वाक्य में प्रयोग करते समय जिन शब्दों में कोई विकार या या परिवर्तन ना हो उन शब्दों को अविकारी शब्द कहते हैं | जैसे — और, तथा, किन्तु, ही, भी, तो, तक आदि | अविकारी शब्दों को ‘अव्यय’ भी कहा जाता है |
अविकारी शब्दों के भेद
अविकारी ( अव्यय ) शब्दों के पाँच भेद हैं —
(क ) क्रिया विशेषण
(ख ) समुच्चयबोधक
(ग ) संबंधबोधक
(घ ) विस्मयादिबोधक
(ङ ) निपात
(क ) क्रिया विशेषण
जो शब्द क्रिया की विशेषता बताएं उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं ; जैसे — धीरे-धीरे, तेज, अंदर, आज, कल आदि |
क्रिया विशेषण के भेद
क्रिया विशेषण के चार भेद हैं — (i) रीतिवाचक क्रिया विशेषण, (ii) स्थानवाचक क्रिया विशेषण, (iii) कालवाचक क्रिया विशेषण, (iv) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण |
(i) रीतिवाचक क्रिया विशेषण — जिन शब्दों से क्रिया के करने के तरीके के बारे में पता चले उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं ; जैसे धीरे-धीरे, तेज |
(ii) स्थानवाचक क्रिया विशेषण — जिन शब्दों से क्रिया की स्थिति या दिशा का बोध हो उन्हें स्थान वाचक क्रिया विशेषण कहते हैं ; जैसे — ईधर, दाएँ, ऊपर आदि |
(iii) कालवाचक क्रिया विशेषण — जिन शब्दों से क्रिया के समय का बोध हो उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं ; जैसे — आज, कल, अक्सर, प्रायः, चार घंटे आदि |
(iv ) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण — जिन शब्दों से क्रिया की मात्रा या उसके परिमाण का बोध हो उन्हें परिमाण वाचक क्रिया विशेषण कहते हैं ; जैसे — कम, अधिक, तनिक, खूब आदि |
(ख ) समुच्चयबोधक
जो शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर जोड़ने का कार्य करते हैं उन्हें समुच्चयबोधक या योजक शब्द कहते हैं | जैसे — और, परन्तु, या, इसलिए आदि |
(ग ) संबंधबोधक
वे अविकारी शब्द जो वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम के साथ अन्य पदों के संबंध को प्रकट करते हैं उन्हें संबंधबोधक कहते हैं ; जैसे — समान, तरह, समेत, अतिरिक्त आदि |
(घ ) विस्मयादिबोधक
जो अविकारी शब्द वाक्य में विस्मय, हर्ष, शोक, दुःख, घृणा आदि के भाव को व्यक्त करें, विस्मयादिबोधक कहते हैं ; जैसे — वाह, आह, ओह, छी: आदि |
(ङ ) निपात
वे अव्यय शब्द जो किसी वाक्य में किसी पद के बाद लगकर उसमें एक विशेष बल उत्पन्न करते हैं उसे निपात कहते हैं ; जैसे — ही, भी, तो, नहीं, तक आदि |
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