समास के भेद / प्रकार

समास

‘समास’ का शाब्दिक अर्थ है – संक्षेप | समाज की प्रक्रिया में शब्दों का संक्षेपीकरण किया जाता है | सामान्यतः दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जो नया शब्द बनता है उसे समस्तपद कहते हैं तथा इस प्रक्रिया को समास कहते हैं | समास की प्रक्रिया में जब दो प्रमुख शब्दों का मेल किया जाता है तो उनके बीच के शब्दों या विभक्तियों का लोप हो जाता है ; जैसे – ‘राजा का पुत्र’ का समस्तपद ‘राजपुत्र’ बनता है |

समास की विशेषताएँ

(1) समास में दो पदों का मेल होता है |

(2) समास की प्रक्रिया में दो पदों के बीच की विभक्तियों व पदों का लोप हो जाता है |

(3) समास की प्रक्रिया से बने शब्द को समस्तपद कहते हैं |

संधि और समास में अंतर

प्रथम दृष्टि में देखने पर संधि और समास एक जैसे दिखाई देते हैं क्योंकि इन दोनों प्रक्रियाओं में एक नए शब्द का निर्माण होता है परंतु इन दोनों में अंतर है | वस्तुत: संधि वर्णों के मेल से होती है जबकि समाज शब्दों के मेल से होता है | संधि की प्रक्रिया में केवल वर्णों के मेल से विकार उत्पन्न होता है जबकि समाज की प्रक्रिया में दो शब्दों के बीच की विभक्तियों या शब्दों का लोप हो जाता है | जब समस्तपद के शब्दों को अलग-अलग करके लिखा जाता है तो उसे समास- विग्रह कहते हैं और जब संधि के शब्दों को अलग करके लिखा जाता है तो उसे संधि-विच्छेद कहते हैं |

समास के भेद

मुख्य रूप से समास के चार भेद हैं : (1) अव्ययीभाव समास, (2) तत्पुरुष समास, (3) द्वन्द्व समास, (4) बहुब्रीहि समास |

(1) अव्ययीभाव समास

जिस समाज में पहला पद प्रधान हो और अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं ; जैसे — यथाशक्ति, प्रतिदिन, आजीवन, आजन्म, भेरपेट, बेधड़क आदि |

(2) तत्पुरुष समास

जिस समास में दूसरा पद प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं, जैसे — ग्रामगत, हस्तलिखित, गौशाला, गुणहीन, राजपुत्र आदि |

कारक के आधार पर तत्पुरुष समास के छः भेद हैं —

(i) कर्म तत्पुरुष — ग्रामगत, दिवंगत |

(ii) करण तत्पुरुष — हस्तलिखित, तुलसीरचित |

(iii) संप्रदान तत्पुरुष — गौशाला, गुरुदक्षिणा |

(iv ) अपादान तत्पुरुष — गुणहीन, धनहीन |

(v) संबंध तत्पुरुष — राजपुत्र, राजमहल |

(vi ) अधिकरण तत्पुरुष — कर्मवीर, ध्यानमग्न |

इसके अतिरिक्त तत्पुरुष समास के दो अन्य उपभेद — कर्मधारय तत्पुरुष समास तथा द्विगु समास हैं |

(क ) कर्मधारय तत्पुरुष समास

जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों में उपमान-उपमेय या विशेषण-विशेष्य संबंध होता है, वहाँ कर्मधारय समास होता है ; जैसे — नीलगाय, महाराजा, चरणकमल, घनश्याम आदि |

(ख ) द्विगु समास

जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है लेकिन पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्तपद किसी समूह का द्योतक होता है उसे द्विगु समास कहते हैं ; जैसे — चौराहा, चौमासा, दोपहर, सप्तसिंधु आदि |

(3) द्वन्द्व समास

जिस समाज में दोनों पद प्रधान हो उसे द्वंद समास कहते हैं ; जैसे — राम-लखन, नर-नारी, सुख-दुःख आदि |

(4) बहुब्रीहि समास

जिस समास में ना पहला पद प्रधान हो ना दूसरा पर प्रधान हो अपितु समस्तपद किसी अन्य पद का वाचक हो उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं ; जैसे — ‘नीलकंठ’ में ‘नीला’ और ‘कंठ’ दोनों पद प्रधान नहीं | ‘नीलकंठ’ का विग्रह बनता है — नीला है कंठ जिसका जो ‘शिव’ का द्योतक है |

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