स्पाइलर के अनुसार — “दो विपरीत वायुराशियों के मिलन-स्थल को वाताग्र कहते हैं |”
साधारणत: वाताग्र न तो धरातलीय सतह के समानांतर होता है और न ही उस पर लंबवत होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका हुआ होता है |
पृथ्वी पर सभी स्थानों पर वाताग्र का ढाल एक समान नहीं होता | वास्तव में यह ढाल पृथ्वी के घूर्णन पर निर्भर करता है | भूमध्य रेखा पर वाताग्र का ढाल लगभग शून्य होता है परंतु ज्यों-ज्यों हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हैं त्यों-त्यों ढाल बढ़ता जाता है |
आधुनिक समय में मौसम संबंधी जटिलताओं को समझने के लिए वाताग्र का बहुत अधिक महत्व है | वाताग्र मौसम संबंधी विशिष्ट परिस्थितियों को जन्म देते हैं जिन्हें चक्रवात ( Cyclone ) एवं प्रतिचक्रवात ( Anticyclone ) कहते हैं |
वास्तव में वाताग्र ही चक्रवातों तथा प्रतिचक्रवातों के जन्मदाता हैं और इसलिए वाताग्रों को ‘चक्रवातों तथा प्रतिचक्रवातों के पालने वाले’ कहा जाता है |
वाताग्र की उत्पत्ति के कारण
वाताग्र उत्पत्ति निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर करती है —
(1) भौगोलिक कारक
जब कभी ताप में आर्द्रता संबंधी दो विभिन्न गुणों वाली वायु राशियां एक दूसरे के निकट आती हैं तो वाताग्र उत्पन्न होता है | उदाहरण के लिए उत्तरी अमेरिका में जब उत्तर की ओर से आने वाली शीतल व शुष्क वायु दक्षिण की ओर से आने वाली उष्ण व आर्द्र वायु से मिलती है तो वाताग्र उत्पन्न होता है |
(2) गतिक कारक
वातावरण की उत्पत्ति के लिए विभिन्न वायुराशियों में गति होना अति आवश्यक है |
विभिन्न वायु राशियों के समीप आने को अभिसरण ( Convergence ) कहते हैं |
वाताग्र की उत्पत्ति के लिए अभिसरण अति दूर जाने की प्रक्रिया को अपसरण ( Divergence ) कहते हैं | यह वाताग्र की उत्पत्ति में बाधक होता है |
वाताग्र के प्रकार
वाताग्र के मुख्यतः निम्नलिखित चार प्रकार होते हैं —
(1) उष्ण वाताग्र ( Warm Front )
जब उष्ण व हल्की वायु राशि आक्रामक रूप में शीतल व भारी वायु राशि के ऊपर चढ़ती है तो उष्ण वाताग्र का निर्माण होता है |
उष्ण वाताग्र का ढाल मन्द होता है | उष्ण वाताग्र का ढाल हल्का होने के कारण मौसम में धीरे-धीरे परिवर्तन आता है | प्रायः मौसम के परिवर्तन में कई दिन लग जाते हैं |
किसी स्थान पर उष्ण वाताग्र बनने का सबसे पहला चिह्न पक्षाभ मेघों ( Cirrus Clouds ) का प्रकट होना है | अगले दिन बादल बहुत नीचे हो जाते हैं और वर्षा स्तरीय मेघ छा जाते हैं |
आकाश पूर्णत: मेघों से ढक जाता है | तीसरे दिन वर्षा शुरू हो जाती है और एक या दो दिन निरंतर होती रहती है | इसके बाद कुहरा छा जाता है | जब पवन दक्षिण-पश्चिम की ओर घूमती है तो आकाश साफ और मौसम गर्म एवं आर्द्र हो जाता है |
(2) शीतल वाताग्र ( Cold Front )
जब शीतल एवं भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण एवं हल्की वायु को ऊपर उठा देती है तो शीतल वाताग्र ( Cold Front ) का निर्माण होता है |
शीतल वाताग्र का ढाल उष्ण वाताग्र के ढाल से लगभग 4 गुना अधिक तीव्र होता है | इस अवस्था में शीतल वायु आक्रमक होती है जो कि उष्ण वायु को ऊपर की ओर धकेल दी है |
शीतल वाताग्र को गुजरने में कुछ ही घंटे लगते हैं क्योंकि इसका ढाल तीव्र होता है | वायु का वेग 50 किलोमीटर से 75 किलोमीटर प्रति घंटा होता है | यदि यह कुछ देर के लिए रुकता है तो कपासी वर्षा मेघ ( Cumulo Nimbus ) छा जाते हैं और तड़ित झंझा ( Thunder Storm ) बन जाती है | वर्षा तीव्रता से आतती है परंतु थोड़े समय के लिए ही होती है |
कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं | जल्दी ही तापमान बहुत कम हो जाता है परंतु वायुदाब बढ़ जाता है | विशिष्ट तथा सापेक्ष आर्द्रता में कमी आती है |
शीतल वाताग्र के गुजर जाने पर बादल छंट जाते हैं और वर्षा रुक जाती है | इसके पश्चात उत्तरी-पश्चिमी ठंडी हवाएं चलने लगती हैं |
(3) अधिविष्ट वाताग्र ( Occluded Front )
सामान्यत: शीतल वाताग्र उष्ण वाताग्र की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलता है | जब शीतल वाताग्र तीव्र गति से चलकर उष्ण वाताग्र से मिल जाता है और धरातल के साथ उष्ण वायु का संपर्क समाप्त हो जाता है तो अधिविष्ट वाताग्र ( Occluded Front ) का निर्माण होता है | अधिविष्ट वाताग्र के मौसम से संबंध के विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता |
(4) स्थायी वाताग्र ( Stationary Front )
जब दो विपरीत लक्षणों वाली वायुराशियां एक दूसरे के समानांतर चलकर एक वाताग्र के रूप में अलग होती हैं तो कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती और एक स्थाई वाताग्र ( Stationary Front ) का निर्माण होता है |
वाताग्र के क्षेत्र
विश्व में वाताग्र के मुख्यत: तीन प्रदेश हैं —
(1) आर्केटिक वाताग्र प्रदेश
(2) ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश
(3) अंतः उष्ण कटिबंधीय वाताग्र प्रदेश
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