हजारी प्रसाद द्विवेदी ( 1907 – 1979 ईo)

जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार हैं | उनका जन्म 1907 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक गाँव में हुआ था | उनकी आरंभिक शिक्षा बलिया में ही हुई | सन 1927 में उन्होंने दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की | उन्होंने शांति निकेतन, काशी विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य किया | वे जीवन भर साहित्य-साधना में लीन रहे | सन 1979 में उनका देहांत हो गया |

प्रमुख रचनाएँ

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई | उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं —

(1) उपन्यास — बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेखा, अनामदास का पोथा आदि |

(2) निबंध संग्रह — विचार और वितर्क, अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता आदि |

(3) समीक्षा — कबीर, सूर साहित्य, हिंदी साहित्य का आदिकाल आदि |

साहित्यिक विशेषताएँ

हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

(1) विषयों की विविधता : हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों में विषय की विविधता मिलती है | उन्होंने अपनी निबंधों में नीति, प्रकृति,ज्योतिष, सभ्यता, संस्कृति व साहित्य आदि विषयों को स्थान दिया | एक साथ इतने अधिक विषयों पर लिखना उनकी विद्वता का परिचायक है |

(2) सामाजिक व सांस्कृतिक चेतना : द्विवेदी जी के निबंधों में सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का समावेश है, जो पाठकों को समाज के मुद्दों के प्रति जागरूक करता है।

(3) वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण: द्विवेदी जी के निबंधों में वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण का समावेश है, जो पाठकों को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है। इसी तार्किक दृष्टिकोण के बल पर वे अनेक पूर्व प्रचलित गलत मान्यताओं को तोड़ते हैं |

(4) प्रासंगिकता और समसामयिकता : उनके निबंधों में प्रासंगिकता और समसामयिकता का ध्यान रखा गया है, जो पाठकों को वर्तमान समय के मुद्दों से जोड़ता है | अनेक ऐतिहासिक तथा पौराणिक संदर्भों को भी वे वर्तमान परिस्थितियों से जोड़ देते हैं |

(5) राष्ट्रीय दृष्टिकोण : द्विवेदी जी के निबंधों में राष्ट्रीय दृष्टिकोण दिखाई देता है | ‘मेरी जन्मभूमि‘ नामक निबंध में उनकी देशभक्ति की भावना स्पष्ट दिखाई देती है |

(6) प्राचीन और नवीन का समन्वय : द्विवेदी जी के निबंधों में प्राचीन और नवीन का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है | एक तरफ वे प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति का वर्णन करते हैं तो दूसरी और आधुनिक मूल्यों पर भी प्रकाश डालते हैं | वे प्राचीन और आधुनिक दोनों ही सभ्यताओं की अच्छी बातों को ग्रहण करने का समर्थन करते हैं |

(7) मानवतावाद : मानवतावाद उनके साहित्य की प्रमुख विशेषता है | उन्होंने अपने निबंधों में भारतीय संस्कृति के ‘वसुधैव कुटुंबकम् ‘ के आदर्श को अपनाया और मानव कल्याण की बात की | ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध में द्विवेदी जी उसी सच्चे मानव का स्वप्न देखते हैं जो हिंसा, द्वेष, क्रोध को त्याग कर अहिंसा, प्रेम, सद्भाव और भाईचारे को महत्व देगा |

(8) प्रकृति प्रेम : द्विवेदी जी के निबंधों में प्रकृति-प्रेम स्पष्ट दिखाई देता है | उन्होंने अशोक के फूल, शिरीष के फूल, नया बसंत आ गया, कुटज आदि निबंधों में प्रकृति के बड़े सुंदर व भावपूर्ण चित्र अंकित किए हैं | लेकिन प्रकृति वर्णन करते हुए भी वे अनेक सामाजिक समस्याओं और मुद्दों को सफलतापूर्वक उठाते हैं |

(9) हास्य-व्यंग्य का समावेश : हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के अनेक निबंधों में हास्य और व्यंग्य का समावेश दिखाई देता है | हास्य- व्यंग्य के कारण अनेक गंभीर बातों को भी वे बड़े हल्के-फुल्के ढंग से कह जाते हैं | अपनी व्यंग्यात्मक शैली के कारण उनके निबंध अत्यंत रोचक तथा प्रभावशाली बन गए हैं |

(10) सरल और स्पष्ट भाषा व शैली : द्विवेदी जी की भाषा और शैली सरल, स्पष्ट और समझने योग्य है, जो पाठकों को आकर्षित करती है। विषय के अनुकूल उन्होंने अपनी भाषा तथा शैली में परिवर्तन किया है | उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं | उनकी भाषा सभी प्रकार के भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है |

उपर्युक्त विशेषताओं के कारण हजारी प्रसाद द्विवेदी जी व उनके निबंध हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

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