संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( मैथिलीशरण गुप्त ) : सार /कथ्य / प्रतिपाद्य

‘सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया’ प्रस्तुत कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य ‘साकेत’ के आठवें सर्ग का अंश है। श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण चित्रकूट में ठहरे हुए हैं। सीता जी अपनी पर्णकुटी के आस-पास के पेड़-पौधों को पानी दे रही हैं। श्रीराम ने उस समय सीता को अपने इस संसार में आने के उद्देश्य के विषय में बताया है। श्रीराम सीता को बताते हैं कि व्यक्ति को समाज के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देना चाहिए। वे शासक के कर्तव्य के विषय में कहते हैं कि उसे सबकी सुरक्षा व सुविधा का ध्यान रखना चाहिए। वे कहते हैं कि मैं भारतवासियों को यही बताने आया हूँ कि जन-सुख के सामने, धन तुच्छ वस्तु है। मैंने इस संसार में दीन-दुःखी, विवश, व्याकुल और शापित लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए अवतार लिया है। मैं सबको भय-रहित करने आया हूँ। मैं मर्यादा की रक्षा करने के लिए यहाँ आया हूँ। मैं यहाँ मनुष्यत्व का नाटक खेलने के लिए अवतरित हुआ हूँ। मैं दीन-दुखियों का सहारा बनने के लिए यहाँ आया हूँ। मैं संसार को तोड़ने नहीं, अपितु जोड़ने आया हूँ। संसार रूपी उपवन में जो फालतू झंखाड़ उग आए हैं, मैं उन्हें नष्ट करने आया हूँ। इस संसार में नवीन वैभवता का संचार करना और मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति कराना ही मेरा लक्ष्य है। वे कहते हैं कि मैं यहाँ स्वर्ग का संदेश नहीं देने आया, अपितु इस धरा को ही स्वर्ग बनाने आया हूँ।

इसके अतिरिक्त श्री राम भारत भूमि के प्रति अपने स्नेही को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इस पवित्र भूमि का आकर्षण ही कुछ ऐसा हैं कि अपनी पुण्य कर्मों के फल के रूप में उन्हें यहां मानव रूप में जन्म प्राप्त हुआ |

अतः इस कविता का मूल भाव एक शासक का जनता के प्रति उत्तरदायित्वों को दर्शाना है | एक शासक का मुख्य दायित्व प्रजा की रक्षा करना, राज्य में सुख-शांति की स्थापना करना, दीन-दुःखियों की सेवा करना, निर्बल को अभयता प्रदान करना व जन-कल्याण को सर्वोपरि मानना होना चाहिए |

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संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( Sandesh Yahan Nahin Main Swarg Ka Laya ) : मैथिलीशरण गुप्त

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