भारत में कहानी लेखन की परंपरा बहुत पुरानी है | संस्कृत साहित्य कहानियों से भरा पड़ा है लेकिन आधुनिक हिंदी कहानी का आरंभिक बीसवीं सदी के साथ आरंभ होता है |
प्रथम कहानी का प्रश्न
हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर विद्वानों में मतभेद है | कुछ विद्वान इंशा अल्लाह खां की कहानी रानी केतकी की कहानी को हिंदी की प्रथम कहानी मानते हैं | राजा शिवप्रसाद की राजा भोज का सपना और भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत अपूर्व स्वप्न कहानियां भी आरंभिक कहानियां हैं | कुछ विद्वानों ने बंग महिला की दुलाईवाली कहानी को हिंदी की पहली कहानी माना है | लेकिन आज अधिकांश विद्वान किशोरी लाल गोस्वामी की कहानी इंदुमती को हिंदी की प्रथम कहानी मानते हैं |
हिंदी कहानी के विकास को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है :
(1) प्रेमचंद पूर्व युग
(2) प्रेमचंद युग
(3) प्रेमचंदोत्तर युग
(4) स्वातंत्र्योत्तर युग
(1) प्रेमचंद पूर्व युग
प्रेमचंद पूर्व युग में सभी आरंभिक कहानियां आती हैं | इंशा अल्लाह खां की रानी केतकी की कहानी, राजा शिवप्रसाद की राजा भोज का सपना, भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत अपूर्व स्वप्न, बंग महिला की दुलाईवाली रामचंद्र शुक्ल की ग्यारह वर्ष का समय तथा किशोरी लाल गोस्वामी की इंदुमति किस युग की प्रमुख कहानियां हैं |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कहानी मानी जाती है | इसमें प्रेम के उदात्त स्वरूप का वर्णन है |
इसी युग की अधिकांश कहानियों की भाषा में प्रौढ़ता का अभाव है |
(2)प्रेमचंद युग
प्रेमचंद युग उस युग को कहा गया है जब मुंशी प्रेमचंद ने प्रौढ़ कहानियां लिखी | मुंशी प्रेमचंद इस युग के सबसे बड़े कहानीकार हैं | उन्हें कहानी सम्राट भी कहा जाता है | उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियां लिखी जो मानसरोवर के 8 भागों में संकलित हैं | दूध का दाम, सद्गति, पूस की रात, नमक का दारोगा, कफन आदि उनकी प्रमुख कहानियां हैं |
जयशंकर प्रसाद भी इस युग के अन्य प्रमुख कहानीकार हैं | उन्होंने 60 के लगभग कहानियां लिखी | आंधी, आकाशदीप, पुरस्कार और गुंडा उनकी प्रमुख कहानियां हैं |
इस युग के अन्य प्रमुख कहानीकारों में विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक, सुदर्शन, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, जैनेंद्र और यशपाल प्रमुख हैं |
इस युग में सामाजिक, पारिवारिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और मनोवैज्ञानिक कहानियां लिखी गई |
(3) प्रेमचंदोत्तर युग
प्रेमचंदोत्तर युग में हिंदी कहानी में अनेक परिवर्तन हुए | ऐसी युग में मुख्य रूप से दो प्रकार की कहानियां लिखी गई – (क ) मनोवैज्ञानिक व मनोविश्लेषणात्मक कहानियाँ, (ख ) सामाजिक कहानियाँ
(क ) मनोवैज्ञानिक व मनोविश्लेषणात्मक कहानियाँ
मनोवैज्ञानिक और मनोविश्लेषणात्मक कहानियों के प्रमुख कहानीकार जैनेन्द्र कुमार, इलाचंद्र जोशी तथा अज्ञेय जी हैं |
जैनेंद्र कुमार ने इस धारा को सर्वाधिक पुष्ट किया | पाजेब, एक रात और नीलम देश की राजकन्या उनकी प्रमुख कहानियां हैं |
अज्ञेय ने मनोवैज्ञानिक और मनोविश्लेषणत्मक कहानियों की धारा को आगे बढ़ाया | शरणार्थी और अमर वल्लरी अज्ञेय की प्रमुख कहानियां है |
इन कहानीकारों ने अपनी कहानियों में कथा की अपेक्षा पात्रों को अधिक महत्व दिया है | इन्होंने बाहरी कठिनाइयों की अपेक्षा पात्रों के अंतः संघर्ष को दिखाया है |
(ख ) सामाजिक कहानियाँ
सामाजिक कहानियों में यशपाल का नाम प्रमुख है | वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित कहानीकार हैं | परदा, फूलों का कुर्ता उनकी प्रमुख कहानियां हैं |
उपेंद्रनाथ अश्क भी सामाजिक कहानीकार माने जाते हैं | पिंजरा, मोती और चट्टान उनकी प्रमुख कहानियां हैं |
इन कहानीकारों ने अपनी कहानियों में समाज का यथार्थ चित्रण किया है | वे सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों पर कड़े प्रहार करते हैं |
इसके अतिरिक्त इस युग में आंचलिक कहानियां भी लिखी गई | फणीश्वर नाथ रेणु , शिवपूजन सहाय, नागार्जुन, मार्कण्डेय आदि आंचलिक कहानीकार हैं |
(4) स्वातन्त्र्योत्तर कहानियाँ
स्वातन्त्र्योत्तर कहानीकारों की कहानियों में आशा और निराशा दोनों स्वर मिलते हैं | कुछ कहानीकारों ने विभाजन की त्रासदी का वर्णन किया है तो कुछ कहानीकारों ने स्वतंत्रता से उत्पन्न आशा का | अनेक कहानियों में आधुनिकता से उपजी नई समस्याओं का वर्णन भी है | यही कारण है कि इस युग में अनेक कहानी आंदोलन चले | नई कहानी, सचेतन कहानी, समानान्तर कहानी, सक्रिय कहानी आदि |
मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, अमरकांत, महीप सिँह, केदारनाथ सिंह, काशीनाथ, सिंह, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा, शिवानी आदि इस युग के प्रमुख कहानीकार हैं |
अतः स्पष्ट है कि हिंदी कहानी की परंपरा निरंतर प्रगतिशील है | हिंदी कहानी में समय तथा बदलती परिस्थितियों के अनुसार निरंतर परिवर्तन आ रहे हैं | यह परिवर्तन भाषा तथा शिल्प दोनों में दिखाई देता है |
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