जीवन परिचय — कुंवर नारायण का जन्म 19 सितंबर,1927 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद (अयोध्या) में एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके परिवार का माहौल साहित्यिक और बौद्धिक था, जहां आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी और राम मनोहर लोहिया जैसे व्यक्तियों का प्रभाव रहा। इस माहौल ने उनकी स्वतंत्र चिंतन और गंभीर अध्ययन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया।उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विज्ञान संकाय से पूरी की, लेकिन साहित्य के प्रति रुचि के कारण उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई के दौरान वे लखनऊ लेखक संघ से जुड़े और रघुवीर सहाय जैसे सहपाठियों के साथ साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। 15 नवंबर, 2017 को दिल्ली में उनका देहांत हो गया |
प्रमुख रचनाएँ — कुंवर नारायण बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | उन्होंने कविता, कहानी, समीक्षा आदि विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई | उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं :
कविता संग्रह: चक्रव्यूह – 1956
तीसरा सप्तक (अज्ञेय द्वारा संपादित, कुंवर नारायण सहित अन्य कवियों के साथ) – 1959
परिवेश: हम-तुम – 1961
अपने सामने – 1979
कोई दूसरा नहीं – 1993
इन दिनों – 2002
हाशिए का गवाह – 2009
कविता के बहाने – 1993
खंड काव्य: आत्मजयी – 1965
वाजश्रवा के बहाने – 2008
कुमारजीव – 2015
कहानी संग्रह: आकारों के आसपास – 1973
बेचैन पत्तों का कोरस – 2017
समीक्षा और विचार: आज और आज से पहले – 1998
मेरे साक्षात्कार – 1999
साहित्य के कुछ अंतर्विषयक संदर्भ – 2003
लेखक का सिनेमा (सिनेमा समीक्षा) – 2017
न सीमाएं न दूरियां (अनूदित विश्व कविताओं का संग्रह) – 2017
साहित्यिक विशेषताएँ : कुंवर नारायण के साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
(1) दार्शनिक चिंतन और अस्तित्ववादी दृष्टिकोण : कुंवर नारायण का साहित्य गहन दार्शनिक चिंतन का प्रतिबिंब है, जो जीवन, मृत्यु, और मानव अस्तित्व के प्रश्नों को संबोधित करता है। उनकी रचनाएँ प्रायः व्यक्ति और समाज के बीच के संबंधों को तलाशती हैं, जिसमें आत्म-चेतना और नैतिकता का सूक्ष्म विश्लेषण होता है। वे मिथकों और प्राचीन कथाओं को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत कर समकालीन मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं। उनकी कविताएँ और कथाएँ पाठक को आत्म-निरीक्षण के लिए प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिए, उनका खंड काव्य ‘आत्मजयी’ (1965) मृत्यु और जीवन के बीच संवाद को दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत करता है। ‘आत्मजयी’ की पंक्तियाँ जैसे “मृत्यु क्या है? क्या वह अंत है या एक नया प्रारंभ?” पाठक को गहन चिंतन में डुबोती हैं।
(2) मिथकों और इतिहास का आधुनिक उपयोग : कुंवर नारायण की रचनाएँ प्राचीन मिथकों और ऐतिहासिक कथाओं को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे महाभारत, उपनिषद और बौद्ध साहित्य जैसे स्रोतों से प्रेरणा लेते हैं, लेकिन उन्हें समकालीन संवेदनाओं के साथ जोड़ते हैं। उनकी रचनाएँ मिथकों का केवल पुनर्कथन नहीं करतीं, बल्कि उन्हें मानव मन की जटिलताओं को समझने का माध्यम बनाती हैं। यह दृष्टिकोण उनकी कविता और गद्य दोनों में स्पष्ट है। उनकी रचना ‘वाजश्रवा के बहाने’ (2008) इसका उत्कृष्ट उदाहरण है जिसकी पंक्तियाँ “सच क्या है? जो दिखता है या जो छिपा है?” मिथक को समकालीन बनाती हैं।
(4) सामाजिक और नैतिक चेतना : कुंवर नारायण का साहित्य सामाजिक अन्याय, नैतिक पतन और मानवीय संवेदनाओं के प्रति गहरी चेतना दर्शाता है। उनकी रचनाएँ व्यक्तिगत और सामूहिक नैतिकता के प्रश्न उठाती हैं, बिना उपदेशात्मक हुए। वे सामाजिक मुद्दों को सूक्ष्मता से चित्रित करते हैं, जो पाठक को स्वयं निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित करता है। उनकी कहानियाँ और कविताएँ युद्ध, पर्यावरण विनाश और सामाजिक असमानता जैसे विषयों को संबोधित करती हैं। ‘हाशिए का गवाह’ की कविता “हाशिए पर” में सामाजिक रूप से उपेक्षित लोगों की स्थिति को दर्शाया गया है।
कुंवर नारायण को हाशिये पर रहने वाले लोगों की चुप्पी भी कुछ कहती सी लगती है — “वे जो हाशिए पर रहते हैं / उनकी चुप्पी सबसे तेज़ बोलती है” |
(5) प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता : कुंवर नारायण की रचनाओं में प्रकृति केवल पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि एक जीवंत चरित्र के रूप में उभरती है। वे प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करते हैं, साथ ही पर्यावरण विनाश के प्रति चिंता व्यक्त करते हैं। उनकी कविताएँ प्रकृति के सौंदर्य और उसके संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाती हैं। उनकी भाषा में प्रकृति के प्रति गहरी संवेदनशीलता और सम्मान झलकता है। ‘इन दिनों’ (2002) की कविता “पेड़ और हम” में प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व को दर्शाया गया है — “पेड़ हमारी साँसों का हिस्सा हैं / फिर हम क्यों काटते हैं अपनी साँसें?” |
(6) व्यक्तिगत और सार्वभौमिक अनुभवों का समन्वय : कुंवर नारायण की रचनाएँ व्यक्तिगत अनुभवों को सार्वभौमिक संदर्भों से जोड़ती हैं, जिससे उनकी रचनाएँ वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक बनती हैं। उनकी कविताएँ और कहानियाँ व्यक्तिगत भावनाओं को इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि वे मानवता के साँझा अनुभवों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे प्रेम, घृणा, और आशा जैसे विषयों को व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर चित्रित करते हैं। कविता संग्रह ‘अपने सामने’ (1979) की कविता “एक अकेला आदमी” में वे कहते हैं — “वह अकेला नहीं, हम सबके भीतर है / उसकी छाया हमारी छाया से मिलती है” |
(3) भाषा की सादगी और प्रतीकात्मकता : कुंवर नारायण की भाषा सरल, संयमित, और प्रतीकों से समृद्ध है, जो उनकी रचनाओं को गहन अर्थ प्रदान करती है। वे जटिल विचारों को भी सहज और संक्षिप्त शब्दों में व्यक्त करते हैं। उनकी कविताओं में प्रतीक और बिंब सामान्य जीवन से लिए जाते हैं, जो पाठक को तुरंत जोड़ते हैं। यह सादगी उनकी कहानियों में भी दिखती है, जहाँ रोज़मर्रा की घटनाएँ दार्शनिक अर्थ ग्रहण करती हैं। उनका कविता संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ (1993) इस विशेषता को स्पष्ट करता है। ‘कोई दूसरा नहीं’ की कविता “एक पेड़ की हत्या” में एक पेड़ के कटने को प्रतीकात्मक रूप से प्रकृति और मानवता के विनाश से जोड़ा गया है। इस कविता की पंक्तियाँ “उसके गिरने की आवाज़ / मेरे भीतर कहीं गूँजी” सरल शब्दों में गहरा प्रभाव डालती हैं।
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