पवन की उत्पत्ति के कारण व प्रकार

एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर चलने वाली वायु ( Air ) को पवन ( Wind ) कहते हैं | पवन के प्रकारों को जानने से पहले पवन की उत्पत्ति के कारण जानना आवश्यक होगा |

पवन की उत्पत्ति के कारण व प्रकार
पवन की उत्पत्ति के कारण व प्रकार

पवन की उत्पत्ति के कारण

पवन धरातल पर वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण चलती है | जिस प्रकार से जल उच्च स्थान से निम्न स्थान की ओर प्रवाहित होता है | उसी प्रकार से पवन भी उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर चलती है |

लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान वायु को वायुधारा ( Air Current ) कहते हैं | पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन कर रही है और उसका धरातल समतल नहीं है | अतः पवन कई शक्तियों के प्रभावाधीन अपनी दिशा में परिवर्तन करती हुई चलती है | यह शक्तियां या कारक निम्नलिखित हैं —

(1) दाब प्रवणता बल ( Pressure Gradient Force )

क्षैतिज वायुदाब में अंतर के कारण वायु में गति आती है और यह पवन बनती है | दो स्थानों के बीच दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी वायु उतनी ही तीव्र गति से चलेगी | वायु की दाब प्रवणता से पवन को चलने के लिए बल मिलता है, इसलिए इसे दाब प्रवणता बल ( Pressure Gradient Force ) कहते हैं |

(2) कोरिओलिस प्रभाव ( Coriolis Effect )

पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाती हैं, इसे कोरिओलिस बल ( Coriolis Force ) कहते हैं |

इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है जिसने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन किया था | इस बल के प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं |

इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, अतः इसे फेरल का नियम ( Farrell’s Low ) कहते हैं | इसे ‘बाइज बैलेट नियम’ ( Buys Ballot Law ) द्वारा भी समझा जा सकता है | इस नियम के अनुसार यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो तो उच्च दाब उसके दाएं और तथा निम्न दाब उसके बाएं और होगा | दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित इसके ठीक विपरीत होगी |

कोरिओलिस बल पृथ्वी के विभिन्न अक्षांशों पर पवनों का विभिन्न मात्रा में विक्षेप करता है | भूमध्य रेखा पर कोरिओलिस बल का प्रभाव शून्य होता है | अतः भूमध्य रेखा पर पवनों की दिशा में कोई विक्षेप नहीं होता तथा ध्रुवों पर अधिकतम विक्षेप होता है |

(3) अभिकेंद्रीय त्वरण ( Centripetal Acceleration )

घूर्णन करती हुई पृथ्वी पर घूर्णन के केंद्र की दिशा में वायु के अंदर की ओर होने वाले त्वरण के कारण पवन के लिए स्थानीय उच्च वायुदाब या निम्न वायुदाब के चारों ओर समदाब रेखाओं के लगभग समानांतर एक वक्रपथ बनाना संभव होता है, इसे अभिकेंद्रीय त्वरण कहते हैं |

(4) भू-घर्षण ( Land-Friction )

भूतल पर उपस्थित विषमताओं के कारण पवनों के रास्ते में घर्षण तथा अवरोध पैदा हो जाते हैं जो पवनों की गति तथा दिशा को प्रभावित करते हैं |

पर्वत तथा पठार आदि धरातलीय आकृतियां पवनों की दिशा में परिवर्तन ला देती हैं | महासागरों पर घर्षण कम होता है | अतः महासागरों पर पवनें महाद्वीपों की अपेक्षा अधिक गति से चलती हैं |

पवनों के प्रकार ( Kinds Of Winds )

(क ) स्थायी अथवा प्रचलित अथवा भूमंडलीय पवनें ( Permanent or Prevailing or Planetary Winds )

(ख ) स्थानीय पवनें ( Local Winds )

(क ) स्थायी अथवा प्रचलित अथवा भूमंडलीय पवनें ( Permanent or Prevailing or Planetary Winds )

पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को स्थायी पवन कहते हैं | स्थायी पवनें एक वायुभार कटिबंध से दूसरे वायुभार कटिबंध की ओर नियमित रूप से चलती हैं | स्थायी पवन व्यवस्था की पेटियों को वायुभार एवं ताप कटिबंधों के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है —

(1) सन्मार्गी पवनें ( Trade Winds )

उपोष्ण उच्च ताप कटिबंध से भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध की ओर चलने वाली पवनों को सन्मार्गी पवन कहते हैं | ये 30 डिग्री से 35 डिग्री उत्तर व दक्षिणी अक्षांश के बीच चलती हैं | इन्हें व्यापारिक पवनें कहते हैं | इन पवनों की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

(a ) इन पवनों को उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर से दक्षिण तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण से उत्तर दिशा में जाना चाहिए परंतु फेरेल के नियमानुसार कोरिओलिस बल के प्रभाव से ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं | इस प्रकार ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी दिशा से चलती हैं | अतः प्रायः इन्हें ‘पुरवा पवनें’ ( Easterlies ) भी कहते हैं |

(b ) लगभग 30 डिग्री उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश से भूमध्य रेखा की ओर चलने के कारण ये पवनें उत्तरोत्तर अधिक गर्म और शुष्क होती जाती हैं, इसलिए ये प्रायः वर्षा नहीं करती | परंतु जब ये किसी महासागर को पार करके महाद्वीपों तक पहुंचती हैं तो महाद्वीपों के पूर्वी भागों में खूब वर्षा करती हैं | ये पवनें महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर वर्षा नहीं करती | यही कारण है कि इन अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में विश्व के बड़े-बड़े मरुस्थल हैं |

(2) पछुआ पवनें ( Westerlies )

पछुआ पवनें उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों में उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलती हैं | ये दोनों गोलार्द्धों में 30 डिग्री या 40 डिग्री अक्षांश से 60 डिग्री या 65 डिग्री अक्षांश की ओर प्रवाहित होती हैं |

पछुआ पवनों की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

(a ) भू-घूर्णन के कारण कोरिओलिस बल के प्रभावाधीन इनके चलने की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम है | दोनों गोलार्द्धों में पश्चिमी दिशा से चलने के कारण इन्हें पछुआ पवनें ( Westerlies ) कहा जाता है |

(b ) गर्म अक्षांशों से ठंडे अक्षांशों की ओर चलने के कारण ये पवनें शीतोष्ण कटिबंध में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी भागों, जैसे – पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा, दक्षिण-पश्चिम चिली आदि में वर्ष भर वर्षा करती हैं |

(c ) दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरों के अधिक विस्तार के कारण इनके मार्ग तथा गति में कोई अवरोध नहीं होता और वहां ये अधिक नियमित तथा तीव्र होती हैं | पछुआ पवनों का सर्वश्रेष्ठ विकास दक्षिणी महासागर में 40 डिग्री और 65 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के बीच होता है | यहां ये बड़ी तीव्र गति से चलती हैं और इन्हें ‘बहादुर पछुआ’ ( Brave West Winds ) कहते हैं | इनकी तीव्र गति से उत्पन्न होने वाले ध्वनि के अनुसार 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर इन्हें ‘गरजता चालीसा’ ( Roaring Forties ), 50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर ‘प्रचंड पचासा’ ( Furious Fifties ) तथा 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर ‘चीखता साठा’ ( Shrieking Sixties ) कहते हैं | ये सभी नाम नाविकों के द्वारा दिए हुए हैं |

(3) ध्रुवीय पवनें ( Polar Winds )

ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनें कहते हैं |

इनकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

(a ) भू-घूर्णन के कारण इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम होती है |

(b ) ध्रुवों से आने के कारण ये बहुत ठंडी होती हैं |

(c ) न्यून तापमान वाले क्षेत्र से उच्च तापमान वाले क्षेत्र की ओर चलने के कारण यह शुष्क होती हैं और वर्षा नहीं करती | अधिक शीतलता के कारण इनकी जलवाष्प को ग्रहण करने की शक्ति भी कम होती है |

(d ) यह पवनें पछुआ पवनों से टकराकर पछुआ पवनों के ध्रुवीय वाताग्र पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को जन्म देती हैं | इससे मौसम में परिवर्तन आता है और व्यापक वर्षा होती है |

(ख ) स्थानीय पवनें ( Local Winds )

यह पवनें तापमान तथा वायुदाब के स्थानीय अंतर से चलती हैं और बहुत ही छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं | ये पवनें क्षोभमंडल की निचली परतों तक ही सीमित हैं |

कुछ प्रमुख स्थानीय पवनें निम्नलिखित हैं —

(1) थल-समीर व समुद्र-समीर ( Sea and Land Breezes )

थल-समीर तथा समुद्र-समीर तट के साथ-साथ 20 से 30 किलोमीटर चौड़ी पट्टी को ही प्रभावित करते हैं | दिन के समय जब सूर्य चमकता है तो समुद्र की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म हो जाता है | स्थल की वायु भी समुद्र की वायु से अधिक गर्म हो जाती है | वायु गर्म होकर फैलती है, फैलकर हल्की होती है तथा हल्की होकर ऊपर उठती है | अतः स्थल पर निम्न वायुभार तथा समुद्र पर उच्च वायुभार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है | इस प्रकार दिन के समय समुद्र से स्थल की ओर आर्द्र तथा ठंडी वायु चलती है, जिसे समुद्र-समीर कहते हैं |

रात्रि के समय स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत होती है | इस समय समुद्र पर स्थल की अपेक्षा तापमान अधिक तथा वायुदाब कम होता है | फलस्वरुप वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है, जिसे स्थल-समीर कहते हैं |

(2) पर्वत-समीर व घाटी-समीर ( Mountain and Valley Breezes )

पर्वतीय प्रदेशों में दिन के समय घाटी की वायु गर्म हो जाती है और पर्वत की ढलान के साथ-साथ ऊपर को उठती है, इसे घाटी समीर कहते हैं | यह वायु ऊपर जाकर ठंडी हो जाती है और कई बार दोपहर के बाद वर्षा करती है | रात्रि के समय पर्वत के ऊपर की वायु शीघ्र ठंडी होकर भारी हो जाती है और पर्वत की ढलान के साथ-साथ नीचे की ओर उतरना शुरू कर देती है, इसे पर्वत-समीर कहते हैं |

(3) फॉन ( Fohn or Foehn )

अल्पस पर्वतीय क्षेत्र में फॉन एक जोरदार झोंके वाली शुष्क और गर्म पवन है | इस वायु के प्रभाव से बर्फ पिघल जाती है और पशुओं को चरने की सुविधा मिलती है | इस पवन के प्रभाव से अंगूर शीघ्र पकते हैं |

(5) चिनूक ( Chinook )

यह फॉन से मिलती-जुलती पवन है जो उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वत को पार करके उसकी पूर्वी ढालों तथा प्रेयरी के मैदान में चलती है | प्रशांत महासागर से उठकर ये पवनें रॉकी पर्वत के पश्चिमी ढाल से टकराकर खूब वर्षा करती हैं परंतु जब ये रॉकी पर्वत को पार करके इसकी पूर्वी ढालों पर नीचे उतरती हैं तो ये गर्म तथा शुष्क हो जाती हैं | चिनूक पवन प्रेयरी के मैदान के निवासियों के लिए वरदान सिद्ध होती है क्योंकि इसमें न केवल शीतकालीन बर्फ को पिघलाने की शक्ति होती है बल्कि यह तापमान को भी पर्याप्त ऊंचा कर देती है जिससे कृषि तथा पशुपालन को प्रोत्साहन मिलता है |

(5) मिस्ट्रल ( Mistral )

यह शीत ऋतु में उत्तर की ओर स्थित उच्च भूमियों तथा हिमाच्छादित पर्वतों से उतरकर फ्रांस के भूमध्यसागरीय तट पर बहने वाली ठंडी व शुष्क पवन है | यह पवन तापमान को हिमांक से भी नीचे गिरा देती है |

(6) बोरा ( Bora )

मिस्ट्रल की भांति बोरा भी एक शुष्क, ठंडी तथा तीव्र गति से चलने वाली पवन है जो भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर चलती है | इटली का उत्तरी भाग इससे विशेष रूप से प्रभावित होता है |

(7) हरमटन ( Harmatton )

अफ्रीका के सहारा मरुस्थल से चलने वाली गर्म, शुष्क और तेज गति की आंधी को हरमटन पवन कहते हैं | गिनी की खाड़ी के समुद्र तटीय भाग के निवासी वहां की विषुवतीय उष्ण तथा आर्द्र जलवायु की उमस से त्रस्त होकर बीमार हो जाते हैं | लेकिन जब यह शुष्क हरमटन इस क्षेत्र की ओर चलने लगती है तो वहां के निवासी राहत की सांस लेते हैं इसलिए इस पवन को वहां डॉक्टर कहा जाता है |

(8 ) लू ( Loo )

उत्तरी भारत तथा पाकिस्तान के मैदानी भागों में प्रायः मई तथा जून के महीने में साधारणत: दोपहर के बाद अति गर्म और शुष्क हवा पश्चिम दिशा से चलती है | इसे लू कहते हैं | इसका तापमान 45 डिग्री से 50 डिग्री के बीच रहता है | स्थानीय लोगों के लिए यह बहुत कष्टदायक होती है |

(9) सिरोको ( Siroco )

यह सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर चलने वाली गर्म, शुष्क तथा रेतीली पवन होती है | एटलस पर्वत से नीचे उतरने के कारण यह और भी शुष्क तथा गर्म हो जाती है | भूमध्य सागर को पार करते समय यह आर्द्रता ग्रहण कर लेती है और सिसिली, इटली तथा स्पेन में धूल भरी वर्षा करती है |

(10) खमसिन ( Khamsin )

मिस्र में चलने वाली शुष्क एवं उष्ण वायु को खमसिन कहते हैं | ‘खमसिन’ अरबी भाषा का शब्द है जो ’50’ के अंक का संकेत करता है | मिस्र में यह पवन अप्रैल से जून तक लगभग 50 दिन के लिए दक्षिणी दिशा में चलती है | यह हवा अपने साथ बहुत सी धूल उड़ा कर ले आती है |

(11) हिम झंझावत ( Blizzard )

यह अति शीत एवं प्रबल पवन है जो हिमपात से संबंधित है | इसके आने से दृश्यता लगभग शून्य हो जाती है | यह कनाडा तथा उत्तरी संयुक्त राज्य अमेरिका में शीत लहर लाती है और शीतकालीन प्रतिचक्रवातीय शांत वातावरण को भंग कर देती है |

(12) ग्रीगेल ( Gregale )

यह एड्रियाटिक सागर के तटीय भाग में उत्तरी पूर्वी दिशा से चलने वाली तेज हवा है जो मुख्यतः शीत ऋतु में चलती है | यह अधिक प्रभावशाली तब होती है जब वायुदाब मध्य यूरोप तथा बाल्कन में अधिक तथा लीबिया में कम हो | इससे वर्षा बहुत कम होती है और तापमान सामान्य से नीचे नहीं गिरता |

(13) बुरान ( Buran )

यह साइबेरिया तथा मध्य एशिया में उत्तर पूर्व दिशा से शीत ऋतु में चलने वाली ठंडी व तेज पवन है | यह दिसंबर से मार्च तक चलती है और प्रतिचक्रवात की शांति को भंग करती है | यह अपने साथ बर्फ के टुकड़ों को बहा लाती है |

(14) लिवेन्टर ( Lewanter )

इसे ‘सोलानो‘ भी कहते हैं | यह भूमध्य सागर के पश्चिमी भाग को प्रभावित करती है और इसका मुख्य मार्ग बालियारिक द्वीप से स्पेन की मुख्य भूमि तक है |

(15) नेवाडोस ( Nevadas )

यह इक्वाडोर की पहाड़ियों से ऊंची घाटियों में चलने वाली वह पवन है जो पर्वतों पर ठंडी हवा के एकत्रीकरण होने से चलती है | घाटियों में पहुंचकर यह पवन वहां के तापमान में कमी कर देती है |

(16) नॉर्थर ( Norther )

यह संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी भाग में चलने वाली वह पवन है जो चक्रवात के बाद आती है | यह अति शीतल पवन होती है जिससे 24 घंटे में 20 डिग्री सेल्सियस तापमान गिर जाता है | इससे फलों की फसल की बहुत क्षति होती है |

(17) नॉर्टे ( Norte )

यह मध्य अमेरिका में उत्तर से दक्षिण दिशा में चलती है | यह संयुक्त राज्य अमेरिका की नॉर्थर ( Norther ) का ही दक्षिणी विस्तार है | यह बड़ी तेज गति से चलती है और उत्तर से आने के कारण तापमान में 5 से 10 डिग्री सेल्सियस तक की कमी कर देती है | इससे भारी वर्षा भी होती है | यह स्पेन तथा अर्जेंटीना में भी चलती है |

(18) पैम्पेरो ( Pampero )

यह बड़ी तीव्र गति से चलने वाली ठंडी व ध्रुवीय पवन है जो अर्जेंटीना तथा उरूग्वे में चक्रवात के बाद चलती है | इससे प्रायः वर्षा होती है, बादल गरजते हैं और बिजली चमकती है | इससे तापमान में भारी गिरावट आती है | यह मुख्यतः दिसंबर से मार्च तक चलती है |

(19) बर्ग ( Berg )

यह मध्य जर्मनी के पहाड़ी इलाकों से नीचे उतरने वाली गर्म तथा शुष्क पवन है जिससे उमस वाला मौसम बन जाता है |

(20) सामून ( Samoon or Samun )

ईरान में फॉन जैसे लक्षणों वाली गरम तथा शुष्क पवन को सामून कहते हैं यह कुर्दिस्तान की पहाड़ियों से नीचे उतरती है | इससे तापमान में लगभग 10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है |

(21) सांता अन्ना ( Santa Anna )

यह संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में चलने वाली गर्म तथा शुष्क पवन है | यह मरुस्थलीय इलाके से आती है और पहाड़ों के ढलानों के साथ उतरने के कारण गर्म, शुष्क एवं धूलमय बन जाती है | यह फॉन तथा सिराको की भांति कैलिफोर्निया के निवासियों के लिए कष्टदायी बन जाती है |

(2) हबूब ( Haboob )

यह एक प्रकार की धूल भरी आंधी है जो उत्तरी एवं उत्तर-पूर्वी सूडान को प्रभावित करती है | इसका सर्वाधिक प्रभाव खार्तूम के निकट होता है | यह सामान्यत: मई से सितंबर तक दोपहर के बाद अथवा सायं के समय चलती है परंतु विशिष्ट परिस्थितियों में यह वर्ष के किसी भी माह में चल सकती है | इसके बाद प्रायः भारी वर्षा और तड़ित झंझावात आती है |

(23) शामल ( Shamal )

यह इराक के दजला-फरात मैदान में उत्तर पश्चिम दिशा से चलने वाली ग्रीष्मकालीन पवन है | इस पर चक्रवातों का विघ्नकारी प्रभाव नहीं पड़ता है | जिस कारण से यह बिना किसी रोक-टोक के नियंत्रित रूप से चलती है | दिन के समय यह तीव्र गति से चलती है और धूल भरी आंधी बन जाती है |

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