आज के वैज्ञानिक युग में विद्युत शक्ति का बहुत अधिक महत्व है। आज किसी देश का जीवन स्तर वहाँ पर विद्युत के उत्पादन तथा प्रयोग से मापा जाता है।
विद्युत शक्ति उपलब्ध होने का अर्थ अधिक उद्योग परिवहन, कृषि उपज तथा अधिक समृद्धि है। हमारे घरों को रात्रि के समय विद्युत ही प्रकाश देती है।
हमारे दैनिक जीवन में विद्युत शक्ति का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। भारत ने अभी तक अपनी विद्युत उत्पादन क्षमता के केवल 25% का दोहन किया है, जबकि फ्रांस ने 32%, नॉर्वे ने 53% तथा स्विट्जरलैण्ड ने 54% विद्युत संसाधनों का दोहन कर लिया है।
विद्युत शक्ति के प्रकार (Types of Electricity)
वर्तमान युग में निम्नलिखित प्रकार की विद्युत पैदा की जाती है —
(1) जल विद्युत (Hydro-Electricity)
(2) ताप-विद्युत (Thermal-Electricity)
- (3) परमाणु-विद्युत (Atomic-Electricity)
(1) जल विद्युत
आधुनिक भारत का विकास काफी हद तक जल-विद्युत के उत्पादन तथा उपभोग पर निर्भर करता है।
शक्ति के अन्य दो संसाधन-कोयला तथा पेट्रोलियम शीघ्र ही समाप्त हो जाएँगे और तब हमें जल-विद्युत पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।
हमारे देश में जल-विद्युत उत्पन्न करने की विशाल सम्भावनाएँ हैं। भारत के शक्ति आयोग (Energy Commission) के अनुसार देश की नदियों में बहने वाले जल में 41,155 मेगावाट शक्ति निहित है।
आवश्यकता केवल इसका उचित उपयोग करने की है।
जल-विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक दशाएं
जल-विद्युत के उत्पादन को निम्नलिखित दशाएँ प्रभावित करती है —
(क ) पर्याप्त वर्षा
जल विद्युत के विकास के लिए पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है, जो पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में ही सम्भव है।
(ख ) सुनिश्चित जल-आपूर्ति
नदियों में सारा साल जल उपलब्ध होना चाहिए, जिससे जल-विद्युत के उत्पादन में बाधा न पड़े।
उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ हिमाच्छादित हिमालय से निकलती हैं और गर्मी की शुष्क ऋतु में बर्फ पिघलकर जल की आपूर्ति करती है |
(ग ) उच्चावच
ऊंचे नीचे पर्वतीय क्षेत्र में जल विद्युत उत्पादन के लिए उपयुक्त रहते हैं। तीव्र ढाल वाले प्रदेशों में जल का वेग अधिक होता है तथा जल-विद्युत अधिक मात्रा में उत्पन्न की जा सकती है।
जल प्रपात जल विद्युत के उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान है। कई बार नदियों में बाँध बनाकर कृत्रिम जल-प्रपात बनाए जाते हैं और जल-विद्युत उत्पन्न की जाती है।
(घ ) स्वच्छ जल
नदियों का जल स्वच्छ होना चाहिए, ताकि विद्युत उत्पादन यंत्रों को हानि न पहुँचे।
(ङ ) तापमान
जल विद्युत उत्पादन क्षेत्र में तापमान सदा हिमांक से ऊपर रहना चाहिए, ताकि जल-प्राप्ति निरन्तर बनी रहे। हिमालय के अति उच्च भागों में बहने वाली नदियों का पानी कम तापमान के कारण जम जाता है, जिससे विद्युत उत्पादन नहीं हो पाता।
(च ) विद्युत की माँग
विद्युत की माँग के क्षेत्र उत्पादक केन्द्रों के निकट होने चाहिए, क्योंकि अधिक दूर तक विद्युत पहुँचाने में विद्युत का ह्रास होता है।
सामान्यत: 160 किमी. दूर बिजली ले जाने में 8%, 320 किमी. में 10%, 640 किमी. में 17% तथा 800 किमी. में 21% विद्युत का ह्रास हो जाता है।
विद्युत का उत्पादन एवं वितरण
जल-विद्युत उत्पादन की दृष्टि से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर-प्रदेश, केरल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि महत्वपूर्ण राज्य हैं |
(क ) महाराष्ट्र में जल-विद्युत उत्पादन केंद्र
महाराष्ट्र में प्रमुख जल-विद्युत केन्द्र निम्नलिखित हैं —
(i) कोयना परियोजना
यह मुम्बई से 240 किमी. दक्षिण-पूर्व कृष्णा नदी की सहायक नदी कोयना पर स्थित है।
इसके निर्माण के पहले तथा दूसरे चरण में आठ बिजली घर लगाए गए थे, जिनकी क्षमता 5.5 लाख किलोवाट है।
(ii) ककरपारा या काकरपारा परियोजना
यह तापी नदी पर ककरपारा / काकरपारा नामक स्थान पर है। इसकी स्थापना 1953 में हुई । यहाँ से 2.2 लाख किलोवाट बिजली पैदा करके सूरत तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों को भेजी जाती है।
(ख ) तमिलनाडु में जल विद्युत उत्पादन
तमिलनाडु की प्रमुख विद्युत परियोजनाएँ मैटूर, पायकारा, पापनाशम, पेरियार तथा कुण्डा हैं।
(i) मैटूर परियोजना
इसकी स्थापना 1934 में हुई। यह मैटूर के निकट कावेरी नदी पर स्थित है। यहाँ 53 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर 55,000 किलोवाट विद्युत शक्ति पैदा की जाती है।
(ii) पायकारा परियोजना
इसकी स्थापना 1932 में की गई थी। कावेरी नदी की सहायक पायकारा नदी पर 390 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर 68,000 किलोवाट वाला जल-विद्युत गृह बनाया गया है। इस परियोजना को 1977 में “हैरिटेज प्लांट” घोषित किया गया।
(iii) पापनाशम परियोजना
इसकी प्रथम यूनिट की स्थापना 1944 में तथा अंतिम यूनिट 1951 में स्थापित की गई । ताम्रपर्णी नदी पर पापनाशम स्थान पर 53 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर 24,000 किलोवाट बिजली पैदा की जाती है। यह तमिलनाडु के दक्षिणी भाग में स्थित है और यहाँ से तिरुनेलवेली, मदुरै, तूतीकोरिन आदि स्थानों को विद्युत भेजी जाती है।
(iv) मुल्ला पेरियार परियोजना
इसकी स्थापना 1887 से 1895 के मध्य की गई। इस योजना के तहत केरल की सीमा के निकट पेरियार पहाड़ियों में एक जल-विद्युत उत्पादक केंद्र स्थापित किया गया जिसमें 35,000 किलोवाट बिजली पैदा होती है।
(3) कर्नाटक में जल विद्युत उत्पादन
कर्नाटक की प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं —
(i) महात्मा गाँधी परियोजना
कृष्णा नदी पर बने जोग जल-प्रपात पर 42,000 किलोवाट क्षमता वाला बिजली घर बनाया गया हैं। यहाँ से धारवाड़ तथा हुबली जिलों को बिजली भेजी जाती है।
(ii) शिवसमुद्रम परियोजना
इसकी स्थापना 1902 में हुई। कावेरी नदी पर शिवसमुद्रम नामक जल-प्रपात पर 42,000 किलोवाट क्षमता वाला जल-विद्युत गृह बनाया गया है। यहाँ से कोलार सोने की खानों, बंगलुरु एवं मैसूर को बिजली भेजी जाती है।
(iii) शिमशा परियोजना
कावेरी नदी की सहायक शिमशा नदी पर शिमशा जल-प्रपात का उपयोग करके सन 1940 में एक जल विद्युत गृह की स्थापना की गई जिसके द्वारा 17,200 किलोवाट विद्युत शक्ति पैदा की जाती है |
(iv) शरावती परियोजना
शरावती नदी एक जल विद्युत गृह की स्थापना की गई जिसके द्वारा 1.2 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न की जाती है।
(4) उत्तर प्रदेश में जल विद्युत उत्पादन
(i) गंगा विद्युत संगठन क्रम प्रणाली (The Ganga Electric Grid System)
ऊपरी गंगा नहर हरिद्वार से मेरठ तक 12 प्रपात बनाती है। इनमें से सात स्थानों पर कृत्रिम बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पन्न की जाती है।
इन स्थानों के नाम नी गजनी, मुहम्म्दपुर, चित्तौर, सलावा, भोला, पलेरा तथा सुमेरा हैं। इन सभी केंद्रों से लगभग 23,800 किलोवाट जल-विद्युत उत्पन्न की जाती है। इनको एक विद्युत ग्रिड में संगठित किया गया है।
इस संगठन से उत्तर प्रदेश के लगभग 4,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थित 14 जिलों को विद्युत मिलती है। ग्रामीण क्षेत्रों के नलकूपों को भी यही संगठन विद्युत प्रदान करता है।
(ii) माताटीला बाँध
इसका निर्माण 1958 में किया गया। यह बाँध बेतवा नदी पर झाँसी के निकट मध्य प्रदेश की सीमाओं के पास बनाया गया है। यहाँ से 10,000 किलोवाट विद्युत शक्ति उत्पन्न होती है जिसे उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश लाभान्वित होते हैं।
(iii) रिहन्द परियोजना
इसका निर्माण 1959 से 1962 के मध्य हुआ। मिर्जापुर जिले में पिपरी नामक स्थान पर सोन नदी की सहायक रिहन्द नदी पर 91.5 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर, 3 लाख किलोवाट क्षमता वाला विद्युत गृह स्थापित किया गया है।
(5) केरल
केरल की प्रमुख विद्युत परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं —
(i) पल्लीवासल परियोजना
मुद्रपूजा नदी पल्लीवासल स्थान पर झरने का निर्माण करती है | इस स्थान पर विद्युत गृह बनाकर जल-विद्युत पैदा की जाती है। इसकी क्षमता 50,000 किलोवाट है। यह केरल का पहला हाइड्रोइलेक्ट्रिल प्रोजेक्ट है।
(ii) सेंगुलम परियोजना
पल्लीवासल के नीचे बेलाथुवल स्थान पर एक विद्युत उत्पादन केंद्र बनाया गया है जिसकी क्षमता 48,000 किलोवाट है।
(iii) नेरियामंगलम परियोजना
पेरियार नदी के दाहिने किनारे पर पनाम कुट्टी स्थान पर 45,000 किलोवाट क्षमता वाला विद्युत उत्पादन केंद्र बनाया गया है।
(iv) पन्नियार परियोजना
मथिरापुज्हा नदी के बाएँ किनारे पर में सेंगुलम शक्तिगृह के ठीक उलटी दिशा में यह विद्युत केंद्र बनाया गया है। इसकी क्षमता 1 लाख 40 हजार किलोवाट है।
(6) पंजाब में विद्युत उत्पादन
पंजाब की प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं —
(i) भाखड़ा-नांगल परियोजना
पंजाब-हिमाचल प्रदेश, सीमा पर बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) जिले के भाखड़ा नामक स्थान पर सतलुज नदी पर 518 मीटर लम्बा तथा 226 मीटर ऊँचा बांध बनाया गया है | यह पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान की सांझी परियोजना है जिससे यह सभी राज्य लाभान्वित होते हैं |
इसका निर्माण कार्य 1963 में पूरा हुआ। यह बांध पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है, इसके पीछे बना हुआ गोविन्द सागर जलाशय हिमाचल प्रदेश में है।
(ii) अपर बारी दोआब नहर परियोजना
अमृतसर के निकट अपर बारी दोआब पर स्थित एक जल-प्रपात बनाया गया है। इससे उत्पादित जल-विद्युत अमृतसर भेजी जाती है।
हिमाचल प्रदेश में जल उत्पादन
(i) मंडी परियोजना
ब्यास नदी की सहायक उहल नदी के जल के बहाव को एक बाँध का निर्माण करके रोक दिया गया है और 417 मीटर लम्बी सुरंग बनाकर जल को नदी की विपरीत दिशा में ले जाया गया है। वहाँ से जल को पाइप लाइनों द्वारा 609 मीटर की ऊँचाई से गिराकर जोगिन्दर नगर नामक स्थान पर विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
(ii) पौंग बांध परियोजना
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पौंग नामक स्थान पर ब्यास नदी पर 1,750 मीटर लम्बा तथा 133 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया है। इस पर निर्मित विद्युत उत्पादन केंद्र की उत्पादन क्षमता 360 मेगावाट है।
(iii) पंडोह परियोजना
ब्यास नदी पर मंडी जिले में पंडोह नामक परियोजना द्वारा जल को देहरी नामक स्थान पर लाया गया है। यहाँ पर 165 मेगावाट विद्युत क्षमता वाला विद्युत गृह बनाया गया है।
(iv) शिमला परियोजना
सतलुज की सहायक नोटी नदी के जल को 162 मीटर की ऊंचाई से गिराकर विद्युत उत्पादन किया जाता है।
(8) उत्तराखंड में जल विद्युत उत्पादन
उत्तराखण्ड की प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं —
(i) शारदा विद्युत संगठन क्रम प्रणाली (TheSharda Electric Grid System)
इसका विकास भी गंगा विद्युत संगठन क्रम प्रणाली की भाँति किया गया है।
(ii) रामगंगा परियोजना
गढ़वाल क्षेत्र में कालागढ़ स्थान के निकट रामगंगा नदी पर 125 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर 1,05,000 किलोवाट बिजली पैदा की गई है। इससे गढ़वाल तथा- कुमाऊँ क्षेत्रों को बिजली मिलती है।
(ii) टिहरी बांध
यह बांध उत्तराखंड के गढ़वाल जिले में भागीरथी तथा भीलगंगा के संगम पर बनाया गया है। यह बहुमुखी योजना है, जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 2400 किलोवाट है।
- (9) जम्मू-कश्मीर में विद्युत उत्पादन
- जम्मू-कश्मीर की प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं —
(i) बारामूला जल-विद्युत केन्द्र
यह विद्युत गृह बारामूला से 32 किलोमीटर दूर बुनियर के निकट झेलम नदी पर स्थित है। यहाँ की विद्युत बारामूला तथा श्रीनगर को भेजी जाती हैं। 2014 में इसमें विद्युत उत्पादन आरम्भ हुआ।
(ii) पहलगगाम जल-विद्युत केन्द्र
यह पहलगाँव के निकट लिद्दर नदी पर स्थित है। इसकी बिजली पहलगाम तथा निकटवती इलाकों को भेजी जाती है।
(iii) मेडखल जल-विद्युत केन्द्र
यह श्रीनगर से 32 किलोमीटर दूर मेडखल नामक स्थान पर स्थित है। यहाँ 6,000 किलोवाट बिजली पैदा होती है, जो श्रीनगर तथा इसके निकटवती इलाकों को भेजी जाती है।
(2) ताप-विद्युत
जिन क्षेत्रों में जल-विद्युत उत्पन्न करने के लिए भौगोलिक परिस्थितियाँ अनुकूल न हों या उन क्षेत्रों में विद्युत की माँग वहाँ जल-विद्युत उत्पादन से अधिक हो तो कोयले, डीजल अथवा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से ताप विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
ताप विद्युत उत्पादन केंद्र
ताप विद्युत उत्पादन के प्रमुख केंद्र निम्नलिखित हैं —
महाराष्ट्र
- कुल ताप विद्युत क्षमता की दृष्टि से महाराष्ट्र सबसे आगे है। यहाँ पर 5,555 मेगावाट ताप-विद्युत उत्पादन की क्षमता है।
चोला वाष्प शक्ति गृह ( 118 हजार किलोवाट), ट्रॉम्बे वाष्प शक्ति गृह ( 337 हजार किलोवाट), कोल्हापुर डीजल शक्ति केन्द्र, पारस ( 62.5 हजार किलोवाट), नासिक ( 280 हजार किलोवाट) तथा नागपुर जिले में कोराडी ( 480 हजार किलोवाट) महत्वपूर्ण ताप-विद्युत उत्पादक केन्द्र है।
उत्तर प्रदेश
ताप विद्युत उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का द्वितीय स्थान है। यहाँ कोयला नहीं मिलता | कोयला झारखंड तथा अन्य राज्यों से मँगवाया जाता है। यहाँ पर ओबरा, हरदुआगंज, पनकी, कानपुर आदि स्थानों पर ताप-विद्युत केन्द्र प्रसिद्ध हैं।
मध्य प्रदेश
बैतूल जिले में सतपुड़ा ताप विद्युत केन्द्र है जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 312 हजार किलोवाट है | इसके अतिरिक्त विन्ध्यांचल, विश्रामपुर, बीरसिंहपुर, पेन्च आदि स्थानों पर ताप-विद्युत केन्द्र निर्माणाधीन हैं।
छत्तीसगढ़
इस राज्य का सबसे महत्वपूर्ण ताप-विद्युत केन्द्र बिलासपुर जिले में कोरबा नामक स्थान पर है।
गुजरात
गुजरात की कुल विद्युत क्षमता का 90% भाग ताप-विद्युत से प्राप्त होता है। यहाँ पर उतरान जिसकी क्षमता 67.5 हजार किलोवाट है सबसे प्रसिद्ध ताप विद्युत घर है | इसके अतिरिक्त सिक्का (16 हजार किलोवाट), शाहपुर (6 हजार किलोवाट), पोरबन्दर (15 हजार किलोवाट), कांधला (6 हजार किलोवाट), अहमदाबाद (110 मेगावाट), धुवरन (534 मेगावाट), उकाई, गांधीनगर आदि प्रमुख ताप विद्युत उत्पादन केंद्र हैं |
झारखंड
झारखंड में कोयले की विस्तृत खानें हैं, जिससे ताप-विद्युत उत्पादन में सहायता मिलती है।
इस क्षेत्र में बोकारो, चुन्द्रपुरा, सिंदरी, जमशेदपुर, बर्नपुर और सीतापुर नामक छः स्थानों पर तापीय शक्ति केन्द्र स्थापित करने की योजना है |
ताप विद्युत के अन्य उत्पादन केंद्र
इसके अतिरिक्त तामिलनाडु में नेवेली (600 मेगावाट), मदुरै (11 हजार किलोवाट), इन्नौर (450 मेगावाट), तूतीकोरिन, मैटूर; आंध्र प्रदेश में रामगुण्डम, कोट्टागुण्डम, विजयवाड़ा; राजस्थान में राणा प्रताप व कोटा; हरियाणा में फरीदाबाद, पानीपत, यमुनानगर व झज्जर; पंजाब में भटिंडा व रूपनगर; असम में नामरूप, बोंगाइ गाँव; दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ व बदरपुर आदि ताप-विद्युत केन्द्र कार्यरत हैं।
(3) परमाणु विद्युत
परमाणु विद्युत के लिए सबसे महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम है। भारत में इसका खनन झारखंड के सिंहभूम जिले में स्थित जादुगुड़ा नामक स्थान पर किया जाता है।
मध्यवर्ती राजस्थान की चट्टानों में भी यूरेनियम के भंडार मिले हैं। केरल तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में पाई जाने वाली मोनाजाइट नामक बालू से भी यूरेनियम मिलता है।
यहाँ के मोनाजाइट रेत में 10% थोरियम ऑक्साइड तथा 0.3% यूरेनियम ऑक्साइड मिलता है। हाल ही में झारखंड में राँची पठार पर मोनाजाइट के विशाल भंडारों की खोज की गई है।
केरल की पर्वतीय चट्टानों में 4% यूरेनियम ऑक्साइड मिलता है। मेघालय की पहाड़ियों तथा जम्मू-कश्मीर के लेह-लद्दाख इलाके में भी यूरेनियम मिलने की काफी सम्भावनाएं हैं।
थोरियम के भंडार केरल तथा झारखंड में पाए जाते हैं। यहाँ की ग्रेनाइट चट्टानों में लगभग 10% थोरियम का अंश होता है। विश्व के अन्य किसी भाग की चट्टानों में इतना अधिक थोरियम नहीं पाया जाता है।
भारत में लगभग 3.6 लाख टन थोरियम के भंडार हैं, जो विश्व में सबसे अधिक हैं। इससे इतनी विद्युत प्राप्त हो सकती है, जितनी कि 60 अरब टन कोयले को जलाने से प्राप्त होती हैं
बेरीलियम के उत्पादन में भारत विश्व में सबसे अग्रणी है। यहाँ लगभग एक हजार टन बेरीलियम प्रतिवर्ष पैदा किया जाता है। यह आंध्र प्रदेश, झारखंड तथा राजस्थान में मिलता है | जीरकोनियम के भंडारों की दृष्टि से केरल सबसे आगे हैं यहां पर लगभग 50 लाख टन जिरकोनियम के के भंडार हैं |
भारत में परमाणु विद्युत का विकास
भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का श्रेय स्वर्गीय डॉ. होमी जहाँगीर भाभा को जाता है।
उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप मुम्बई के निकट ट्राम्बे द्वीप पर ट्राम्बे आणविक शक्ति प्रतिष्ठान के अन्तर्गत पहला अनुसंधान आणविक रिएक्टर (Research Atomic Reactor) सन 1955 में तैयार हुआ।
इस समय विश्व में 16 देश परमाणु विद्युत का उत्पादन कर रहे हैं, जिनमें भारत भी एक है |
भारत के परमाणु विद्युत-गृह
इस समय देश में 12 परमाणु विद्युत गृह कार्य कर रहे हैं या निर्माणाधीन हैं। जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न है —
तारापुर परमाणु विद्युत-गृह
देश का पहला परमाणु विद्युत गृह तारापुर में है, जो मुम्बई से 96 किमी. दूर है। यह अमेरिका की सहायता से स्थापित किया गया है और 1969 से कार्य कर रहा है। इसकी उत्पादन क्षमता 420 मेगावाट है। इसकी क्षमता को बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है।
राजस्थान परमाणु विद्युत-गृह
भारत का दूसरा परमाणु विद्युत-गृह राजस्थान में कोटा के निकट राणा प्रताप सागर के पास रावतभाटा में बनाया गया है। इसे कोटा अथवा राणा प्रताप सागर परमाणु विद्युत केन्द्र भी कहते है। यह कनाडा के सहयोग से बनाया गया है | इसकी स्थापना 1972 में हुई | इसकी उत्पादन क्षमता 220 मेगावाट है |
कलपक्कम परमाणु विद्युत-गृह
यह भारत का एक महत्वपूर्ण परमाणु विद्युत घर है | यह तमिलनाडु में स्थित है।
नरौरा परमाणु विद्युत-गृह
यह उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के निकट नरौरा नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट है।
ककरापुर /काकरपारा परमाणु विद्युत-गृह
यह गुजरात में ककरापुर / काकरपारा नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट होगी। इसने सन 1992 से आंशिक रूप से काम करना आरम्भ कर दिया है।
अन्य परमाणु विद्युत उत्पादन केंद्र
कैगा (कर्नाटक), 7. कुडुकुलम (तमिलनाडु), 8. गोरखपुर (हरियाणा), 9. चुटका (मध्य प्रदेश), 10. माही बांसवाड़ा (राजस्थान), 11. जैतापुर (महाराष्ट्र), 12. मिथी विर्दी (गुजरात) आदि |
यह भी देखें
भारत के प्रमुख उद्योग : उर्वरक, सीमेंट, चीनी, एल्युमीनियम तथा कागज उद्योग
भारत के उद्योग : सूती वस्त्र, पटसन व लोहा-इस्पात उद्योग
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : हिमालय पर्वत
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार