भूगर्भ से खोदकर निकाली जाने वाली बहुमूल्य वस्तुओं को खनिज कहते हैं | खनिज वे प्राकृतिक रासायनिक तत्व या यौगिक है जो मुख्यत: अजैव क्रियाओं से बनते हैं | ये खनिज अपने भौतिक तथा रासायनिक गुणों से पहचाने जाते हैं |
जिन स्थानों से खनिज खोद कर निकाले जाते हैं उन्हें खान कहते हैं |
आज का युग औद्योगीकरण का युग है | किसी भी देश का विकास वहां के विकसित उद्योगों पर निर्भर करता है और ये उद्योग खनिज-उत्पादन पर निर्भर करते हैं | अतः बहुमूल्य खनिज किसी देश के विकास में सहायक सिद्ध होती है |
लौह-अयस्क (Iron Ore)
देश में निकाले जा सकने योग्य हैमेटाइट लौह अयस्क का भंडार 14,630 मिलियन टन है, जिसमें 13,916 मिलियन टन अर्थात 95% मुख्यतः झारखंड, उड़ीसा , छत्तीसगढ़, कर्नाटक तथा गोवा में है।
हैमेटाइट लौह-अयस्क के भंडार 10,619 मिलियन टन हैं, जो मुख्यत: कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम, बिहार, झारखंड, नागालैंड, राजस्थान तथा केरल में संचित है।
भारत का लगभग 99% लोहा उड़ीसा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, गोवा तथा झारखंड में उत्पन्न होता है। इसका अर्थ यह है कि भारत में लोहे का वितरण बहुत ही असमान है।
उच्च कोटि का लोहा अपेक्षाकृत कम मिलता है। ऐसी स्थिति में औद्योगिक विकेन्द्रीकरण में बाधा उत्पन्न होती है।
(1) उड़ीसा
उड़ीसा भारत का 32 प्रतिशत से अधिक लोहा पैदा करके प्रथम स्थान पर है। यहाँ पर हैमेटाइट तथा मैग्नेटाइट किस्म का उत्तम लोहा मिलता है।
उड़ीसा में प्रमुख लौह उत्पादक जिले क्योंझर, मयूरभंज, संबलपुर, कटक तथा सुंदरगढ़ हैं। बरसुआ, बोनाई, किरूबरू, दैतारी, बादाम पहाड़, गुरुमहिसानी तथा सुलेपत प्रमुख खानें हैं।
इन क्षेत्रों से राउरकेला, बोकारो तथा जमशेदपुर के लोहा-इस्पात केंद्रों को लोहा भेजा जाता है।
(2) कर्नाटक
यह राज्य भारत का लगभग 22% लोहा पैदा करता है। नवीनतम अनुमानों के अनुसार लोहे के सबसे अधिक भंडार कर्नाटक में ही हैं। यहाँ बेल्लारी जिले में हैमेटाइट किस्म का लोहा मिलता है, जिसमें 60% से 70% लोहांश है।
इस जिले में 127 करोड़ टन लोहे के भंडार आंके गये हैं। बेल्लारी जिले का हास्पेट क्षेत्र अग्रणीय है। चिकमंगलूर जिले में बाबाबूदार पहाड़ी, कालाहाड़ी केमानगुड़ी तथा कुद्रेमुख महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र हैं।
इसके अतिरिक्त चित्रदुर्ग, शिमोगा, धारवाड़ तथा तुमकुर जिलों से भी लोहा प्राप्त किया जाता है। चिकमंगलूर के कुद्रेमुख क्षेत्र का लोहा ईरान को निर्यात किया जाता है। केमानगुड़ी का लोहा भद्रावती लौह-इस्पात केंद्र को भेजा जाता है।
(3) छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के बस्तर तथा दुर्ग जिले सबसे अधिक महत्वपूर्ण लोहा उत्पादक जिले हैं। अकेला बस्तर जिला भारत का लगभग 11% लोहा पैदा करता है, जबकि छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्र मिलकर भारत का लगभग 16 प्रतिशत लोहा पैदा करके तृतीय स्थान पर हैं।
बस्तर जिले की बैलाडिला पहाड़ी की खान एशिया की सबसे बड़ी यंत्र सुसज्जित खान है। बैलाडिला का लोहा विशाखापट्टनम भेजा जाता है, जहाँ से इसे जापान तथा अन्य देशों को निर्यात किया जाता है।
दुर्ग जिले में धल्ली-राजद्वारा पहाड़ियाँ महत्वपर्ण उत्पादक है। छत्तीसगढ़ के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र बिलासपुर, रायगढ़ तथा सरगुजा जिलों में हैं।
(4) गोवा
गोवा में लोहे का उत्पादन अन्य राज्यों की अपेक्षा देर से शुरू हुआ। पहले गोवा का लोहा उत्पाद लगभग नगण्य था, परन्तु हाल के कुछ वर्षों में गोवा में लोहे के विशाल भंडार पाए गए हैं। परन्तु यहाँ पर पाया जाने वाला लोहा घटिया लिमोनाइट तथा सिडेराइट किस्म का होता है, जिनमें
शुद्ध लोहे का अंश 40% से 60% होता है।
उत्तरी गोवा, मध्यवर्ती गोवा तथा दक्षिणी गोवा में लगभग 315 खानों से लौह-अयस्क निकाला जाता है।
उत्तरी गोवा में पिरना-अदोलर,पाले-ओनड़ा, कुडनेम-पिसरूलेम तथा
कुदनेम-सुरला प्रमुख क्षेत्र हैं।
(5) झारखंड
यह राज्य भारत का 11% लोहा पैदा करके पांचवें स्थान पर है। झारखंड की लौह उत्पादक पेटी उड़ीसा की लौह उत्पादक पेटी से जुड़ी हुई है। यहाँ उच्च कोटि का हैमेटाइट तथा मैग्नेटाइट लोहा मिलता है।
इस राज्य में सिंहभूम सबसे प्रमुख उत्पादक जिला है। इस जिले से नाटूबुरू, नोआमुंडी, पनासिरावुड, बुदावुड तथा सासगंडा क्षेत्रों में हैमेटाइट लोहा प्राप्त किया जाता है।
पलामू जिले के डाल्टेन गंज क्षेत्र से भी लोहा प्राप्त किया जाता है। इन जिलों के अतिरिक्त धनबाद, हजारीबाग तथा राँची जिलों में मैग्नेटाइट लोहा मिलता है।
(6) आध्र प्रदेश
इस राज्य में कृष्णा, करनूल, गुंटूर , कुडण्णा, अनन्तपुर, खम्मान, नेल्लोर आदि जिलों में लोह के भंडार पाए जाते हैं। विशाखापट्टनम के इस्पात कारखाने से इन स्थानों का महत्व बढ़ गया है।
लौह अयस्क उत्पादक अन्य राज्य
अन्य उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, केरल आदि सम्मिलित हैं।
मध्य प्रदेश के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बालाघाट, जबलपुर तथा मंडला जिलों में है। महाराष्ट्र के प्रमुख उत्पादक जिले चंद्रपुर तथा रत्नागिरि है। चन्द्रपुर जिले में लाहारा, पीपलगाँव, असोला, देवलागाँव तथा सूरजगढ़ क्षेत्र स्थित हैं। रत्नगिरि जिले के रेड़ी, सावंतवाड़ी, गुल्डूर, वेनगुरला प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में 60 से 70% लोहांश वाला हैमेटाइट लौह-अयस्क मिलता है।
तमिलनाडु में सैलम जिला सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जहाँ कजामलाई, चितेरी, गोंडूमलाई, कोल्लामलाई व तीर्थमलाई पहाड़ियों में मैग्नेटाइट लोहा मिलता है। घटिया किस्म का लोहा कोयम्बटूर, मदुरई, तिरूनेववेली तथा रामनाथपुरम जिलों में मिलता है।
राजस्थान में जयपुर, उदयपुर, अलवर, सीकर, बूंदी, तथा भीलवाड़ा जिलों में हैमेटाइट लोहा मिलता है।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में लोहे के भंडार हैं।
उत्तराखंड के गढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल जिलों में लगभग एक करोड़ टन लोहे के भंडार होने का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और मंडी जिलों में 60% लोहांश वाला मैग्नेटाइट लोहा मिलता है।
हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में लगभग चार किलोमीटर लंबी पट्टी में मैग्नेटाइट लोहे के लगभग 36 लाख टन भंडार है।
पश्चिम बंगाल के बर्दवान, वीरभूमि, तथा दार्जीलिंग जिलों
में लोहे के भंडार है।
जम्मू-कश्मीर में जम्मू तथा ऊधमपुर जिलों में लिमोनाइट किस्म का घटिया लोहा मिलता है।
गुजरात के भावनगर, नवानगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, बड़ोदरा तथा खंडेश्वर जिलों में घटिया किस्म का लोहा मिलता है।
इसके अतिरिक्त केरल के कोझीकोड जिले में भी लोहा होने के प्रमाण मिले हैं।
भारत बड़ी तेजी से लोहे का प्रमुख निर्यातक देश बन रहा है। इस समय भारत विश्व का पाँचवां बड़ा लोहा निर्यातक देश है। लोहे के निर्यात से भारत को अत्यधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
भारत का लोहा अच्छे किस्म का होता है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम कीमत पर मिल जाता है। हमारे कुल लोहा निर्यात का 68.7% लोहा केवल जापान खरीदता है। इसके बाद हमारे लोहे के मुख्य आयातक देश दक्षिणी कोरिया (10.2%), रोमनिया (9.3% ) तथा जर्मनी ( 2.9% ) हैं | अब खाड़ी देशों में भी हमारे लोहे का निर्यात किया जाने लगा है |
भारतीय लोहा मुख्यतः मुर्मुगांव, विशाखापट्टनम, पारादीप, मंगलौर तथा हल्दिया बंदरगाहों से निर्यात किया जाता है |
मैंगनीज (Manganese)
मैंगनीज धातु प्रायः काले रंग की प्राकृतिक भस्मों के रूप में धारवाड़ युग की परतदार चट्टानों में पाई जाती है। इसका सबसे अधिक प्रयोग लोहा-इस्पात उद्योग में होता है।
एक टन इस्पात बनाने के लिए लगभग 6 किलोग्राम मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज का प्रयोग रासायनिक उद्योगों, जैसे-ब्लीचिंग पाउडर, कीटाणुनाशक दवाइयाँ, रंगरोगन, शुष्क बैटरियाँ तथा चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए भी किया जाता है।
मैंगनीज में सिलिका, चूना, अल्युमीना, मैग्नेशिया तथा फास्फोरस जैसी कई अशुद्धियाँ होती है। इस कारण इसका प्रयोग शोधन के बाद ही किया जाता है।
भारत में मैंगनीज का उत्पादन तथा वितरण
देश में मैंगनीज खनिज का अयस्क 379 मिलियन टन है। इनमें 138 मिलियन टन संचित तथा शेष 241 मिलियन टन अवशेष भंडार हैं।
मैंगनीज खनिज के भंडार मुख्यत: उड़ीसा में हैं। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा गोवा में भी मैंगनीज के भंडार मिलते हैं | अल्प मात्रा में मैगनीज के भंडार आंध्र प्रदेश, झारखंड, गुजरात, राजस्थान तथा पश्चिमी बंगाल में भी मिलते हैं |
मैंगनीज उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में यूक्रेन, गैबोन, दक्षिण अफ्रीका एवं ब्राजील के बाद पांचवां स्थान है। भारत का 95 प्रतिशत से भी अधिक मैंगनीज चार राज्यों – उड़ीसा , महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक में पैदा किया जाता है।
(1) उड़ीसा
उड़ीसा भारत का लगभग एक-तिहाई मैंगनीज पैदा करके प्रथम स्थान पर है। यहाँ देश के 12% मैंगनीज भंडार पाए जाते हैं।
उड़ीसा में अधिकांश मैंगनीज उत्पादन सुन्दरगढ़, सम्भलपुर, बोलनगीर, क्योंझर, कालाहांडी, कोरापुट, फूलबांस तथा धेनकनाल जिलों से प्राप्त होता है। सुन्दरगढ़ जिले की जमुनक्रिया, नकतीपल्ली, पतमुण्ड, भतूरा खानों में उच्च कोटि का मैंगनीज मिलता है।
कोरापुट जिले में बेजोल्ला व कुटिंगा तथा कालाहांडी जिले के निशीखल के निकट कोदूराहट खाने प्रसिद्ध हैं। बालनगीर जिले की भालूडुंगरी, निजीबहाल तथा कपिलबहार की खानों से मैंगनीज खनिज प्राप्त किया जाता है।
मैंगनीज खनिज क्योंझर जिले के जामड़ा, कोयरा, नादीडीह, बेमबारी, भद्रशाही तथा धुबना खानें मैंगनीज प्रदान करती हैं। अल्प मात्रा में मैंगनीज गंजम, कटक तथा मयूरभंज जिलों से भी प्राप्त होता है।
(2) महाराष्ट्र
यहाँ पर 511 हजार टन मैंगनीज पैदा किया जाता है, जो भारत के कुल उत्पादन का लगभग चौथाई भाग है। महाराष्ट्र में मैंगनीज़ खनिज की संचित मात्रा लगभग 90 लाख टन है।
महाराष्ट्र की मुख्य मैंगनीज उत्पादक पेटी नागपुर तथा भंडारा जिलों में है। इस पेटी में उच्चकोटि का मैंगनीज प्राप्त किया जाता है। रत्नागिरि जिले में निम्न कोटि का मैंगनीज मिलता है।
(3) मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश भारत का 21.12% मैंगनीज पैदा करके तीसरे स्थान पर है। यहाँ मैंगनीज खनिज के संचित भंडारों की मात्रा 1.18 करोड़ टन है। इस राज्य की मैंगनीज की पेटी बालाघाट तथा छिंदवाड़ा जिलों में विस्तृत है। यह महाराष्ट्र के नागपुर-भंडारा जलों की मैंगनीज पेटी का ही विस्तार है।
बालाघाट की पहाड़ी 10 किमी. लम्बी है, जिसमें 15 मीटर मोटी मैंगनीज की परत पाई जाती है। यहाँ कचीघाना तथा गापारीबाघोना प्रमुख खानें हैं।
छिंदवाड़ा जिले की प्रमुख खानें टिरोड़ी, कुर्टगजीरी, उकवा, रामरामा, लंगूर, भारवेली तथा मिरागपुर हैं। इसी जिले में मध्य प्रदेश का सबसे अधिक मैंगनीज पैदा किया जाता है। उच्च उत्पादक जिले सिओनी, नीमाड़, देवास, धार, झाबुआ, मांडला तथा जबलपुर हैं ।
(4) कर्नाटक
कर्नाटक भारत का 17% मैंगनीज पैदा करके चौथे स्थान पर है। यहाँ देश के 6.41% मैंगनीज भंडार हैं। उत्तरी कर्नाटक में सदरहल्ली, शिमोगा जिले में शंकरगुद्दा, होशली, शदरहल्ली व कुसमी, तुमकुर जिले में चिनयी कन्हल्ली तथा बेल्लारी जिले में रादुर्ग कर्नाटक की महत्वपूर्ण खानें हैं।
धारवाड़, चिकमंगलूर, बीजापुर जिलों में भी मैंगनीज का खनिज पाया जाता है। कर्नाटक की अधिकांश खानों का मैंगनीज घटिया होता है।
(5) आंध्र प्रदेश
इस राज्य में 13 लाख टन मैंगनीज के प्रमाणित भंडार हैं। यहाँ श्रीकाकलुम सबसे अधिक महत्वपूर्ण मैंगनीज उत्पादक जिला है। इस जिले की महत्वपूर्ण खानों के नाम काटूर, सोनापुरम, बतुवा तथा शिवराम हैं। विशाखापट्टनम, कुडप्पा, विजयनगरम तथा गुंटुर आंध्र प्रदेश के अन्य मैंगनीज उत्पादक जिले हैं।
मैंगनीज उत्पादक अन्य राज्य
गोवा, गुजरात में पंचमहल व बड़ोदरा, राजस्थान में बसवाड़ा तथा झारखंड में सिंहभूम व धनबाद अन्य मैंगनीज उत्पादक क्षेत्र हैं।
ये सभी क्षेत्र मिलकर भारत का एक प्रतिशत से भी कम मैंगनीज का उत्पादन करते हैं। गोवा में भारत के 18% भंडार हैं, जो किसी भी राज्य से अधिक है।
भारत मैंगनीज का महत्वपूर्ण निर्यातक है और अपने कुल उत्पादन का लगभग एक-तिहाई भाग निर्यात कर देता है। भारत के मैंगनीज निर्यात का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसे कच्ची अवस्था में ही निर्यात कर दिया जाता है।
हमारा अधिकांश मैंगनीज जापान, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी तथा बेल्जियम को निर्यात किया जाता है। जापान हमारे मैंगनीज का 52% भाग खरीदता है। अधिकांश मैंगनीज निर्यात मुंबई, पारादीप, मुर्मगांव तथा विशाखापट्टनम बन्दरगाहों से किया जाता है।
अभ्रक (Mica)
अभ्रक अत्यन्त हल्का खनिज है, जो आग्नेय तथा परिवर्तित चट्टानों में परतों के रूप में पाया जाता है।
साधारणतः यह छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में मिलता है, परन्तु कई बार बड़े-बड़े टुकड़े भी पाए जाते हैं, जो 4 मीटर लम्बे तथा 3 मीटर तक मोटे हो सकते हैं।
यह मुख्यतः सफेद, काले अथवा हरे रंग का होता है। सफेद अभ्रक के टुकड़े पैग्मेटाइट नामक आग्नेय चट्टानों में ही मिलते हैं।
इसे रूबी अभ्रक (Ruby Mica) अथवा मस्कोविट (Muscovita) अभ्रक भी कहते हैं। यह सबसे उत्तम किस्म का अभ्रक होता है। हल्का गुलाबीपन लिए हुए अभ्रक को बायोटाइट (Biotite) अभ्रक कहते हैं।
अभ्रक अपनी लचक, पारदर्शिता तथा बिजली एवं गर्मी की कुचालकता के कारण बिजली के उपकरणों, तारक कम्प्यूटर, वायुयान आदि के निर्माण में प्रयोग किया जाता है |
इसके अतिरिक्त यह लालटेन की चिमनियों, आँखों के चश्मों, मकानों की खिड़कियों, उच्च ताप में काम आने वाली भट्ठियों तथा अनेक प्रकार के सजावट का समान बनाने के काम भी आता है। इसके चूरे को स्प्रिट में मिलाकर किसी भी आकार तथा प्रकार की चादरें बनाई जाती हैं।
भारत में अभ्रक का उत्पादन तथा वितरण
अभ्रक भारत का महत्त्वपूर्ण खनिज है | भारत अभ्रक के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है | विश्व का से 80% अभ्रक भारत में मिलता है।
देश में लगभग 350 अभ्रक की खानें हैं, जिनमें बहुत-सी खानों में अभ्रक के भंडारों का बड़ी मात्रा में दोहन किया जा चूका है।
अधिकांश स्थानों से प्रत्येक में 10 टन से कम अभ्रक निकाला जाता है। दूसरी ओर केवल 20 खानों में से भारत का 50% अभ्रक निकाला जाता हैं। इन्हीं कारणों से अभ्रक के खनन को भारतीय खनन व्यवसाय का ‘बीमार बच्चा’ कहा जाता है।
भारत में अभ्रक का वितरण भी बड़ा ही असमान है। लगभग सारा अभ्रक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान तथा झारखंड में पाया जाता है।
(1) आंध्र प्रदेश व तेलंगाना
अभ्रक के उत्पादन की दृष्टि से आंध्र प्रदेश को भारत में प्रथम स्थान प्राप्त है। यहाँ की मुख्य अभ्रक पेटी नेल्लौर जिले में है, जो 97 किमी लम्बी तथा 24 से 32 किमी. चौड़ी है।
इसका विस्तार लगभग 1,550 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर है। यहाँ से निकलने वाला अभ्रक हल्के रंग का होता है। यह बिहार के अभ्रक से घटिया किस्म का होता है | इस पेटी में अभ्रक की खानें यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं, अधिकांश खाने भवाली, आत्माकुर, रपुर तथा गुंटूर तालुका
में स्थित है।
नेल्लोर के अतिरिक्त कृष्णा, विशाखापट्टनम, अनन्तपुरम, खम्मान (तेलंगाना) तथा पूर्वी एवं पश्चिमी गोदावरी जिलों में भी अभ्रक का खनन किया जाता है।
(2) राजस्थान
पिछले कुछ वर्षों में उत्पादन में वृद्धि हुई, परंतु अब कमी हो रही है | राजस्थान भारत अभ्रक उत्पादन में भारत में द्वितीय स्थान पर है।
राजस्थान की मुख्य अभ्रक पेटी जयपुर से उदयपुर तक लगभग 322 किमी. लम्बी है। इसकी औसत चौड़ाई 90 किमी. है। यह पेटी अपने मध्यवर्ती भाग में कुम्बलगढ़ तथा भीलवाड़ा के निकट अधिक चौड़ी है। इसके मुख्य उत्पादक जिले भीलवाड़ा, जयपुर, उदयपुर, टोंक, सीकर, डूंगरपुर तथा अजमेर हैं | राजस्थान का 40% अभ्रक रूबी अभ्रक ( Ruby Mica ) होता है |
(3) झारखंड व बिहार
अभ्रक के खनिज की एक महत्वपूर्ण पेटी झारखंड तथा बिहार राज्यों में विस्तृत है। इन राज्यों का अभ्रक उच्च कोटि का होता है।
यहाँ की मुख्य अभ्रक उत्पादक पेटी बिहार के गया जिले से शुरू होकर झारखंड के हजारीबाग, कोडरमा तथा गिरडीह जिलों से होती हुई बिहार के मुंगेर तथा भागलपुर जिलों तक फैली हुई है।
इस पेटी की लम्बाई 160 किमी. तथा चौड़ाई 26 से 32 किमी. तक है। इस पेटी का क्षेत्रफल लगभग 3,400 वर्ग किमी. है।
हजारीबाग झारखंड का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक जिला है, जो इस राज्य का 75 प्रतिशत से भी अधिक अभ्रक पैदा करता है।
अभ्रक उत्पादन के दृष्टिकोण से बिहार का सबसे महत्वपूर्ण जिला गया है, जो इस राज्य का आधे से भी अधिक अभ्रक पैदा करता है।
मुंगेर जिले में बिहार का 5 प्रतिशत अभ्रक पैदा किया जाता है।
अन्य अभ्रक उत्पादक राज्य
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली, सलेम, कोयम्बटूर, मदुरई तथा नीलगिरि जिले; उड़ीसा के गंजम , कोरापुट, सम्भलपुर, सुन्दरगढ़, कटक, फेंकनाल जिले; मध्य प्रदेश के बालाघाट, नरसिम्हापुर व छिंदवाड़ा जिले; छत्तीसगढ़ के बस्तर व सरगुजा जिले तथा पश्चिम बंगाल के बांकुरा व मिदनापुर जिलों में भी अभ्रक का उत्पादन होता है।
भारत में अभ्रक का उत्पादन मुख्यतः निर्यात के लिए ही किया जाता है। भारत का 90 प्रतिशत अभ्रक निर्यात कर दिया जाता है।
भारतीय अभ्रक के मुख्य ग्राहक जापान, रूस, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पोलैंड, चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी तथा नीदरलैंड्स हैं।
ये देश मिलकर भारत का 80 प्रतिशत अभ्रक खरीदते हैं। अधिकांश अभ्रक कोलकाता, विशाखापट्टनम, मुम्बई तथा चेन्नई बन्दरगाहों से निर्यात होता है।
बॉक्साइट ( Boxite )
बॉक्साइट का प्रयोग एलुमिनियम बनाने के लिए किया जाता है | एलुमिनियम एक हल्की तथा लचीली धातु है जो विद्युत तथा ऊष्मा चालक है |
इसलिए इस धातु का प्रयोग बहुत से उद्योगों में किया जाता है जिससे इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है |
भारत में बॉक्साइट के मुख्य उत्पादक उड़ीसा, गुजरात, झारखंड तथा
छत्तीसगढ़ हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तथा गोवा में भी कुछ बॉक्साइट मिलता है।
(1) उड़ीसा
उड़ीसा भारत में बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उड़ीसा में कुल 137 करोड़ टन बॉक्साइट खनिज के भंडार होने का अनुमान है। उड़ीसा में बॉक्साइट के मुख्य भंडार कालाहांडी, कोरापुट, सुन्दरगढ़, बोलंगीर तथा संभलपुर जिलों में हैं।
(2) गुजरात
गुजरात राज्य भारत का 20 प्रतिशत से अधिक बॉक्साइट पैदा करता है; यहाँ बॉक्साइट के 8.7 करोड़ टन भंडार होने का अनुमान है। गुजरात में बॉक्साइट के मुख्य उत्पादक जिले जामनगर, जूनागढ़, खेड़ा, कच्छ, साबरकांठा, अमरेली तथा भावनगर हैं।
(3) झारखंड
झारखंड राज्य में लगभग छ: करोड़ टन बॉक्साइट के भंडार हैं। यहाँ अधिकांश भंडार राँची, लोहारदगा, पलाऊ, गुमला तथा दुमका जिलों में हैं। इस राज्य में बॉक्साइट के सबसे अधिक भंडार लोहारदगा तथा इसके निकटवर्ती इलाकों में हैं। यहाँ पर उच्च कोटि का बॉक्साइट पाया जाता है।
(4) छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की मैकाल पहाड़ियाँ, सरगुजा जिले का पठारी भाग तथा दुर्ग एवं रायगढ़ जिलों में बॉक्साइट के भंडार मिलते हैं।
(5) महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में भारत का लगभग 10 प्रतिशत बॉक्साइट पैदा किया जाता है। यहाँ पर बॉक्साइट के कुल भंडार लगभग 8.75 करोड़ टन हैं। ये भंडार कोल्हापुर, ठाणे, रत्नागिरि, सतारा तथा पुणे में पाए जाते हैं।
(6) तमिलनाडु
तमिलनाडु में बॉक्साइट के कुल 1.7 करोड़ टन सुरक्षित भंडार हैं और भारत का 2.54 प्रतिशत बॉक्साइट यहीं पर पैदा होता है। यहाँ बॉक्साइट के मुख्य उत्पादक जिले नीलगिरि, सलेम तथा मदुरै हैं।
पहले भारत बॉक्साइट का निर्यात करता था। परन्तु अब देश में
बॉक्साइट की माँग बहुत बढ़ गई है। इसलिए भारत निर्यात करने की स्थिति में नहीं है। अब भारत बॉक्साइट का आयात करता है। भारत मुख्यत: कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा कुछ यूरोपीय देशों से बॉक्साइट का आयात करता है।
ताँबा ( Copper )
मानव ने तांबे का प्रयोग लोहे से पहले शुरू कर दिया था। प्राचीन काल से इसका प्रयोग सिक्के तथा बर्तन बनाने के लिए किया जाता है।
बिजली का सुचालक होने के कारण इसका अधिकतर उपयोग बिजली के उपकरण तथा तारें बनाने के लिए किया जाता है।
तांबे का खनन महंगी तथा कठिन प्रक्रिया है, क्योंकि अधिकांश अस्यकों में तांबे की मात्रा बहुत कम होती है। तांबे के भंडारों के संदर्भ में भारत भाग्यशाली देश नहीं हैं। भारत में तांबा बहुत कम मात्रा में मिलता है |
भारत में तांबे के कुल भंडार 139 करोड़ टन है, जिसमें से 114.18 लाख टन तांबा प्राप्त हो सकता है।
भारत में तांबे के अधिकांश भंडार, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा झारखंड में पाये जाते हैं। अकेले राजस्थान में 668.5 मिलियन तांबे के अयस्क हैं , जिसमें से 3982 हजार टन तांबा धातु प्राप्त हो सकती है।
आंध्रप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा , सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड तथा पश्चिम बंगाल में भी तांबे के भंडार मिलते हैं।
इस समय भारत के केवल दो ही राज्यों-राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में तांबे का उत्पादन होता है। राजस्थान के अधिकांश तांबा भंडार अरावली पर्वत के साथ-साथ मिलते हैं।
राजस्थान में तांबे के भंडार अजमेर, अलवर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, जयपुर, पाली, सीकर, सिरोही तथा उदयपुर जिलों में स्थित हैं। तांबे के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण झुंझुनु जिले की खेतड़ी-सिंघाना पेटी है।
मध्य प्रदेश के मुख्य तांबा भंडार बालाघाट तथा बेतूल जिलों में पाए जाते हैं।
भारत में तांबे का उत्पादन हमारी मांग से काफी कम होता है | इसलिए बड़ी मात्रा में तांबे का आयात करना पड़ता है। भारत मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जिम्बाम्बे, जापान, मैक्सिको आदि देशों से तांबे का आयात करता है।
यह भी देखें
भारतीय उद्योग : सूती वस्त्र, पटसन व लोहा-इस्पात उद्योग
भारतीय उद्योग : उर्वरक, सीमेंट, चीनी, एल्युमीनियम तथा कागज उद्योग
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