चरागाह पारिस्थितिक तंत्र (Grassland Ecosystem) वे प्राकृतिक तंत्र हैं जहाँ प्रमुख रूप से घास और घास जैसी वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। ये क्षेत्र पेड़ों की अपेक्षा अधिक खुले और समतल होते हैं और जानवरों के लिए चारे का प्रमुख स्रोत होते हैं। इन तंत्रों में ऊर्जा का प्रवाह मुख्यतः पौधों से शाकाहारी जानवरों और फिर मांसाहारी प्रजातियों तक होता है। चरागाहों में पाए जाने वाले जीवों में हिरण, ज़ेब्रा, हाथी, भैंसे, और कई प्रकार के कीट और पक्षी शामिल होते हैं। ये तंत्र पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने, मिट्टी का संरक्षण करने, और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चरागाह पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार
चरागाह पारिस्थितिक तंत्र को उनके जलवायु और भूगोल के आधार पर मुख्यतः तीन प्रकारों में बाँटा जाता है:
(1) उष्ण कटिबंधीय घास के मैदान (Tropical Grasslands)
ये चरागाह भूमध्यरेखा के आसपास स्थित होते हैं, जहाँ वर्षा मध्यम मात्रा में होती है। इन्हें सवाना भी कहा जाता है, और ये मुख्यतः अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, और भारत के कुछ भागों में पाए जाते हैं। यहाँ लंबी घासें, झाड़ियाँ और कभी-कभी छिटपुट पेड़ भी होते हैं। इन क्षेत्रों में शेर, चीता, हाथी, ज़ेब्रा जैसे बड़े जानवर पाए जाते हैं। सवाना पारिस्थितिक तंत्र में सूखा और आग सामान्य घटनाएँ होती हैं, जो प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं।
उदाहरण — अफ्रीकी सवाना (केन्या, तंज़ानिया), मध्य भारत के विदर्भ क्षेत्र।
(2) समशीतोष्ण घास के मैदान (Temperate Grasslands)
ये घास के मैदान उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ जलवायु समशीतोष्ण होती है, यानी गर्मी और सर्दी दोनों होती हैं। इन्हें अमेरिका में प्रेयरीज, रूस में स्टेपी, और दक्षिण अमेरिका में पंपास कहा जाता है। इन क्षेत्रों की घास अपेक्षाकृत छोटी होती है लेकिन बहुत घनी होती है। यहाँ भैंस, खरगोश, लोमड़ी, और कई पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन घास के मैदानों की मिट्टी उपजाऊ होती है, इसलिए कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन अत्यधिक खेती के कारण प्राकृतिक संतुलन प्रभावित हो सकता है।
उदाहरण — अमेरिका का प्रेयरी क्षेत्र, अर्जेंटीना का पंपास, यूरेशिया का स्टेपी।
(3) पर्वतीय घास के मैदान (Montane Grasslands)
ये चरागाह ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ तापमान कम होता है और वर्षा भी सीमित होती है। भारत में हिमालयी क्षेत्र, तिब्बत का पठार, और दक्षिण भारत के शोलार क्षेत्र इसके उदाहरण हैं। इन स्थानों पर विशेष प्रकार की घासें और पौधे होते हैं, जो ठंडे वातावरण में जीवित रह सकते हैं। यहाँ याक, जंगली भेड़, तेंदुआ और हिमालयी मोनाल जैसे जीव पाए जाते हैं। ये क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील होते हैं और जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव यहाँ देखा जा सकता है।
उदाहरण — लद्दाख, उत्तराखंड के बुग्याल, और नीलगिरी की पहाड़ियाँ।
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