खिलजी वंश के शासकों में अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) सर्वाधिक शक्तिशाली व योग्य शासक था | उसने 1296 ईस्वी से 1316 ईस्वी तक शासन किया | अपने 20 वर्ष के शासनकाल में उसने दिल्ली सल्तनत के प्रशासन में अनेक सुधार किए | उसने सैनिक, नागरिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में जो सुधार किए उनसे दिल्ली सल्तनत सुदृढ़ हो गई | उसने आर्थिक क्षेत्र में जो सुधार किए उन सुधारों के कारण उसे सल्तनत काल का अर्थशास्त्री भी कहा जाता है | अलाउद्दीन खिलजी के प्रमुख सुधारों का वर्णन इस प्रकार है —
(1) प्रशासनिक सुधार
अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) ने प्रशासनिक व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार किए —
(i) अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) एक महान कूटनीतिज्ञ था | वह जानता था कि सरदार यदि शक्तिशाली हो गए तो उसके विरुद्ध विद्रोह कर सकते हैं | इन सरदारों के विद्रोह से जहाँ उसका शासन छिन सकता है वहीं राज्य में अशांति का वातावरण भी व्याप्त होगा | अतः सत्ता संभालते ही उसने राज्य की सभी शक्तियां अपने हाथों में ले ली और सरदारों की शक्तियों को लगभग समाप्त कर दिया |
(ii) लगभग यही कार्य है अलाउद्दीन खिलजी ने जागीरदारों के साथ किया उसने सुल्तान बनते ही उनसे उनकी जागीरें छीन ली तथा उन्हें शक्तिहीन कर दिया |
(iii) सुलतान का विचार था कि लोग शराब पीकर आपस में मारपीट करते हैं, घर परिवार और समाज का माहौल बिगाड़ने हैं | वह शराब को समाज के लिए हानिकारक मानता था | उसका यह भी मानना था कि शराब पीकर लोग गुटबंदी करते हैं और राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र रचते हैं | अतः उसने शराब पीना निषेध कर दिया। परन्तु राजधानी के निकट तो इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। परन्तु अन्य क्षेत्रों में शराब पीने का चलन जारी रहा |
(iv) सुलतान ने योग्य गुप्तचरों की नियुक्ति की। ये गुप्तचर सरदारों और अन्य कर्मचारियों पर निगरानी रखते थे। उसकी गुप्तचर व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि किसी सूचना को सुलतान तक पहुँचने में 24 घण्टे से अधिक समय नहीं लगता था। इस प्रकार सुल्तान को समय रहते किसी भी षड्यंत्र की सूचना मिल जाती थी |
(v) सुलतान का विचार था कि सरदार लोग आपस में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके शक्तिशाली बन जाते हैं। अतः उनका आपसी मेल-जोल भी निषेध कर दिया गया। अब वे दावतों पर और मनोरंजन के लिए भी इकट्टे नहीं हो सकते थे। इन सुधारों का परिणाम यह हुआ कि सभी प्रकार के विद्रोह समाप्त हो गए, जो सुलतान के प्रारम्भिक शासनकाल में हुए थे।
(2) भूमि-कर प्रणाली में सुधार
अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) पहला मुसलमान शासक था, जिसने भूमि-प्रबन्ध की ओर विशेष ध्यान दिया। सबसे पहले तो उसने सरदारों और अमीरों की जागीरें जब्त कर ली। उसने सारी भूमि की पैमाइश करवाई। फलस्वरूप बहुत-सी भूमि, जो सरकारी थी, निजी व्यक्तियों के अधिकार में मिली। उसने सरकारी जमीन के ऊपर हुए अवैध कब्जों को हटा कर उसे अपने नियंत्रण में कर लिया |
अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) ने भू-राजस्व प्रणाली में भी सुधार किए | उसने हिन्दुओं से उपज का आधा भाग और मुसलमानों से 1/4 भाग कर निश्चित किया। भूमि-कर सम्बन्धी कर्मचारियों की कड़ी निगरानी रखी गई। घूसखोरी को दूर करने के लिए कभी-कभी सुलतान स्वयं भी पटवारियों के कागजों का निरीक्षण करता था। वह पहला शासक था, जिसके हाथ पटवारियों तक पहुँचे, क्योंकि पटवारियों के पास ही भूमि सम्बन्धी सूचना होती थी। सुलतान ने इस प्रणाली को सफल बनाने के लिए अनेक और सुधार भी किए। छोटे अधिकारियों के वेतन बढ़ा दिए गए, ताकि वे रिश्वत आदि न लें।
किसानों से भूमि-कर लेने के लिए ‘मस्तक राज’ नामक अधिकारी नियुक्त किए गए। किसान भूमि-कर को अनाज अथवा नकदी के रूप में दे सकते थे। अपराधी कर्मचारियों को कड़े दण्ड दिए जाते थे। सुलतान की सेना बहुत विशाल थी। इस विशाल सेना के खर्च को उठाने के लिए उसे रुपए की और अधिक आवश्यकता पड़ी। उसने हिन्दुओं से जजिया-कर, चूल्हा-कर, विवाह-कर, गाय-कर, भैंस-कर, चरागाह-कर आदि वसूल किए । हिन्दुओं की दुर्दशा हो गई। उनकी स्त्रियाँ मुसलमानों के घर में चक्की पीसने आदि का काम करने लगीं।
(3) धर्म एवं राजनीति
अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) से पहले के मुस्लिम शासकों के कानून का आधार मुसलमानों के धार्मिक ग्रन्थ थे। परन्तु अलाऊद्दीन खलजी ने धर्म को राजनीति से अलग रखा । निजी जीवन में एक कट्टर सुन्नी मुसलमान होते हुए भी सुलतान ने मौलवियों और गाजियों को कभी राजनीतिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने घोषणा की — “मैं जो कुछ करता हूँ, प्रजा-हित के लिए करता हूँ। मेरे कार्यों में कोई हस्तक्षेप न करे। निर्णय के दिन अल्लाह मुझे क्या दण्ड देगा, मैं कुछ नहीं जानता….|”
धर्म को राजनीति से अलग रखना उसका एक सराहनीय कार्य था।
(4) सैनिक सुधार
सुलतान एक महान् विजेता था। उसने विश्व-विजय की योजना बनाई और अपना नाम सिकन्दर द्वितीय रखा। उसने इस नए नाम
के सिक्के भी चलाए। परन्तु वह आदर्शवादी न होकर यथार्थवादी था। उसे तुरन्त अपनी गलती का ज्ञान हो गया। उसने विश्व-विजय का विचार छोड़ दिया और वह भारत-विजय पर ही सन्तुष्ट हो गया। भारत-विजय करने के लिए उसे सेना की आवश्यकता पड़ी। उसने साम्राज्य-विस्तार के लिए और आन्तरिक शान्ति स्थापित करने के लिए एक विशाल और शक्तिशाली सेना का गठन किया। उसने निम्नलिखित सैनिक सुधार किए —
(i) अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) ने 4 लाख, 75 हज़ार घुड़सवार भर्ती किए। लगभग इतने ही पैदल सैनिक और कुछ हाथी भी रखे। उसका सैनिक संगठन उच्च कोटि का था।
(ii) उसने घोड़ों को दागने की प्रथा और सैनिकों का हुलिया रखने की प्रथा प्रचलित की। फलस्वरूप अब कोई सैनिक सरकार को धोखा नहीं दे सकता था।
(iii) सेना को तीन भागों में विभाजित करके तीन अनुभवी सेनापति नियुक्त किए गए। मंगोलों के विरुद्ध जफर खाँ, उत्तरी भारत की विजय के लिए नुसरत खाँ और दक्षिणी भारत की विजय के लिए मलिक काफूर को नियुक्त किया गया था।
(iv) मंगोलों से निपटने के लिए नए दुर्गों का निर्माण करवाया गया तथा पुराने दुर्गों की मरम्मत करवाई गई। सेना की सुविधा के लिए सड़कों का भी निर्माण करवाया गया तथा सैनिकों को नवीन हथियार दिए गए।
(v) सैनिक प्रशिक्षण कठोर कर दिया गया और सेना में अनुशासन पर विशेष बल दिया गया।
(vi) सेना में गुप्तचर भी रखे गए, ताकि सैनिक गतिविधियों की जानकारी सुलतान को मिलती रहे।
(vii) सभी बीमार, बूढ़े और अयोग्य सैनिकों को निकाल दिया गया। उनके स्थान पर युवा , योग्य और साहसी सैनिक भर्ती किए गए।
(viit) सैनिकों को जागीरों के स्थान पर नकद वेतन दिया गया। एक पैदल सैनिक को 234 टांक प्रतिवर्ष वेतन मिलता था और एक घुड़सवार को 78 टांक प्रतिवर्ष अतिरिक्त वेतन दिया जाता था |
(5) सामाजिक सुधार
सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) अनेक प्रजा-हितैषी कार्य करना चाहता था, परन्तु मंगोलों के निरन्तर आक्रमणों के कारण वह इस ओर विशेष ध्यान नहीं दे सका। फिर भी उसने निम्नलिखित सामाजिक सुधार किए —
(i) अमीरों, सरदारों और कर्मचारियों में मदिरापान की बुरी आदत थी।
शाही आदेश द्वारा मदिरापान निषेध घोषित कर दिया। सुलतान ने स्वयं भी शराब पीना छोड़ दिया। शराब पीने वाले बर्तनों को नाटकीय ढंग से बाज़ार में तुड़वा दिया गया। शराब पीने वाले तथा बेचने वाले को गन्दे पानी के कुएं में फेंकने का दण्ड निश्चित किया गया। राजधानी के निकट इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। लेकिन अन्य स्थानों पर शराब का चालन जारी रहा | बाद में सुलतान ने अपने घर में शराब पीने की आज्ञा दे दी।
(ii) सुलतान ने जुआ खेलने पर भी रोक लगाई। जुआरियों को कठोर दण्ड दिया जाता था। अनेक जुआरियों को राजधानी से बाहर निकाला गया।
(iii) सुलतान ने नाचने-गाने और जादू-टोनों पर भी प्रतिबन्ध लगाया। अनेक जादूगर भोले-भाले लोगों को लूटते थे। कुछ जादूगरों की पत्थर मार-मारकर हत्या की गई। इस प्रकार लोगों का शोषण होना समाप्त हो गया।
(iv) सुलतान ने वेश्यावृत्ति पर भी रोक लगाई। वेश्याओं को विवाह करने के लिए विवश किया गया अन्यथा राज्य से बाहर चले जाने का आदेश दिया गया। उसने सती-प्रथा भी बन्द कर दी। इस प्रकार वह पहला मुसलमान शासक था, जिसने कुछ सामाजिक दोषों को भी दूर करने का प्रयत्न किया।
(6) आर्थिक सुधार
सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) को आर्थिक सुधारों के कारण दिल्ली सल्तनत ( Delhi Sultanate ) का अर्थशास्त्री कहा जाता है। उसने महँगाई पर रोक लगाकर जनता को सस्ती रोटी देने का प्रयास किया। यदि उसने अमीरों को लूटा तो गरीबों को लाभ भी पहुँचाया। उसने आवश्यक वस्तुओं को सस्ता करके जनता को प्रसन्न किया। अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार निम्नलिखित हैं —
(i) अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) ने सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निश्चित कर दिया। उसे अनुभव हो गया था कि उसके सैनिकों का वेतन कम है और उनका जीवन निर्वाह होना कठिन है। गेहूँ साढ़े सात जीतल प्रति मन, चीनी डेढ़ सेर प्रति जीतल, चावल 5 जीतल प्रति मन, चना 5 जीतल प्रति मन, मक्खन ढाई सेर प्रति जीतल, नमक 2 जीतल प्रति मन, गाय 4 टंके प्रति गाय तथा घोड़ा 120 से 170 टंके प्रति घोड़ा मूल्य निश्चित किए गए, उस समय का जीतल आधुनिक तीन पैसे के बराबर तथा एक टंके का दाम आधुनिक एक रुपए से कुछ अधिक था। उस समय का मन आधुनिक 13-14 सेर के बराबर होता था। दुकानदार सभी वस्तुओं की मूल्य सूची रखते थे |
(ii) सुलतान ने वस्तुओं की उपलब्धता का उचित प्रबन्ध किया। एक आदेश के अनुसार दोआब के 100 कोस के अन्दर कोई किसान 100 मन से अधिक अनाज नहीं रख सकता था। फालतू अनाज व्यापारियों को निश्चित मूल्य पर बेचा जाता था।
(iii) अनाज रखने के लिए सरकारी गोदामों का प्रबन्ध किया गया। यह अनाज जनता को अकाल के समय दिया जाता था।
(iv) सुलतान ने राशन-प्रथा आरम्भ की। यहाँ से लोगों को सस्ता अनाज दिया जाता था |
(v) सट्टा, जमाखोरी, काला धन इत्यादि को निषेध घोषित कर दिया।
(vi) विदेशी और महँगी वस्तुएँ खरीदने पर रोक लगा दी, ताकि महँगाई न बढ़ सके।
(viii) व्यापारियों को अनाज खरीदने के लिए लाइसेंस दिए गए। केवल व्यापारी ही किसानों से अनाज खरीद सकते थे। व्यापारियों को अनाज उसी भाव पर बेचना पड़ता था, जिस भाव में वे खरीदते थे। बदले में उन्हें कुछ कमीशन दिया जाता था।
(viii) अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) ने मण्डियों पर नियन्त्रण किया गया। यह संभवत है इतिहास में पहली बार हुआ था | एक मण्डी-मन्त्री की नियुक्ति की गई, जिसे ‘दीवाने रियासत’ कहा जाता था। हर मण्डी का एक अध्यक्ष (दरोगा) होता था। नए तराजू-बट्टे तोलने के लिए प्रयोग किए जाते थे। कम तोलने वाले दुकानदार का उतना ही माँस काट लिया जाता था। गुप्तचर मण्डियों की देख-रेख करते थे। कुछ अन्य अधिकारी भी होते थे, जो केन्द्रीय कार्यालय में समय-समय पर रिपोर्ट भेजते थे। बेईमानी करने वालों को कठोर दण्ड दिए जाते थे। कुछ समय के लिए लोग डर के मारे, ईमानदार बन गए।
यदि ‘दीवाने रियासत’ का कोई अधिकारी भ्रष्ट पाया जाता था, तो उसे सबके सामने कोड़े लगवाए जाते थे। सुलतान भी इस प्रणाली में निजी रुचि लेता था। ईमानदारी पर परखने के लिए वह अपने व्यक्तियों को मण्डियों से वस्तुएं खरीदने के लिए भेज देता था।
अच्छे प्रभाव
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) के आर्थिक व अन्य सुधारों के कुछ अच्छे प्रभाव और निम्नलिखित थे —
(i) अपने सुधारों के कारण अलाउद्दीन खिलजी ने राज खजाने में पर्याप्त धन संचित किया और विशाल सेना का गठन किया | उसके आर्थिक सुधारों के कारण उसके राज्य के कर्मचारी तथा सैनिक थोड़े वेतन से ही प्रसन्नतापूर्वक जीवन निर्वाह करने लगे | इस प्रकार उसने अपने दरबार में तथा सेना में स्वामीभक्त सैनिकों और कर्मचारियों की संख्या बढ़ा ली |
(ii) इन सुधारों के बल पर ही सुल्तान ने साम्राज्य में आंतरिक शांति स्थापित की और साम्राज्य विस्तार की नीति में सफल हुआ |
(iii) वस्तुओं के दाम कम होने से जनसामान्य सुल्तान के प्रति सम्मान का भाव रखने लगा |
(iv) बाजार नियंत्रण प्रणाली से कालाबाजारी पर रोक लग गई | वस्तुओं के दाम कम होने से घूसखोरी खत्म हो गई और सरकारी कर्मचारी तथा जनसाधारण सुखमय जीवन जीने लगे |
बुरे प्रभाव या सीमाएँ
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) के सुधारों के कुछ बुरे प्रभाव या सीमाएं निम्नलिखित हैं —
(i) सुल्तान ने बाजार पर आवश्यकता से अधिक नियंत्रण स्थापित कर दिया | इससे व्यापार चौपट हो गया क्योंकि व्यापारियों को अब अधिक लाभ नहीं होता था |
(ii) सुल्तान द्वारा किए गए सुधारों का प्रभाव केवल राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में ही दिखाई दिया | साम्राज्य का शेष भाग इनसे प्रायः वंचित रहा |
(iii) सुल्तान के आर्थिक सुधारों के कारण अनेक लोग सुल्तान के विरुद्ध हो गए और सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे |
(iv) इन सुधारों से अनेक किसान भी सुल्तान के विरुद्ध हो गए क्योंकि उन्हें कम दामों पर अपना अनाज सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त दुकानदारों को बेचना पड़ता था |
(v) यह सुधार सुल्तान की सूझबूझ और उसकी शक्ति के बल पर आधारित थे | इन सुधारों को लागू करने के लिए सुल्तान ने कोई विशेष नियम नहीं बनाए | यही कारण है कि यह सुधार तभी तक रहे जब तक सुल्तान जीवित था सुल्तान के मृत्यु के पश्चात इन सुधारों का प्रभाव स्वत: ही समाप्त हो गया |
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) दिल्ली सल्तनत ( Delhi Sultanate ) का एक महान प्रशासक था | उसके द्वारा किए गए प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक सुधारों में से कुछ सुधार न केवल सल्तनत काल अपितु पूर्ववर्ती संपूर्ण इतिहास में प्रथम थे | सैनिक प्रशासन के दृष्टिकोण से सैनिकों का हुलिया लिखना और घोड़ा दागने की प्रथा, आर्थिक सुधारों में बाजार नियंत्रण प्रणाली तथा सामाजिक सुधारों में वेश्यावृत्ति, शराबबंदी आदि उसके महत्वपूर्ण सुधार थे | निःसन्देह अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khilji ) सल्तनत काल का सबसे महान शासक था |
यह भी देखें
सल्तनतकालीन कला और स्थापत्य कला
सल्तनत कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ
सल्तनत काल / Saltnat Kaal ( 1206 ईo – 1526 ईo )
भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )
गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल
1857 ईo की क्रांति के पश्चात प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन
1857 ईo की क्रांति की प्रकृति या स्वरूप ( 1857 Ki Kranti Ki Prakriti Ya Swaroop )
1857 ईo की क्रांति के परिणाम ( 1857 Ki Kranti Ke Parinam )