भारतीय सिनेमा का एक नया अध्याय है ‘पठान’

पठान फ़िल्म ने रिलीज होते ही बॉलीवुड के अनेक रिकॉर्ड तोड़ दिए | पहले दिन पठान ने भारत में 57 करोड़ और वर्ल्डवाइड 106 करोड़ कमाई की है | ये अभी तक बॉलीवुड ही नहीं बल्कि हिंदी फिल्मों का एक रिकॉर्ड है | पठान पहली बॉलीवुड फ़िल्म है जो दो दिन में ही सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई |

कमाई से परे अगर फ़िल्म की समीक्षा की जाये तो सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि तरण आदर्श और कोमल नाहटा जैसे समीक्षक पठान को पाँच में से साढ़े चार अंक देते हैं | जहाँ तक मुझे याद है ये वही समीक्षक हैं जो हम आपके हैं कौन, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, दिल तो पागल है और कुछ कुछ होता जैसी सर्वकालिक सफलतम फिल्मों को भी तीन, साढ़े तीन अंक से अधिक नहीं देते थे | के आर के यानी कमाल रशीद खान जो स्वघोषित समीक्षक हैं और अक्सर बॉलीवुड फिल्मों की किरकिरी के लिए जाने जाते हैं,उसने भी पठान की जमकर तारीफ़ की है |

फ़िल्म की सुनियोजित प्रमोशन, समीक्षकों द्वारा दी गई अच्छी रेटिंग, बॉलीवुड और दक्षिण भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेताओं के द्वारा की गई फ़िल्म की तारीफ़ ने फ़िल्म की रिकॉर्ड तोड़ शुरुआत पहली ही सुनिश्चित कर दी थी |

ऐसे में धर्म के नाम पर अपनी रोटियां सेंकने वाले लोगों द्वारा प्रायोजित बायकॉट ने पठान की सफलता को और पुख्ता कर दिया | अगर विरोध दो-तीन दिन और होता रहा तो पठान आल टाइम ग्रॉसर में शीर्ष पर होगी | हो सकता है कि ये गैंग अपने मकसद में कामयाब रहा हो क्योंकि फ़िल्म भले ही कामयाब हो गई लेकिन राजनीतिक ध्रुवीकरण को और अधिक सुदृढ़ कर गई | आजकल प्रत्येक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक घटनाओं के राजनैतिक मायने होते हैं | अगर नहीं भी होते तो उनके द्वारा अपने राजनैतिक हित साधना इन राजनेताओं को खूब आता है | बड़े-बड़े नेताओं द्वारा आम जनता द्वारा भेजी गई असंख्य शिकायतों, रोजगार-शिक्षा जैसी अनेक मांगों को कचरा पेटी में डालकर फ़िल्म के बायकॉट का आह्वान करना किसी भद्दे मजाक से कम नहीं | स्वयं को धर्म-रक्षक कहने वाले गुरुओं के लिए भी पठान फायदे का सौदा रही | इससे उनके भी अनुयायियों की संख्या बढ़ेगी |

चलिए छोड़िये | मुद्दे पर आते हैं | जहाँ तक मेरे फ़िल्म दृष्टिकोण की बात है ; हैरत अंगेज एक्शन से भरपूर यह हॉलीवुडनुमा बॉलीवुड फ़िल्म मुझे अपने नए प्रयास के लिए अच्छी लगी | जिस तरह का प्रयास बॉलीवुड में शान,शालीमार, रा वन, रोबोट और 2.0 में किया गया था यह उन प्रयासों को आगे बढाती है | जिस तकनीकी भव्यता से फ़िल्म को फिल्माया गया है उसके आधार पर पठान को हिंदी फिल्मों के इतिहास का एक नया अध्याय कहा जा सकता है | फ़िल्म में अनेक ऐसे दृश्य हैं जिन्हें देखकर यकीन नहीं होता कि ये बॉलीवुड फ़िल्म है | कहानी में कसावट की कमी जरूर लगती है लेकिन जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, कहानी रफ़्तार पकड़ती है |

प्रेम और देशप्रेम का आधारभूत तत्त्व है – बलिदान | डिम्पल कपाड़िया का किरदार देशभक्ति के इस चिरपरिचित अंदाज को इतने असरदार तरीके से परदे पर जिवंत करता है कि गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति के रंग में रंगे दर्शकों आँखें भर आती हैं | शाहरुख़ का संवाद, “एक सोल्जर यह नहीं पूछता कि देश ने उसके लिए क्या किया, वह पूछता है कि वह देश के लिए क्या कर सकता है |” डिम्पल का बलिदान फ़िल्म में इस संवाद को व्यावहारिक रूप देता है | डिम्पल के बलिदान पर ऑन स्क्रीन किरदारों के साथ-साथ दर्शक भी सेल्यूट करने लगते हैं | डिम्पल कपाड़िया के बाद आशुतोष राणा भी अपनी भूमिका में जमे हैं |

दीपिका पादुकोण हमेशा की भांति सुंदर लगी हैं | एक्शन अवतार में उन्होंने पूरा न्याय किया है | दीपिका का पात्र पठान को हॉलीवुड की जेम्सबॉन्डनुमा फ़िल्म का कलेवर प्रदान करता है | लेकिन एक्शन सीन्स फ़िल्म को जेम्स बॉन्ड फिल्मों से भी बेहतर बनाते हैं |

शाहरुख़ खान ने बढ़ती उम्र और अपनी परम्परागत इमेज दोनों बाधाओं को सफलतापूर्वक तोड़ा है | उन्होंने इस फ़िल्म के लिए इतनी मेहनत की है कि वे कहीं भी अपने सुडौल शरीर के लिए विख्यात जॉन इब्राहिम से उन्नीस नहीं लगते | उनके अभिनय का सबसे सशक्त पहलू उनकी संवाद अदायगी है | कुल मिलाकर वे अपनी भूमिका में जमे हैं |
लेकिन सबसे अधिक प्रभावित जॉन इब्राहिम ने किया है | नकारात्मक भूमिका होने पर भी दर्शकों की कुछ सहानुभूति कुछ समय तक उनके साथ रहती है | शाहरुख़ का उपर्युक्त संवाद और डिम्पल का बलिदान जिम ( जॉन ) के अंत को जस्टिफाई करता है |

फ़िल्म में तार्किक रूप से कुछ कमियाँ अवश्य हैं लेकिन समग्र रूप से पठान एक ऐसी फ़िल्म है जो भारतीय सिनेमा को नई राहें दिखाती है |

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