वायुमंडल : संघटन तथा परतें

वायुमंडल : संघटन तथा परतें

वायुमंडल

पृथ्वी के चारों ओर गैसों के मिश्रण का एक विशाल आवरण है जो कई सौ किलोमीटर मोटा है | इस आवरण को ही वायुमंडल कहा जाता है | यह सौर विकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी है लेकिन पार्थिव विकिरण की लंबी तरंगों के लिए अपारदर्शी है | इस प्रकार यह पृथ्वी पर जीवन योग्य औसत तापमान बनाए रखता है |

वायुमंडल का संघटन

वायुमंडल का संघटन निम्नलिखित है —


नाइट्रोजन (78.03%)

यह वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली गैस है | ज्ञातव्य है कि इस स्वतंत्र वायुमंडलीय नाइट्रोजन का लेग्यूमिनस पौधे तथा शैवाल आदि प्रजातियाँ मृदा में स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) करती हैं।

ऑक्सीजन (20.99%)

यह जन्तुओं तथा मनुष्यों के लिए प्राणदायिनी गैस होती है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वायुमंडल में विशुद्ध ऑक्सीजन विमुक्त करते हैं।

आर्गन (0.932%)

वायुमंडल में उपस्थित अक्रिय गैसों में आर्गन सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है। शेष अक्रिय गैसें हैं-नियोन, हीलियम, क्रिप्टोन, जेनान एवं ओजोन। स्मरणीय है कि अक्रिय गैसों में आर्गन एक भारी गैस है।

कार्बन-डाई-ऑक्साइड (0.03%)

कार्बन डाई ऑक्साइड बहुत ही महत्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के लिए पारदर्शी, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपादर्शी है। कार्बन डाई ऑक्साइड का जब वायुमंडल में सान्द्रण बढ़ जाता है, तो अनेक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं।

वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड के सान्द्रण में वृद्धि होने से ‘हरितगृह प्रभाव’ (Green House Effect) में वृद्धि होती है। जिस कारण निचले वायुमण्डल एवं धरातलीय सतह के तापमान में वृद्धि होती है।

ओजोन

ओजोन वायुमण्डल का अन्य महत्वपूर्ण घटक है। यद्यपि वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत कम पायी जाती है, किन्तु सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों के अवशोषक गुण के कारण यह अति महत्वपूर्ण है। यह पृथ्वी की सतह से 15 से 50 किमी. की ऊँचाई के बीच पायी जाती है। किन्तु इसकी सघनता 15-35 किलोमीटर के बीच अधिक होती है |

सुपरसोनिक जेट विमानों से निकली हुई नाइट्रोजन ऑक्साइड और एयरकंडीशनर, रेफ्रिजेरेटर आदि से नि:सृत क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) इसकी परत को काफी क्षति पहुंचा रहे हैं।

ओजोन परत के क्षरण को बचाने के लिए ही 1987 में ‘मांट्रियल प्रोटोकॉल’ पर सहमति बनी।

जलवाष्प

वायुमण्डल में इसकी मात्रा ताप पर आधारित होती है। सामान्यत: यह 0 से 4% तक पायी जाती है। गर्म तथा आर्द्र उष्ण कटिबंध में यह हवा के आयतन का 4 प्रतिशत होती है, जबकि ध्रुवों जैसे ठंडे तथा रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों में यह हवा के आयतन के 1 प्रतिशत भाग से भी कम होती है। विषुवत वृत्त से ध्रुव की तरफ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है। भूतल से 5 किमी. तक वायुमंडल में समस्त वाष्प का 90% भाग पाया जाता है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड की भाँति जलवाष्प भी ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ उत्पन्न करती है। वाष्प के कारण ही सभी प्रकार के संघनन एवं वर्षण तथा उनके विभिन्न रूप; यथा-बादल, तुषार, जलवृष्टि, हिम, ओस एवं ओला आदि का सृजन होता है।

धूलकण

वायुमंडल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, धूल तथा उल्काओं के टूटे हुए कण से निकलते हैं। धूलकण प्रायः वायुमंडल के निचले भाग में मौजूद होते हैं। वर्षा, कुहरा, धुंध बादल आदि इन्हीं के प्रतिफल हुआ करते हैं। सूर्य से आने वाली किरणों में प्रकीर्णन (scattering) इन्हीं कणों के द्वारा होता है, जिस कारण आकाश का नीला रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त एवं गोधूली के नयनाभिराम रंग सम्भव हो पाते हैं |

वायुमंडल की प्रमुख परतें

वायुमंडल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों का बना होता है। इसका विस्तार लगभग 10000 किमी. की ऊँचाई तक मिलता है।

तापमान की स्थिति तथा अन्य विशिष्टताओं के आधार पर इसे पाँच विभिन्न परतों में विभक्त किया गया है जिनका वर्णन निम्नलिखित है –

(1) क्षोभमण्डल (Troposphere)

यह वायुमंडल का सबसे निचला का संस्तर है। इसकी ऊँचाई सतह से लगभग 13 कि.मी. है।

यह ध्रुव के निकट 8 किमी. की ऊँचाई तक है। क्षोभमंडल की मोटाई विषुवत वृत्त पर सबसे अधिक है, क्योंकि तेज वायुप्रवाह के कारण ताप का अधिकांश ऊँचाई तक संवहन किया जाता है। इस संस्तर में धूलकण तथा जलवाष्प मौजूद होते हैं। समस्त मौसमी परिवर्तन इसी संस्तर में होता है। इस संस्तर में प्रत्येक 165 मी. की ऊँचाई पर तापमान 1° सेल्सियस घटता जाता है।

इसे ताप की सामान्य ‘हास दर’ कहा जाता है। जैविक क्रिया के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण संस्तर है। इस भाग के गर्म और शीतल होने का कार्य विकिरण, संचालन तथा संवहन द्वारा होता है।

संवहनीय तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मंडल को क्रम से संवहनीय मंडल (convectional zone) तथा विक्षोभ मंडल (turbulent zone) कहा है।

‘क्षोभमंडल’ और समतापमंडल को अलग करने वाले भाग को क्षोभसीमा कहते हैं। यहाँ पर तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभसीमा कहा जाता है। यह एक डेढ़ किमी. मोटी परत होती है। इसकी निचली सीमा पर जेट पवनें चलती हैं।

(2) समतापमंडल (Stratoshpere)

क्षोभमंडल से ऊपर 50 किमी. की ऊँचाई तक समतापमंडल का विस्तार है। इसकी एक महत्वपूर्ण विशिष्टता ओजोन परत की उपस्थिति है।

इस मंडल के निचले भाग में 20 किमी. की ऊँचाई तक तापमान में कोई परिवर्तन नहीं होता, इसलिए इसे ‘समतापमण्डल’ कहते हैं।

इसके ऊपर तापमान में वृद्धि होती है और उसका कारण होता है- ओजोन परत द्वारा पराबैंगनी किरणों का अवशोषण। यह मंडल मौसमी घटनाओं से मुक्त होता है, इसीलिए वायुयान चालकों के लिए यह उत्तम मण्डल होता है। इस मंडल की बाह्य सीमा को ‘समताप सीमा’ (Stratopause) कहते हैं।

ओजोन मंडल (Ozonoshpere)

समताप मंडल के निचले भाग में 15 किमी. (9 मील) से 35 किमी. के बीच ओजोन (ओजोन) गैस का मंडल होता है।

इसकी ऊपरी सीमा 55 किमी. तक भी बताई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली अत्यन्त गरम पराबैंगनी किरणों ( Ultra – Violet Rays ) को सोख लेती है |

जिससे पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी के जैव जगत् की रक्षा होती है वरना यह पृथ्वी अन्य ग्रहों की तरह वीरान होती | इस मंडल से तापमान धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ने लगता है। इसका जलवायु पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।

(3) मध्यमंडल (Mesosphere)

50 किमी. से 80 किमी. की ऊँचाई वाले वायुमंडलीय भाग को मध्यमंडल कहा जा है, जिसके तापमान में ऊँचाई के साथ ह्रास होता है तथा 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान-100° सेल्सियस हो जाता है।

इस न्यूनतम तापमान की सीमा को ‘मेसोपास’ (mesopause ) कहते हैं, जिसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती जाती है।

(4) आयन मंडल (Ionosphere)

धरातल से 80 से 640 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत वायुमंडल के भाग को आपन मंडल’ कहते हैं।

ऊँचाई के साथ इस मंडल में तापमान की वृद्धि होती है। इस भाग में विस्मयकारी विद्युतीय एवं चुम्बकीय घटनायें घटित होती रहती हैं।

इस मंडल में ब्रह्माण्ड किरणों (Cosmic rays) का परिलक्षण होता है। आयन मंडल अपनी विशिष्टताओं के कारण कई परतों में विभक्त है |

D-Layer — यह आयन मण्डल की सबसे निचली परत, जिसकी ऊँचाई 80 से 96 किमी. तक पायी जाती है। इस परत से रेडियो की लंबी एवं निम्न आवृत्ति की तरंगों का परावर्तन होता है।

E-Layer — D-परत के ऊपर 96 से 114 किमी. की ऊँचाई तक ‘E’ परत का विस्तार होता है। इस परत से रेडियो की मध्य तरंगें परावर्तित होती है। इसी परत में उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (aurora borealis) तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (aurora australis) के दर्शन होते हैं |

F-Layer — ‘E’ परत के ऊपर 144 से 360 किमी. की ऊँचाई तक F-परत का विस्तार होता है। इस परत से रेडियो की लघु तरंगे परावर्तित होती हैं। इस परत की ऊपरी संस्तर को ‘एफ्लीटन परत’ भी कहते हैं।

G-Layer — आयन मंडल की यह सबसे ऊपरी परत होती है, जिससे सभी प्रकार की रेडियो तरंगें परावर्तित हो सकती हैं।

(5) बाह्यमंडल (Exosphere)

आयन मंडल के ऊपर वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत बाह्यमंडल कहलाती है। इसकी ऊँचाई 640 से 1000 किमी. मानी जाती है। यहाँ की वायु में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की प्रधानता रहती है। इस मंडल में 1000 किमी. के बाद वायुमंडल बहुत विरल हो जाता है और अंततः 10000 किमी. की ऊँचाई। के बाद यह क्रमशः अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।”

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