जिन संसाधनों का प्रयोग हम उद्योगों में मशीनों को चलाने, यातायात के साधनों को गति देने, कृषि को यांत्रिक बनाने तथा घरेलू कामों के लिए करते हैं, उन्हें ऊर्जा के संसाधन कहते हैं।
ऊर्जा के संसाधन औद्योगिक विकास के लिए अनिवार्य हैं । आज के युग में कुछ महत्त्वपूर्ण ऊर्जा के संसाधन, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, जल-विद्युत, सौर-ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, भू-ताप, लकड़ी एवं ज्वारीय शक्ति हैं।
इनमें से कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा जल-विद्युत
औद्योगिक ऊर्जा के संसाधन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
कोयला (Coal)
कोयला शक्ति और ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। बीसवीं शताब्दी के शुरू तक संसार में कुल ऊर्जा का 90% से भी अधिक भाग कोयले से प्राप्त होता था।
बाद में अन्य संसाधनों के विकसित हो जाने पर इसका सापेक्षिक महत्व कुछ कम हो गया। परन्तु कोयला लंबे समय तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा | जिस प्रकार जीवन के लिए आहार की आवश्यकता होती है उसी प्रकार उद्योगों के लिए कोयले की आवश्यकता है | इसलिए इसे उद्योग की रोटी भी कहा जाता है |
लोहा-इस्पात जैसे उद्योग तो कोयले के बिना पनप ही नहीं सकते हैं। इसलिए इसे ‘काला सोना’ (Black Gold) भी कहते हैं। भू-वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भारत के कोयला क्षेत्रों को दो वर्गों में बांटा जाता है।
(1) गोंडवाना कोयला क्षेत्र
भारत में कोयले की कुल संचित राशि का 98% तथा कुल उत्पादन का 99% गोंडवाना कोयला क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
भारत के कुल 113 कोयला क्षेत्रों में से 80 गोंडवाना क्षेत्र में हैं। ये 77,700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैले हुए हैं। इस समय भारत में 553 कोयला खानें तथा चार लिग्नाइट खानें कार्यरत हैं।
ये क्षेत्र झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा , मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र राज्यों में वितरित हैं। इन राज्यों में कोयला मुख्यतः नदी-घाटियों में पाया जाता है।
इस दृष्टि से झारखंड व पश्चिम बंगाल में दामोदर घाटी, मध्य प्रदेश व झारखंड में सोन घाटी, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा में महानदी घाटी तथा महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश में गोदावरी व वर्धा घाटी प्रसिद्ध हैं।
(2) टरशियरी कोयला क्षेत्र
इस श्रेणी का कोयला मुख्यत: असम, मेघालय, नागालैंड, अरूणाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर में मिलता है।
संचित राशि, उत्पादन तथा गुणवत्ता की दृष्टि से इसका कोई विशेष महत्व नहीं है। इस श्रेणी की संचित राशि भारत में केवल 2% तथा उत्पादन केवल 1% है। यह मुख्यतः लिग्नाइट कोयला होता है।
कोयले का उत्पादन व वितरण
भारत में कोयले का उत्पादन सन 1774 में शुरू हुआ, जब पश्चिम बंगाल के रानीगंज में भारत की पहली खान खोदी गई।
भारत में कोयले का वितरण बहुत ही असमान है। अधिकांश कोयला क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में केन्द्रित है।
उत्तरी विशाल मैदान कोयला भंडारों से लगभग पूर्णतया वंचित है | झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश मिलकर देश का दो-तिहाई से भी अधिक कोयला पैदा करते हैं।
झारखंड: कोयले के भंडार तथा उत्पादन की दृष्टि से झारखंड अग्रणी है। इस राज्य में कोयले के 75460.14 करोड़ टन सुरक्षित भंडार हैं, जो भारत के कुल कोयला भंडारों का लगभग 29 प्रतिशत भाग है।
झरिया कोयला क्षेत्र (JhariyaCoalfield): उत्पादन तथा सुरक्षित भंडारों की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादन क्षेत्र है | यद्यपि इसका विस्तार केवल 440 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर ही है तो भी इस क्षेत्र में 1862 करोड़ टन कोयले के सुरक्षित भंडार हैं |
यहाँ उच्च कोटि का बिटुमिनस कोयला मिलता है, जिससे कोकर कोयला बनाया जाता है। भारत का 99% कोकर कोयला झरिया से ही प्राप्त होता है। यह क्षेत्र धनबाद जिले में है।
बोकारो कोयला क्षेत्र (Bokaro Coalfield): झरिया के बाद यह झारखंड का दूसरा बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ 1,004 करोड़ टन कोयले के सुरक्षित भंडार हैं और यह देश का लगभग 6% कोयला पैदा करता है।
रामगढ़ कोयला क्षेत्र (Ramgarh Coalfield): यह दामोदर घाटी के ऊपरी भाग में स्थित है। यह लगभग 100 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है और यहाँ 2,000 लाख टन कोयले के भंडार सुरक्षित हैं। यह त्रिभुजाकार क्षेत्र है और झारखंड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
कर्णपुरा कोयला क्षेत्र (Karanpura Coalfield): यह कोयला क्षेत्र झारखंड के हजारीबाग, राँची तथा पलामू जिलों के 1,560 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। यहाँ 1,075 करोड़ टन कोयले के सुरक्षित भंडार हैं। यह भारत का लगभग 6% कोयला उत्पन्न करता है।
छत्तीसगढ़ः कोयले के भंडारों की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का तीसरा स्थान है, परन्तु उत्पादन की दृष्टि से यह भारत का दूसरा बड़ा उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के लगभग 16.7 प्रतिशत सुरक्षित भंडार हैं और यह राज्य भारत का 18 प्रतिशत से अधिक कोयला पैदा करता है। अधिकांश कोयला क्षेत्र इस राज्य के उत्तरी भाग में स्थित हैं।
कोरबा कोयला क्षेत्र 500 वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैला हुआ है और यहाँ 36.5 करोड़ टन कोयला पाया जाता है। सरगुजा जिले के बिसरामपुर, तातापानी झारखंड, झिलमिली, रवरसिया, सोनहट तथा कोरियागढ़ में कोयले की प्रमुख खाने हैं। रामपुरा महत्वपूर्ण खान है।
उड़ीसा: यहाँ पर भारत के लगभग एक-चौथाई कोयले की संचित राशि है। यद्यपि यह राज्य भारत का लगभग 17.27% कोयला ही पैदा करता है। उड़ीसा के अधिकांश कोयला भंडार धनकनाल, सम्बलपुर तथा सुन्दरगढ़ जिलों में है।
ढेंकनाल जिले का तालचेर कोयला क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है। कोयले की संचित राशि की दृष्टि से यह रानीगंज तथा झरिया के बाद भारत का तीसरा बड़ा कोयला क्षेत्र है।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में देश के 7.8 प्रतिशत कोयला भंडार हैं। यह राज्य भारत का लगभग 13.6 प्रतिशत कोयला पैदा करता है | शहडोल तथा सीधी जिलों में सिंगरौली कोयला क्षेत्र स्थित है | मध्य प्रदेश का दूसरा महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र सोहागपुर है जो शहडोल जिले में स्थित है | छिंदवाड़ा जिले में पेंच घाटी तथा इसके निकटवर्ती भागों में बड़ी मात्रा में कोयले के भंडार हैं |
आंध्र प्रदेश व तेलंगाना: आंध्र प्रदेश में लगभग 18696.6 करोड़ टन कोयले के भंडार हैं, जो भारत के कुल कोयला भंडारों का लगभग 7% भाग है।
यहाँ प्रतिवर्ष 361 लाख टन कोयले का खनन किया जाता है। जो भारत के कुल उत्पादन का लगभग 8.8% है। इस राज्य का अधिकांश कोयला गोदावरी नदी की घाटी में पाया जाता है। आदिलाबाद, करीमनगर, वारंगल, खम्मास तथा पश्चिमी गोदावरी मुख्य उत्पादक जिले हैं ।
पश्चिम बंगाल: यहाँ भारत के लगभग 11% कोयला भंडार पाए जाते हैं और यह राज्य देश के लगभग 6% कोयले का उत्पादन करता है। इस राज्य का सबसे महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र रानीगंज है।
रानीगंज पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा तथा झारखण्ड के झरिया कोयला क्षेत्र के बाद भारत का दूसरा बड़ा कोयला क्षेत्र है। यह बर्दवान, पुरुलिया तथा बांकुरा जिलों में विस्तृत है।
असम,मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड तथा जम्मू-कश्मीर में टरशियरी कोयला मिलता है। असम, अरुणांचल प्रदेश, नागालैंड तथा मेघालय के गिरिपद तथा पहाड़ी क्षेत्रों में कोयले के 82 करोड़ टन भंडार हैं।
असम के लखीमपुर तथा शिवसागर जिलों में कोयला पाया जाता है। मुख्य क्षेत्र नामचिक-नामफुक (अरुणाचल प्रदेश), माकूम, मिकी (असम), नामबोर, लोंगाई आदि हैं।
अरुणाचल प्रदेश में नजीरा, जाँजी तथा दिसाई क्षेत्रों में कोयला मिलता है। मेघालय की गारो, खासी तथा जयन्तिया पहाड़ियों में भी कोयले के भंडार मिलते हैं।
लिग्नाइट कोयला
तमिलनाडु: देश के कुल 3,875.6 करोड़ टन लिग्नाइट भंडारों में से तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में स्थित नेवेली क्षेत्र में 415.0 करोड़ टन लिग्नाइट के भंडार उपलब्ध हैं।
भूगर्भ-शास्त्रीय अनुमानों के अनुसार तमिलनाडु के त्रिची जिले में जयम्कांडचोलापुरम में लगभग 116 करोड़ टन लिग्नाइट का भंडार हैं ।
नेवेली या न्यूवेली कोयला क्षेत्र लिग्नाइट कोयला के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लिग्नाइट का खनन सन 1956 में नेवेली लिग्नाइट निगम द्वारा शुरू किया गया ।
नेवेली के आस-पास 256 वर्ग किमी. क्षेत्र में लिग्नाइट कोयले की खानें मिलती हैं। नेवेली कोयला क्षेत्रों के कारण दक्षिणी भारत में उद्योगों को बहुत प्रोत्साहन मिला है।
राजस्थान में 34.8 करोड़ टन लिग्नाइट के भंडार हैं। यहाँ बीकानेर जिले में पालना नामक स्थान पर लिग्नाइट किस्म का कोयला मिलता है।
गुजरात में 18.16 करोड़ टन लिग्नाइट के भंडार हैं। अधिकांश लिग्नाइट कच्छ तथा भरूच जिलों में मिलता है।
जम्मू-कश्मीर की टरशियरी चट्टानों में लगभग 128 करोड़ टन लिग्नाइट के भंडार हैं। यहाँ कोयले की खाने पुंछ, थीरपुर, रियासी तथा ऊधमपुर जिलों में मिलती हैं ।
अतः स्पष्ट है कि भारत में यद्यपि कोयले का वितरण असमान है परंतु पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है | लेकिन बढ़ती हुई आवश्यकता के कारण कोयले की यह मात्रा भी कम पड़ने लगी है | लेकिन अब अन्य ऊर्जा के संसाधन कोयले पर पड़ रहे दबाव को कम करने लगे हैं | अब उद्योगों के स्थान पर विद्युत उत्पादन जैसी अन्य गतिविधियों में कोयले का उपयोग होने लगा है |
यह भी देखें
भारत के प्रमुख उद्योग : उर्वरक, सीमेंट, चीनी, एल्युमीनियम तथा कागज उद्योग
भारत के उद्योग : सूती वस्त्र, पटसन व लोहा-इस्पात उद्योग
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : हिमालय पर्वत
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : विशाल उत्तरी मैदान
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : तटीय मैदान तथा द्वीप समूह