भारतीय नदियों का वर्तमान स्वरूप जानने से पहले उनका विकास जानना आवश्यक है। भारत की नदियों का अपवहन तंत्र व उसका वर्तमान स्वरूप नदी विकास की एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम है। नदी तंत्र के विकास के आधार पर भारतीय नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है —
(1) हिमालय की नदियाँ
(2) प्रायद्वीपीय नदियाँ।
(1) हिमालय की नदियाँ
हिमालय से तीन मुख्य नदी-तंत्र प्रवाहित होते हैं, जिनके नाम पश्चिम से पूर्व की ओर सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हैं। ये तीनों तंत्र विकास के एक लम्बे तथा उतार-चढ़ाव वाले इतिहास से गुजरे हैं।
ये नदियाँ तिब्बती उच्च प्रदेश के दक्षिणी ढाल से निकलती हैं और हिमालय के अक्ष के समानान्तर अनुदैर्ध्य द्रोणियों (Longitudinal Troughs) में बहने के पश्चात मैदानों तक पहुँचने के लिए पर्वतों शिखरों को भेद कर अचानक दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं।
सिंधु, सतलुज, अलकनंदा, गंडक, कोसी व ब्रह्मपुत्र गहरे महाखड्डों (Gorges) को बनाती हुई आगे बढ़ती हैं ।
इन महाखड्डों द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों के अध्ययन से इस बात में तनिक भी संदेह नहीं रहता कि ये नदियाँ इन पर्वतों से भी पुरानी हैं।
विद्वानों का विश्वास है कि ये नदियाँ हिमालय के निर्माण की सभी अवस्थाओं में बहती रही।
इसके फलस्वरूप इन नदियों के किनारे ऊपर उठते गये, जबकि इनका तल गहरा होता गया और इस प्रकार महाखड्डों का निर्माण हुआ। अतः हिमालय से निकलने वाली नदियाँ पूर्ववर्ती (Antecedent) अपवाह का ज्वलन्त उदाहरण है।
(2) प्रायद्वीपीय नदियाँ
प्रायद्वीपीय नदियों की चौड़ी, उथली तथा लगभग संतुलित घाटियाँ इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि ये नदियाँ हिमालय की नदियों की तुलना में काफी अधिक लम्बे समय से प्रवाहित हो रही हैं और प्रौढ़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी हैं।
कुछ भ्रंश क्षेत्रों को छोड़कर शेष सभी स्थानों पर नदी तलों की ढाल-प्रवणता बहुत मंद है। अब अपरदनकारी शक्तियाँ यहाँ पार्श्ववत (Lateral) ही क्रियाशील हैं ।
प्रायद्वीपीय भाग में जल-विभाजक पश्चिमी घाट है, जो पश्चिमी तट के बहुत ही निकट स्थित है। अतः प्रायद्वीप की अधिकांश नदियाँ पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती हैं | परन्तु नर्मदा तथा तापी नदियाँ अपवाद हैं, जो पूर्व से पश्चिम में भ्रंश द्रोणियों में बहती हैं।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ये द्रोणियाँ इन नदियों ने नहीं बनाई। पश्चिमी घाट को मूल प्रतिनिधि जल-विभाजक मानकर इन तथ्यों को स्पष्ट किया जा सकता है।
प्रायद्वीपीय प्रदेश के पश्चिमी धंसाव के परिणामस्वरूप इसका एक भाग जलमग्न हो गया तथा इसने मूल जल-विभाजक के दोनों ओर स्थित नदियों के सममित (Symmetrical) विन्यास को भी अस्त-व्यस्त कर दिया।
दूसरा विरूपण हिमालय की हलचल के समय हुआ, जबकि प्रायद्वीपीय भाग के उत्तरी पार्श्व का अवतलन (Subsidence) हो गया, जिसके परिणामस्वरूप द्रोणी-भ्रंश का निर्माण हुआ। नर्मदा तथा तापी नदियाँ इसी द्रोणी-भ्रंश में बहती हैं। प्रायद्वीपीय नदियाँ अनुवर्ती प्रवाह का प्रतिनिधित्व करती हैं।
भारत की नदियों का अपवाह-तंत्र
किसी भी देश का अपवाह तंत्र वहाँ के उच्चावच तथा भूमि की ढाल पर निर्भर करता है | भारत एक विशाल देश है | अतः यहां के धरातल में व्यापक भिन्नता पाई जाती है | इसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार तथा बीच में विशाल उत्तरी मैदान है |
इन्हीं विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए भारत के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है —
(1) हिमालय की नदियों का अपवाह-तंत्र
(2) प्रायद्वीपीय पठार की नदियों का अपवाह तंत्र
(1) हिमालय की नदियों का अपवाह-तंत्र
हिमालय की नदियों के निम्नलिखित तीन अपवाह तंत्र हैं —
(क ) सिंधु अपवाह तंत्र
(ख ) गंगा अपवाह तंत्र
(ग ) ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र
(क ) सिंधु अपवाह तंत्र
भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में सिंधु तथा उसकी सहायक नदियाँ विस्तृत क्षेत्र को अपवाहित करती हैं। अकेले सिंधु नदी ही हिमालयी प्रदेश में 2,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है।
सतलुज, व्यास,रावी चेनाब तथा झेलम जैसी प्रसिद्ध नदियाँ इसकी सहायक नदियाँ हैं। इनमें से झेलम पीर पंजाल से निकलती हैं | अन्य सभी नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं। विभाजन के बाद इस अपवाह क्षेत्र का बहुत-सा भाग पाकिस्तान में चला गया।
सिंधु नदी (Indus River)
इसका स्रोत तिब्बत में 5,180 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर झील के निकट है। लद्दाख तथा गिलगित से बहती हुई एटक के निकट यह पर्वतीय प्रदेश से बाहर निकलती है।
यहाँ पर अफगानिस्तान की काबुल नदी इसके साथ मिलती है। इसकी प्रसिद्ध सहायक नदियाँ सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम मिलकर पंचनद बनाती हैं।
ये सभी नदियाँ पहले आपस में विभिन्न स्थानों पर मिलती हैं और फिर इनका संयुक्त प्रवाह मिठानकोट के निकट सिंधु नदी से मिल जाता है। सिंधु नदी की कुल लम्बाई 2,880 किलोमीटर है।
झेलम (Jhelum)
यह कश्मीर की घाटी के दक्षिण-पूर्व में 4900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित वीरिनाग (Verinagi के निकट झरने से निकलती है। यह पीर पंजाल पर्वत । लगभग लम्बे दीवारों वाला 200 मीटर गहरा खड्ड बनाती है। कश्मीर में बहुत-सी नदियाँ इसमें आकर मिलती है। इनमें लिद्दर नदी (Liddar River) महत्वपूर्ण है।
मुजफ्फराबाद के बाद यह नदी भारत और पाकिस्तान के बीच 170 किलोमीटर लम्बी सीमा बनाती है। लगभग 400 किलोमीटर की दूरी तय करने के पश्चात यह नदी पर्वतीय प्रदेश को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। ट्रिम्मू (Tremmu) के निकट यह चेनाब में मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 724 किमी. है।
चेनाब (Chenab)
चेनाब को हिमालय प्रदेश चन्द्रभागा कहते है। चन्द्र तथा भागा इसके उद्गम स्थान है, जो लाहौर जिले के बारालाचा के दर्रे के दोनों और स्थित हैं । यह पीर पंजाल के समानान्तर कुछ दूरी तक पश्चिमी दिशा
में बहती है और किश्तवाड़ के निकट पीर पंजाल में गहरा गॉर्ज बनाती है। कहीं-कहीं यह गॉर्ज 1000 मीटर गहरा है। इसके पश्चात यह अखनूर के निकट मैदान में प्रवेश करती है।
मैदानी भाग में प्रवेश करने से पहले यह लगभग 330 किलोमीटर की दूरी तय करती है। इसके पश्चात् यह लगभग 640 किलोमीटर की दूरी तय करके पंचनद पहुँचती है। यहाँ पर झेलम तथा रावी नदियों का जल ग्रहण करने के पश्चात सतलुज नदी के साथ मिलती है | इसकी कुल लंबाई 1180 किलोमीटर है |
रावी (Ravi)
यह नदी रोहतांग दर्रे के निकटर्ती भाग से निकलती है। धौलाधर की उत्तरी तथा पीर पंजाल की दक्षिणी ढलानों में से गुजरती हुई यह बहुत ही संकरी घाटी बनाती है। यह चम्बा से कुछ दूर नीचे आने पर धौलाधर श्रेणी में गहरा गॉर्ज बनाती है और उसके बाद माधोपुर के मैदान में प्रवेश करती है।
अपने उद्गम स्थान से शुरू होकर पाकिस्तान में मुल्तान के निकट चेनाब नदी के साथ मिलने तक यह 725 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
ब्यास (Beas)
यह नदी हिमालय में स्थित रोहतांग दर्रे में 4067 मीटर की ऊँचाई पर स्थित व्यास कुंड में से निकलती है। यह 900 मीटर गहरा गॉर्ज बनाती हुई धौलाधर पर्वत को पार करती है।
पंजाब के होशियारपुर जिले में स्थित तलवाड़ा नामक स्थान पर यह मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इसके पश्चात दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है और पंजाब में स्थित हरिके नामक स्थान पर सतलुज नदी के साथ जाकर मिल जाती है।
यद्यपि यह एक छोटी नदी है, जिसकी लम्बाई केवल 460 किलोमीटर है परन्तु पूरे सिंधु प्रवाह तंत्र में ब्यास ही एक ऐसी नदी है, जो पूर्णत: भारत में बहती है।
सतलुज (Satluj)
इस नदी का उद्गम स्थान तिब्बत में कैलाश पर्वत के दक्षिण में स्थित मानसरोवर झील के समीप राक्षस ताल है। यह समुद्र-तल से 4,630 मीटर ऊँचा है।
राक्षस ताल से निकल कर यह नदी पश्चिमी दिशा में प्रवाहित होती है और शिपकीला रे के निकट हिमालय में सँकरी घाटी बनाकर भारत में प्रवेश करती है। भारत में प्रवेश करने से पहले तिब्बत के नारो खोरसन (Naro Khorsen) में यह बहुत बड़ा कैनियन (Canyon) बनाती है, जिसकी तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्रांड कैनियन से की जा सकती है |
पर्वतीय क्षेत्र को पार करने के पश्चात पंजाब में रूपनगर के निकट यह मैदानी भाग में प्रवेश करती है। रूपनगर के ऊपर नैनादेवी धार में यह गहरा गॉर्ज बनाती है, जहाँ पर विश्व विख्यात भाखड़ा बाँध बनाया गया है।
मैदानी भाग में प्रवेश करने के बाद यह पश्चिमी दिशा में प्रवाहित होती है। हरिके नामक स्थान पर ब्यास नदी इसमें मिल जाती है।
फिरोजपुर से फाजिल्का तक यह भारत तथा पाकिस्तान के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है। इसके पश्चात यह रावी, चेनाब तथा झेलम नदियों का संयुक्त जल एकत्रित करके पाकिस्तान में मिठानकोट नामक स्थान पर सिंधु नदी में जा गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 1,450 किलोमीटर है, जिसमें से 1,050 किलोमीटर भारत में है।
(ख ) गंगा अपवाह तंत्र
इस अपवाह तंत्र के अन्तर्गत गंगा तथा इसकी सहायक नदियाँ सम्मिलित हैं। इन सहायक नदियों में एक तो वे हैं, जो हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों से निकलती हैं, जैसे-यमुना, गोमती, घाघरा, गंडक तथा कोसी; दूसरी वे हैं, जो प्रायद्वीपीय क्षेत्र से आती है, जैसे-चम्बल, बेतवा, केन, सोन आदि।
गंगा (Ganga)
यह नदी उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में 7,010 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गंगोत्री हिमनद से निकलती है। इसका नाम गंगा तब पड़ता है, जब इसमें दो नदियाँ – अलकनंदा तथा भागीरथी देवप्रयाग में आकर मिलती हैं।
दक्षिण-पश्चिम दिशा में 280 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह हरिद्वार के निकट पर्वतीय प्रदेश को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इलाहाबाद के निकट इसमें यमुना नदी आकर मिलती है। इसे संगम अथवा प्रयाग के नाम से पुकारा जाता है। इसके दाहिने किनारे पर रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी एवं महानंदा इसके साथ आकर मिल जाती हैं |
फरक्का के बाद गंगा की मुख्य धारा पूर्व एंव दक्षिण-पूर्व की ओर होती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यहाँ इसे पद्मा के नाम से पुकारा जाता है। यहाँ से यह नदी कई धाराओं में बँटकर डेल्टा का निर्माण करती है और बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। भागीरथी-हुगली क्षेत्र में प्रायद्वीपीय पठार से आने वाली कई छोटी-छोटी नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं ।
इसकी कुल लम्बाई 2,525 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 350 किलोमीटर उत्तराखंड में, 1,150 किलोमीटर उत्तर प्रदेश में, 445 किलोमीटर बिहार में तथा 520 किमी. पश्चिम बंगाल में है। शेष बांग्लादेश में है। अकेले भारत में गंगा का अपवाह क्षेत्र लगभग 8,61,404 वर्ग किलोमीटर है |
यमुना नदी (Yamuna River)
यमुना नदी गंगा-नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह नदी यमुनोत्री नामक हिमनद के बंदरपूंछ चोटी के पास से 6,330 मीटर की ऊँचाई से निकलती है और ताजेवाला नामक स्थान में प्रवेश करती है।
गंगा नदी के लगभग समानान्तर बहने के बाद यह नदी इलाहाबाद के निकट गंगा में जा मिलती है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 1,376 किलोमीटर हैं। दक्षिण में विंध्याचल पर्वत से निकल कर चम्बल, बेतवा तथा केन नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं।
खारी नदी चंबल की सहायक नदी है, चंबल, यमुना की सहायक नदी और यमुना, गंगा की सहायक नदी है; जो कि बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
घाघरा नदी (Ghagra River)
इसे ‘सरयू’ नदी के नाम से भी पुकारा जाता है। तिब्बत के पठार में स्थित मापाचाचुंग हिमनद से निकल कर नेपाल में बहने के बाद यह भारत में प्रवेश करती है।
इसके बाद अपनी सहायक नदी शारदा का जल लेकर छपरा के निकट गंगा में मिलती है। इसकी कुल लम्बाई 1,080 किलोमीटर है। यह प्रायः अपना मार्ग बदल लेती है, जिससे बाढ़ आती है।
गंडक नदी
यह नदी नेपाल-चीन सीमा के निकटवर्ती स्थान से निकल कर मध्य नेपाल में बहने के बाद बिहार के चम्पारण जिले में प्रवेश करती है। इसके बाद यह सोनपुर के निकट गंगा में मिल जाती है।
कोसी नदी (Kosi River)
यह तीन नदियों – सन कोसी, अरुण कोसी तथा तामूर कोसी – के मिलने से बनती है। ये नदियाँ सिक्किम, नेपाल तथा तिब्बत के हिमाच्छादित प्रदेश से निकलती है। इन्हें गौरी शंकर-ऐवरेस्ट-मैकाल-कंचनजंग चोटी समूह की हिमानियों से जल प्राप्त होता है। यह नदी मार्ग परिवर्तन तथा आकस्मिक बाढ़ के लिए कुख्यात है। यह बिहार में धन-जन को अपार क्षति पहुँचाती है, जिस कारण इसको ‘बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहा जाता है। भारतीय सीमा में इसकी कुल लम्बाई 730 किलोमीटर है।
(ग ) ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र
भारत के उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र अपवाह है। यहाँ ब्रह्मपुत्र तथा इसकी सहायक नदियाँ विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती हैं |
ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmputra River)
यह नदी चामुंगड़ूँग हिमानी (Chemayungdung Glacier) से निकलती है। यह हिमानी मानसरोवर झील के दक्षिण-पूर्व में लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस प्रकार ब्रह्मपुत्र नदी का उदगम स्रोत सिंधु नदी के स्रोत से 150 किलोमीटर तथा सतलुज नदी के उदगम स्रोत से केवल 35 किलोमीटर दूर है। सिंधु तथा सतलुज पश्चिम की ओर बहती है, जबकि ब्रह्मपुत्र पूर्व की ओर बहती है।
तिब्बत में यह नदी लगभग 1,800 किलोमीटर की दूरी तक हिमालय के उत्तर में उसके समानान्तर बहती है। तिब्बत में इसे सांगपो (Tsangpo) कहते हैं। मानस नदी, जयमोली, तिस्ता, कामेग, सुबनसिरी, धनसिरी, बूढी दिहांग, दिसांग और कोपिली इसकी सहायक नदियां हैं।
नामचा बरवा के निकट यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और दिहांग के नाम से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। इसके पश्चात यह सदिया के निकट असम घाटी में प्रवेश करती है, जहाँ इसे ब्रह्मपुत्र कहते हैं।
असम घाटी में यह नदी 720 किलोमीटर की दूरी तक प्रवाहित होती है। धुबरी तक यह नदी पश्चिम की ओर बहती है और उसके बाद दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश में प्रवेश करती है। बांग्लादेश में यह गंगा के साथ मिलकर गंगा-ब्रह्मपुत्र नामक विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है।
डेल्टाई भाग में ब्रह्मपुत्र की मुख्य धारा कई उपधाराओं में विभक्त हो जाती है। इनमें मधुमती, पद्मा, सरस्वती, हुगली तथा भागीरथी प्रमुख हैं |
इसकी कुल लम्बाई 2,900 किलोमीटर है, जो गंगा नदी से भी अधिक है। अनेक सहायक नदियाँ ब्रह्मपुत्र नदी में आकर गिरती हैं। इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली नदियों में सबनसीरी, भरेली तथा मानस हैं |
बाएँ किनारे पर मिलने वाली मुख्य नदियों के नाम दिबांग लोहित, भूरी देहांग , धनसिरी तथा कपिली है। असम के अधिकांश भाग में ब्रह्मपुत्र एक गुफित (Braided) नदी है। यह अपने साथ बहुत-सी रेत मिट्टी लाती है और नदी विसर्प भी बहुत हैं ।
डिब्रूगढ़ के पास यह नदी लगभग 16 किमी. चौड़ी हो जाती है। इसमें बहुत से द्वीप हैं, सबसे विख्यात माजुली (Majuli) द्वीप है।
यह लगभग 90 किमी. लम्बा है और इसकी अधिकतम चौड़ाई 20 किमी. है। इसका कुल क्षेत्रफल 1250 वर्ग किमी. है। विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।
(2) प्रायद्वीपीय पठार की नदियों का अपवहन तंत्र
प्रायद्वीपीय पठार विस्तृत क्षेत्र है, जिसका सामान्य ढाल पूर्व की ओर है। इसलिए अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इनमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियाँ प्रमुख हैं। पश्चिमी घाट से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ बहुत छोटी है। अरब सागर में गिरने वाली प्रमुख नदियाँ नर्मदा तथा तापी है।
(क ) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं: —
महानदी (Mahanadi)
यह नदी छत्तीसगढ़ के धनतरी जिले में शिहावा के निकट से अमरकंटक श्रेणी के दक्षिणसे 442 मीटर की ऊँचाई से निकलती है और छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा से प्रवाहित होती हुई पाराद्वीप के पास बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
इसका ऊपरी भाग तश्तरीनुमा छत्तीसगढ़ मैदान में है, जो तीन ओर से पहाड़ियों द्वारा घिरा हुआ है। अत: इसमें कई सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं।
इसकी मुख्य सहायक नदियाँ ईब, मॉड, हास्दो तथा तेल हैं | इसके 1,41,600 वर्ग किलोमीटर के अपवहन क्षेत्र में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा तथा महाराष्ट्र के प्रदेश सम्मिलित हैं ।
इस नदी की कुल लम्बाई 858 किलोमीटर है। इस नदी पर हीराकुंड बाँध बना हुआ है। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह 9,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला डेल्ट बनाती है।
गोदावरी (Godavri)
यह प्रायद्वीपीय पठार की सबसे बड़ी नदी है। इसकी लम्बाई 1.465 किलोमीटर है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिमी घाट से निकलती है और आंध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसका कुल अपवहन क्षेत्र 3,12,812 वर्ग किलोमीटर है, जिसका 50% भाग अकेले महाराष्ट्र में है | शेष भाग कर्नाटक, उड़ीसा, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में है।
अपने विशाल आकार तथा विस्तार के कारण यह प्रायः बुद्ध गंगा अथवा दक्षिणी गंगा के नाम से पुकारी जाती है। प्रवदा, पुरना, मनप्रा, वैन गंगा, वर्धा, प्राणहिता, इन्द्रावती, मानेर तथा सबासी इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह 120 किलोमीटर चौड़ा डेल्टा बनाती है। भारी निक्षेप के कारण यह डेल्टा लगभग 35 किलोमीटर समुद्र की ओर बढ़ा हुआ है |
कृष्णा (Krishna)
इसकी उत्पत्ति महाबलेश्वर के निकट एक झरने से होती है। यह नदी अपने उद्गम से मुहाने तक महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में 1,400 किलोमीटर की यात्रा करती है। इसका कुल अपवहन क्षेत्र 2,58,948 वर्ग किलोमीटर है।
कोयना, भीमा, तुंगभद्रा, घाट प्रभा आदि इसकी प्रसिद्ध सहायक नदियाँ हैं । यह नदी एक बड़ा डेल्टा बनाती है, जिसका क्षेत्रफल 4600 वर्ग किलोमीटर तथा तटरेखा 120 किलोमीटर है। तट के साथ गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टा आपस में मिलते दिखाई देते हैं।
कावेरी (Kaveri)
यह नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले में पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरी माला से निकलती है और केरल (3%), कर्नाटक (41%) तथा तमिलनाडु (55%) राज्यों में बहती हुई कावेरी पत्तनम के निकट बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी कुल लम्बाई 805 किलोमीटर है। इसका अपवहन क्षेत्र लगभग 87,900 वर्ग किलोमीटर है जो केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में फैला हुआ है।
मैसूर पठार में यह नदी कई जल-प्रपात बनाती है, जिनमें शिवसमुद्रम उल्लेखनीय है। यह तिरूचिरापल्ली के निकट बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। यहां श्रीरंगपट्टनम, शिवसमुद्रम एवं श्रीरंगम द्वीपों का निर्माण करती है।
इस नदी की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके ऊपरी भाग में ग्रीष्मकालीन दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा वर्षा होती है, जबकि इसका निम्न भाग लौटती हुई शीतकालीन उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों द्वारा वर्षा प्राप्त करता है।
इस प्रकार इस नदी में पूरे साल पानी बहता रहता है, जिसका प्रयोग सिंचाई तथा जल विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता हैं। इस नदी ने आयताकार डेल्टा बनाया है, जिसका क्षेत्रफल 8000 वर्ग किलोमीटर है।
स्वर्ण रेखा तथा ब्राह्मणी
गंगा तथा महानदी डेल्टा के बीच स्वर्ण रेखा तथा ब्राह्मणी नदियाँ बहती है। झारखंड के ऊपरी क्षेत्र में ब्राह्मणी नदी दक्षिणी कोयल के नाम से जानी जाती है।
पेन्नार
दक्षिण में पेन्नार नदी का बेसिन कावेरी तथा कृष्णा नदियों के मध्य में स्थित है।
(ख ) अरबी सागर में गिरने वाली नदियाँ
नर्मदा (Narmandia)
यह नदी मध्य छत्तीसगढ़ की सीमा के पास अमरकंटक नामक पहाड़ी से निकलकर भड़ौच / भरुच के निकट अरब सागर की खम्भात खाड़ी में जा गिरती है।
इसकी कुल लम्बाई लगभग 1,289 किलोमीटर तथा इसका अपवहन क्षेत्र 98,796 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर में विन्ध्याचल तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत स्थित है।
इस नदी के रास्ते में मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट संगमरमर के शैल आते हैं, जिन पर बहती हुई नर्मदा नदी बहुत ही सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती है और जल-प्रपात बनाती है।
भोर घाट का संगमरमर का जल-प्रपात बहुत ही सुन्दर है, जो 15 मीटर ऊँचा है। नर्मदा के अपवहन क्षेत्र की विशेषता यह है कि इसमें सहायक नदियों का अभाव है।
तापी (Tapi)
यह नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में महादेव की पहाड़ियों के दक्षिण में मुल्ताई के निकट सतपुड़ा पहाड़ियों से निकलती है।
वहाँ से यह सतपुड़ा के दक्षिण में स्थित दरार घाटी मेंनर्मदा के समानान्तर पश्चिमी दिशा में बहती हुई सूरत के निकट खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है, जहां पर ज्वारनदमुख का निर्माण करती है।
इसकी कुल लम्बाई 734 किलोमीटर है। तापी नदी का बेसिन क्षेत्र 65,145 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात में फैला हुआ है। इन दो प्रमुख नदियों के अतिरिक्त निम्रलिखित नादिया भी अरब सागर में गिरती हैं |
माही (Mahi)
माही नदी का उदगम विन्ध्याचल पर्वत से होती है। 533 किलोमीटर की दूरी तय करने के पश्चात यह खम्भात की खाड़ी में जा गिरती है। इसका अपवहन क्षेत्र 34,842 वर्ग किलोमीटर है।
साबरमती (Sabarmati)
साबरमती का उद्गम स्रोत अरावली की पहाड़ियों में राजस्थान के डूंगरपुर जिले में स्थित है। यहाँ से यह दक्षिण-पश्चिम दिशा में 300 किलोमीटर की दूरी तय करके खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। इसका बेसिन क्षेत्र 21,674 वर्ग किलोमीटर है, जो राजस्थान तथा गुजरात में फैला हुआ है।
लूनी (Luni)
यह नदी राजस्थान में अजमेर के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर 320 किलोमीटर बहने के पश्चात् कच्छ रन के दलदली क्षेत्र में विलुप्त हो जाती है। अत: इसका संपर्क समुद्र से नहीं हो पाता है।
पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरने वाली अनेक नदियाँ हैं, जो आकार में बहुत छोटी हैं। लगभग 600 छोटी-छोटी नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में प्रवेश करती हैं |
नर्मदा नदी के अलावा सोन नदी एवं महानदी का उद्गम अमरकंटक पठार से होता है। सिंधु और ताप्ती नदियों का मुहाना अरब सागर में है।
केरल में पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियां पामबार, भवानी और कबानी हैं |
हगरी नदी पश्चिमी घाट से निकलकर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से प्रवाहित होकर तुंगभद्रा नदी में मिल जाती है। इसे वेदावथी नदी के नाम से भी जाना जाता है। दामोदर जिसे ‘बंगाल का शोक’ कहते हैं, का उद्भव छोटानागपुर पठार से होता है।
यह भ्रंश घाटी से होकर बहती है। इसकी सहायक नदियाँ बराकर, जमुनिया, बरकी आदि हैं। यह रूपनारायण नदी के जल को संग्रह करती हुई दक्षिण में हुगली से मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 541 किलोमीटर है।
प्रायद्वीपीय भाग से चम्बल, बेतवा, केन, सोन आदि नदियाँ, गंगा प्रवाह तंत्र में प्रवेश करती है। चम्बल नदी विन्ध्याचल पर्वत से महू के निकट निकलती है और उत्तरी दिशा में प्रवाहित होकर कोटा के निकट गॉर्ज बनाती है। इसके पश्चात यह उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले में यमुना नदी से मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 1,050 किलोमीटर है। अपने प्रवाह मार्ग में यह बीहड़ खड्ड बनाती है।
चम्बल की भाँति बेतवा तथा केन भी गॉर्ज बनाती हैं और यमुना में मिलने से पहले बीहड़ खड्डों का निर्माण करती हैं।
सोन नदी अमरकंटक पठार से निकलती है और रामनगर के निकट गंगा में मिलने से पहले यह 780 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
नदी | उद्गम स्थल | लम्बाई ( किलोमीटर में ) |
ब्रह्मपुत्र | चमुंगडुंग ( मानसरोवर झील से 100 किलोमीटर दूर ) | 2900 |
सिंधु | मानसरोवर झील के निकट | 2880 ( भारत में 709 ) |
गंगा | गंगोत्री | 2525 |
सतलुज | राक्षस ताल ( मानसरोवर के निकट ) | 1450 ( भारत में 1050 ) |
यमुना | यमनोत्री | 1326 |
चेनाब | बारालाचा | 1180 |
घाघरा | मापचाचुंग | 1080 |
चम्बल | महू के निकट ( मध्यप्रदेश ) | 1050 |
रावी | रोहतांग के पास | 725 |
ब्यास | रोहतांग के पास | 460 |
महानदी | शिहावा ( छत्तीसगढ़ ) | 858 |
गोदावरी | पश्चिमी घाट से ( नासिक ) | 1465 |
कृष्णा | महबलेश्वर | 1400 |
कावेरी | पश्चिमी घाट ( कुर्ग, कर्नाटक ) | 805 |
नर्मदा | अमरकंटक की पहाड़ियाँ | 1289 |
ताप्ति | सतपुड़ा की पहाड़ियाँ | 734 |
यह भी देखें
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : हिमालय पर्वत
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : विशाल उत्तरी मैदान
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : तटीय मैदान तथा द्वीप समूह
पवन : अर्थ, उत्पत्ति के कारण व प्रकार
महासागरीय धाराएं : उत्पत्ति के कारक व प्रकार
एशिया महाद्वीप ( Asia Continent )
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