टिप्पण या टिप्पणी का कार्यालयों के लिए एक विशेष महत्व है | यह अंग्रेजी शब्द नोटिंग ( Noting ) का हिंदी अनुवाद है | ‘नोटिंग’ शब्द लैटिन के Nota से बना है जिसका अर्थ है – जानना| इसके लिए ‘कमेंट’ या ‘एनोटेशन’ का भी प्रयोग किया जाता है |
कार्यालयों में आवेदन पत्रों को सरलता से निपटाने के लिए समय-समय पर जो सुझाव दिए जाते हैं उन्हें टिप्पण या टिप्पणी कहा जाता है | यह संक्षिप्त मत है जिसमें विचाराधीन मामले से संबंधित नियमों आदि की जानकारी होती है जिसे कार्यालय में कार्य करने वाले आवेदन पत्र पर लिखते हैं |
‘टिप्पण’ का अर्थ और परिभाषा
किसी कार्यालय में विचार के लिए आए आवेदन पत्रों को सुविधापूर्वक निपटाने के लिए समय-समय पर सुझाव, अभ्युक्तियाँ या राय दी जाती है ताकि नियमों के अनुसार कार्य किया जा सके, इन्हें ही टिप्पण या टिप्पणी कहा जाता है |
डॉ नरेश मिश्र के शब्दों में — “वे अभ्युक्तियाँ जो विचाराधीन विषय पर लिखी जाती हैं जिनके आधार पर उनका निस्तारण होता है, उसे टिप्पण की संज्ञा दी जाती है |”
टिप्पण लिखते समय कर्मचारी संबंधित अभिलेख, नियम, उपनियम या आधिकारिक निर्देशों को ध्यानपूर्वक देखकर उनका संदर्भ देकर अधिकारी को निर्णय लेने में सुविधा प्रदान करते हैं |
टिप्पण का उद्देश्य या महत्त्व
कार्यालय पत्रों पर लिए गए निर्णयों के विषय में किसी विवाद से बचने के लिए टिप्पण या टिप्पणी की आवश्यकता होती है | इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई विशेष निर्णय किस विशेष स्थिति और किस नियम के अनुसार लिया गया है | यह एक ऐसा आधार है जो अधिकारियों को विभिन्न निर्णय करने में दिशा प्रदान करता है | इनके द्वारा किसी विषय से जुड़ी सभी समस्याओं की जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा अधिकारियों को समस्या के समाधान के लिए विकल्प मिल जाते हैं |
‘टिप्पण’ या टिप्पणी की विशेषताएं
आवेदन पत्र पर कर्मचारियों के द्वारा की जाने वाली अच्छी और अनुकूल टिप्पणी कार्य निस्तारण और शीघ्र निर्णय लेने में सदा सहायक होती हैं | एक अच्छे टिप्पण में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए —
(1) टिप्पणी अनावश्यक रूप से आकार में बड़ी नहीं होनी चाहिए |
(2) एक अच्छी टिप्पणी में वे सभी तथ्य होने चाहिए जिनसे विचाराधीन विषय को स्पष्टता प्राप्त होती हो |
(3) टिप्पणी में विषय के विश्लेषण के पश्चात स्पष्ट संकेत दिया जाना चाहिए कि किन विषयों पर निर्णय लेने की आवश्यकता है |
(4) नियमोंव उपनियमों के आधार पर उचित कार्यवाही का सुझाव दिया जाना चाहिए |
(5) यदि टिप्पणी में एक से अधिक अनुच्छेद बनाए गए हों तो उन्हें क्रमांक दिया जाना चाहिए |
(6) टिप्पण के विचार तर्कसंगत होने चाहिए और यह तभी संभव है यदि टिप्पणी नियमों के आधार पर की गई हो |
(7) फाइल में टिप्पणी सबसे ऊपर लगानी चाहिए |
(8) आवश्यक संदर्भों पर ‘पताका’ लगाकर अधिकारी के समक्ष फाइल को प्रस्तुत करना चाहिए |
(9) टिप्पणी सदैव सरल और सहज भाषा में की जानी चाहिए |
(10) वाक्य रचना सदैव सरल होनी चाहिए ताकि विषय-वस्तु सरलता से स्पष्ट हो सके |
टिप्पण या टिप्पणी के प्रकार
प्रकृति और लेखन के आधार पर टिप्पणी मुख्यतः चार प्रकार की होती है —
(क ) लघु टिप्पणी ( Short Noting )
जब किसी कार्यालय में एक कर्मचारी से दूसरे कर्मचारी के पास कोई पत्र जाता है तो उसके बाईं ओर लघु टिप्पण लिखा जाता है | इसके लिए ‘टीप’ शब्द का प्रयोग किया जाता है | किसी एक अनुभाग से दूसरे अनुभाग को पत्र भेजते समय भी इसका प्रयोग किया जाता है | लघु टिप्पण का प्रयोग प्रायः तब किया जाता है जब किसी संदर्भ विशेष में किसी अधिकारी से अनौपचारिक निर्देश प्राप्त करना हो | किसी कार्य को निर्णय की स्थिति तक पहुंचाने के लिए लघु टिप्पण का विशेष महत्व है | कुछ लघु टिप्पण हैं – संस्तुत, अग्रसारित, अग्रसारित एवं संस्तुत | अधिकारियों द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले कुछ लघु टिप्पण हैं – विमर्श करें, टिप्पण करें, स्वीकृत, अनुमोदित आदि |
(ख ) सामान्य टिप्पण ( Simple Noting )
कार्यालय में किसी आवेदन पत्र के मिलने के पश्चात उस पर लिखी जाने वाली टिप्पणी को सामान्य टिप्पण कहते हैं | इसमें अनुकूल तथ्यात्मक विवरण होता है जो कार्य के निपटारे में सहायक होता है | इसका संबंध विषय-संदर्भ से होता है | अधिकारी को इससे निर्णय लेने में सरलता होती है | इसके ठीक प्रकार से न लिखने पर अधिकारी को पूरा आवेदन पत्र फिर से देखना पड़ता है जिससे उसे निर्णय लेने में समय लगता है |
(ग ) समग्र टिप्पण ( Full Noting )
किसी पुराने विवादास्पद या गंभीर विषय पर विचार करते हुए विस्तार से टिप्पणी लिखने की आवश्यकता होती है | इसमें मामले का पूरा इतिहास लिखा जाता है ताकि अधिकारी इसे पढ़कर सरलता से पूरा मामला समझ सके और अपना निर्णय दे सके |
इस प्रकार की टिप्पणी में किसी ऐसे ही पुराने मामले का हवाला देना भी उपयोगी होता है | क्योंकि यदि ऐसी ही किसी समस्या का समाधान पहले कभी भी कार्यालय में हो चुका है तो उसे आधार बनाना भी उपयोगी सिद्ध होगा | इसके साथ ही इस प्रकार की टिप्पणी में संबंधित मंत्रालय या कार्यालय से संबंधित नियमों-उपनियमों का उल्लेख करना भी आवश्यक है |
(घ ) विभागीय टिप्पणी ( Sectional Noting )
सभी मंत्रालयों, संस्थानों, कार्यालयों आदि में अनेक विभाग-अनुभाग होते हैं और वे मिल बांटकर कार्यों का संचालन करते हैं | उन सबकी अपनी-अपनी भूमिका होती है | कई बार ऐसे कार्य आ जाते हैं जिनको पूरा करने के लिए विभिन्न विभागों-अनुभागों की संयुक्त भूमिका आवश्यक होती है | ऐसी स्थिति में वह सभी विभाग एक दूसरे के लिए टिप्पणी तैयार कर प्रक्रिया में सहयोग देते हैं | विभिन्न विभागों की टिप्पणी प्राप्त करने के पश्चात ही सम्बंधित अधिकारी किसी निर्णय को लेता है |
यह भी देखें
प्रयोजनमूलक भाषा का अर्थ व प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्गीकरण ( Prayojanmulak Hindi Ka Vargikaran )
प्रयोजनमूलक हिंदी का स्वरूप ( Prayojanmoolak Hindi Ka Swaroop )
पारिभाषिक शब्दावली : अर्थ व विशेषताएं / गुण ( Paribhashik Shabdavali : Arth, Visheshtayen / Gun )
हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास ( Hindi Patrakarita Ka Udbhav Evam Vikas )
पत्रकारिता का क्षेत्र / प्रकार या आयाम ( Patrakarita Ka Kshetra / Prakar Ya Aayam )
संपादक : गुण व दायित्व ( Sampadak : Gun V Dayitv )
शीर्षक : अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ ( Shirshak : Arth, Paribhasha Evam Visheshtayen )
अनुवाद : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप
संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )
पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )
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