कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत पाश्चात्य काव्य-शास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | कॉलरिज रोमांटिक युग के एक महत्त्वपूर्ण कवि तथा आलोचक थे | उनका जन्म 1772 ईस्वी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा ‘क्राइस्टस चिकित्सालय’ तथा कैम्ब्रिज में हुई। विद्यार्थी जीवन में ही कॉलरिज में एक महान् कवि एवं आलोचक के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से ही वे एक प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थी और पाठक थे।

अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावादी विचारकों में कॉलरिज का स्थान सर्वोच्च है। आर्थर साइमनस नामक विद्वान् ने कॉलरिज की प्रसिद्ध रचना ‘बायोग्राफिया लिटरेरिया’ को सर्वश्रेष्ठ आलोचना ग्रंथ माना है। कॉलरिज वर्ड्सवर्थ के न केवल मित्र थे बल्कि सह-लेखक भी थे। उन्हीं के सहयोग से कॉलरिज ने 1798 ई. में “लिरिकल बेलेड्स” नामक काव्य संग्रह की रचना की।

अंग्रेजी काव्य जगत में आज भी कॉलरिज का विशेष स्थान है। अंग्रेजी के आलोचकों में वह पहला व्यक्ति है जिसने काव्य और दर्शन के अटूट संबंधों की बात आग्रहपूर्वक कही। उनकी मूल अवधारणा यह है कि काव्य और तत्त्व चिंतन एक-दूसरे के साथ गहरे जुड़े हुए हैं।

(1) कल्पना की परिभाषा

यूँ तो कॉलरिज ने काव्य प्रयोजन, सौन्दर्य विवेचन, आदर्श कवि के गुणों आदि पर विस्तार से चर्चा की है। लेकिन उनके कल्पना संबंधी विचार विशेष महत्त्व रखते हैं। उन्होंने काव्य सृजन के प्रसंग में कल्पना को सर्वोपरि महत्त्व दिया। उनके विचारानुसार कल्पना एक ऐसी शक्ति है जिसकी सहायता से सत्य के किसी आधार के न होने पर भी नए प्रतिरूपों का निर्माण किया जा सकता है।

कॉलरिज लिखते हैं —

“पूर्व अनुभूतियों की पुनर्योजना से अपूर्व की शक्ति को कल्पना कहते हैं। वर्तमान का अवगहन करने वाली स्मृति तथा अनागत का वहन करने वाली कल्पना होती है।”

मनुष्य और पशु में यही सबसे बड़ा अंतर है कि मनुष्य तो कल्पना की तूलिका से मनचाही सृष्टि बना सकता है लेकिन पशु नहीं बना सकता।

“साहित्य निर्माण के प्रसंग में कल्पना का सहारा लिया जाता है और उसके सहयोग से रंग-बिरंगे काव्य चित्रों का निर्माण हो जाता है।”

कॉलरिज ने कल्पना के बारे में गंभीर चिन्तन किया है। वे मन की सक्रियता पर बल देते हैं । वे कहते हैं ‘दर्शनानुभूति के लिए मन का सक्रिय होना आवश्यक है।’ (To make perception possible there is needed an active power of myself.)

(2) कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत

एक बार वर्ड्सवर्थ ने अपनी एक कविता कॉलरिज को पढ़कर सुनाई जिसे सुनते ही कॉलरिज की भावना-शक्ति और बुद्धि दोनों ही चेतनावस्था में आ गईं। उसे केवल सौन्दर्य का ही प्रत्यक्षीकरण नहीं हुआ बल्कि सत्य का भी प्रत्यक्षीकरण हुआ। कॉलरिज को लगा कि भावों और बिम्बों को मनमाने ढंग से एकत्रित करने से ऐसा नहीं हो सकता। यह तभी संभव है जब उन दोनों का समन्वय हो। उसमें हृदयस्पर्शता और सुबोधता के गुण हों। वस्तुतः वर्ड्सवर्थ ने अपनी उस कविता में संस्कारों, बिम्बों, प्रत्ययों आदि का अद्भुत प्रतिभाशक्ति से एकत्रीकरण किया तभी उसमें लौकिक चमत्कार आ गया।

कॉलरिज का विचार था कि जिस शक्ति ने यह अलौकिक विचार पैदा किया वही कल्पना कही जा सकती है। यह बुद्धि और हृदय बहिर्जगत और अन्तर्जगत, परिचित और नवीन, अन्तर्वेग और संयम, अवधारणा और भाव, प्रत्यय और बिम्ब आदि का समन्वय करती है। कॉलरिज के मतानुसार कल्पना ही प्रतिबोधन (perception) तथा बोधन (Understanding) की उस खाई को पाटती है जिसे करने में बुद्धि असमर्थ होती है। इस कल्पना शक्ति में प्रकृति के शाश्वत और सुंदर रूपों को प्रकट करने की शक्ति आ जाती है।

कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत : प्रमुख विशेषताएँ

(a) Unifying creative faculty (समन्वयकारी रचनात्मक शक्ति)

(b) Beauty making power (सौंदर्य निर्माण शक्ति)

कॉलरिज के अनुसार, “कल्पना वह मानसिक शक्ति है जिसके द्वारा विभिन्न तत्त्वों का एकीकरण होता है। वह एक समन्वयकारी शक्ति है और किसी विषय के विभिन्न पक्षों को एक संश्लिष्ट अन्विति के रूप में ढालनी है जिससे वे पक्ष घुल-मिलकर एकाकार हो जाते हैं।”

(3) ब्रह्म और प्रकृति का विवेचन

कॉलरिज एक दार्शनिक और तत्त्ववेता थे। कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत दर्शन और तत्त्व चिन्तन पर आधारित है | उसका विचार था कि संसार के सभी पदार्थ ब्रह्म के विषय या विचार हैं। यह संसार उसी की प्रतिमूर्ति है। ब्रह्म कल्पना बाह्य प्रकृति को ब्रह्म के सामने रखती है। यह संसार उसी ब्रह्म की कला है। मानव चेतना विश्व चेतना के अनुसार है। जैसे ब्रह्म कल्पना बाहरी प्रकृति को ब्रह्म मन के सामने रखती है उसी प्रकार से मानव कल्पना प्रकृति के क्षेत्र को मानव मन के सामने लाती है। यदि यह संसार ब्रह्म का आत्मज्ञान है तो मानव का संसार मानव का आत्म ज्ञान है।

इस आत्म ज्ञान का मूल कारण कल्पना ही है। इस कल्पना को कॉलरिज ने प्रथम कल्पना कहा है (Primary imagination)। यह कल्पना प्रत्यक्षीकरण के सिवाय और कुछ नहीं है। यदि संसार भगवान का प्रत्यक्षीकरण है तो मानव जगत मानव का प्रत्यक्षीकरण है। ब्रह्म के विचार संसार में विद्यमान हैं और संसार के पदार्थ उनको प्रतिबिम्बित करते हैं। इसी प्रकार से मनुष्य के विचार मनुष्य जगत में प्रवेश करते हैं और मनुष्य के क्षेत्र में उपस्थित पदार्थ उसके विचारों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

अतः कॉलरिज का कल्पना सिद्धांत मानव कल्पना को ब्रह्म कल्पना का प्रतिरूप मानता है। कल्पना एक अलौकिक प्रेरणा है। ईश्वरीय सृजना शक्ति की सगी बहन है। अतः जो कार्य ब्रह्म कल्पना करती है वही मानव कल्पना करती है। अन्तर केवल विस्तार का है। ब्रह्म कल्पना व्यापक, अनन्त और असीम है। लेकिन मानव कल्पना अपेक्षाकृत अल्प और सीमित है।

इस प्रकार कॉलरिज ने अपनी कल्पना संबंधी अवधारणा के पीछे ब्रह्म और जगत का तात्विक विवेचन किया। इस संबंध में वह कहता है कि प्रकृति में आदर्श और प्रतीकात्मक अर्थ विद्यमान है। कल्पना द्वारा ही हम उन्हें देख सकते हैं। इस संबंध में वह यह भी कहता है कि जड़ पदार्थों को देखकर कवि के मन में अनेक भाव पैदा होते हैं। उदाहरण के रूप में चाँद, सूर्य, कमल, तालाब आदि को देखकर कवि के मन में अनेक कल्पनाएँ उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार जब जड़ चेतन का प्रभाव पड़ता है तो काव्य रचना होती है।

(4) कल्पना के प्रकार

कॉलरिज ने कल्पना के दो प्रकार माने हैं —

(a) मुख्य या प्राथमिक कल्पना (Primary imagination)

(b) गौण कल्पना (Secondary imagination)

कॉलरिज ने आत्मा और जगत को आत्मा और सत्ता का एक रूप माना। ऐसा करके वह ब्रह्मवादियों का समर्थन करता है। जहाँ ब्रह्मवादी आत्मा और जगत की भिन्नता का कारण माया को मानते हैं, वहाँ कॉलरिज कल्पना को मानते हैं। कल्पना के कारण एक ही चेतना खण्ड-खण्ड रूप में दिखायी देती है। वह मानव मन में मानसिक संसार को उत्पन्न करती है। कल्पना मानव ज्ञान की सजीव ताकत है और समूचे मानव प्रत्यक्षीकरण का मुख्य साधन है। यही कल्पना विषय और विषयी को अलग-अलग मानकर चलती है। हम इंद्रियों द्वारा जो कुछ जानते हैं, कल्पना ही उसमें व्यवस्था उत्पन्न करती है और हमारे अव्यवस्थित ज्ञान को व्यवस्थित करती है।

इस संबंध में कॉलरिज ने गुलाब के फूल का उदाहरण दिया है जिसका रंग, कोमलता, गुण और स्वाद सभी अलग-अलग हैं। लेकिन कल्पना इनको व्यवस्थित करके उसे गुलाब का नाम देती है।

विशिष्ट कल्पना केवल कवियों और कलाकारों में पाई जाती है, आम लोगों में नहीं। विशिष्ट कल्पना प्राथमिक कल्पना की प्रतिध्वनि है। इसी के द्वारा कवि बाह्य संसार की कल्पना करता है और पुनः सृजन करता है। इसी की सहायता से कलाकार या कवि बाहरी जगत को पूर्णता प्रदान करता है।

यह कल्पना अनेक विषयों में एकसूत्रता उत्पन्न करती है। विषयी और विषय को जोड़ती है। भिन्न-भिन्न बिम्बों को व्यवस्थित करती है।
इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि कॉलरिज की कल्पना संबंधी भावना कांट से सर्वथा अलग है, क्योंकि कांट कल्पना को काव्य संबंधी रचना का गुण नहीं मानता न ही उसमें रचनात्मक स्वतंत्रता स्वीकार करता है। वह
उसे संश्लिष्टात्मक शक्ति मानता है। कॉलरिज के कल्पना संबंधी विचार हार्टले से भी मेल नहीं रखते, क्योंकि हार्टले कल्पना शक्ति को निष्क्रिय मानता है।

(5) कल्पना द्वारा प्रकृति का पुनः सृजन

कवि या कलाकार मात्र प्रकृति की नकल नहीं करता। ऐसा करना व्यर्थ है। ऐसा करने में कवि की हार है। कलाकार अपनी भावना के अनुसार प्रकृति का पुनः सृजन करता है। इस पुनः सृजन से उसकी आत्मा आनन्दित होती है। पुनः सृजन का मतलब यह है कि कवि अपने चेतना में आए हुए तत्त्वों को अपनी भावनानुसार सुनियोजित करता है। ऐसा करके वह हमारे समक्ष प्रकृति का सुन्दर एवं आकर्षक रूप प्रस्तुत करता है।

वस्तुतः कलाकार वस्तु की पूर्णता के प्रत्यय तक पहुँच कर उस वस्तु से सम्बन्धित कुछ बातों को छोड़ देता है और कुछ को ग्रहण करता है और अन्ततः वस्तु के परिवर्तित एवं परिमार्जित रूप की कल्पना करता है। इससे कलाकार और दर्शक दोनों को तुष्टि प्राप्त होती है।

इससे स्पष्ट होता है —

“कल्पना वह मानसिक शक्ति है जिसके द्वारा विभिन्न तत्त्वों का एकीकरण व समन्वय होता है और विभिन्न पक्षों का सन्तुलन होता है।”

(6) प्रकृति के अंधानुकरण का विरोध

कॉलरिज ने प्रकृति के अन्धानुकरण का सर्वथा विरोध किया। इसमें कलाकार की अपनी कोई भूमिका या योगदान नहीं होता। अनुकरण तो मात्र प्रकृति की चोरी है। कवियों को इस चोरी से बचने का प्रयास करना चाहिए। कवि या कलाकार का काम है पुनः सृजन करना और इस कार्य में कल्पना ही उसका सहयोग कर सकती है। कल्पना पदार्थ तथा मन, विचार तथा भावना तथा तर्क एवं राग के मध्य की दीवार को तोड़ देती है। कल्पना बाहरी को आन्तरिक तथा आन्तरिक को बाहरी बनाती है।

भाव यह है कि कॉलरिज बार-बार इस बात पर बल देता है कि प्रकृति के अलग-अलग खण्डों को प्रस्तुत करने के स्थान पर उसे समन्वित रूप में ही प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए। कवि जो कुछ अपने मस्तिष्क में सोचता है, पदार्थों का साक्षात्कार करता है, कल्पना के बिना वे सब पदार्थ निर्जीव, जड़ तथा निष्क्रिय वस्तुएँ हैं। वे वस्तुएं मात्र जड़ बन कर रह जाती हैं। कल्पना ही उनको सजीव बनाती है। अतः कल्पना का कार्य अनुकरण न होकर पुनः सृजन या पुनर्निर्माण होता है।

(7) कल्पना तथा ललित कल्पना पर चिन्तन

कल्पना के लिए Imagination शब्द का प्रयोग होता है तथा ललित कल्पना के लिए Fancy का। कॉलरिज से पूर्व दोनों को एक ही माना जाता था। लेकिन कॉलरिज ने दोनों को अलग-अलग माना है। दोनों के अन्तर का अध्ययन करने से ‘ललित कल्पना’ (fancy) सम्बन्धी कॉलरिज के विचारों का पता चल जाता है। उनके मतानुसार ललित कल्पना की क्रीड़ा का क्षेत्र अचल और निर्दिष्ट पदार्थ होते हैं। वे ललित कल्पना को अधिक महत्त्व नहीं देते |

(क ) कॉलरिज के अनुसार जिस प्रकार प्रतिभा (genius) प्रज्ञा (talent) से ऊँची है, उसी प्रकार कल्पना ललित कल्पना से श्रेष्ठ है।

(ख ) जैसे प्रतिभा को प्रज्ञा की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार कल्पना को ललित कल्पना की आवश्यकता पड़ती है। फिर भी ये दोनों भिन्न शक्तियाँ हैं।

(ग ) कल्पना विभिन्न पदार्थों में एकीकरण और समंजन करती है लेकिन ललित कल्पना केवल संयोजन करती है। ललित कल्पना के इस संयोजन में सरसता का अभाव होता है | इसमें कल्पना के समान भाव-प्रवणता नहीं होती |

(घ ) कल्पना का सम्बन्ध कवि या कलाकार की आत्मा और मन से होता है लेकिन ललित कल्पना का सम्बन्ध केवल मस्तिष्क से होता है। इसीलिए ललित कल्पना जड़ एवं निष्प्राण होती है।

(ङ ) पुनः ललित कल्पना निरंकुश एवं स्वच्छन्द होती है। उस पर विवेक का नियन्त्रण नहीं होता। उसका कोई गंभीर प्रयोजन भी नहीं होता |

(च ) कल्पना आत्मिक प्रक्रिया है जबकि ललित कल्पना (Fancy) यान्त्रिक प्रक्रिया है।

(छ ) ललित कल्पना मात्र वस्तुओं का एकत्रिकरण कर सकती है लेकिन उसके ऐसा करने में कोई व्यवस्थित क्रम या अनुपात नहीं होता।

(ज ) ललित कला के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए कॉलरिज ‘स्वप्न’ का उदाहरण देता है। स्वप्न में मानव अनेक विचारों को एकत्रित कर लेता है। लेकिन उनमें न तो क्रमबद्धता होती है और न ही कोई अन्विति होती है। कॉलरिज के मतानुसार ललित कला केवल वस्तुओं को स्मरण करने की रीति मात्र है |

(झ ) वे यह भी कहते हैं कि स्पैन्सर के काव्य में ललित कल्पना है, लेकिन मिल्टन तथा शेक्सपियर के काव्य में कल्पना है। कल्पना के कारण ही मिल्टन और शेक्सपीयर का काव्य श्रेष्ठ है |

इस प्रकार कॉलरिज ने मानसिक शक्ति के तीन प्रकार बताए हैं — ललित कल्पना, प्राथमिक कल्पना तथा विशिष्ट कल्पना।

कॉलरिज के अनुसार ललित कल्पना स्मृति का एक प्रकार है, प्राथमिक कल्पना सब में पाई जाने वाली शक्ति है और विशिष्ट कल्पना कवियों और कलाकारों में पाई जाने वाली सृजनात्मक शक्ति है। यही कल्पना सर्वश्रेष्ठ है और यह मानव को प्रकृति से जोड़ती है।

इस प्रकार कॉलरिज कल्पना को ललित कल्पना से श्रेष्ठ व व्यापक मानते हुए कल्पना को काव्य का आधार मानता है | कल्पना न केवल काव्य के विभिन्न पक्षों का एकीकरण व समन्व्य करती है वरन काव्य में आकर्षण, सौंदर्य व प्रभावोत्पादकता उत्पन्न करती है | यही कारण है कि आधुनिक आलोचक कल्पना सिद्धांत को काव्य में यथोचित महत्त्व प्रदान करते हैं |

यह भी देखें

प्लेटो की काव्य संबंधी अवधारणा

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लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत

जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत

विलियम वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत

रस सिद्धांत ( Ras Siddhant )

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वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

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