उर्वरक उद्योग
भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि की उपज काफी हद तक मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करती है। भारत की मिट्टियों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम आदि महत्वपूर्ण तत्वों की कमी होती है। इस कमी को पूरा करने के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन, फोस्फेट तथा उर्वरक डाले जाते हैं। इन उर्वरकों के उत्पादन से संबंधित उद्योग को उर्वरक उद्योग कहते हैं। यह भारत का प्रमुख उद्योग है |
इस समय भारत का उर्वरक उद्योग पूंजी निवेश तथा उत्पादित वस्तुओं के मूल्य की दृष्टि से काफी बड़ा उद्योग है। भारत विश्व में नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक का तीसरा बड़ा उत्पादक तथा फॉस्फेटयुक्त उर्वरक का सातवां बड़ा उत्पादक है।
वैसे तो उर्वरक उद्योग देश के सभी भागों में विकसित है, परन्तु इसका अधिक केन्द्रीकरण तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा केरल राज्यों में है।
ये राज्य भारत का लगभग 50 प्रतिशत उर्वरक पैदा करते हैं। शेष 50 प्रतिशत उर्वरक आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा , राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, मंजाब, असम, पश्चिम, बंगाल, गोवा, दिल्ली, मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों उत्पादित किया जाता है।
सीमेन्ट उद्योग
सीमेंट उद्योग भी भारत का प्रमुख उद्योग है | सीमेन्ट के निर्माण में ऐसे कच्चे माल प्रयोग किए जाते हैं, जिनका भार अधिक और मूल्य कम होता है और प्रक्रम के दौरान इनका भार कम हो जाता है।
चूना-पत्थर सीमेंट उद्योग का मुख्य कच्चा माल है और कुल उत्पादन का 60-65% होता है। अतः सीमेन्ट उद्योग मुख्य रूप से उन्हीं स्थानों पर विकसित हो पाता है, जहां चूना-पत्थर पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
सीमेंट उद्योग के लिए अन्य कच्चे पदार्थों में सीपी-शंख तथा इस्पात एवं उर्वरक प्लांटों का धातु मल महत्वपूर्ण हैं। सिलिका (20-25%), एल्युमिना (5-12%) का भी अपना महत्व है। सीमेंट उद्योग के लिए कोयला भी अति आवश्यक है।
भारत में सीमेंट बनाने का प्रथम प्रयास 1904 में किया गया, जब सीपियों पर आधारित सीमेंट बनाने का कारखाना चेन्नई में स्थापित किय गया | परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो पाया और सीमेंट का पहला सफल कारखाना 1912-13 में ‘इंडियन सीमेंट कम्पनी लि.’ ने पोरबंदर में स्थापित किया। प्रथम विश्व युद्ध से इस उद्योग को बहुत प्रोत्साहन मिला।
चीनी उद्योग
विश्व में चीनी गन्ने, चुंकदर, शकरकंद तथा अन्य कई मीठे पदार्थों से बनाई जाती है, परंतु भारत में चीनी का मुख्य कच्चा माल गन्ना ही है।
हमारे देश में गुड़, शक्कर तथा खांडसारी कुटीर उद्योग के रूप में प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। आधुनिक चीनी उद्योग बीसवीं शताब्दी की ही देन है।
भारत में चीनी उद्योग के दो विशिष्ट क्षेत्र हैं। उनमें से एक उत्तर के विशाल मैदान में है, जहां उत्तर प्रदेश तथा बिहार मुख्य उत्पादक हैं | इस क्षेत्र के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात में भी चीनी की मिलें हैं |
दूसरा क्षेत्र दक्षिण भारत में है, जहां पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में भी चीनी पैदा की जाती है। चीनी उद्योग की अवस्थिति में सबसे अधिक महत्व गन्ने का है।
चीनी की उत्पादन लागत में 50% से अधिक व्यय गन्ने पर होता है। सामान्यतः 100 टन गन्ने से 10-12 टन चीनी ही प्राप्त होती है, अर्थात गन्ने के कुल भार में से 9 से 12% ही चीनी का उत्पादन होता है।
गन्ना एक ह्रासमय पदार्थ है, अतः कटाई एवं पिराई लगभग साथ-साथ होनी चाहिए। अधिक देर होने पर गन्ने का रस सूख जाता है और गन्ना खराब हो जाता है।
एल्युमीनियम उद्योग
लौह -इस्पात उद्योग के बाद एल्युमीनियम उद्योग भारत का धातु पर आधारित दूसरा प्रमुख उद्योग है। एल्युमीनियम का लचीलापन, विद्युत तथा ऊष्मा के प्रति इसकी अच्छी चालकता तथा किसी भी आकार में ढलने की क्षमता ने इसे अत्यधिक उपयोगी धातु बना दिया है |
इसे विद्युत के वितरण, वायुयान व रेल के डिब्बों के निर्माण, भवन-निर्माण, सुरक्षा संबंधी वस्तुओं, परमाणु संयंत्रों, बर्तनों व सिक्कों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
पैकिंग सामग्री के रूप में इसका उपयोग होता है। यह इस्पात, तांबा, जस्ता तथा सीसा जैसी धातुओं के पूरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
इसके निर्माण में बिजली का बड़ा महत्व है। उत्पादन की 30-40% लागत बिजली के लिए व्यय होती है। यह बॉक्साइट से बनती है, इसलिए इसकी अवस्थिति में बिजली की उपलब्धता तथा बॉक्साइट के भंडारों का सबसे अधिक महत्व है।
एल्यूमिनियम उद्योग के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र ने भी काफी योगदान दिया है। भारत एल्युमीनियम कम्पनी लि. (Bharat Aluminium Company Ltd.- BALCO) की स्थापना 1965 में की गई। इसका पहला प्लांट कोरबा (छत्तीसगढ़), दूसरा प्लांट रत्नागिरि (महाराष्ट्र) तथा तीसरा प्लांट अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़) में स्थापित किया गया।
मद्रास एल्युमीनियम कम्पनी की स्थापना 1965 में हुई। इसका प्लांट मैटूर में है। 1981 में राष्ट्रीय एल्युमीनियम कम्पनी लि0 (National Aluminium Company Ltd-NALCO) की स्थापना हुई | इसका प्लांट उड़ीसा के कोरापुट जिले में दमन जोड़ी नामक स्थान पर है |
कागज उद्योग
भारत में अधिकांश कागज की मिलें कच्चे माल के कार तथा बाजार की निकटता से प्रभावित हैं। भारत में कागज तथा गत्ते के मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा व उत्तर प्रदेश हैं।
(1) पश्चिम बंगाल
इस राज्य में 13 मिलें कागज का निर्माण करती हैं। पश्चिम बंगाल की अधिकांश मिलें हुगली नदी के किनारे कोलकाता के आस-पास स्थित हैं। इसके अतिरिक्त पश्चिमी बंगाल में कागज उद्योग के प्रमुख केन्द्र टीटागढ़, रानीगंज, नेहारी, काकीनगर, त्रिवेणी, कोलकाता, चन्द्रहारी, बड़ा नगर तथा शिवराफूली आदि हैं।
टीटागढ़ पश्चिम बंगाल का ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देश का सबसे बड़ा कागज उत्पादन केन्द्र है। ये कारखाने पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन, बिहार, असम तथा उड़ीसा के बांस तथा मध्य प्रदेश की सवाई घास को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं।
कोयला प्रचुर मात्रा में रानीगंज तथा झरिया से मिल जाता है। गंगा तथा उसकी सहायक नदियों से स्वच्छ जल प्राप्त हो जाता है।
घनी जनसंख्या के कारण सस्ता श्रम उपलब्ध है। इस उद्योग को कोलकाता बन्दरगाह से भी बड़ी सुविधा मिलती है।
(2) आंध्र प्रदेश व तेलंगाना
आंध्र प्रदेश भारत का 13.4% कागज पैदा करता है और कागज उत्पादन की दृष्टि से देश में इस राज्य का दूसरा स्थान है। यहाँ कागज उद्योग के 4 कारखाने हैं, जो पश्चिमी गोदावरी जिले के राजमुन्दरी (आंध्र प्रदेश), आदिलाबाद जिले के रिपुर (तेलंगाना) तथा निजामाबाद जिले (तेलंगाना) के बोधन तथा कागज नगर स्थानों पर कार्यरत हैं।
(3) कर्नाटक
इस राज्य में कागज की 6 मिलें हैं, जो भद्रावती, डाण्डेली, बेलागुला, रामनागराम, मुनीराबाद तथा वाटप्रभा नामक स्थानों पर स्थित हैं।
अधिकांश कागज मिलें प्रमुख रूप से बाँस का प्रयोग कच्चे
माल के रूप में करती हैं, जो स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाता है।
बेलागुला तथा मुनीराबाद की कागज मिलों में कच्चे माल के रूप में गन्ने की खोई तथा रद्दी कागज का भी प्रयोग किया जाता है।
(4) मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में कागज मिलों की संख्या 7 है, जो इन्दौर, भोपाल, रतलाम, विदिशा, नेपानगर, होशंगाबाद तथा शहडोल नगरों में स्थित हैं।
इन राज्यों की कागज मिलों में कच्चे माल के रूप में उपलब्ध बांस, सलाई तथा यूकेलिप्टिस वृक्ष की लकड़ी का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता हैं।
अखबारी कागज बनाने के लिए देश का पहला कारखाना मध्य प्रदेश के नेपानगर में स्थापित किया गया, जिसने 1955 में उत्पादन शुरू कर दिया।
मोटर वाहन उद्योग
स्वतंत्रता से पहले भारत में मोटर वाहन उद्योग नगण्य था। केवल आयातित पुर्जा को जोड़कर वाहन बनाए जाते थे। वर्ष 1928 में ‘जनरल मोटर्स’ मुंबई ने ट्रकों तथा कारों का संयोजन शुरू किया था।
फोर्ड मोटर कं. (इंडिया) लि. ने चेन्नई में 1930 तथा मुंबई में 1931 में कारों तथा ट्रकों का संयोजन शुरू किया।
मोटर वाहन उद्योग मुख्यतः लोहा-इस्पात उत्पादक क्षेत्रों के निकट ही पनपता है, क्योंकि इसका मुख्य कच्चा माल इस्पात है।
यदि टायर, ट्यूब, बैटरी, पेंट तथा अन्य उपयोगी उत्पाद भी निकटवर्ती क्षेत्र में हों तो सुविधा अधिक हो जाती है। इसके लिए निकट में बंदरगाह भी उपयुक्त होते है, क्योंकि वहां पर आयात-निर्यात की सुविधा होती है।
उत्पादन एवं वितरण
मोटर वाहन उद्योग के मुंबई, चेन्नई, जमशेदपुर, जबलपुर तथा कोलकाता मुख्य केंद्र हैं। ये केन्द्र लगभग हर प्रकार के वाहन बनाते हैं। वर्तमान समय में वाहन उद्योग एक प्रमुख उद्योग बन गया है |
फरीदाबाद, मैसूर, लखनऊ, सतारा, पुणे, कानपुर तथा ओधव (अहमदाबाद) में दुपहिया वाहन बनाए जाते हैं। गुडगांव (हरियाणा) में मारूति उद्योग लि. स्थित है।
यह भी देखें
भारतीय उद्योग : सूती वस्त्र, पटसन व लोहा-इस्पात उद्योग