भारत के उच्चावच अथवा धरातल या भू-आकृतिक लक्षणों में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। यहाँ पर कहीं तो ऊँचे गगनचुम्बी पर्वत हैं, तो कहीं पर सपाट मैदान और प्राचीन चट्टानों वाले पठार विद्यमान है। भारत में सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 10.7% पर्वतीय भाग (2135 मीटर ऊँचे), 18.6% पहाड़ियां (305 से 2.135 मीटर ऊँचे), 27.7% पठारी क्षेत्र (305 से 914 मीटर ऊँचे) तथा शेष 43% मैदानी भाग है। हिमालय पर्वत के साथ-साथ सामान्यत: भारत को निम्नलिखित पाँच धरातलीय भागों में बाँटा जा सकता है : —
(1) हिमालय पर्वत (The Himalayan Mountains)
(2) उत्तरी भारत का विशाल मैदान (The Great Plain of
North India)
(3) प्रायद्वीप पठार (The Peninsular Plateau)
(4) तटीय मैदान (The Costal Plains)
(5) भारतीय द्वीप (Indian Islands)
यहाँ हम हिमालय पर्वतीय भाग का विस्तृत वर्णन करेंगे |
(1) हिमालय पर्वत (The Himalayan Mountains)
हिमालय पर्वत समूह भारत के उत्तर में स्थित है। यह पूर्व-पश्चिम में विस्तृत है। पश्चिम में सिन्धु नदी के महाखड्ड (Gorge) से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के महाखड्ड तक इसकी लम्बाई 2,400 किलोमीटर है। इस प्रकार इसका फैलाव पूर्व-पश्चिम दिशा में 220 देशांतर तक है। यह धनुषाकार रूप में फैला हुआ है और इसका उन्नतोदर (Convex) मोड़ दक्षिण की ओर है।
हिमालय पर्वत के उत्तर में तिब्बत का सर्वोच्च पठार तथा दक्षिण में उत्तरी भारत का विशाल मैदान है। इसकी चौड़ाई कश्मीर में 500 किमी. से अरुणाचल प्रदेश में 200 किमी. है।
इस प्रकार हिमालय पर्वत लगभग पाँच लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर है।
एशिया महाद्वीप में 7,300 मीटर से अधिक ऊँची 94 चोटियाँ हैं, जिनमें से 92 चोटियाँ हिमालय व कराकोरम पर है। अन्य किसी महाद्वीप में इतनी ऊँची चोटियाँ नहीं है।
हिमालय पर्वत का भौगोलिक वर्गीकरण
वास्तव में हिमालय कोई एक पर्वत नहीं, बल्कि एक-दूसरे के लगभग समानान्तर रूप में फैली हुई कई पर्वत मालाएँ हैं। चार पर्वत श्रेणियों को निश्चित रूप से पहचाना गया है |
हिमालय पर्वत की इन चार श्रेणीयों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है :–
(i) वृहत् हिमालय अथवा आंतरिक हिमालय (Great Himalayas or Inner Himalays)
यह हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची तथा दुर्गम श्रेणी है। इसे भारत के प्राचीन ग्रन्थों में ‘हिमाद्रि’ के नाम से पुकारा गया है। इसका कारण है कि यह सदा
हिमाच्छादित रहती है।
इसके अन्य नाम तथा मुख्य हिमालय है। यह सिन्धु नदी के मोड़ से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक लगभग 2,400 किलोमीटर लम्बी है। इसकी चौड़ाई 25 किलोमीटर तथा औसत ऊँचाई 6,100 मीटर है।
हिमालय पर्वत की ऊँचाई पश्चिम में नंगा पर्वत के रूप में 8,126 मीटर तथा पूर्व में नामचा बरवा पर्वत के रूप में 7,756 मीटर है। इस श्रेणी की अधिकतम ऊँचाई इसके मध्य भाग में है, जो नेपाल देश में स्थित है। इस शृंखला में 40 चोटियों की ऊँचाई 7,000 मीटर से अधिक ऊँची है।
हिमालय पर्वत की प्रमुख चोटियां
एवरेस्ट (8,850 मीटर), कंचनजंगा (8,598 मीटर), मकालू (8,481 मीटर), धौलागिरी (8,172 मीटर), मसालू (8,156 मीटर), नागा पर्वत (8,126 मीटर), अन्नपूर्णा (8,078मीटर), नन्दा देवी (7,817 मीटर), नामचा बरवा (7,756 मीटर), त्रिशूल (7,140 मीटरर), बद्रीनाथ (7,138 मीटर), नीलकंठ (7,073 मीटर) तथा केदारनाथ (6,945 मीटर) है।
पर्वत शिखर | ऊँचाई ( मीटर में ) | स्थान |
माउंट एवरेस्ट | 8848 | नेपाल |
K2 ( गॉडविन ऑस्टिन ) | 8611 | जम्मू-कश्मीर |
कंचनजंगा | 8598 | सिक्किम |
मकालू | 8481 | नेपाल |
धौलागिरी | 8172 | नेपाल |
नंगा पर्वत | 8126 | जम्मू-कश्मीर |
नंदा देवी | 7817 | उत्तराखंड |
नामचाबरुआ | 7756 | अरुणाचल प्रदेश |
यह पर्वत श्रेणी इतनी दुर्गम है कि इसमें स्थित दरें भी वर्ष की अधिकांश अवधि में बर्फ से ढके रहते हैं। इसके अधिकांश दरें 4,570 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित हैं। कश्मीर में बुर्जिल दर्रा व जोजिला, हिमाचल प्रदेश में बाड़ा लाचा लॉ शिपकी लॉ, उत्तराखंड में थाग लॉ, नीति दर्रा व लीपूलेख दर्रा तथा सिक्किम में नाथू लॉ व जीलप लॉ महत्वपूर्ण दरें हैं।
(ii) लघु अथवा मध्य हिमालय (The Lesser or the Middle
Himalayas)
इसे हिमाचल श्रेणी भी कहते हैं। यह वृहत् हिमालय के दक्षिण में लगभग उसके समानांतर पूर्व पश्चिम दिशा में विस्तृत है। यह 60 से 80 किलोमीटर चौड़ी तथा 3000 मीटर से 4500 मीटर ऊँची श्रृंखला है |
इसकी कई चोटियां 5000 मीटर तक ऊँची है। इसकी दक्षिणी ढाल उत्तरी ढाल की अपेक्षा अधिक तीव्र है। कश्मीर की पीरपंजाल श्रेणी मध्य हिमालय का पश्चिमी विस्तार है।
यह 4,000 मीटर ऊँची है और इस क्षेत्र की सबसे लम्बी तथा महत्वपूर्ण श्रेणी है।
यह श्रेणी झेलम तथा व्यास नदियों के बीच लगभग 400 किलोमीटर की लम्बाई तक फैलकर इसके आगे दक्षिण-पूर्व दिशा में मुड़ जाती है। यहां पर धौलाधार श्रेणी है, जिस पर शिमला (2,205 मीटर) स्थित है।
इस श्रेणी में पीरपंजाल (3,494 मीटर) तथा बनिहाल (2,832 मीटर) दो प्रमुख दर्रे हैं। बनिहाल दर से होकर जम्मू-श्रीनगर सड़क मार्ग जाता है।
मध्य हिमालय तथा महान हिमालय के बीच कई घाटियाँ पाई जाती हैं। पश्चिम में कश्मीर घाटी स्थित है, जो पीरपंजाल तथा महान हिमालय के बीच है।
पूर्व में काठमांडू घाटी है, जो नेपाल में स्थित है। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा तथा कुल्लू घाटियाँ प्रसिद्ध है।
भारत के अधिकांश स्वास्थ्यवर्धक स्थान लघु हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर स्थित है। इनमें शिमला, मसूरी, डलहौजी, नैनीताल, दार्जीलिंग आदि प्रसिद्ध हैं। ये सभी स्थान 1,500 से 2,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
(iii) शिवालिक (The Shiwaliks)
यह लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। शिवालिक श्रेणी हिमालय की अन्य श्रेणियों की तुलना में बहुत छोटे आकार की है, इसलिए इसे उप-हिमालय (Sub-Himalayas) भी कहते हैं।
हिमालय पर्वत की बाहरी श्रेणी होने के कारण यह हिमालय की अन्तिम श्रेणी है और इसके दक्षिण में भारत का उत्तरी मैदान स्थित है। यह 15 से 50 किमी. चौड़ी श्रृंखला है।
हिमाचल प्रदेश में इसकी चौड़ाई 50 किमी. है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में यह केवल 15 किमी. चौड़ी है।
इसकी औसत ऊँचाई 600 से 1,500 मीटर है। इसमें बालू, कंकड तथा संपीड़नात्मक शैल मिलते हैं, जिन्हें महान हिमालय से निकलने वाली नदियों ने जमा किया था। बाद में सम्पीड़न के कारण यह भाग ऊपर उठ गया है और शिवालिक का निर्माण हुआ।
लघु तथा मध्य हिमालय के बीच कहीं-कहीं घाटियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें पश्चिम में दून (Doon) तथा पूर्व में दुआर (Duar) कहते हैं।
देहरादून, कोथरीदून तथा पटलीदून इसके प्रमुख उदाहरण हैं। देहरादून घाटी 75 किमी. लम्बी तथा 15 से 20 किमी. चौड़ी है।
(iv) ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय (Trans or Tibet Himalayas)
यह महान हिमालय के उत्तर में उसके समानान्तर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं। इनका अधिकांश भाग तिब्बत में है, इसलिए इन्हें तिब्बत हिमालय भी कहते हैं।
इसमें अनेक पर्वत-श्रेणियाँ हैं, जिनमें लद्दाख, जास्कर, कैलाश व कराकोरम प्रमुख हैं। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 मीटर है। यह श्रेणी 1,000 किमी. लम्बी है तथा अपने मध्यवर्ती भाग में 225 किमी. चौड़ी है।
पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर इसकी चौड़ाई केवल 40 किमी. है। जास्कर श्रेणी महान हिमालय से 80° पूर्वी देशान्तर पर अलग होती है और मुख्य श्रेणी के समानान्तर उत्तर-पूर्वी दिशा में बढ़ती है।
इसकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर है। लद्दाख श्रेणी 300 किलोमीटर लम्बी तथा 5,800 मीटर ऊँची है। यह जास्कर के समानान्तर फैली हुई है।
लद्दाख श्रेणी के पूर्व की ओर कैलाश श्रेणी है। यह मुख्यतः तिब्बत में स्थित है और मानसरोवर झील तक चली गई है। लद्दाख श्रेणी में उत्तर में कराकोरम श्रेणी है, जो ऊँची चोटियों तथा हिमनदियों के लिए विख्यात है।
हिमालय पर्वत की इस श्रेणी की प्रमुख चोटियाँ K2 (केटू) अथवा गोडविन ऑस्टिन, (8,611 मीटर), हिडन (8,068 मीटर), ब्रोडपीक (8,047 मीटर) तथा गाशेरब्रुम (8,035 मीटर) है। K२ (केटू) भारत की सबसे ऊँची तथा विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है।
कराकोरम श्रेणी पश्चिम की ओर पामीर गाँठ तथा पूर्व की ओर कैलाश श्रेणी में मिल जाती है।
(v) पूर्वांचल
यह मुख्य हिमालय के पूर्व में स्थित है, जिसके कारण इसे पूर्वांचल कहते हैं। इस भाग को पूर्वी उच्च प्रदेश अथवा पूर्वी पहाड़ियाँ भी कहते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी का दिहांग गॉर्ज पार करने के पश्चात् हिमालय पर्वत दक्षिण की ओर मुड़ जाता है और पहाड़ियों कीशृंखला का निर्माण करता है। ये पहाड़ियाँ अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा तथा पूर्वी असम में फैली हुई है।
अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में मिशमी तथा पटकाई बुम पहाड़ियाँ हैं। मिशमी पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी काडाफा बुम है, जो समुद्र तल से 4,578 मीटर ऊँची है। पटकाई बुम श्रेणी 2,000 से 3,000 मीटर ऊँची है और भारत के अरुणाचल प्रदेश तथा म्यांमार के अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है। पटकाई बुम के दक्षिण में नागा श्रेणी है। यह भारत के नागालैंड तथा म्यांमार में मध्य जल-विभाजक तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का काम करती है।
इस श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी का नाम सारामती है, जो समुद्र तल से 3,826 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसके दक्षिण में कोहिमा पहाड़ी स्थित है।
इसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम जापवी है, जो 2,995 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। बेरल श्रेणी भी उत्तर-दक्षिण दिशा में विस्तृत है और नगालैंड तथा असम राज्यों में स्थित है।
नागा तथा कोहिमा श्रेणियों के दक्षिण में मणिपुर पहाड़ियाँ हैं, जो मणिपुर राज्य में स्थित है। ये भारत के मणिपुर तथा म्यांमार में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का काम करती है। बरेल श्रेणी नागा तथा मणिपुर पहाड़ियों को एक-दूसरे से अलग करती हैं।
मणिपुर पहाड़ियों की ऊँचाई 2,500 मीटर है। मणिपुर पहाड़ी प्रदेश के बीच 50 किमी. लम्बा तथा 30 किमी. चौड़ा बेसिन है, जो किसी प्राचीन झील का नितल रह चुका है।
उत्तरी कछार पहाड़ी पूर्वांचल तथा मेघालय के बीच स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 500 मीटर है, परन्तु कहीं 1,000 मीटर ऊँचे शिखर भी है।
पूर्वांचल के दक्षिणी भाग में मिजोरम राज्य में मिजो पहाड़ियां हैं। मिजो पहाड़ियों के पश्चिम में त्रिपुरा पहाड़ियाँ हैं। त्रिपुरा तीन ओर से बांग्लादेश द्वारा घिरा हुआ है।
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पूर्वांचल से जुड़ा हुआ एक अन्य पहाड़ी प्रदेश भी है, जिसे मेघालय कहते हैं। इसकी तीन प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। इसके पूर्वी भाग में जयन्तिया, पश्चिम भाग में गारो तथा इन दोनों के बीच में खासी पहाड़ी है।
गारो पहाड़ी के शिखर 1,000 मीटर से अधिक ऊँचे है, जबकि खासी 1,300 से 2,000 मीटर ऊँची है। गारो पहाड़ी के दक्षिण की ओर सुरमा नदी का मैदान है, जबकि खासी पहाड़ी के दक्षिण की ओर चेरापूँजी का पठार है।
हिमालय का प्रादेशिक विभाजन
सर सिडनी बुराई (Sir S. Burrard) ने सर्वप्रथम हिमालय क्षेत्र को पूर्व-पश्चिम दिशा में चार प्रमुख प्रादेशिक भागों में विभाजित किया है। यह विभाजन घाटियों के आधार पर किया गया है। ये भाग भूगार्भिक दृष्टि से एक-दूसरे से से अलग हैं।
पश्चिम से पूर्व की ओर ये भाग निम्नलिखित हैं — (क ) पंजाब हिमालय, (ख ) कुमाऊं हिमालय, (ग ) नेपाल हिमालय, (घ ) असम हिमालय।
(क ) पंजाब हिमालय
सिन्धु नदी तथा सतलुज नदी के बीच वाले पर्वतीय भाग को पंजाब हिमालय कहते हैं। इसका अधिकांश भाग जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में पाया जाता हैं। इसलिए इसे प्रायः कश्मीर एवं हिमाचल हिमालय भी कहते हैं।
इसकी लम्बाई 560 किमी. है। इस भाग की मुख्य पर्वत श्रेणियाँ कराकोरम, लद्दाख, पीरपंजाल, धौलाधार तथा जास्कर है। यहाँ पर जोजी लॉ दर्रा 3,444 मीटर ऊँचा है। पंजाब हिमालय की ऊँचाई पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है। यहाँ अनेक समतल भू-भाग तथा झीलें मिलती हैं।
(ख ) कुमाऊं हिमालय
यह सतलुज नदी तथा काली नदी के बीच 320 किमी. लम्बा क्षेत्र है। इसका पश्चिमी भाग गढ़वाल हिमालय तथा पूर्वी भाग कुमाऊं हिमालय कहलाता है। यह पंजाब हिमालय की अपेक्षा अधिक ऊँचा है।
नन्दादेवी (7,817 मीटर) यहाँ की सर्वोच्च चोटी है। अन्य चोटियाँ कामेट (7,756 मीटर), त्रिशूल (7,140 मीटर), बद्रीनाथ (7,138 मीटर), केदारनाथ (6,945 मीटर) तथा गंगोत्री (6,510 मीटर) है।
गंगा तथा यमुना जैसी महान नदियों के उद्गम इसी भाग में है। यहाँ मध्य हिमालय तथा शिवालिक के बीच दून घाटियाँ पाई जाती हैं। नैनीताल के निकट नैनीताल, भीमताल तथा हिमा सामताल झीलें हैं।
(ग ) नेपाल हिमालय
यह काली नदी से तिस्ता नदी तक लगभग 800 किमी. लंबा है। इसका अधिकांश भाग नेपाल में स्थित है। इसलिए इसे नेपाल हिमालय कहते हैं। हिमालय का यह भाग सबसे ऊँचा है।
हिमालय के इस भाग में विश्व की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट (8,850 मीटर) स्थित है। इसका नाम भारत के सर्वेक्षण विभाग के मुख्य अधिकारी सर जार्ज एवरेस्ट (Sir George Everest) के नाम पर रखा गया है |
यह चोटी नेपाल तथा तिब्बत की सीमा पर स्थित है। अन्य प्रमुख चोटियाँ कंचनजंगा प्रथम (8,598 मीटर), मैकाल (8,481 मीटर), कंचनजंगा द्वितीय (8,473 मीटर), धौलागिरि (8,172 मीटर), चो यू (Cho Oyo) (8,153 मीटर), कुटंग प्रथम (8,125 मीटर) तथा अन्नपूर्णा (8,078 मीटर) है। काठमांडू यहाँ की सबसे प्रसिद्ध घाटी है।
(घ ) असम हिमालय
तिस्ता नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक 750 किमी. लम्बा भाग असम हिमालय कहलाता है। इसका विस्तार सिक्किम, असम तथा अरुणाचल प्रदेश में है। यह नेपाल हिमालय की अपेक्षा कम ऊँचा है।
असम हिमालय की महत्वपूर्ण चोटियों में नामचा बरवा (7755 मीटर), कुला कांगड़ी (7,554 मीटर) तथा चोमोलहारी (7327 मीटर) है। अन्य चोटियाँ काबस, जाँग, सांगला, पौहुनी है | इस भाग की प्रमुख नदियां ब्रह्मपुत्र, लोहित, दिवांग तथा दिहांग हैं |
हिम रेखा तथा हिम नदियां
हिम रेखा
जिस रेखा के ऊपरी भाग में हिम की नदी पिघलती है, उस रेखा को हिम रेखा कहते हैं। हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में हिमरेखा विभिन्न ऊँचाइयों पर मिलती हैं।
असम हिमालय में हिमरेखा की ऊँचाई 4420 मीटर तथा नेपाल हिमालय में 4500 मीटर, कुमाऊं हिमालय से 5200 मीटर तथा कश्मीर हिमालय में 6000 मीटर है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पूर्व से पश्चिम की ओर जाने पर हिमरेखा की ऊँचाई बढ़ती जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि पूर्वी भागों में पश्चिमी भागों की अपेक्षा आर्द्रता अधिक है।
इसके अतिरिक्त यह भी देखने में आता है कि सामान्यतः हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर उत्तरी ढलानों की अपेक्षा हिमरेखा ऊंची होती है।
इसका कारण यह है कि हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर सूर्य की किरणें उत्तरी ढलानों की अपेक्षा कम तिरछी चमकती है।
हिम-नदियां
हिमालय के लगभग सभी उच्च भागों में हिम नदियाँ पाई जाती हैं। कराकोरम तथा पंजाब हिमालय में हिम नदियाँ विशेष रूप में पाई जाती हैं। ये हिम नदियाँ कई किलोमीटर लम्बी हैं और आड़ी तथा लम्बवत् दोनों ही प्रकार की हैं।
उल्लेखनीय है कि, हिमालय के पश्चिमी भाग में हिम-नदियां पूर्वी भाग की हिम नदियों से बड़ी हैं। पश्चिमी भागों में हिम-नदियां केवल बड़ी ही नहीं, बल्कि पूर्वी भागों में हिम-नदियों से अधिक नीचे तक भी उतर आती हैं।
उदाहरणत: हिमनदियां कश्मीर में 2200 से 2500 मी. तक नीचे, उतर आती हैं, जबकि कुमाऊं में 3640 मीटर तथा कंचनजंगा में 4000 मीटर तक ही नीचे उतरती हैं।
इसका एक कारण तो यह है कि पश्चिम हिमालय, पूर्वी हिमालय की अपेक्षा भूमध्य रेखा से अधिक दूर है। उदाहरणतः कराकोरम 36° उत्तरी अक्षांश पर, जबकि कंचनजंगा का अक्षांश 28° उत्तर है।
इसका दूसरा कारण यह है कि पूर्वी भाग में वर्षा अधिक तथा वायुराशि अपेक्षाकृत गर्म है और पश्चिम में वर्षा कम होती है, जिसका कुछ भाग शीत ऋतु में हिमपात के रूप में है।
पश्चिमी हिमालय
पश्चिमी हिमालय के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर, हिमाचल तथा उत्तराखंड के दर्रे आते हैं।
जम्मू-कश्मीर
अघील: यह कराकोरम में स्थित भारत की सबसे ऊंची चोटी K2 के उत्तर में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई पर है और भारत के लद्दाख को चीन के एक्सिन्जियांग (सिंकियांग) प्रांत से जोड़ता है।
अधिक ऊंचाई पर स्थित होने तथा पर्वतों द्वारा घिरे रहने के कारण यह नवम्बर से मई के प्रथम सप्ताह तक बंद रहता है।
बनिहालः यह पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में 2832 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां शीत ऋतु में हिमपात होता है, जिस कारण यह आवागमन के लिए उपयुक्त नहीं रहता।
दिसम्बर 1956 में यहां वर्षभर आवागमन के लिए एक सुरंग बनाई गई थी, जिसका नाम देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर ‘जवाहरलाल सुरंग’ रखा गया।
बारा लाचाः यह जम्मू-कश्मीर में लगभग 5,045 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें से बहुत ऊंचा मनाली-लेह सड़क मार्ग गुजरता है।
यहां शीत ऋतु में हिमपात होता है और यह नवम्बर से मई के मध्य तक बन्द रहता है। चांग ला लगभग 5,270 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह लद्दाख को तिब्बत से जोड़ता है।
यहां पर चांगला बाबा का मंदिर है, जिसके नाम पर दर्रे का नामकरण किया गया है। हिमपात के कारण यह शीत ऋतु में बंद रहता है।
खुजराब: यह कराकोरम पर्वत श्रृंखला में पांच हजार मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित है और लद्दाख को चीन के सिक्यांग प्रांत से जोड़ता है।
लानक ला: यह जम्मू-कश्मीर के चीन अधिकृत अक्साई चीन इलाके में स्थित है और लद्दाख तथा तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बीच संपर्क स्थापित करता है। चीन ने सामरिक दृष्टि से इस दरें में से गुजरती हुई सिकियांग को तिब्बत से जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण किया है।
पीर पंजाल: यह दर्रा पीर पंजाल पर्वत में है और मुगल राज मार्ग पर जम्मू से श्रीनगर जाने का परपंरागत मार्ग है। परंतु देश के विभाजन के बाद इसे बंद कर दिया गया।
कारा तायः यह कराकोरम पर्वत पर छ: हजार मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है और हिमपात के कारण वर्ष की अधिकांश अवधि में बंद ही रहता है।
खारदुगः यह जम्मू-कश्मीर के कराकोरम पर्वत में छ: हजार मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है। इस दरें में से भारत की सबसे ऊंची सड़क गुजरती है। परंतु यह हिमपात के कारण शीत ऋतु में बंद रहता है।
थांग ला: यह जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में 5,359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस दरें में से खारदुंग के बाद दूसरी सबसे ऊंची सड़क गुजरती है।
इमिंस लाः लगभग 4,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा लद्दाख को तिब्बत से मिलाता है। यहां पर भूमि बहुत ऊबड़-खाबड़ है और ढाल काफी तीव्र है, जिस कारण से इसका अधिक उपयोग नहीं किया जाता। यह शीत ऋतु में बंद हो जाता है।
पेन्सी ला: यह महान हिमालय में पांच हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर जोजी ला के पूर्व में स्थित है। यह कश्मीर घाटी को कारगिल से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है। परंतु यह शीत ऋतु में हिमपात के कारण नवम्बर से मई के मध्य तक बन्द रहता है।
जोजी लाः लगभग 3,850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा श्रीनगर तथा कारगिल एवं लेह के बीच सम्पर्क स्थापित करने में सहायता देता है। यहां पर सड़कों के निर्माण तथा रखरखाव का काम सीमा सड़क संगठन (Border Road Organisation-BRO) द्वारा किया जाता है। इसके सामरिक महत्व को देखते हुए श्रीनगर-जोजी ला सड़क को राष्ट्रीय महामार्ग NH-ID घोषित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश
देबसा: यह हिमाचल प्रदेश के महान हिमालय एवं स्पीती के बीच लगभग 5,270 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इससे कुल्लू तथा स्पीती के बीच छोटे मार्ग का निर्माण हो गया है।
रोहतांग: लगभग 3,979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा हिमाचल प्रदेश की लाहौल एवं स्पीती घाटियों के बीच संपर्क स्थापित करता है। Border Road Organization (BRO) ने इस दर्रे में महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण किया है, जिस पर सेना तथा आम जनता के वाहनों की भीड़ लगी रहती है। यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
शिपकी ला: यह झेलम महाखड्ड (Gorge) पर छः हजार मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है और हिमाचल प्रदेश को तिब्बत से जोड़ता है। शीत ऋतु में हिमपात के कारण यह बंद रहता है।
उत्तराखंड
लिपुलेख: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित यह दर्रा उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है। विश्व की सबसे कठिन पवित्र मानसरोवर की यात्रा करने वाले तीर्थ यात्री इसी दर्रे से होकर जाते हैं।
माना: यह उत्तराखंड के महान हिमालय में हिन्दुओं के पवित्र धार्मिक स्थल बद्रीनाथ के मंदिर से कुछ ही दूर लगभग 5,611 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है। इसे चिरिबितिया या डूंगरी ला भी कहा जाता है। यह नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र से जास्कर पर्वत श्रेणी के पूर्वी छोर तक फैला हुआ है। इसी दर्रे में देवताल झील है, जहां से अलकनंदा की सहायक नदी सरस्वती का उद्गम होता है।
मांगसा धुरा: यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में लगभग पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर के लिए जाने वाले तीर्थ यात्री इस दर्रे का भी प्रयोग करते हैं।
निती: यह भी उत्तराखंड में लगभग 5,068 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और उत्तराखंड को तिब्बत से मिलाता है। यह नवम्बर से मई तक बन्द रहता है।
मुलिंग ला: यह गंगोत्री के उत्तर में स्थित है और उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है। भारी हिमपात के कारण यह शीत ऋतु में बंद रहता है।
चौराबाड़ी ग्लेशियर
यह रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर के उत्तर में अवस्थित है। इस ग्लेशियर के दक्षिणी ढलान की दूरी मंदिर से 6 कि.मी. उत्तर में है। ग्लेशियर के पिघलने के कारण एक झील का निर्माण हो गया है, जिसे गांधी सरोवर नाम से भी जाना जाता है।
पाताल तोड़ कुएं
यह प्रदेश के तराई क्षेत्र में पाए जाते हैं। पाताल तोड़ कुएं ऐसे प्राकृतिक जलस्रोत होते हैं, जो धरातल से स्वत: ऊपर प्रकट होते हैं और सतह पर जल निकलता रहता है, परंतु जलस्रोत तथा पाताल तोड़ कुए में अंतर होता है- प्रथम में, जल स्वतः ऊपर आ जाता है, जबकि दूसरे, पाताल तोड़ कुएं में मनुष्य को धरातलीय सतह पर पहले कुआं खोदना पड़ता है और बाद में जल निकलने लगता है |
पूर्वी हिमालय
इस क्षेत्र में सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश के दरें आ हैं। इनमें निम्नलिखित दर्रे महत्वपूर्ण हैं : —
सिक्किम
नाथू ला: यह भारत-चीन सीमा पर लगभग 4310 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्राचीन सिल्क मार्ग (Silk Root) की प्रशाखा का अंग था और यहां से भारत एवं चीन के बीच व्यापारिक संबंध थे। 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद इसे बंद कर दिया गया था। परंतु 44 वर्ष बाद सद्भावना के प्रतीक के रूप में 2006 में इसे फिर खोल दिया गया।
जेलेप ला: यह सिक्किम-भूटान सीमा पर 4,538 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चुम्बी घाटी द्वारा सिक्किम का ल्हासा (तिब्बत) से संपर्क स्थापित करता है।
अरुणाचल प्रदेश
बोमड़ी ला: यह भूटान के पूर्व तथा भारत-चीन सीमा के थोड़ा सा दक्षिण में महान हिमालय में लगभग 2,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह अरुणाचल प्रदेश का ल्हासा से संपर्क कराता है। हिमपात तथा खराब मौसम के कारण यह शीत ऋतु में बंद रहता है।
दिहांग: यह अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है और भारत को म्यांमार के मांडले से जोड़ता है।
दीफूः यह भी अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है और म्यांमार के मांडले को छोटा मार्ग उपलब्ध कराता है। यह भारत तथा म्यांमार के बीच परंपरागत मार्ग है और इस पर ऋतु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अतः यह पूरे साल यातायात के लिए खुला रहता है।
लेखापानी: यह भी अरुणाचल प्रदेश का संपर्क मांडले से कराता है और पूरे साल खुला रहता है।
यांगसानः लगभग चार हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा अरूणाचल प्रदेश तथा म्यांमार के मांडले के मध्य संपर्क स्थापित करता है।
हिमालय के मुख्य दर्रे
बुर्जिला, जोजिला | जम्मू-कश्मीर |
शिपकी ला | हिमाचल प्रदेश |
बारालाचा ला | हिमाचल प्रदेश |
थागा ला | उत्तराखंड |
लीपू लेख | उत्तराखंड |
जेलेपा | उत्तराखंड |
नाथुला | सिक्किम |
बोमडी ला | अरुणाचल प्रदेश |
यद्यपि हिमालय विश्व की सबसे ऊंची पर्वत माला है और इसे पार करना दुष्कर है, तथापि इसमें कुछ दरें हैं, जिन से इस दुर्गम पर्वत माला को पार किया जा सकता है। इसके कुछ दर्रों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है —
रोहतांग दर्रा: भारत देश के हिमाचल प्रदेश में 13,050 फीट/समुद्री तल से 4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है ‘रोहतांग दर्रा’ हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है।
रोहतांग इस स्थान का नया नाम है | पुराना नाम है-‘भृगु-तुंग’! यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। उत्तर में मनाली, दक्षिण में कुल्लू शहर से 51 किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह के मुख्यमार्ग में पड़ता है।
इसे लाहोल और स्पीति जिलों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार पिछले वर्ष 2008 में करीब 100,000 विदेशी पर्यटक यहां आए थे।
यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसा नजारा दिखता है, जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले. रोहतांग दर्रे में स्कीइंग और ट्रेकिंग की अपार संभावनाएँ हैं।
पीर पंजाल दर्राः पीर पंजाल दर्रा जम्मू-कश्मीर के दक्षिण-पश्चिम में पीर पंजाल श्रेणियों के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई लगभग 3,494 मीटर है। यह दर्रा कुलगांव से कोठी हेतु मार्ग उपलब्ध कराता है।
जम्मू को श्रीनगर से जोड़ने वाला यह पारंपरिक दर्रा ‘मुगल मार्ग’ पर स्थित है। ‘पीर की गली‘ के नाम से विख्यात यह दर्रा मुगल सड़क के माध्यम से राजौरी और पुंछ के साथ कश्मीर घाटी को जोड़ता है।
जम्मू-कश्मीर को घाटी से जोड़ने वाला यह सबसे सरल और छोटा एवं पक्का मार्ग है। ‘पीर की गली’ में मुगल मार्ग का यह उच्चतम बिंदु है, जो 11500 फुट के लगभग है। यहाँ का निकटम शहर सोपियां है, जिसे ‘सेबों की घाटी’ भी कहते हैं।
बुर्जिला दर्राः बुर्जिला दर्रा जम्मू कश्मीर (भारत) में स्थित है। यह हिमालय के अन्तर्गत आता है। यह दर्रा पाक अधिकृत कश्मीर एवं कश्मीर घाटी को जोड़ता है। इस दर्रे से होकर काशनगर और मध्य एशिया का मार्ग गुजरता है।
समुद्र तल से बुर्जिला दर्रा 4,100 मीटर (13,500 फीट) की ऊँचाई पर कश्मीर, गिलगित और श्रीनगर के बीच का एक प्राचीन मार्ग है।
यह दर्रा कश्मीर घाटी को लद्दाख के देवसाई मैदानों से जोड़ता है। बर्फ से ढक जाने के कारण यह शीत ऋतु में व्यापार और परिवहन के लिए बंद रहता है। बुर्जिला दर्रा भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर स्थित है।
माना दर्राः माना दर्रा (5,545 मी (18,192 फुट)), भारत चीन सीमा पर स्थित हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। इसे माना-ला, चिरबितया, चिरबितया-ला अथवा डुंगरी-ला के नाम से भी जाना जाता है।
भारत की तरफ से यह उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर के निकट है। माना दर्रा उत्तराखंड के कुमाऊँ श्रेणी में स्थित है। इस दर्रे से होकर मानसरोवर और कैलाश घाटी जाने का मुख्य मार्ग गुजरता है।
माना दर्रा भारत के उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है। इसे दुनिया की सबसे ऊँची परिवहन योग्य सड़क भी माना जाता है।
शीत ऋतु में यह लगभग 6 महीने बर्फ से ढका रहता है। माना दर्रा, नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर माना शहर से 24 कि.मी. और उत्तराखंड में प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक तीर्थ बद्रीनाथ से 27 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है।
गोमल दर्राः गोमल दर्रा पाकिस्तान में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है। सुलेमान पर्वतमाला के उत्तरी छोर पर 7,500 फुट की ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा फोर्ट सैंडमन से 40 मील (लगभग 64 कि.मी.) उत्तर है।
यह प्रसिद्ध खैबर दर्रा तथा बोलन दर्रा के बीच में है। गोमल नदी के समांतर का मार्ग, जो मुर्तजा तथा डोमंडी से होता हुआ उत्तरी-पश्चिमी सरहदी सूबे को अफगान प्लेटो से जोड़ता है, इसी दर्रे से होकर जाता है। इस हिस्से का यह सबसे पुराना दर्रा है। प्राचीन समय में व्यापारियों के काफिले यहाँ से वस्तु विनिमय तथा क्रय-विक्रय के लिये आवागमन किया करते थे।
लाचा दर्रा: हिमाचल प्रदेश में जास्कर श्रेणियों के मध्य स्थित यह दर्रा मण्डी से लेह जाने का मार्ग प्रदान करता है। यह दर्रा 4,512 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
बनिहाल दर्रा: बनिहाल दर्रा हिमालय का एक प्रमुख दर्रा हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 1अ एनएच 1 ए इस दर्रे से होकर निकलता है। यही दर्रा कश्मीर घाटी को जवाहर सुरंग के माध्यम से जम्मू के रास्ते शेष भारत से जोड़ता है।
बनिहाल दर्रा हिमालय की पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला पर है, जिसे चीरते हुए भारत की सबसे बड़ी सुरंग के रास्ते, जून 2013 में काजीगुंड से बनिहाल तक, रेल सेवा शुरु कर दी गयी है।
चुम्बी घाटी
चुम्बी घाटी तिब्बत के शिगात्से विभाग में स्थित एक घाटी है। यह उस स्थान पर स्थित है जहाँ भारत के सिक्किम राज्य, भूटान और तिब्बत तीनों की सीमाएँ मिलती हैं। हालांकि तिब्बत एक ठंडा प्रदेश है, चुम्बी वादी में गर्मियों में मौसम अच्छा होता है और स्थानीय वनस्पतियों में बहुत फूल आते हैं।
कूटनीतिक दृष्टि से 3,000 मीटर पर स्थित चुम्बी घाटी का बहुत महत्व रहा है क्योंकि भारत पर तिब्बत से आक्रमण करने का यह एक आसान मार्ग है।
1904 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने तिब्बत पर चढ़ाई करके चुम्बी पर नौ महीने का कब्जा कर लिया था। ब्रिटिश सरकार के अन्दर चुम्बी को औपचारिक रूप से भारत का भाग बनाने के लिये काफी खीचातानी चली लेकिन अन्त में इसे तिब्बती सरकार के हवाले कर दिया गया।
भारत और तिब्बत के बीच के दो महत्वपूर्ण पहाड़ी दर्रे नाथू ला और जेलेप ला के एक तरफ के मुख चुम्बी घाटी में ही खुलते हैं।
चुंबीघाटी हिमालय की दक्षिणी ढालों पर समुद्रतट से 9,500 फुट ऊँची यह घाटी (क्षेत्रफल 700 वर्ग मील) भारत को तिब्बत से मिलाती है। इसके पूर्व में भूटान और पश्चिम में सिक्किम हैं।
यद्यपि राजनीतिक रूप में यह पहले तिब्बत के और अब चीन के आधिपत्य में है, तथापि भौगोलिक दृष्टि से इसे भारत का अंग होना चाहिए। इसी मार्ग से 1904 ई. में ब्रिटिश मिशन गया था |
बोमडिल दर्राः बोमडिल दर्रा अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इस दरें से होकर तिब्बत जाने का मार्ग गुजरता है।
भूटान के पूर्व में अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह दर्रा तल से 2217 मीटर (7273 फुट) की ऊँचाई पर स्थित है।
यह दर्रा अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है। प्रतिकूल मौसम और बर्फबारी के कारण यह शीत में बंद रहता है।
आफिल दर्राः आफिल दर्रा कराकोरम श्रेणी में के-2 के उत्तर में लगभग 5306 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह दर्रा लद्दाख को चीन के झिंजियांग (सिकियांग) प्रान्त से जोड़ता है। शीत ऋतु में आफिल दर्रा नवम्बर से मई के प्रथम सप्ताह तक बंद रहता है।
भोरघाट दर्राः भोरघाट महाराष्ट्र राज्य में पश्चिमी घाट श्रेणियों में स्थित एक दर्रा है। यह दर्रा अपनी खूबसूरती के साथ-साथ शांत वातावरण के लिए जाना जाता है।
यह दर्रा मुम्बई तथा पुणे के बीच का सम्पर्क मार्ग है। भोरघाट दर्रा ‘प्लाकड दर्रे’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘प्लाकड‘ भारत के केरल में स्थित एक नगर का नाम है। इसी कारण से इसे प्लाकड दर्रे का नाम दिया गया।
बोलन दर्रा: बोलन पाकिस्तान में स्थित एक दर्रा है। बोलन दर्रा क्वेटा एवं पाकिस्तान को खक्खर से जोड़ता है। बोलन दर्रा अफगानिस्तान की सीमा से 120 कि.मी. की दूरी पर है।
बोलन दर्रे को दक्षिण एशिया में व्यापारियों, आक्रमणकारियों और खानाबदोश जनजातियों के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में भी इस्तेमाल किया गया।
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