पर्यावरण अध्ययन (Environmental Studies )
पर्यावरण अध्ययन एक बहु-विषयक क्षेत्र है, जिसमें प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन किया जाता है। इसमें पर्यावरण के घटकों, पारिस्थितिकी, जैव विविधता, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत विकास जैसे विषयों को शामिल किया जाता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।
परिभाषा ( Definition )
शास्त्रीय परिभाषा — “पर्यावरण अध्ययन वह बहु-विषयक शाखा है, जिसमें भौतिक, जैविक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटकों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है।”
व्यावहारिक परिभाषा — “पर्यावरण अध्ययन एक ऐसा क्षेत्र है जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और सतत विकास की दिशा में समाधान खोजने पर केंद्रित है।”
संक्षिप्तत: पर्यावरण अध्ययन वह विज्ञान है, जो पर्यावरण के विभिन्न तत्वों, उनके आपसी संबंधों और मानव गतिविधियों के प्रभावों का विश्लेषण करता है।
पर्यावरण अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र
पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र व्यापक और बहु-विषयक है, जो प्राकृतिक, जैविक, सामाजिक और तकनीकी पहलुओं को कवर करता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण और मानव जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना है।
(1) प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन – जल, भूमि, खनिज, वायु, जैव विविधता आदि का संरक्षण और प्रबंधन।
(2) पर्यावरण प्रदूषण – वायु, जल, ध्वनि, मृदा और रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण, प्रभाव और नियंत्रण उपाय।
(3) पारिस्थितिकी और जैव विविधता – पारिस्थितिक तंत्र, जीवों के परस्पर संबंध और जैव विविधता संरक्षण।
(4) जलवायु परिवर्तन – ग्रीनहाउस प्रभाव, वैश्विक तापमान वृद्धि, समुद्र स्तर में वृद्धि और इनके प्रभाव।
(5) पर्यावरणीय कानून एवं नीतियाँ – पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम आदि।
(6) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा और अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का अध्ययन।
(7) जनसंख्या एवं पर्यावरण – जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और पर्यावरण पर प्रभाव।
(8) कचरा प्रबंधन एवं पुनर्चक्रण – ठोस अपशिष्ट, ई-कचरा और औद्योगिक कचरे का प्रबंधन।
(9) पर्यावरण शिक्षा एवं जागरूकता – पर्यावरण संरक्षण के लिए जन-जागरूकता अभियान और शैक्षिक कार्यक्रम।
(10) सतत विकास – वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संतुलित उपयोग।
पर्यावरण अध्ययन का महत्त्व
पर्यावरण अध्ययन का हमारे जीवन और समाज में अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि यह हमें प्रकृति और हमारे चारों ओर के पर्यावरण को समझने और उसे सुरक्षित रखने में मदद करता है। इसके मुख्य महत्त्व निम्नलिखित है —
(1) प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण – जल, वायु, मिट्टी, खनिज और वन जैसे संसाधनों के सतत उपयोग और संरक्षण में सहायता करता है।
(2) पर्यावरणीय समस्याओं की समझ – प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता के नुकसान जैसी समस्याओं को पहचानने और समाधान खोजने में मदद करता है।
(3) सतत पोषणीय विकास – वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करता है।
(4) पर्यावरण संरक्षण की नीतियाँ – सरकारों और संगठनों को पर्यावरणीय नियमों और नीतियों को बनाने और लागू करने में सहायता करता है।
(5) स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता में सुधार – स्वच्छ पर्यावरण से बीमारियों का खतरा कम होता है और लोगों का जीवन स्तर बेहतर होता है।
(6) जागरूकता और शिक्षा – पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाता है और लोगों को जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है।
(7) प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन – बाढ़, सूखा, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को रोकने और उनके प्रभाव को कम करने में मदद करता है।
(8) जैव विविधता का संरक्षण – पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की विलुप्ति को रोकने और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में सहायक है।
(9) हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा – पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन, जल) के विकास को प्रेरित करता है।
(10) सामाजिक और आर्थिक विकास – पर्यावरणीय समस्याओं को हल करके सतत कृषि, उद्योग और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पर्यावरण अध्ययन केवल एक शैक्षिक विषय नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन और पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसका ज्ञान हमें जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनने में मदद करता है।