हर्ष की उपलब्धियां ( Achievements of Harsha )

हर्ष के पिता का नाम प्रभाकर वर्धन था जो पुष्यभूति वंश से संबंध रखता था | प्रभाकर वर्धन का राज्य वर्तमान हरियाणा में था जिसकी राजधानी थानेसर थी | हर्ष का जन्म 590 ईस्वी में हुआ | उसकी माता का नाम यशोमती था | उसके बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन तथा बहन का नाम राज्यश्री था | हर्ष एक शिक्षित, संवेदनशील व आध्यात्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था | वह एक कुशल प्रशासक तथा योद्धा होने के साथ-साथ एक महान विद्वान भी था | उसने रत्नावली, नागानंद तथा प्रियदर्शिका जैसे नाटकों की रचना की |

हर्षवर्धन का सिंहसनारोहण

605 ई० में हर्ष के पिता की मृत्यु हो गई। उसके बाद हर्ष का बड़ा भाई राज्यवर्धन राज सिंहासन पर बैठा। परन्तु 606 ई० में उसकी हत्या कर दी गई। हर्ष की माता यशोमती पहले ही सती हो गई थी। हर्ष की बहिन राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा ग्रहवर्मन के साथ हुआ था। परन्तु ग्रहवर्मन की हत्या भी 606 ई० में ही कर दी गई। राज्यश्री भी अपने पति के साथ सती होना चाहती थी, परन्तु उसकी जान बचा ली गई। इन कठिन परिस्थितियों में 16 वर्ष की आयु में 606 ई० में हर्ष सिंहासन पर बैठा। उस समय उसके अनेक शत्रु थे। उसने अपने भाई और बहनोई की हत्या का बदला भी लेना था तथा अपने विखंडित साम्राज्य को संगठित भी करना था | हर्ष ने अपने शत्रु-राज्यों को जीतने के लिए विजयाभियान आरम्भ किया। हर्ष ने एक विशाल सेना का गठन किया। उसकी विजयों को देखते हुए इतिहास में उसे तलवार और कलम का धनी कहा जाता है।

(क) सम्राट हर्ष की प्रमुख विजयें (Main Conquests of Harsha )

हर्ष की प्रमुख विजयों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है —

(1) बंगाल विजय ( Bengal Conquest )

सबसे पहले हर्ष ने बंगाल पर आक्रमण किया। वहाँ का राजा शशांक था। उसने हर्ष के भाई और बहनोई की हत्या धोखे से कर दी थी। हर्ष ने इन हत्याओं का बदला लेने के लिए उस पर आक्रमण किया। शशांक बंगाल छोड़कर भाग गया। हर्ष ने बंगाल पर अधिकार कर लिया। परन्तु ऐसा करने में हर्ष को कामरूप के राजा भास्करवर्मन से भी सैनिक सहायता लेनी पड़ी। फलस्वरूप बंगाल का कुछ भाग भास्करवर्मन को भी देना पड़ा।

(2) कन्नौज पर अधिकार

इस नगर पर हर्ष का अधिकार बिना युद्ध किए ही हो गया, क्योंकि वहाँ का राजा हर्ष का बहनोई था, जिसकी हत्या कर दी गई थी। हर्ष की बहिन राज्यश्री के कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए कन्नौज के लोगों ने हर्ष को ही अपना राजा मान लिया। कन्नौज उस समय एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर था। हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया | इसके पश्चात हर्ष ‘कन्नौज का हर्ष’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

(3) मालवा की विजय (Malwa Conquest )

उस समय मालवा का शासक देवगुप्त था। देवगुप्त की शशांक से मित्रता थी। हर्ष के भाई और बहनोई की हत्या के षड्यन्त्र में देवगुप्त का भी हाथ था। हर्ष ने मालवा पर आक्रमण किया। इस युद्ध में देवगुप्त की हार हुई तथा वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। हर्ष ने मालवा पर अधिकार कर लिया।

(4) पाँच प्रदेशों पर विजय (Conquests of Five Provinces)

हर्ष ने निरन्तर अनेक युद्ध किए। ह्यूनसांग के अनुसार 606 ई० से 612 ई० तक उसने उत्तरी भारत के पंजाब, कन्नौज, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा प्रान्तों पर विजय प्राप्त की। इस सफलता से हर्ष के राज्य का काफी विस्तार हुआ।

(5) वल्लभि या गुजरात (Vallbhi or Gujarat)

यहाँ का राजा ध्रुवसेन था। यहाँ पुलकेशिन द्वितीय अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था। इस प्रभाव को रोकने के लिए हर्ष ने वल्लभि पर आक्रमण किया। हर्ष को विजय मिली। परन्तु हर्ष ने ध्रुवसेन का राज्य वापस लौटा दिया और अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया।

(6) कामरूप द्वारा अधीनता स्वीकारना (Subjugation of Kaamrup )

हर्ष और कामरूप (असम) के राजा भास्करवर्मन के बीच सन्धि हुई, जिसके अनुसार कामरूप के शासक भास्करवर्मन ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली | कन्नौज की सभा में भास्करवर्मन ने बहुत से हाथी हर्ष को भेंट के रूप में दिए जिससे स्पष्ट होता है कि कामरूप का राजा हर्ष की अधीनता स्वीकार कर चुका था |

(7) पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध (Battle with Pulkesin II)

उस समय दक्षिणी भारत पर चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय का शासन था। उसे ‘दक्षिण का सिंह’ कहा जाता था। हर्ष एक विशाल सेना के साथ नर्मदा नदी पर पहुँचा। वहाँ दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ। हर्ष को पराजय का सामना करना पड़ा और वह वापस कन्नौज लौट गया। इस प्रकार नर्मदा नदी उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा बन गई। ह्यूनसांग (Heunsang) ने इस घटना का वर्णन अपने वृतांत में किया है |

(8) सिन्ध की विजय (Conquest of Sind)

बाणभट्ट ने ‘हर्ष चरित’ में लिखा है कि हर्ष ने सिन्ध के राजा को पराजित करके उसके प्रदेश को जीत लिया तथा उसकी सम्पत्ति पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु ह्यूनसांग ( Heunsang ) के वृत्तान्त से पता चलता है कि सिन्ध एक स्वतन्त्र राज्य था और हर्ष ने इस पर विजय प्राप्त नहीं की थी।

(9) नेपाल तथा कश्मीर की विजयें ( Conquests of Nepal and Kashmir)

बाणभट्ट लिखता है कि हर्ष ने एक बर्फीले प्रदेश को भी जीता था। कुछ विद्वानों के विचार में यह बर्फीला प्रदेश वास्तव में नेपाल ही था। डॉ० बैजनाथ शर्मा के विचार में नेपाल राज्य हर्ष के साम्राज्य के अधीन राज्यों में से एक था। यह भी कहा जाता है कि हर्ष ने कश्मीर पर भी विजय प्राप्त की थी और वहाँ के शासक से महात्मा बुद्ध का एक स्मारक प्राप्त किया था। परन्तु बहुत-से इतिहासकारों का यह मत है कि नेपाल तथा कश्मीर हर्ष के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं थे।

डॉ० राय चौधरी (Dr. Ray Chaudhry) के अनुसार, “साहित्य में हर्ष का बर्फीले क्षेत्रों की ओर अभियान का वर्णन मिलता है, जहाँ से उसने कर प्राप्त किया। कश्मीर को विजय करके उसने एक दन्त-अवशेष प्राप्त किया और सिन्ध के शासक को उसके राज्य से हटा दिया। परन्तु हम नहीं जानते कि ये घटनाएँ हर्ष के राजकाल में किस समय हुई।”

(10) गंजम विजय (Ganjam Conquests)

हर्ष की उत्तर भारत की अन्तिम विजय गंजम की विजय थी। यह प्रदेश भारत के पूर्वी तट पर स्थित वर्तमान का उड़ीसा प्रदेश ही था जो कोनगोड़ा के नाम से विख्यात था! हर्ष ने इस प्रदेश पर कई आक्रमण किए। आरम्भ में तो हर्ष असफल रहा, किन्तु 643 ई० में उसने गंजम प्रदेश पर पूरी तरह से अधिकार कर लिया |

(11) हर्ष के विदेशों से सम्बन्ध (Harsha’s Foreigns Relations )

हर्ष ने चीन और ईरान के साथ मित्रता स्थापित की थी। उसने चीन में अपना राजदूत भी भेजा था। चीन से भी हर्ष के दरबार में अनेक राजदूत आए थे। हर्ष और ईरान का शासक भी आपस में समय-समय पर एक-दूसरे को उपहार भेजते थे।

(12) हर्ष का साम्राज्य ( Harsha’s Empire )

लगभग सारा उत्तरी भारत हर्ष के अधीन था। उसका साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में पंजाब के पूर्वी भाग तक विस्तृत था। इस विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नीज थी। इस प्रकार हर्ष ने लगभग समूचे उत्तरी भारत के बर्फीले पहाड़ों से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पूर्व में गंजम से लेकर पश्चिम में वल्लभि तक को जीता।

क्या हर्ष एक महान विजेता था?

लेकिन इतिहासकारों में उसकी विजयों को लेकर मतभेद है | अनेक ऐतिहासिक और मानते हैं कि हर्ष कोई महान् विजेता नहीं था। उसकी सभी विजयें अधूरी या निरर्थक थीं। कन्नौज उसे बिना युद्ध किए ही मिल गया। बंगाल विजय के लिए उसे कामरूप के राजा से सहायता लेनी पड़ीथी जबकि मालवा और गंजम महत्वपूर्ण विजयें नहीं थीं। वल्लभि को जीतकर उसे वापस लौटाना पड़ा। सिन्ध, कश्मीर और नेपाल की विजयों को इतिहासकार सच नहीं मानते ; उनका मानना है कि यह स्वतंत्र राज्य थे | दक्षिण के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को बुरी तरह पराजित किया | यहाँ तक कि उसे उत्तरी भारत का एकछत्र स्वामी भी नहीं कहा जा सकता। उत्तरी भारत में भी अनेक राज्य स्वतन्त्र थे। परन्तु उसकी कठिन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसे मध्यम श्रेणी का विजेता अवश्य कहा जा सकता है।

(ख) साहित्य तथा शिक्षा (Literature and Education)

हर्ष एक विजेता ही नहीं वरन एक साहित्य-प्रेमी, शिक्षा-प्रेमी और धार्मिक व्यक्ति के रूप में भी विश्वविख्यात है। उसने इन क्षेत्रों में जो उपलब्धियाँ प्राप्त कीं, उसे निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है —

साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में (In field of Literature and Education)

हर्ष एक महान् विद्वान एवं विद्या-प्रेमी था। उसके विषय में कहा गया है, “वह कलम का भी उतना ही धनी था जितना कि तलवार का”। उसने ‘रत्नावली’, ‘नागानन्द’ व प्रियदर्शिका’ जैसे नाटक लिखे, जिनके कारण उसका नाम प्रसिद्ध लेखकों में गिना जाता है। हर्ष के राजकवि बाणभट्ट (Banbhatta) के अनुसार, “वह काव्य-शास्त्र की प्रतिभा से परिपूर्ण था।” इसके अतिरिक्त कई विद्वानों के अनुसार हर्ष ने व्याकरण पर भी एक ग्रन्थ की रचना की थी | हर्ष स्वयं तो विद्वान था ही, उसकी राजसभा में भी विद्वान विद्यमान थे, जिनमें सबसे प्रसिद्ध बाणभट्ट था। बाणभट्ट ने न केवल ‘हर्ष-चरित’ नामक ग्रन्थ ही लिखा बल्कि ‘कादम्बरी’ नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक भी लिखी। इसके अतिरिक्त मतंग, भर्तृहरि आदि कई प्रसिद्ध विद्वान् उसके दरबार में थे। ह्यूनसांग के अनुसार हर्ष ने अपनी आय का एक भाग केवल विद्वानों को बाँटने के लिए ही नियत कर रखा था। हर्ष ने नालन्दा विश्वविद्यालय की भी उदार हृदय से मदद की थी जिसका परिणाम यह हुआ कि यह विश्वविद्यालय विश्व-प्रसिद्ध विश्वविद्यालय बन गया। नालन्दा विश्वविद्यालय के ऊँचे-ऊँचे भवन, वाद-विवाद द्वारा दी जाने वाली शिक्षा, इसका समृद्ध पाठ्यक्रम आदि नालंदा विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ बनाते थे | बौद्ध धर्म कर साथ-साथ सम्पूर्ण भारत के लिए गौरव का विषय था।

हर्ष की साहित्यिक कृतियाँ (Literary works of Harsha)

जैसे कि पहले कहा जा चुका है कि हर्ष तलवार की भाँति कलम का भी धनी था। जहाँ एक ओर उसने अपनी तलवार के बल पर एक विशाल भू-भाग को जीतकर अपने राज्य का अंग बनाया, वहीं दूसरी ओर उसने साहित्य-साधना भी की। उसने ‘रत्नावली’, ‘नागानन्द’ तथा ‘प्रियदर्शिका’ नामक तीन नाटकों की रचना की। ये संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं जो आज भी संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधि हैं |

बाणभट्ट (Bannbhatt) के अनुसार, “हर्ष ज्ञान का भण्डार था तथा काव्य-कला में काफी प्रवीण था।” जयदेव ने तो उसकी तुलना महाकवि कालिदास तथा भास से की है। हर्ष का दरबारी कवि बाणभट्ट भी एक महान विद्वान था। उसने ‘हर्ष चरित’ नामक ग्रन्थ की रचना की। कादंबरी भी उसकी प्रसिद्ध रचना थी | इसके अतिरिक्त जयसेन, भर्तृहरि तथा दिवाकर उसके दरबार के प्रसिद्ध कवि थे

(ग) हर्ष के धार्मिक कार्य (Religious Works of Harsha )

हर्ष ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया। उसने धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई। उसने धार्मिक सभाओं का आयोजन किया। आरम्भ में वह हिन्दू धर्म का अनुयायी था परन्तु बाद में वह दिवाकर के प्रभाव में आ गया और उसने हीनयान बौद्ध शाखा को अपनाया। कुछ समय पश्चात् वह ह्यूनसांग से प्रभावित होकर महायान बौद्ध शाखा का अनुयायी बन गया। हर्ष ने अपने राज्य में पशु-वध निषेध कर दिया। उसने बौद्ध भिक्षुओं की दिल खोलकर आर्थिक सहायता की। उसने अनेक बौद्ध मठ बनवाए और पुराने मठों की मुरम्मत करवाई। उसने चरित्रहीन भिक्षुओं को दण्ड दिया और शुद्ध आचरण वालों को पुरस्कृत किया। उसने ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को दान दिया। प्रयाग सभा में उसने बुद्ध, सूर्य और शिव की उपासना की। सरकारी नौकरियों में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं किया जाता था। महाकवि बाणभट्ट भी स्वयं एक ब्राह्मण था। माँस खाने वालों
को कभी माफ नहीं किया जाता था। ह्यूनसांग (Heunsang) के अनुसार, “उसने क्षमा की सम्भावना के बिना प्राण-दण्ड के भय से पंच प्रदेश में किसी भी जीवित प्राणी की हत्या अथवा माँस का भक्ष्य पदार्थ के रूप में उपयोग करना वर्जित कर दिया था।” धार्मिक उन्नति के लिए हर्ष द्वारा कन्नौज सभा तथा प्रयाग की सभा के उल्लेख भी महत्वपूर्ण हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं —

कन्नौज सभा (Kannauj Congregation)

हर्ष ने कन्नौज की सभा महायान शाखा का प्रचार करने के लिए बुलाई। ह्यूनसांग ने इसकी अध्यक्षता की। वहाँ सभी धर्मों के अनुयायियों को बुलाया गया। इसमें लगभग बीस राजाओं ने भाग लिया। इस सभा में नालन्दा से विद्यार्थी, बौद्ध भिक्षु और ब्राह्मण भी उपस्थित हुए। यह सभा 23 दिन तक चली। सभा के वाद-विवाद में भाग लिया। इस सभा में ह्यूनसांग को विजेता घोषित किया गया।

प्रयाग-सभा (Prayag Congregation)

हर्ष एक महान दानी था। वह हर पाँच वर्ष के बाद दान देने के लिए एक सभा बुलाया करता था। 644 ई० की प्रयाग सभा में 20 राजाओं और लगभग 5 लाख लोगों ने भाग लिया। इस सभा का अध्यक्ष भी ह्यूनसांग था। यह सभा 72 दिन तक चली। इस सभा में बुद्ध, सूर्य और शिव की उपासना की गई। बौद्ध विद्वानों को 100 स्वर्ण-मुद्राएं (प्रति व्यक्ति) दी गईं। इस सभा में ब्राह्मणों, गरीबों और भिखारियों सब कुछ दान कर दिया गया। महान् दानी हर्ष ने अपने निजी वस्त्र और आभूषण भी दान कर दिए | इतिहास में हर्ष के समान किसी अन्य दानी व्यक्ति का उदाहरण नहीं मिलता। उसने अपनी बहन राज्यश्री की साड़ी का आधा भाग लेकर अपने शरीर को ढका |

डॉ० राधाकुमुद मुखर्जी (Dr. Radha Kumud Mukherjee) के अनुसार, “प्रयाग की सभा में इतनी धनराशि दान में दी गई, जितनी कि विश्व में कभी भी और कहीं भी किसी राजा ने नहीं दी होगी।”

इस प्रकार हर्ष युद्ध और शान्ति दोनों में महान था। उसने एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार की स्थापना की। वह साहित्य और कला का संरक्षक था। वह महान दानी था। उसके शासनकाल में जनता प्रसन्न थी | लोगों पर करों का बोझ कम था | हर क्षेत्र में खुशहाली थी |

भारतीय इतिहास में हर्ष का स्थान

भारतीय इतिहास में हर्ष का एक महत्वपूर्ण स्थान है | अशोक, समुद्रगुप्त और अकबर जैसे महान शासकों में उसकी गिनती होती है | सम्राट हर्षवर्धन समुद्रगुप्त की भांति महान विजेता और अशोक की तरह महान धार्मिक गुणों से युक्त था | अपने शासनकाल के आरंभिक वर्षों में वह समुद्रगुप्त की भांति उत्तर भारत के अधिकांश भागों पर विजय प्राप्त करता है तो अपने शासनकाल के उत्तरार्ध में वह सम्राट अशोक की भांति विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों और सम्मेलनों का आयोजन कर प्रजा के सुख व शांति का प्रयास करता है |

प्रोo राधा कुमुद मुखर्जी ने इस विषय में लिखा है — “हर्ष के चरित्र में अशोक और समुद्रगुप्त दोनों के गुणों का मिश्रण था |”

लेकिन अनेक इतिहासकार इस बात का खंडन करते हैं | उनका मानना है कि सम्राट हर्षवर्धन न तो धार्मिक क्षेत्र में अशोक की बराबरी कर सका और न ही युद्ध और पराक्रम के क्षेत्र में सम्राट समुद्रगुप्त की | भले ही वह समुद्रगुप्त आर अशोक की भांति सफल नहीं हो पाया लेकिन उसमें इन दोनों महान शासकों के गुणों का अंश अवश्य था | हर्ष ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | वह अंतिम हिंदू शासक था जिसने लगभग संपूर्ण उतरी भारत पर शासन किया | नि:संदेह हर्ष का भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है |

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