष्पक्ष व उचित होनी चाहिए ताकि किसी योग्य व्यक्ति के साथ अन्याय न हो |

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