समुद्री-संसाधन
महासागर से अनेक प्रकार के समुद्री संसाधन प्राप्त होते हैं जिन्हें हम मुख्य रूप से तीन वर्गों में बांट सकते हैं — (1 ) जीवीय संसाधन, (2 ) खनिज संसाधन एवं (3 ) ऊर्जा संसाधन |
(1 ) जीवीय संसाधन
समुद्री जल में लाखों किस्म के जीव रहते हैं जिनका प्रयोग मनुष्य अपने लाभ के लिए करता है | मुख्य जीवीय संसाधन मत्स्य ग्रहण एवं समुद्री कृषि है |
(क ) मत्स्यन ( Fishing )
महासागर में अनेक प्रकार के जीव एवं वनस्पति उत्पन्न होती है जिनका प्रयोग मनुष्य भोजन के रूप में करता है | अनुमान है कि 1,40,000 विभिन्न प्रकार के जीव महासागरीय जल में रहते हैं |
अधिकांश मछलियां महाद्वीपीय निमग्न तटों पर 100 फैदम ( फैदम समुद्र की गहराई मापने की इकाई है ; एक फैदम 6 फुट के बराबर होता है ) की गहराई पर मिलती हैं | क्योंकि यहां इनके जन्म एवं विकास के लिए उपयुक्त वातावरण पाया जाता है | विश्व के प्रमुख मत्स्य क्षेत्र उत्तरी गोलार्द्ध के मध्य अधिकांश भाग हैं |
(ख ) समुद्री कृषि ( Aquaculture )
अधिकांश समुद्री कृषि खारे जल में जीव तथा वनस्पति का उत्पादन करने से संबंधित है | सन 1400 ईस्वी में में खारे जल में कृषि का कार्य इंडोनेशिया के द्वीपों के पास शुरू किया गया |
इस कृषि के उत्पादों में फिनफिश ( Finfish ), शेल्फिश ( Shelfish ), आयस्टर ( Oyster ), शंबुक ( Mussel ), क्रिस्टेशिय मिल्कफिश तथा शैवाल ( Seawood ) सम्मिलित हैं |
विश्व के कुल समुद्री कृषि उत्पादन का एक तिहाई भाग फिनफिश तथा दो तिहाई भाग शेल्फिश, वनस्पति एवं अन्य वस्तुओं का है |
समुद्री शैवाल — विश्व के लगभग सभी समुद्रों में समुद्री शैवाल उगती है | यद्यपि अधिकांश समुद्री शैवाल शीतोष्ण व उष्ण कटिबंध में पाए जाते हैं | चीन, ताइवान तथा जापान में इसे भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है |
(2) खनिज संसाधन
प्रकृति ने समुद्री जल में तथा समुद्री नितल पर विभिन्न प्रकार के खनिजों तथा रासायनिक पदार्थों के अपार भंडार जमा किए हैं | मूल्य की दृष्टि से समुद्र से प्राप्त होने वाले खनिजों में खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस सबसे अधिक मूल्यवान खनिज हैं | समुद्र में खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस मुख्यत: महाद्वीपीय मग्न तट पर ही पाए जाते हैं |
◾️ विश्व का पहला अपतटीय कुआं ( Offshore Well ) 1896 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया के तट पर खोदा गया था |
◾️ खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस के अतिरिक्त महासागर से अन्य अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त किए जा सकते हैं | इसके अतिरिक्त भारी, लचीले तथा रासायनिक क्रिया के प्रतिरोधक खनिज भी मिलते हैं जिन्हें प्लेसर ( Placers ) कहा जाता है |
◾️ समुद्री नितल पर प्राप्त होने वाले ने निक्षेपों में सोना, प्लैटिनम टिन, टाइटेनियम, मैग्नेटाइट, लोहा, टंगस्टन, क्रोमियम, मोनाजाइट ( थोरियम ) आदि महत्वपूर्ण खनिज मिलते हैं |
◾️ अलास्का पुलिन ( Alaskan Beaches ) पर सोने का खनन किया जा रहा है | टाइटेनियम युक्त रेत फ्लोरिडा, श्रीलंका, भारत तथा ब्राजील के तटों पर मिलता है | मलेशिया तथा इंडोनेशिया में टिन तथा जापान के तटों पर मैग्नेटाइट लोहा मिलता है |
ऊर्जा संसाधन ( Power Energy )
महासागर पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्य-ताप का लगभग तीन चौथाई भाग अवशोषित कर लेते हैं | इस ऊर्जा से पवनें एवं महासागरीय धाराएं चलती हैं तथा समुद्री जल के तापमान में वृद्धि होती है | इनसे हमें भविष्य के लिए असमाप्य संभाव्य ऊर्जा के स्रोत मिल सकते हैं |महासागर से हमें नवीकरणीय ऊर्जा ( Renewable Energy ) प्राप्त हो सकती है |
ज्वारीय ऊर्जा ( Tidal Energy )
चंद्रमा तथा सूर्य की आकर्षण शक्ति से समुद्र का जल एक निश्चित अंतराल पर दिन में दो बार ऊपर उठता है, जिसे ज्वार कहते हैं | ऊपर उठने के पश्चात यह जल नीचे उतरता है, जिसे भाटा कहते हैं | जल के इस उतार-चढ़ाव से विद्युत-उत्पादन संयंत्र लगाकर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है |
◾️ तीन मीटर से अधिक ज्वारीय अंतर विद्युत उत्पादन के लिए पर्याप्त होता है | इतना ज्वार विश्व के कई क्षेत्रों में उपलब्ध है | अनुमान है कि ज्वार से विश्व में 1100 गीगावाट विद्युत पैदा की जा सकती है |
तरंग ऊर्जा ( Wave Energy )
समुद्र में उठने वाली तरंगों से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है | जापान ने जापान सागर में तरंगों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए 80 मीटर लंबा संयंत्र लगाया है | नॉर्वे तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है | भारत में तिरुवनंतपुरम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विजिनजम ( Vizginjam ) पर 1.6 करोड रुपए की लागत से संयंत्र लगाया गया है जो तरंग ऊर्जा से विद्युत पैदा करता है |
सागरीय तापीय ऊर्जा ( Sea Thermal Power )
पिछले कुछ वर्षों से समुद्र जल के तापमान में पाए जाने वाले अन्तर का प्रयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाने लगा है | यदि ऊपरी जल तथा 1000 से 3000 मीटर गहरे जल के तापमान में कम से कम 20 डिग्री सेल्सियस का अंतर हो तो सागरीय जल से ताप ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है |
भूतापीय ऊर्जा ( Geo Thermal Power )
यह ऊर्जा महासागर में स्थित सक्रिय ज्वालामुखी के विस्फोट से प्राप्त की जाती है | न्यूजीलैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस ऊर्जा को प्राप्त करने के सफल प्रयोग किए गए हैं | तकनीकी विकास के साथ-साथ इस ऊर्जा के विकास की अपार संभावनाएं हैं |
प्रवाल भित्तियां
प्रवाल भित्ति एक प्रकार की कैल्शियमयुक्त चट्टान है जो पॉलिप ( Polyps ) नामक सूक्ष्म समुद्री जीव के अस्थिपंजर से बनती है | ये जीव समुद्री जल में उपस्थित कैल्शियम का प्रयोग करके अपने रहने के लिए खोल बनाते हैं |
◾️ इन जीवों के झुंड में रहने की प्रवृत्ति होती है | जब यह जीव मर जाते हैं तो इनके खोल समुद्री नितल पर जमा हो जाते हैं | पुराने जीवो के मरने पर नए जीव पैदा हो जाते हैं और कालांतर में उनके अस्थिपंजर भी पुराने जीवो के अस्थिपंजरों पर जमा हो जाते हैं | इस प्रकार प्रवाल प्रवाल चट्टानों के निक्षेप से प्रवाल की निरंतर वृद्धि होती रहती है और पर्याप्त समय के बाद यह समुद्री जलस्तर से ऊपर दिखाई देने लगती है |
◾️ इस प्रकार लगातार इन जीवों के अवशेषों के जमने से एक प्रवाल दीवार का निर्माण हो जाता है जिसे प्रवाल भित्ति ( Coral Reefs ) कहते हैं |
प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति तथा उनका विकास कुछ विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में ही होता है जिनका विवरण निम्रलिखित है —
(1) सागरीय जल का तापमान
प्रवाल उष्ण जल में ही विकसित होते हैं | इनके लिए सागरीय जल का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए | इसलिए अधिकांश प्रवाल 30 डिग्री उत्तर तथा 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के बीच वाले क्षेत्रों में ही पनपते हैं | गर्म जल की महासागरीय धाराएं प्रवाल जीवो की वृद्धि में सहायता करती हैं |
◾️ प्रवाल भित्तियां महासागरों के पश्चिमी किनारों पर अधिक पाई जाती हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में गर्म जल की धाराएं प्रवाहित होती हैं |
(2) समुद्र की गहराई
प्रवाल के विकास के लिए सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होना चाहिए अतः यह अधिक गहरे समुद्रों में नहीं पनपते | ये प्राय: 50 फैदम ( फैदम समुद्र की गहराई को मापने की इकाई है ; एक फैदम 6 फुट के बराबर होता है ) से अधिक गहराई पर नहीं मिलते |
(3) सागरीय जल की लवणता
प्रवालों की उत्पत्ति एवं विकास के लिए सागरीय जल में पर्याप्त लवणता होनी चाहिए परंतु अत्यधिक लवणता वाला जल इनके लिए हानिकारक होता है | 27 से 40 प्रति हजार लवणता प्रवाल की उत्पत्ति एवं वृद्धि के लिए अति उत्तम मानी जाती है |
प्रवाल भित्तियों के प्रकार
स्थिति तथा आकार के अनुसार प्रवाल भित्तियां तीन प्रकार की होती हैं —
(1) तटीय प्रवाल भित्ति ( ( Fringing Reefs )
तटीय प्रवाल भित्ति द्वीपों तथा महाद्वीपों के तटों पर विकसित होती है | यह एक संकरी पट्टी होती है जिसका ढाल समुद्र की ओर तीव्र तथा स्थल की ओर मंद होता है | इसकी चौड़ाई 0.5 से 2.5 किलोमीटर तक होती है |
(2) अवरोधक प्रवाल भित्ति ( Barrier Reefs )
इसका आकार सभी प्रवाल भित्तियों से बड़ा होता है | यह कई किलोमीटर लंबी होती है | अवरोध प्रवाल भित्ति तथा तट के बीच 30 मीटर से 5 या 6 किलोमीटर की दूरी हो सकती है | इसका आधार 180 मीटर से भी अधिक गहराई पर होता है | समुद्र की ओर इसकी ढाल तीव्र होती है | तट तथा भित्ति के बीच उथले जल को लैगून कहते हैं |
यह लैगून पतले जलमार्गों द्वारा खुले समुद्र से जुड़े हुए होते हैं | इसका सबसे उत्तम उदाहरण ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्वी तट के समीप स्थित ग्रेट बैरियर रीफ है जो विश्व में सबसे बड़ी है | यह 2028 किलोमीटर लंबी तथा 16 किलोमीटर चौड़ी है |
(3) वलयाकार प्रवाल भित्ति ( Atoll Reefs )
स्थल से दूरी तथा गहरे सागरों में अंगूठी या घोड़े की नाल के आकार की प्रवाल भित्ति को ‘प्रवाल वलय’ कहते हैं | प्रायः इसका निर्माण किसी द्वीप के चारों ओर होता है | यह प्रवाल भित्ति छिछले लैगून को पूर्णत: अथवा अंशत: घेरे रहती है | लैगून की गहराई 80 से 150 मीटर तक होती है | अनेक जलमार्ग लैगून का संपर्क खुले समुद्र से कराते हैं | प्रवाल वलय प्रशांत महासागर में सबसे अधिक पाए जाते हैं |
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