व्याकरणिक कोटियाँ : लिंग, वचन, पुरुष, कारक

व्याकरणिक कोटियाँ

जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे कुछ व्याकरणिक बंधनों को स्वीकार करना पड़ता है ; जिन्हें व्याकरणिक कोटियाँ कहते हैं | जैसे — लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल आदि |

लिंग ( Ling )

संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु, व्यक्ति या प्राणी आदि की स्त्री या पुरुष जाति का बोध होता है, उसे लिंग कहते हैं |

जैसे — पुत्र – पुत्री ; शेर – शेरनी |

लिंग के भेद ( Ling Ke bhed )

लिंग के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं — (क ) पुल्लिंग, (ख ) स्त्रीलिंग |

(क ) पुल्लिंग : जिन शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है, उन्हें पुल्लिंग कहते हैं ; जैसे — पुत्र , शेर आदि |

(ख ) स्त्रीलिंग : जिन शब्दों से स्त्री जाति का बोध होता है, उन्हें स्त्रीलिंग कहते हैं ; जैसे — पुत्री, शेरनी आदि |

वचन ( Vachan )

संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु, व्यक्ति या प्राणी के एक या अनेक होने का बोध हो, उसे वचन कहते हैं ; जैसे — मछली – मछलियाँ, लड़की – लडकियाँ |

वचन के भेद ( Vachan Ke bhed )

वचन के दो भेद हैं — (क ) एकवचन, (ख ) बहुवचन |

(क ) एकवचन : संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु,व्यक्ति या प्राणी के एक होने का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं ; जैसे — मछली, लड़की, कुर्सी आदि |

(ख ) बहुवचन : संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु,व्यक्ति या प्राणी का एक से अधिक होने का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं ; जैसे — मछलियाँ, लड़कियाँ, कुर्सियाँ आदि |

पुरुष ( Purush )

वे सर्वनाम शब्द जो बातचीत या संवाद में भागीदार व्यक्तियों के लिये प्रयुक्त होते हैं, उन्हें पुरुष कहते हैं | क्योंकि ये सर्वनाम होते हैं, इसलिए इन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं | जैसे — मैं तुम्हें आज उसके विषय में सारी बात बताऊँगा |

इस वाक्य में कहने वाले के लिये ‘मैं’, सुनने वाले के लिये ‘तुम्हें’ और अन्य व्यक्ति जिसके बारे में बात Syed रही है ‘उसके’ शब्द का प्रयोग हुआ है | ये सभी पुरुषवाचक सर्वनाम हैं |

पुरुष के भेद ( Purush Ke Bhed )

पुरुष या पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं — (क ) उत्तम पुरुष, (ख ) मध्यम पुरुष, (ग ) अन्य पुरुष |

(क ) उत्तम पुरुष : जो सर्वनाम शब्द कहने वाले के लिये प्रयुक्त हों, उन्हें उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — मैं, मेरा, हमारा, मेरे, हमारे आदि |

(ख ) मध्यम पुरुष : जो सर्वनाम शब्द सुनने वाले के लिये प्रयुक्त हों, उन्हें मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — तुम, तुम्हारा, तुम्हारे आदि |

(ग ) अन्य पुरुष : जो सर्वनाम शब्द कहने वाले और सुनने वाले के अतिरिक्त किसी अन्य के लिये प्रयुक्त हों, अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ; जैसे — वह, वे, उसका, उसके आदि |

कारक ( Karak )

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका संबंध पता चले, उसे कारक कहते हैं |

उदाहरण : अध्यापक ने राकेश को बुलाया | वाक्य में ‘अध्यापक’ कर्त्ता और ‘राकेश’ कर्म है | ‘ने’ तथा ‘को’ चिह्नों से इस संबंध का पता चलता है | जिन चिह्नों से इस सम्बन्ध के बारे में पता चलता है, उन चिह्नों को विभक्ति चिह्न, कारक-चिह्न या परसर्ग कहते हैं |

कारक के भेद ( Karak ke Bhed )

कारक के आठ भेद हैं : (1) कर्त्ता कारक, (2) कर्म कारक, (3) करण कारक, (4) सम्प्रदान कारक, (5) अपादान कारक, (6) सम्बन्ध कारक, (7) अधिकरण कारक, और (8) सम्बोधन कारक |

(1) कर्त्ता कारक : क्रिया को करने वाला कर्त्ता कहलाता है | इसकी विभक्ति ‘ने’ होती है लेकिन कभी-कभी यह विभक्ति रहित भी होता है |

उदाहरण : (क ) अध्यापक ने राकेश को बुलाया |

(ख ) अध्यापक राकेश को बुलाता है |

यहाँ पहले उदाहरण में ‘ने’ विभक्ति ( कारक-चिह्न ) का प्रयोग हुआ है परंतु दूसरे उदाहरण में विभक्ति नहीं आई | लेकिन दोनों वाक्यों में अध्यापक कर्त्ता है |

(2) कर्म कारक : जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते हैं | इसकी विभक्ति ‘को‘ है लेकिन कई बार ‘को’ चिह्न का प्रयोग नहीं भी होता |

उदाहरण : (क ) अध्यापक ने राकेश को बुलाया |

(ख ) वह फल खाता है |

पहले वाक्य में ‘राकेश‘ कर्म है जबकि दूसरे वाक्य में ‘फल‘ कर्म है लेकिन दूसरे वाक्य में कारक-चिह्न का प्रयोग नहीं हुआ |

(3) करण कारक : जिस शब्द से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते हैं | इसका कारक-चिह्न ‘से ( के द्वारा )’ है |

उदाहरण — राम ने रावण को बाण से मारा |

इस वाक्य में ‘बाण से’ में करण कारक है |

(4) संप्रदान कारक : जिसके लिए कुछ किया जाए या जिसको कुछ दिया जाए का बोध कराने वाले शब्दों को संप्रदान कारक कहते हैं | इसका विभक्ति चिह्न ‘के लिये’, ‘के वास्ते’ या ‘को’ है |

उदाहरण — पिता अपने बेटे के लिए एक खिलौने लाया |

इस वाक्य में बेटे के लिए में संप्रदान कारक है |

(5) अपादान कारक : संज्ञा के जिस रूप से पृथक्कत्व या अलगाव का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं | इसका विभक्ति चिह्न भी करण कारक की तरह ‘से‘ है परन्तु यह ‘से‘ पृथकता अर्थात जुदाई के अर्थ में है |

उदाहरण : वृक्ष से पत्ते गिरते हैं |

इस वाक्य में ‘वृक्ष से‘ अपादान कारक है |

(6) सम्बन्ध कारक : संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं | का, के, की इसके विभक्ति चिह्न हैं |

उदाहरण : ▪️ यह राम का घर है |

▪️ यह राम की पत्नी है |

▪️ यह राम के बच्चे हैं |

इन वाक्यों में राम का उसके घर उसकी पत्नी और उसके बच्चों के साथ संबंध बताया गया है ; अतः यहाँ संबंध कारक है |

(7) अधिकरण कारक : जिन शब्दों से क्रिया की स्थिति, स्थान, काल आदि आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं | इसके विभक्ति चिह्न ‘में’, ‘पर‘ हैं |

उदाहरण : ▪️ मेज पर पुस्तक रखी है |

▪️ बच्चे मैदान में खेल रहे हैं |

(8) सम्बोधन कारक : संज्ञा के जिस रूप से किसी को सावधान करना पुकारना आदि का बोध हो, उसे संबोधन कारक कहते हैं | संबोधन कारक की कोई विभक्ति नहीं होती | ‘हे’, ‘अरे’ जैसे अव्यय इसके सूचक चिह्न हैं |

उदाहरण : ▪️अरे! तुम कहाँ जा रहे हो?

▪️ हे राम! ये क्या हो गया |

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