मृदा का वर्गीकरण और मृदा अपरदन

मृदा का वर्गीकरण

मृदा — मृदा या मिट्टी खनिज और जैव तत्त्वों का वह प्राकृतिक मिश्रण है जिसमें वनस्पति एवं पौधे उत्पन्न करने की क्षमता होती है | यह धरातल के ऊपरी भाग में पाई जाती है | मृदा का वर्गीकरण मृदा के संघटन के आधार पर किया जाता है |

मृदा का सामान्य वर्गीकरण

मृदा का वर्गीकरण करने की कई विधियाँ हैं, परन्तु पेडलफर (Pedalfers) तथा पेडोकल (Pedocals) दो मुख्य मिट्टियाँ हैं।

पेडलफर 63.5 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पायी जाती है, जबकि पेडोकल इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। ये मिट्टियाँ पुनः अन्य कई उपवर्गों में बांटी जाती हैं।

पेडलफर के वर्ग में आने वाली मिट्टियों के नाम हैं — टुंड्रा मिट्टी, पोडसोल, काली मिट्टी, धूसर-बादामी मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी तथा लेटराइट मिट्टी।

पेडोकल के वर्ग में सम्मिलित की जाने वाली मिट्टियों के नाम हैं — काली मिट्टी (Cherozem), भूरी मिट्टी, स्लेटी मिट्टी तथा हल्की भूरी मिट्टी ।

विश्व के शुष्क मरुस्थलों में मरुस्थली मिट्टी तथा पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतीय मिट्टी मिलती है।

कुछ महत्वपूर्ण मिट्टियों का विवरण निम्न प्रकार से है —

(1) टुंड्रा मिट्टी

टुंड्रा प्रदेश में अत्यधिक शीत के कारण पेड़-पौधे नहीं उगते हैं, जिस कारण से यहाँ की मिट्टी में वनस्पति के अंश की कमी होती है। परन्तु उसमें ह्यूमस बहुत होता है। इसमें चट्टानी चूर्ण की अधिकता होती है। इन मिट्टियों पर काई (Lichen) तथा मास (Moss) खूब पाई जाती है |

(2) पोडसोल (Podosol)

यह स्लेटी रंग की होती है, जो कोणधारी उच्च अक्षांशीय प्रदेशों में पाई जाती है। इन प्रदेशों में लंबी शीत ऋतु, छोटी ग्रीष्म ऋतु तथा पूरे वर्ष सामान्य वर्षा होती है। उपजाऊ तत्व निरन्तर रिस-रिसकर नीचे जाते रहते हैं, जिसे ‘अपक्षालन’ (Leaching) कहते हैं।

(3) लाल एवं पीली मिट्टी

यह उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली एक प्रकार की पेडलफर मिट्टी है। इन क्षेत्रों में उच्च तापमान तथा अधिक आर्द्रता होती है। इसलिए इसके घुलनशील तत्वों का अपक्षालन (Leaching) होता रहता है। इसमें लोहे का अंश अधिक होता है, जिस कारण इसका रंग लाल हो जाता है। कहीं-कहीं यह पीले रंग की भी होती है।

(4) लेटराइट मिट्टी

यह मिट्टी भूमध्य रेखीय एवं सवाना जलवायु वाले क्षेत्रों में पायी जाती है। यहाँ की जलवायु उष्ण तथा आर्द्र होती है। अधिक वर्षा के कारण बहुत से उपजाऊ तत्व रिसकर नीचे चले जाते हैं। इस प्रकार यह मिट्टी बहुत ही अपक्षालित (Leached) होती है, जिसमें ह्यूमस का पूर्णतया अभाव होता है। इस मिट्टी की ऊपरी परत में लोहे व अल्यूमीनियम ऑक्साइड के निक्षेप मिलते हैं।

(5) चरनोजम मिट्टी (Chernozem Soil )

यह पेडोकल वर्ग की बहुत ही महत्वपूर्ण मिट्टी है। इसका दूसरा नाम काली मिट्टी है। यह अर्द्ध मरुस्थलीय जलवायु में पाई जाती है। इसमें ह्यूमस तथा कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है।

(6) प्रेयरी मिट्टी

यह मिट्टी भी पेडोकल मिट्टी के समान ही है। यह मिट्टी पूर्वी यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के समशीतोष्ण घास के मैदानों में पाई जाती है। चरनोजम की अपेक्षा इसमें चूने का अंश कम होता है।

इसकी संरचना भुरभुरी होती है और यह बहुत उपजाऊ होती है। मक्का इस मिट्टी की मुख्य फसल है।

मृदा अपरदन

मृदा का अपरदन

जल तथा वायु के प्रभावाधीन मृदा की ऊपरी परत कटकर बह जाती है। इसे मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन मुख्यत: वनस्पतिहीन, ढालू तथा कम ह्यूमस वाले इलाकों में अधिक होता है।

मृदा अपरदन के प्रकार

मृदा अपरदन दो प्रकार का होता है —

(1) परतदार अपरदन (Layer or Sheet Erosion)

जब मृदा की ऊपरी परत को जल बहा ले जाए या वायु उड़ा ले जाए, तो उसे ‘परतदार अपरदन’ कहते हैं।

यह क्रिया उन क्षेत्रों में होती है, जहाँ भूमि सामान्य ढाल वाली एवं वर्षा बौछारों में हो तथा वनस्पति का अभाव हो।

(2) नालीदार अपरदन (Gulley Erosion )

तीव्र ढाल तथा भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में तीव्र गति से बहता हुआ जल जब मिट्टी में कटाव करके नालियाँ बना लेता है, तो उसे ‘नालीदार अपरदन’ कहते हैं।

मृदा अपरदन के कारण

मृदा अपरदन के कई भौतिक तथा सांस्कृतिक कारण हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) नदी

नदी तीन प्रकार से मृदा अपरदन करती है —

(क ) नदी कटाव द्वारा खड्ड बनाती है। चम्बल तथा यमुना के कछार प्रदेशों में इसके उदाहरण मिलते हैं।

(ख ) जब नदी अपना रास्ता बदलती है, तो आस-पास के इलाके में मृदा अपरदन करती है। कोसी नदी ने कई बार अपना रास्ता बदला है।

(ग ) बाढ़ के समय नदी का पानी दूर-दूर तक फैल जाता है तथा मृदा की परत को बहाकर जाता है।

(2) मूसलाधार वर्षा

जब मूसलाधार वर्षा होती है, तो वर्षा का जल तीव्र गति से धरातल पर बहता है और मृदा का अपरदन करता है।

(3) भूमि का ढाल

समतल भूमि पर अपरदन कम होता है, परन्तु ढाल वाली भूमि पर अपरदन अधिक होता है।

(4) वायु

शुष्क वनस्पतिहीन मरुस्थलीय प्रदेशों में वायु मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारण है। वायु द्वारा मृदा अपरदन वायु की गति पर निर्भर करता है। तेज चलने वाली वायु अधिक मात्रा में अपरदन करती है।

(5) वनस्पति का ह्रास

पेड़-पौधों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती हैं, जिससे जल तथा वायु मिट्टी का अपरदन आसानी से नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त पेड़ों के तने पानी के बहाव गति को कम कर देते हैं। जिन क्षेत्रों में वनस्पति का ह्रास हो रहा है, वहाँ मृदा अपरदन बहुत ही अधिक मात्रा में हो रहा है।

(6) पशु-पालन

वन पशुओं के लिए चारा प्रदान करते हैं, परन्तु आवश्यकता से अधिक पशु-चारण से वनस्पति का नाश होता है, जिससे मिट्टी को हानि पहुँचती है।

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भारत : जलवायु, वनस्पति तथा वन्य प्राणी ( भूगोल, कक्षा-6) ( India : Climate, Vegetation and Wildlife ( NCERT, Geography, Class -6, Chapter 8 )

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