‘मलबे का मालिक’ कहानी मोहन राकेश द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कहानी है | यह कहानी भारत-पाक विभाजन की त्रासदी का मार्मिक वर्णन करती है | प्रस्तुत कहानी तात्कालिक जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति कही जा सकती है | प्रस्तुत कहानी जहां एक तरफ भारत विभाजन के समय फैली सांप्रदायिक हिंसा और संवेदनहीनता का वर्णन करती है वहीं दूसरी तरफ लोगों के हृदय में विद्यमान मानवता के तत्त्व की झलक भी दिखला जाती है |
कहानी में दिखाया गया है कि किस प्रकार भारत-विभाजन के समय हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे | कुछ लोग ऐसे भी थे जो इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर अमानवीय कृत्य कर रहे थे | रक्खा पहलवान गनी मियां के नए मकान को हड़पने के लिए उसके पूरे परिवार के सदस्यों की हत्या कर देता है | लेकिन इससे पहले कि वह उस मकान पर अपना कब्जा करता किसी ने उस मकान को आग लगा दी और वह मकान मलबे के ढेर में तबदील हो गया |
इस घटना के लगभग 7 वर्ष बाद जब गनी मियां पाकिस्तान से अमृतसर आता है तो अपने मकान के मलबे को देखकर अपार दुःख से भर जाता है | वह रक्खे पहलवान से मिलता है, उसका कुशल क्षेम पूछता है और उसे दुआएं देता हुआ चला जाता | उसके मन में पूरे मोहल्ले के प्रति प्रेम की भावना है |
मनोरी तथा उस मुहल्ले के बहुत से महिला-पुरुष गनी मियां के प्रति सहानुभूति के भाव से भर जाते हैं | कहानी की विशेषता यह है कि विभाजन के 7 वर्ष के बाद भी हिंदू-मुसलमानों के बीच में नफ़रत की भावना कम नहीं हुई, जो कहानी को यथार्थ के करीब ले जाती है | कहानीकार यदि चाहता तो सुदर्शन द्वारा रचित प्रसिद्ध कहानी ‘हार की जीत’ की भांति लोगों का हृदय परिवर्तन दिखा सकता था लेकिन वह ऐसा नहीं करता | कहानी के आरंभ में ही हम देखते हैं कि मुसलमानों की टोली को देखकर लोग आशंकित हो जाते हैं | जब गनी मियां मोहल्ले में प्रवेश करता है तो औरतें अपने बच्चों को लेकर घर के अंदर घुस जाती हैं | गनी मियां के उदार चरित्र को देखने के उपरांत भी गली मोहल्ले के लोग स्पष्ट रूप से कहीं भी उसके लिए खेद प्रकट करते हुए दिखाई नहीं देते | यहां तक कि रक्खा पहलवान भी अपने अपराधों के लिए क्षमा-याचना नहीं करता | लेकिन अंदर ही अंदर ग्लानि का अनुभव अवश्य करता है |
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ‘मलबे का मालिक’ कहानी एक यथार्थवादी कहानी है जिसमें आदर्श की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है | भले ही रक्खा पहलवान अपने अपराधों की क्षमा-याचना नहीं करता लेकिन बलशाली होते हुए भी बूढ़े गनी मियाँ के सामने वह निर्बल और अशक्त अनुभव करता है | भले ही गली-मोहल्ले के लोग स्पष्ट रूप से गनी मियां का साथ नहीं देते और न ही स्पष्ट रूप से उसके लिए खेद प्रकट करते हैं लेकिन रक्खा पहलवान के प्रति अनादर का भाव अवश्य रखते हैं | यही कारण है कि कहानी के अंत में रक्खा पहलवान को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है जो अपना सब कुछ खो बैठता है और केवल एक मलबे का मालिक बन कर रह जाता है |
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