वायुमंडलीय दाब : अर्थ एवं प्रकार

वायुमंडलीय दाब : अर्थ एवं प्रकार

वायुमंडलीय दाब पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है | अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुपात मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाए गए द्रव स्थैतिक दबाव द्वारा लगाया जाता है |

वायु एक भौतिक वस्तु है जो विभिन्न गैसों का मिश्रण है | वायु का अपना स्वयं का भार होता है | इस कारण वायु अपने भार द्वारा धरातल पर दबाव डालती है |

धरातलीय सतह पर या सागर तल पर प्रति इकाई क्षेत्र जैसे 1 वर्ग इंच, 1 वर्ग सेंटीमीटर, 1 वर्ग मीटर आदि पर ऊपर स्थित वायुमंडल की समस्त परतों के पड़ने वाले समस्त भार को वायुदाब या वायुमंडलीय दाब कहते हैं |

वायुमंडलीय दाब ( वायुदाब ) सागर तल ( 0 मीटर ) पर सर्वाधिक होता है जहां पर 1 वर्ग इंच क्षेत्र पर 14.7 पोंड या 1 वर्ग सेंटीमीटर पर लगभग 1 किलोग्राम ( 1034 ग्राम ) होता है |

क्योंकि ऊंचाई के साथ हवा के विरल होने के कारण वायुमंडलीय दाब घटता जाता है | अतः मनुष्य जब पहाड़ियों, पर्वतों के सहारे ऊपर चढ़ता है या वायुयान से यात्रा करता है तो उसके शरीर में स्थित वायु द्वारा बाहर की ओर डाले गए बाह्य दबाव एवं वायु मंडल द्वारा अंदर की ओर डाले गए दबाव के बीच संतुलन की स्थिति बिगड़ जाती है जिस कारण मनुष्य के नाक, कान से खून आने लगता है तथा घुटन बढ़ने लगती है |

दाब प्रवणता

सामान्यतः विभिन्न मान वाली समदाब रेखाओं के बीच वायुदाब के कम होने की दिशा के संदर्भ में दाब प्रवणता को परिभाषित किया जाता है अर्थात उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर ढाल को वायु दाब प्रवणता ( Pressure Gradient ) कहते हैं |

उल्लेखनीय है कि उच्च एवं निम्न वायुदाब शब्दों का उपयोग निरपेक्ष अर्थ ( Absolute Term ) में न होकर सर्वदा सापेक्ष अर्थ ( Relative Term ) में किया जाता है और सरलीकरण के लिए यह कहा जा सकता है कि दाब प्रवणता दो स्थानों के बीच प्रति इकाई क्षैतिज दूरी पर वायुदाब के कम होने की दर को इंगित करती है |

दाब प्रवणता वायुदाब की दिशा के परिवर्तन को दर्शाती है जो सदा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर तथा समदाब रेखा के लंबवत होती है |

दाब प्रवणता को बैरोमीट्रिक ढाल भी कहते हैं |

पास-पास स्थित समदाब रेखाएं मंद दाब प्रवणता को प्रदर्शित करती हैं | ज्ञातव्य है कि वायु की गति दाब प्रवणता पर निर्भर करती है |

वायुमंडलीय दाब या वायुदाब के प्रकार

वायुमंडलीय दाब ( वायुदाब ) को सामान्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है —

(1) उच्च वायुदाब

(2) निम्न वायुदाब

(1) उच्च वायुदाब सिस्टम ( High Pressure System )

उच्च वायुदाब सिस्टम में समताप रेखाएं प्रायः बंद होती हैं | केंद्र में अधिकतम वायुदाब रहता है | वायुदाब में केंद्र से बाहर की ओर कमी होती जाती है तथा न्यूनतम वायुदाब परिधि पर होता है | इस तरह केंद्र में स्थित उच्च वायुदाब को उच्च ( High ) कहा जाता है | मौसम मानचित्र पर इसे H द्वारा दर्शाया जाता है | इस उच्च वायुदाब सिस्टम को प्रतिचक्रवात भी कहते हैं |

प्रतिचक्रवातीय उच्च वायुदाब सिस्टम में हवाओं का प्रवाह अपसरणी होता है जिसके अंतर्गत हवाएं उच्चतम दबाव वाले केंद्र से न्यूनतम दबाव वाली परिधि की ओर उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई के अनुकूल परंतु दक्षिणी गोलार्ध में प्रतिकूल दिशा में प्रवाहित होती हैं |

(2) न्यून वायुदाब सिस्टम ( Low Pressure System )

निम्न वायुदाब सिस्टम को मात्र Low या L या चक्रवात या अवदाब ( Depression ) भी कहते हैं | इनके केंद्र में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है तथा सबसे बाहरी सीमा अर्थात परिधि में उच्च वायुदाब होता है | परिणामस्वरूप बाहरी सीमा से केंद्र की ओर इस तरह हवाएं प्रवाहित होती हैं कि इनकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई के अनुकूल दिशा में होती है |

चक्रवातीय निम्न वायुदाब सिस्टम को वायुमंडलीय विक्षोभ ( Atmosphere Disturbance ) भी कहते हैं | इनकी आकृति लगभग वृत्ताकार, अंडाकार या V आकार की होती है |

अंडाकार समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित निम्न वायुदाब के बाहर की ओर लम्बाई मे विस्तारित भाग को ‘निम्न दाब गर्त’ ( Low Pressure Trough ) या चक्रवातीय गर्त कहते हैं |

दाब प्रवणता ( Pressure Gradient ) बाहरी सीमा अर्थात् परिधि से केंद्र की ओर होती है | परिणामस्वरूप हवायें बाहर से न्यूनतम दाब वाले केंद्र की ओर चलती हैं |

वायुदाब पेटियां

भूमध्य रेखा के पास अधिक तापमान के कारण निम्न वायुदाब होता है तथा कर्क एवं मकर रेखाओं के पास उच्च वायुदाब मिलता है | यहां से ध्रुव की ओर तापमान में गिरावट के कारण वायुदाब बढ़ना चाहिए परंतु वह 60 डिग्री अक्षांशों के पास निम्न हो जाता है | पुनः ध्रुवों की और वह कम तापमान के कारण उच्च हो जाता है | स्पष्ट है कि वायुदाब की पेटियों की उत्पत्ति में केवल तापमान का ही हाथ नहीं होता वरन गतिक कारक ( Dynamic Factors ) भी महत्वपूर्ण होते हैं |

ग्लोब पर वायुदाब की कुल 7 पेटियां होती हैं | उत्पत्ति की प्रक्रिया के आधार पर वायुदाब की पेटियों को दो वृहद समूहों में विभाजित किया जाता है —

(क ) तापजन्य वायुदाब पेटी ( Thermal Pressure Belt ), जिसमें भूमध्य रेखीय न्यून वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है |

(ख ) गतिजन्य वायुदाब पेटी ( Dynamically Induced Pressure Belt ), जिसमें उपोषण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय कम वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है |

भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब की पेटी

इस पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5 डिग्री अक्षांश तक मिलता है परंतु यह स्थिति स्थायी नहीं होती है | सूर्य के ऋतुवत उत्तरायण तथा दक्षिणायन होने के कारण इस पेटी में खिसकाव व स्थानांतरण होता रहता है तथा वर्ष भर दिन-रात बराबर होते हैं जिस कारण अत्यधिक तापमान के कारण हवाएं गर्म होकर फैलती हैं तथा ऊपर उठती हैं | इस कारण सदैव निम्न वायुदाब बना रहता है |

वायुमंडल में अधिक नमी भी कम वायुदाब के लिए जिम्मेदार है | स्पष्ट है कि इस कम दाब की पेटी का तापमान से प्रत्यक्ष संबंध है | इसी कारण इसे तापजन्य न्यून वायुदाब कहते हैं | इस क्षेत्र में धरातल पर हवाओं में गति कम होने के कारण शांत वातावरण रहता है | इसी कारण से इस पेटी को ‘डोलड्रम’ कहा जाता है |

धरातल से कुछ ऊंचाई के बाद इस अवस्था के विपरीत पवन प्रवाह सक्रिय होता है तथा शांत वातावरण भंग हो जाता है |

उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी

दोनों गोलार्द्धों में 30 डिग्री से 35 डिग्री अक्षाशों के बीच उच्च वायुदाब पाया जाता है | ध्यान देने योग्य है कि इस भाग में शीतकाल के दो महीनों को छोड़कर वर्ष भर ऊंचा तापमान रहता है | गर्मियों में तो ग्लोब का उच्चतम तापमान अंकित किया जाता है जिस पर भी उच्च वायुदाब होता है जबकि नियमत: निम्न वायुदाब होना चाहिए |

स्पष्ट है कि इस पेटी का उच्च दाब तापमान से संबंधित न होकर पृथ्वी की दैनिक गति तथा वायु के अवतलन से संबंधित है |

भूमध्य रेखा से उठी वायु तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की वायु इन अक्षांशों में नीचे उतर कर बैठती हैं जिस कारण इनका आयतन कम होने के कारण वायुदाब अधिक हो जाता है |

इस प्रकार यह उच्च वायुदाब गतिजन्य होता है | इस पेटी को ‘अश्व अक्षांश’ ( Horse Latitude ) भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन काल में घोड़े से भरा पालवाला जलयान जब इस पेटी में पहुंचता था तो वायु की शांति के कारण जलयान का आगे बढ़ना कठिन हो जाता था | अतः जलयान को हल्का करने के लिए कुछ घोड़ों को समुद्र में फेंकना पड़ता था |

उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी

इस पेटी का विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 60 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के बीच पाया जाता है | वर्ष भर तापमान कम होने के बावजूद यहां निम्न वायुदाब मिलता है |

स्पष्ट है कि इस कम वायुदाब का तापमान से कोई संबंध नहीं है | वास्तव में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण इन अक्षांशों से वायु फ़ैलकर स्थानांतरित हो जाती है जिस कारण गतिजन्य कम वायुदाब उत्पन्न होता है |

उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की मेखला / पेटी का दक्षिणी गोलार्ध में अधिक विकास हुआ तथा यह अधिक नियमित है | जबकि उत्तरी गोलार्ध में इसकी नियमितता भंग हो जाती है | इस स्थिति का प्रमुख कारण उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग एवं दक्षिणी भाग में सागरीय भाग का अधिक होना है |

उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म काल में महाद्वीपीय एवं महासागरीय भागों के तापमान में भारी भिन्नता होने के कारण निम्न वायुदाब की पेटी खंडित हो जाती है जबकि शरद काल में तापीय भिन्नता काफी हद तक कम हो जाती है जिस कारण निम्न वायुदाब की बेटी लगभग नियमित एवं सतत हो जाती है |

इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्ध में महासागरीय विस्तार की अधिकता के कारण ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन तापीय भिन्नताएं न्यूनतम होती हैं, अतः उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटी में नियमितता एवं क्रमबद्धता पाई जाती है |

ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी

ध्रुवों पर तथा समीपवर्ती क्षेत्रों में अत्यंत शीत के कारण वायुदाब सामान्यतः ऊंचा हो जाता है, अतः यह उच्च वायुदाब तापजन्य होता है | उच्च वायुदाब कि यहां पर यह स्थिति वर्ष भर नियमित रूप में पाई जाती है क्योंकि वर्ष भर तापमान हिमांक से नीचे रहता है |

वास्तव में ध्रुवीय क्षेत्रों में तापीय एवं गतिक दोनों कारक सक्रिय होते हैं परंतु पृथ्वी के घूर्णन के कारण वायु के बाहर की ओर फैलने से वायु की परत के पतला होने का प्रभाव तापीय कारक के सामने निष्प्रभावी हो जाता है | अतः उच्च वायुदाब के जन्म का प्रमुख कारण वर्ष भर निम्न तापमान का होना है |

Other Related Posts

आर्द्रता, बादल तथा वर्षण

वाताग्र : उत्पत्ति के कारण व प्रकार

चक्रवात और प्रतिचक्रवात

महासागरीय धाराएं : उत्पत्ति के कारक व प्रकार

समुद्री संसाधन और प्रवाल भित्तियां

पर्यावरण संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय / वैश्विक प्रयास

विश्व की प्रमुख जनजातियाँ

मानव प्रजातियाँ

जेट वायु धाराएं ( Jet Streams )

एशिया महाद्वीप ( Asia Continent )

11 thoughts on “वायुमंडलीय दाब : अर्थ एवं प्रकार”

Leave a Comment

error: Content is proteced protected !!