महासागरीय धारा
महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरंतर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं | धारा के दोनों किनारों पर तथा उसके नीचे जल स्थित रहता है | दूसरे शब्दों में महासागरीय धाराएं स्थल पर बहने वाली नदियों के समान हैं परंतु महासागरीय धाराएं स्थलीय नदियों की अपेक्षा कहीं अधिक विशाल होती हैं |
महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति के कारक
महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति तथा उनकी गति का स्वभाव चार तरह के कारकों से संबंधित होते हैं —
(1) पृथ्वी का घूर्णन, गुरुत्वाकर्षण बल तथा विक्षेपक बल से संबंधित कारक |
(2) महासागरों से हटकर उत्पन्न होने वाले कारक, जैसे – वायुमंडलीय दाब, पवन, वृष्टि, वाष्पीकरण तथा सूर्य-ताप |
(3) महासागरों से उत्पन्न होने वाले कारक, जैसे – दाब प्रवणता, तापांतर, लवणता, घनत्व तथा बर्फ का पिघलना |
(4) महासागरीय धाराओं में परिवर्तनीय सुधार लाने वाले कारक जैसे तट की दिशा और आकार, मौसम में परिवर्तन तथा नितल की स्थलाकृति |
महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति के प्रमुख कारण
महासागरीय धारा की उत्पत्ति के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
(1) प्रचलित पवनें ( Prevailing Winds ) : — धाराओं के उत्पन्न होने का सबसे बड़ा कारण प्रचलित पवनें है | प्रचलित पवनें सदा एक ही दिशा में चलती हैं | ये सागर के ऊपरी तल पर गुजरते समय जल को अपनी घर्षण शक्ति से सदा आगे धकेलती रहती हैं और धाराओं को जन्म देते हैं |
(2) तापमान में भिन्नता : — गर्म जल हल्का होकर फैलता है और उसका तल ऊँचा हो जाता है | ठंडा जल भारी होता है और नीचे बैठ जाता है | इस प्रकार तापमान में भिन्नता के कारण सागरीय जल के तल में अंतर आ जाता है और महासागरीय धाराओं का जन्म होता है |
(3) लवणता में अंतर : — अधिक लवणता वाला जल भारी होता है और नीचे बैठ जाता है | उसका स्थान लेने के लिए कम लवणता तथा घनत्व वाला जल आता है और एक धारा बन जाती है | भूमध्य सागर के जल की लवणता अटलांटिक महासागर के जल की लवणता से अधिक है | इसलिए अटलांटिक महासागर से भूमध्य सागर की ओर समुद्री तल के साथ-साथ एक जलधारा बहती है |
(4) वाष्पीकरण : — जिन स्थानों पर वाष्पीकरण अधिक होता है वहाँ जल का तल नीचे हो जाता है और संतुलन बनाए रखने के लिए अन्य क्षेत्रों से जल एकत्रित होना शुरू कर देता है, इस प्रकार एक धारा उत्पन्न होती है |
(5) पृथ्वी का घूर्णन :– पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है जिससे कोरियॉलिस बल उत्पन्न हो जाता है | अतः फेरल के नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्ध में धाराएं अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं जिससे नवीन धाराएं बनती हैं |
(6) तट-रेखा की आकृति :– तट-रेखा की आकृति का महासागरीय धाराओं की प्रवाह दिशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है | उत्तरी हिंद महासागर में पैदा होने वाली धाराएं भारतीय प्रायद्वीप की तट रेखा का अनुसरण करती हैं |
(7) ऋतु परिवर्तन : — उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री धाराओं की दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ बदल जाती है | शीत ऋतु में मानसून ड्रिफ्ट की दिशा पूर्व से पश्चिम तथा ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम से पूर्व की ओर होती है | हिंद महासागर में भूमध्य रेखीय विपरीत धारा केवल शीत ऋतु में ही होती है और भूमध्य रेखीय धारा केवल ग्रीष्म ऋतु में बहती है |
महासागरीय धाराओं के प्रकार
महासागरीय धाराएं दो भागों में वर्गीकृत की जा सकती हैं —
(क ) गर्म धाराएं ( Warm Currents )
जो धाराएं गर्म क्षेत्रों से ठंडे क्षेत्रों की ओर चलती हैं, उन्हें गर्म धाराएं कहते हैं | ये प्रायः भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चलती हैं | इनके जल का तापमान मार्ग में आने वाले जल के तापमान से अधिक होता है | अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती हैं वहां का तापमान बढ़ा देती हैं |
(ख ) ठंडी धाराएं ( Cold Currents )
जो जलधाराएं ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर चलती हैं, उन्हें ठंडी धाराएं कहते हैं | ये प्राय: ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं | इनके जल का तापमान रास्ते में आने वाले जल के तापमान से कम होता है | अतः ये धाराएं जिन क्षेत्रों में चलती हैं वहां का तापमान घटा देती हैं |
प्रशांत महासागर की धाराएं
धाराओं के अध्ययन के दृष्टिकोण से प्रशांत महासागर को उत्तरी तथा दक्षिणी प्रशांत महासागर में बांटा जा सकता है |
उत्तरी प्रशांत महासागरीय धाराएं
(1) उत्तरी विषुवतीय धारा — यह धारा मध्य अमेरिका के पश्चिमी तट से आरंभ होकर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई फिलीपाइन द्वीप समूह तक पहुंचती है |
(2) क्यूरो-शिवो की गरम धाराम — उत्तरी विषुवतीय धारा फिलीपाइन द्वीप तक पहुंचने के बाद ताइवान तथा जापान के तट के साथ उत्तरी दिशा में बहने लगती है और क्यूरो-शिवो की गर्म धारा के नाम से जानी जाती है |
(3) उत्तरी प्रशांत गर्म धारा — जापान के दक्षिण पूर्वी तट पर पहुंचने के बाद क्यूरो-शिवो धारा प्रचलित पछुआ पवनों के प्रभाव से महासागर के पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगती है | तब इसे उत्तरी प्रशांत महासागर की गर्म जलधारा कहते हैं |
(4) आयो-शिवो ठंडी धारा — यह बेरिंग जलडमरूमध्य से शुरू होकर कमचटका प्रायद्वीप के पूर्वी तट के समीप उत्तर से दक्षिण की ओर बहने वाली ठंडे जल की धारा है |
(5) ओखोटस्क ठंडी धारा अथवा क्यूराइल जलधारा — यह जलधारा ओखोटस्क सागर से शुरू होकर सखालिन द्वीप के पूर्वी तट के साथ-साथ बहती हुई जापान के होकैड़ो द्वीप के पास आयो-शिवो धारा के साथ मिल जाती है |
दक्षिणी प्रशांत महासागरीय धाराएं
(1) दक्षिणी विषुवतीय गरम धारा — यह गर्म जल की धारा है जो पूर्व में मध्य अमेरिका के तट से पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट तक जाती है |
(2) पूर्वी ऑस्ट्रेलिया गर्म धारा — पृथ्वी के घूर्णन के कारण कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दक्षिणी विषुवतीय धारा न्यू गिनी द्वीप के समीप दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के साथ-साथ बहने लगती है | यह गर्म जलधारा है इसलिए इसे ‘पूर्वी ऑस्ट्रेलिया गर्म धारा’ कहा जाता है |
(3) दक्षिणी प्रशांत धारा — तस्मानिया के निकट पूर्वी ऑस्ट्रेलिया धारा पछुआ पवनों के प्रभाव में आ जाती है और पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगती है | यहां इसे ‘दक्षिण प्रशांत धारा’ के नाम से पुकारा जाता है |
(4) पेरू ठंडी धारा — दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण पश्चिमी तट पर पहुंचकर यह उत्तर की ओर मुड़ जाती है और पेरु के तट के साथ-साथ बहने लगती है | यह ठंडे क्षेत्र से गर्म क्षेत्र की ओर चलती है, इसलिए इसे ‘पेरू ठंडी धारा’ कहते हैं |
अटलांटिक महासागर की धाराएं
महासागरीय धाराओं के दृष्टिकोण से अटलांटिक महासागर की धाराओं को भी दो भागों उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराएं व दक्षिणी अटलांटिक महासागर की धाराओं में बांटा जा सकता है |
उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराएं
(1) उत्तरी विषुवतीय गर्म धारा — यह जलधारा विषुवत रेखा के समीप उत्तर में सन्मार्गी पवनों के प्रभाव से पूर्व में अफ्रीका के तट से पश्चिम द्वीपसमूह तक बहती है |
(2) अंटाईल्स गर्म धारा — ब्राजील के साओ रॉक अंतरीप के निकट दक्षिणी विषुवतीय धारा दो शाखाओं में बंट जाती है | इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी विषुवतीय धारा से मिलकर कैरीबियन सागर तथा मेक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है | इसका शेष भाग पश्चिमी द्वीप समूह के पूर्वी किनारे पर ‘अंटाइल्स धारा’ के नाम से बहता है |
(3) फ्लोरिडा गर्म धारा — उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवतीय धाराओं के संयुक्त प्रवाह का कुछ भाग मेक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करता है | यहां मिसीसिपी नदी प्रचुर मात्रा में जल गिराती है जिसके फलस्वरूप मेक्सिको की खाड़ी में जलस्तर अटलांटिक महासागर के जलस्तर की अपेक्षा ऊंचा हो जाता है |
(4) गल्फ स्ट्रीम गर्म धारा — हाल्टेरस अंतरीप से ग्रांड बैंक तक इस धारा को मेक्सिको की खाड़ी में पर्याप्त मात्रा में उष्ण जल प्राप्त होता है जिसे यह ठंडे इलाकों में पहुंचा देती है |
(5) नॉर्वे गर्म धारा — अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग में पहुंचकर उत्तरी अटलांटिक धारा दो भागों में विभक्त हो जाती है | इसकी मुख्य धारा ब्रिटिश द्वीपसमूह से होती हुई नॉर्वे के तट तक पहुंच जाती है | जिसे ‘नॉर्वे गर्म धारा’ के नाम से जाना जाता है |
(6) लैब्राडोर की ठंडी धारा — यह ग्रीनलैंड के पश्चिमी तट पर बेफिन की खाड़ी से निकलकर लैब्राडोर पठार के सहारे-सहारे बहती हुई न्यूफाउंडलैंड के निकट गल्फ स्ट्रीम में मिल जाती है |
यह धारा ठंडे ध्रुवीय सागरों से आने के कारण ठंडी होती है | न्यूफाउंडलैंड के निकट ठंडे और गर्म जल के मिलने के कारण घना कोहरा छाया रहता है | मछलियों के विकास हेतु यहाँ आदर्श परिस्थितियाँ मिलती हैं |
(7) कनारी ठंडी धारा — अटलांटिक महासागर प्रवाह की दूसरी शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर कनारी द्वीप तक पहुंचती है | यह अपेक्षाकृत ठंडे क्षेत्र से गर्म क्षेत्र की ओर जाती है, इसलिए इसे ‘कनारी ठंडी धारा’ कहा जाता है |
दक्षिण अटलांटिक महासागर की धाराएं
(1) दक्षिणी विषुवतीय गर्म धारा — यह धारा विषुवत रेखा के दक्षिण में उसके समानांतर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है |
(2) ब्राजील गर्म धारा — दक्षिणी विषुवतीय धारा पश्चिम में पहुंचकर ब्राजील के तट के साथ बहने लगती है और ‘ब्राजील गर्म धारा’ कहलाती है |
(3) फॉकलैंड ठंडी धारा — ठंडे जल की यह धारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण-पूर्व तट के साथ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है |
(4) दक्षिणी अटलांटिक महासागरीय धारा — पछुआ पवनों के प्रभाव से ब्राजील धारा तथा फॉकलैंड धारा का संयुक्त जल पश्चिम से पूर्व की ओर ड्रिफ्ट के रूप में बहने लगता है, इसे ‘दक्षिणी अटलांटिक महासागर ड्रिफ्ट’ कहते हैं |
(5) वेनेज़ुएला ठंडी धारा — अफ्रीका के आशा अंतरीप के निकट दक्षिण अटलांटिक महासागरीय ड्रिफ्ट दो शाखाओं में बंट जाती है | एक शाखा अफ्रीका के दक्षिण में बहने लगती है और दूसरी शाखा पश्चिमी तट के साथ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है | यह ठंडे क्षेत्र से गर्म क्षेत्र में जाती है, इसलिए इसे ‘वेनेजुएला ठंडी धारा’ कहते हैं |
उत्तरी हिंद महासागर की धाराएं
(1) उत्तरी-पूर्वी मानसून धारा — शीत ऋतु में उत्तरी विषुवतीय धारा उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनों के घर्षण द्वारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगती है | इस प्रवाह को ‘उत्तर-पूर्वी मानसून ड्रिफ्ट’ अथवा ‘उत्तर-पूर्वी मानसून अपवाह’ कहते हैं | यह ड्रिफ्ट मलक्का जलडमरूमध्य से प्रारंभ होकर बंगाल की खाड़ी के तट के साथ-साथ बहती हुई अरब सागर में प्रवेश होती है | अदन की खाड़ी के निकट यह दक्षिण की ओर मुड़कर पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगती है और विपरीत विषुवतीय धारा से मिलकर चक्र पूरा कर लेती है |
(2) दक्षिण पश्चिम मानसून धारा — ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभाव से जल का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर होने लगता है और ‘दक्षिण पश्चिम मानसून ड्रिफ्ट’ अर्थात ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून अपवाह’ नामक जलधारा का जन्म होता है |
यह धारा अफ्रीका के पूर्वी भाग में उत्पन्न होकर पूर्व दिशा की ओर बहती हुई अरब सागर की परिक्रमा करती है | इस ऋतु में उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा तथा विपरीत भूमध्य रेखीय धारा दोनों ही पूर्ण तरह लुप्त हो जाती हैं |
(3) विपरीत भूमध्य रेखीय धारा — यह शीत ऋतु में जंजीबार के निकट से प्रवाहित होती है परंतु ग्रीष्म ऋतु में विलुप्त हो जाती है |
दक्षिणी हिंद महासागरीय धाराएं
(1) दक्षिण विषुवतीय धारा — अन्य महासागरों की भांति हिंद महासागर में भी दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा भूमध्य रेखा के समीप दक्षिण में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है |
(2) मोजांबिक गर्म धारा — मेडागास्कर द्वीप के निकट पहुंचने पर दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा दो शाखाओं में बंट जाती है | एक शाखा मेडागास्कर द्वीप के पास से दक्षिण की ओर बह जाती है और दूसरी शाखा मोजांबिक चैनल में होकर बहने लगती है जिसे ‘मोजांबिक गर्म धारा’ कहते हैं |
(3) मेडागास्कर गर्म धारा — दक्षिण भूमध्य रेखीय धारा की मेडागास्कर द्वीप के पूर्वी तट पर बहने वाली शाखा ‘मेडागास्कर गर्म धारा’ कहलाती है |
(4) अगुलहास गर्म धारा — मेडागास्कर द्वीप के परे दक्षिण में मोजांबिक धारा व मेडागास्कर धारा मिलकर एक हो जाती है | यह संयुक्त धारा ‘अबुलहास गर्म धारा’ कहलाती है
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