मानक भाषा : अर्थ, परिभाषा और विशेषताएँ

मानक भाषा (Standard Language) किसी भाषा का वह परिनिष्ठित रूप है जिसे एक समुदाय, राज्य या राष्ट्र में संपर्क, शिक्षा, प्रशासन, साहित्य, विज्ञान, और अन्य औपचारिक क्षेत्रों में स्वीकार किया जाता है। इसका व्याकरण, शब्दावली, उच्चारण, और लेखन शैली निश्चित होते हैं, जिससे लिखने, पढ़ने, और बोलने में एकरूपता बनी रहती है। मानक भाषा को ‘परिनिष्ठित भाषा’, ‘टकसाली भाषा’, या ‘साधु भाषा’ भी कहा जाता है।

संक्षेप में मानक भाषा किसी राज्य या संस्था द्वारा स्वीकृत भाषा होती है | इसका व्याकरण, शब्दावली और उच्चारण निश्चित होता है |

मानक भाषा की परिभाषा

मानक भाषा की कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं —

(1) डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार — “मानक भाषा वह होती है, जो समाज में स्वीकृत, परिष्कृत और नियमबद्ध होती है तथा शिक्षा, प्रशासन और संचार के लिए प्रयोग की जाती है।”

(2) डॉ. नगेन्द्र के अनुसार — “मानक भाषा वह परिनिष्ठित भाषा होती है, जिसमें व्याकरण, उच्चारण और प्रयोग की निश्चितता होती है।”

(3) राजभाषा आयोग के अनुसार — “मानक भाषा वह भाषा होती है, जो व्यापक संचार के लिए स्वीकृत और सुव्यवस्थित होती है।”

मानक भाषा की विशेषताएँ

मानक भाषा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं —

(1) संपर्क भाषा – यह विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच संपर्क स्थापित करने में सहायक होती है।

(2) व्याकरणिक नियमबद्धता – मानक भाषा के व्याकरण, शब्दावली और वाक्य संरचना के निश्चित नियम होते हैं।

(3) एकरूपता – इसमें वर्तनी, उच्चारण और प्रयोग की एकरूपता होती है, जिससे यह लंबे समय तक स्थिर बनी रहती है।

(4) स्वीकृत रूप – इसे समाज के शिक्षित वर्ग, प्रशासन और संचार के माध्यमों द्वारा व्यापक स्वीकृति प्राप्त होती है।

(5) परिनिष्ठित एवं परिष्कृत – मानक भाषा अन्य रूपों की तुलना में अधिक परिष्कृत और परिनिष्ठित होती है।

(6) औपचारिकता – इसका प्रयोग शिक्षा, प्रशासन, साहित्य, संचार और आधिकारिक दस्तावेजों में किया जाता है।

सही संप्रेषण तथा भ्रम की स्थिति से बचने के लिए प्रत्येक देश में मानकीकृत भाषा का प्रयोग किया जाता है | भारत में हिंदी का मानकीकृत रूप देश के विभिन्न भागों में बोली जाने वाली हिंदी से भिन्न है | क्षेत्रीय ढंग से हिंदी बोलने वालों से आशा की जाती है कि वे मानकीकृत हिंदी का प्रयोग करेंगे |

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