हिंदी साहित्य के इतिहास में संवत 1375 से संवत 1700 तक का काल भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है | किसी भी काल की परिस्थितियां उसके साहित्य को प्रभावित करती हैं | भक्तिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रवृत्तियों का वर्णन इस प्रकार है :
(1) राजनीतिक परिस्थितियाँ
राजनीतिक दृष्टि से भक्ति काल को दो भागों में बांटा जा सकता है| पहले भाग में दिल्ली पर तुगलक और लोधी वंश के शासकों ने शासन किया और दूसरे भाग में मुगल वंश के शासकों ने | पहले भाग के अंतर्गत शासक अत्याचारी, सत्तालोलुप और घोर सांप्रदायिक थे जबकि दूसरे भाग के शासकों में अपेक्षाकृत रूप से कुछ उदारवादी दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं ; विशेषत: अकबर के शासनकाल में सांप्रदायिक सद्भाव अपने चरम पर था | मोहम्मद गौरी द्वारा जीते गए प्रदेशों पर बलबन, अलाउद्दीन खिलजी आदि ने तलवार के बल पर अपना राज्य स्थापित किया | उन्होंने दक्षिण भारत में भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया | अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ आर्थिक व प्रशासनिक सुधार अवश्य किए लेकिन उनका प्रभाव केवल राजधानी के आसपास के क्षेत्रों तक ही रहा | अन्य शासक केवल युद्ध और लूटपाट में लगे रहे |
(2) सामाजिक परिस्थितियाँ
इस काल में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई | परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम जनता के बीच हर क्षेत्र में आदान-प्रदान होने लगा | आर्थिक दृष्टि से हिंदुओं की स्थिति अधिक अच्छी नहीं थी | मुस्लिम शासक हिंदुओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाते थे | लेकिन शेरशाह तथा मुगल शासकों के युग में हिंदू-मुसलमानों में किये जाने वाले भेदभाव में कमी आई | हिंदू-मुसलमानों में परस्पर विवाहों के उदाहरण भी मिलते हैं | कश्मीर के सुल्तान शाहमीर ने अपनी लड़कियों का विवाह हिंदू सामंतों से किया और लड़के का विवाह हिंदू सेनापति की लड़की से | अधिकांश मुस्लिम शासक एवं अधिकारी रसिक प्रवृत्ति के थे और उनकी रसिकता से बचने के लिए हिंदू समाज में पर्दा प्रथा और बाल विवाह का चलन जोर पकड़ने लगा | ऐसा नहीं कि यह बुराइयां केवल इस युग में ही भारत में आयी ; जाति प्रथा और सती प्रथा जैसी बुराइयां भारत में बहुत पहले से थी | मुसलमान शासकों के कारण हिंदू समाज में व्याप्त जाति प्रथा के बंधन अवश्य ढीले होने लगे और हिंदू धर्म में व्याप्त छुआछूत को दूर करना हिंदू धर्म की मजबूरी बन गई | लेकिन अनेक क्षेत्रों में लंबे समय तक यह भेदभाव बना रहा कुछ स्थानों पर हिंदू धर्म-स्थलों को सभी जातियों के लोगों के लिए खोल दिया गया परंतु ब्राह्मणों का वर्चस्व बना रहा |
(3) धार्मिक परिस्थितियाँ
इस काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति भारत में लोगों की रुचि कम होने लगी थी | हिंदू धर्म भी निरंतर पतन की ओर अग्रसर था | सभी हिंदू संस्थाएं शोषण तंत्र बन कर रह गई थी | धर्म का प्रश्रय लेकर कुछ विशेष जातियां अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी | सभी धार्मिक संस्थाओं के मुखिया ब्राह्मण थे | अन्य जातियों के लोग केवल अनुयायी बन सकते थे ; शूद्रों को वह अधिकार भी नहीं था | हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले लोग भी धीरे-धीरे तर्क के आधार पर हिंदू धर्म की कमियां अनुभव करने लगे थे | मिथ्या बाह्य आडंबर, जंत्र-मंत्र, अवतारवाद आदि के कारण धर्म के प्रति लोगों की एक नई दृष्टि विकसित होने लगी थी | परिणामस्वरूप अपने-अपने विश्वासों के आधार पर इस काल में राम काव्य, कृष्ण काव्य तथा संत काव्य धारा का विकास हुआ | मुस्लिम शासकों के प्रभाव के कारण सूफी काव्य धारा विकसित हुई |
(4) सांस्कृतिक परिस्थितियाँ
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि यह काल मुस्लिम शासकों का काल था | मुस्लिम शासकों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के शासक हुए | कुछ शासक जहां केवल भोग विलास में लिप्त रहे वहीं शेरशाह और अकबर जैसे शासकों ने अनेक प्रजा हितार्थ कार्य किये | शाहजहां और जहांगीर कला के क्षेत्र में विशेष रूचि रखते थे | इन शासकों के प्रभाव के कारण भारतीय जनसामान्य के बीच इस्लामिक कला और संस्कृति का प्रभाव दृष्टिगत होने लगा | संगीत, चित्रकला और वास्तुकला के क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों के समन्वय की झलक मिलती है | अनेक ऐसे रीति-रिवाजों का चलन आरंभ होने लगा जो भारतीय संस्कृति के लिए सर्वथा नवीन थे |
(5) साहित्यिक परिस्थितियाँ
इस काल में राजभाषा फारसी थी | अतः फ़ारसी भाषा में पर्याप्त मात्रा में पुस्तकें लिखी गई | लेकिन भारतीय हिंदुओं का उच्च वर्ग संस्कृत में अपने विचार प्रकट करता रहा | जहां संस्कृत के अनेक मूल ग्रंथ लिखे गए वहीं संस्कृत के अनेक ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद भी हुआ | भारतीय भाषाओं पर भी फारसी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा | अनेक फारसी शब्द तथा फारसी लेखन-शैली भारतीय हिंदी साहित्य का अंश बन गई | भक्ति आंदोलन के उदय के कारण ब्रज, अवधी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का विकास होने लगा | मुस्लिम शासकों के प्रभाव के कारण हिंदी में सूफी काव्य धारा का चलन हुआ | संत कवियों ने भी इस्लाम की अनेक मान्यताओं को अपनी वाणी में स्थान दिया | इस काल में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार का काव्य लिखा गया | इस काल में जहां धर्म और समाज में व्याप्त विभिन्न बुराइयों का विरोध किया गया वहीं समाज और धर्म के वास्तविक स्वरूप को निर्धारित करने का प्रयास किया है | इनके द्वारा प्रतिपादित धर्म-विषयक मार्ग भले ही पूर्णत: दोषरहित न हो लेकिन आज भी स्वीकार्य है क्योंकि भक्तिकालीन साहित्य विशेषत: संत काव्य एक ऐसे निर्गुण-निराकार ईश्वर की ओर संकेत करता है जो सर्वव्यापक एवं सार्वभौमिक है |
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