विकारी शब्द का अर्थ
वाक्य में प्रयोग करते समय जिन शब्दों में कुछ परिवर्तन हो जाता है उन्हें विकारी शब्द कहते हैं ; जैसे – काला, नदी, पंखा आदि |
विकारी शब्द के भेद ( Vikari shabd Ke Bhed )
विकारी शब्द मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं : (1) संज्ञा, (2) सर्वनाम, (3) विशेषण, (4) क्रिया |
(1) संज्ञा : जिन शब्दों से किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, दशा आदि का बोध हो, उन्हें संज्ञा कहते हैं ; जैसे – कुर्सी, मोहन, दिल्ली, बुढ़ापा आदि |
संज्ञा के मुख्यत: तीन भेद हैं : (क ) व्यक्तिवाचक संज्ञा, (ख ) जातिवाचक संज्ञा, (ग ) भाववाचक संज्ञा |
(क ) व्यक्तिवाचक संज्ञा : जिस शब्द से किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि का बहुत हो उसे व्यक्ति वाचक संज्ञा कहते हैं ; जैसे – मोहन, दिल्ली, हिमालय आदि |
(ख ) जातिवाचक संज्ञा : जिस शब्द से किसी जीव, वस्तु, स्थान आदि की संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं ; जैसे – गाय, नदी, शहर आदि |
समूहवाचक संज्ञा और द्रव्यवाचक संज्ञा भी जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत आते हैं |
जिस शब्द से किसी समूह या समुदाय का बोध हो उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं ; जैसे – सेना, कक्षा, परिवार, मेला आदि |
जिस शब्द से ठोस, तरल, गैस आदि द्रव्य का बोध हो, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं ; जैसे – लकड़ी, लोहा, ऑक्सीजन, पानी, दूध, तेल आदि |
(ग ) भाववाचक संज्ञा : जिस शब्द से किसी के गुण, दोष स्वभाव, दशा आदि का बोध हो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं ; जैसे – मिठास, बुढ़ापा, सुंदरता, उदारता आदि |
(2) सर्वनाम
जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें सर्वनाम कहते हैं | जैसे – मैं, तुम, वह, कौन आदि |
सर्वनाम के छः भेद हैं – (क ) पुरुषवाचक सर्वनाम, (ख ) निश्चयवाचक सर्वनाम, (ग ) अनिश्चयवाचक सर्वनाम, (घ ) प्रश्नवाचक सर्वनाम, (ङ ) सम्बन्धवाचक सर्वनाम, (च ) निजवाचक सर्वनाम |
(क ) पुरुषवाचक सर्वनाम : बोलने वाले, लिखने वाले, सुनने वाले या किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं | जैसे – मैं, तुम, वह आदि |
पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं — (i) उत्तम पुरुषवाचक, (ii) माध्यम पुरुषवाचक, (iii) अन्य पुरुषवाचक |
(i) उत्तम पुरुषवाचक : बोलने वाला या लिखने वाला जब अपने से संबंध रखने वाले सर्वनाम शब्दों का प्रयोग करता है तो वह उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते हैं | जैसे — मैं, मेरा, मेरे, हम, हमारा, हमारे आदि |
(ii) माध्यम पुरुषवाचक — सुनने वाले के नाम के स्थान पर जो सर्वनाम प्रयुक्त होते हैं उन्हें मध्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — तू, तुम, तुम्हारा, तुम्हारे आदि |
(iii) अन्य पुरुषवाचक : बोलने वाले और सुनने वाले के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के नाम के स्थान पर जो सर्वनाम प्रयुक्त होते हैं उन्हें अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — वह, वे, उनका, उनके आदि |
(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से किसी विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति का निश्चयात्मक ज्ञान होता है उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — यह, वह, ये, वे आदि |
उदाहरण — (i) यह पुस्तक मेरी है |
(ii) वह लड़का मेरा भाई है |
(ग ) अनिश्चयवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से किसी वस्तु या व्यक्ति का निश्चयात्मक ज्ञान नहीं होता उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — कोई, कुछ आदि |
उदाहरण — (i) कोई आया है | (ii) बाहर कुछ गिरा है |
(घ ) प्रश्नवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि के बारे में किसी प्रश्न का बोध हो उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — कौन, किसे आदि |
उदाहरण — (i) कौन आया है?, (ii) किसे बुला रहे हो?
(ङ) सम्बन्धवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से दो भिन्न बातों के संबंध का ज्ञान हो उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — जो-सो, जैसा-वैसा, जैसी-वैसी आदि |
उदाहरण — (i) जैसी करनी वैसी भरनी |
(ii) जो करेगा सो भरेगा |
(च) निजवाचक सर्वनाम : जब वक्ता या लेखक स्वयं अपने लिए किसी सर्वनाम शब्द का प्रयोग करता है तो उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — खुद, स्वयं, आप, अपना आदि |
उदाहरण — (i) मैं स्वयं इस बात से चिंतित हूँ |
(ii) मैं इसे अपने स्तर पर देखूंगा |
(3) विशेषण
जो शब्द संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता प्रकट करते हैं उन्हें विशेषण कहते हैं ; जैसे काला, चतुर, परिश्रमी, एक किलोग्राम, दो लीटर आदि |
उदाहरण — मोहन बुद्धिमान है | इस वाक्य में मोहन विशेष्य और बुद्धिमान विशेषण है |
विशेषण के चार भेद हैं : (क ) गुणवाचक विशेषण, (ख ) परिमाणवाचक विशेषण, (ग ) संख्यावाचक विशेषण, (घ ) सार्वनामिक विशेषण |
(क ) गुणवाचक विशेषण : जो शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम के किसी गुण का बोध कराएँ उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं ; जैसे — काला, गोरा, नया, कोमल, बड़ा आदि |
उदाहरण — ‘मोहन बुद्धिमान है |’ वाक्य में बुद्धिमान गुणवाचक विशेषण है |
(ख ) परिणामवाचक विशेषण : जिन विशेषण शब्दों से किसी संज्ञा या सर्वनाम के माप-तोल का पता चले, उन्हें परिणामवाचक विशेषण कहते हैं ; जैसे — दो किलोग्राम, तीन मीटर, एक लीटर, कुछ लीटर आदि | यह निश्चित और अनिश्चित दोनों प्रकार के होते हैं |
(ग ) संख्यावाचक विशेषण : जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या संबंधी विशेषता का बोध हो उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ; जैसे — तीन, तीस, सौ, हजार, दर्जन, ग्यारहवां, तीसरा आदि | संख्यावाचक विशेषण भी निश्चित और अनिश्चित दोनों प्रकार के होते हैं |
उदाहरण — (i) कक्षा में चालीस विद्यार्थी हैं |
(ii) रोहण कक्षा में दूसरे स्थान पर रहा |
(iii) कुछ विद्यार्थी मैदान में खेल रहे हैं |
इन वाक्यों में चालीस और दूसरे निश्चयवाचक विशेषण का उदाहरण है जबकि कुछ अनिश्चयवाचक विशेषण का उदाहरण है |
(घ ) सार्वनामिक विशेषण : जो सर्वनाम शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं | इन्हीं संकेतवाचक या निर्देशवाचक विशेषण भी कहते हैं जैसे यह घर, यह कुर्सी, वह लड़का, वे लड़के आदि |
उदाहरण — (i) वह लड़का मेरा भाई है |
(ii) यह घर मोहन का है |
(iii) वे लड़कियां सातवीं कक्षा में पढ़ती हैं |
इन पंक्तियों में वह, यह, वे सार्वनामिक विशेषण है क्योंकि ये शब्द संज्ञा शब्दों से पहले आए हैं
(4) क्रिया
जिन शब्दों से किसी कार्य के करने होने का बोध हो उन्हें क्रिया कहते हैं ; जैसे — उड़ना, खाना, पीना, दौड़ना आदि |
क्रिया के भेद
क्रिया के भेद निम्नलिखित तीन आधार पर किए जा सकते हैं — (क ) कर्म के आधार पर, (ख ) क्रिया की संरचना के आधार पर और (ग ) क्रिया की पूर्णता के आधार पर |
(क ) कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं — (i) अकर्मक क्रिया, (ii) सकर्मक क्रिया |
(i) अकर्मक क्रिया — जिन क्रियाओं के कार्य का फल कर्त्ता में ही पाया जाता है उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं ; जैसे — उड़ना, हंसना, नाचना आदि |
उदाहरण — ‘पक्षी उड़ते हैं |’ वाक्य में उड़ना अकर्मक क्रिया है |
(ii) सकर्मक क्रिया : जिन क्रियो के कार्य का फल कर्म पर पड़ता है उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं ; जैसे – लिखना, खाना, खेलना आदि |
उदाहरण — (i) रेखा पत्र लिख रही है |
(ii) आरव सेब खाता है |
(iii) अर्णव क्रिकेट खेल रहा है |
इन वाक्यों में लिखना, खाना, खेलना आदि सकर्मक क्रिया हैं |
(ख ) क्रिया की संरचना के आधार पर
क्रिया की संरचना के आधार पर क्रिया के चार भेद हैं — (i) प्रेरणार्थक क्रिया, (ii) संयुक्त क्रिया, (iii) नामधातु क्रिया, (iv) कृदंत क्रिया |
(i) प्रेरणार्थक क्रिया — जिन क्रियाओं में कर्त्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं ; जैसे — कटवाना, लिखवाना, करवाना आदि |
उदाहरण — अध्यापक ने माली से घास कटवाया |
(ii) संयुक्त क्रिया — दो या दो से अधिक धातुओं (क्रिया का मूल रूप ) से बनने वाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं ; जैसे — ‘उसे अपना काम करने दो |’ इस वाक्य में करना और देना दो धातुओं का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ संयुक्त क्रिया है |
(iii) नामधातु क्रिया — संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से बनने वाली क्रियाओं को नाम धातु क्रियाएं कहते हैं ; जैसे — बात – बतलाना, साठ – सठियाना |
(iv) कृदंत क्रिया — मूल क्रिया शब्दों में प्रत्यय के जुड़ने से जो क्रिया बनती है उसे कृदंत क्रिया कहते हैं ; जैसे — चलता ( चल + ता ), चला (चल + आ ), चलकर ( चल + कर ) |
(ग ) क्रिया की पूर्णता के आधार पर
क्रिया की पूर्णता के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं — (i) अपूर्ण क्रिया, (ii) पूर्ण क्रिया |
(i) अपूर्ण क्रिया — अपूर्ण क्रियाएं वे क्रियाएं होती हैं जो अपने आप में पूर्ण नहीं होती अर्थात उनसे स्पष्ट अर्थ प्रकट नहीं होता, स्पष्ट अर्थ के लिए उन्हें वाक्य में प्रयुक्त किसी अन्य शब्द पर आश्रित रहना पड़ता है ; जैसे — समझना, बनना आदि | इन्हें आश्रित क्रिया भी कह सकते हैं |
उदाहरण — ‘तुम मुझे उल्लू समझते हो?’ वाक्य में समझना क्रिया का अर्थ उल्लू ( मूर्ख ) शब्द के बिना स्पष्ट नहीं हो पाता |
(Ii) पूर्ण क्रिया — पूर्ण क्रियाएं वे क्रियाएं होती हैं जो बिना किसी अन्य शब्द की सहायता के अपने घर को स्पष्ट करने में सक्षम होती हैं ; जैसे — हंसना, उठना, बैठना आदि |
उदाहरण — ‘नीचे बैठो |’ वाक्य में बैठो पूर्ण क्रिया है |
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