त्रिभाषा सूत्र ( Three Language Formula )

भारतीय शिक्षा व्यवस्था में त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula) एक नीति है जिसका उद्देश्य देश की भाषाई विविधता को संरक्षित करते हुए राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना और छात्रों को बहुभाषी बनाने में मदद करना है। इसे पहली बार 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Policy on Education) में औपचारिक रूप से प्रस्तावित किया गया था, जो कोठारी आयोग (1964-66) की सिफारिशों पर आधारित था। यह नीति स्कूलों में तीन भाषाओं को पढ़ाने की वकालत करती है ताकि छात्र क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवाद करने में सक्षम हों।

त्रिभाषा सूत्र का मूल ढांचा

त्रिभाषा सूत्र के तहत, स्कूलों में निम्नलिखित तीन भाषाओं को पढ़ाया जाना चाहिए:

प्रथम भाषा: यह आमतौर पर मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होती है, जो उस राज्य की प्रमुख भाषा होती है जहां स्कूल स्थित है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में मराठी, तमिलनाडु में तमिल, या पश्चिम बंगाल में बंगाली।

द्वितीय भाषा: यह हिंदी होती है, जिसे भारत की संपर्क भाषा और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। हिंदी भाषी राज्यों में इसके स्थान पर कोई अन्य भारतीय भाषा (जैसे तमिल, तेलुगु, बंगाली आदि) पढ़ाई जा सकती है।

तृतीय भाषा: यह अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक विदेशी भाषा हो सकती है। अंग्रेजी को आमतौर पर इसलिए चुना जाता है क्योंकि यह वैश्विक संचार, उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए महत्वपूर्ण है। कुछ मामलों में, संस्कृत या अन्य विदेशी भाषाएँ (जैसे फ्रेंच, जर्मन) भी विकल्प हो सकती हैं।

त्रिभाषा सूत्र का उद्देश्य

(1) भाषाई विविधता का संरक्षण: भारत में सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ हैं। यह नीति क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देकर उनकी पहचान को बनाए रखने का प्रयास करती है।राष्ट्रीय एकता: हिंदी और अंग्रेजी जैसी संपर्क भाषाओं के माध्यम से विभिन्न भाषाई समुदायों के बीच संवाद को आसान बनाना।

(2) वैश्विक अवसर: अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं के ज्ञान से छात्रों को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाना |

(3) सांस्कृतिक समझ: विभिन्न भाषाओं के अध्ययन से छात्रों में विविध संस्कृतियों के प्रति समझ और सम्मान विकसित होता है।

त्रिभाषा सूत्र का कार्यान्वयन

कक्षा स्तर: यह नीति आमतौर पर कक्षा 5 से 10 तक लागू की जाती है, हालांकि कुछ राज्यों में इसे प्राथमिक स्तर से ही शुरू किया जाता है।

राज्यवार भिन्नता: हिंदी भाषी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में प्रथम भाषा हिंदी, दूसरी भाषा अंग्रेजी और तीसरी भाषा कोई अन्य भारतीय भाषा या संस्कृत हो सकती है। गैर-हिंदी भाषी राज्यों जैसे कर्नाटक, केरल आदि में प्रथम भाषा क्षेत्रीय भाषा, दूसरी भाषा हिंदी और तीसरी भाषा अंग्रेजी होती है।

केंद्र और राज्य शिक्षा बोर्ड: केंद्रीय बोर्ड जैसे CBSE, ICSE और राज्य बोर्ड इस नीति को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं, लेकिन कार्यान्वयन में लचीलापन होता है।

त्रिभाषा सूत्र के समक्ष चुनौतियाँ

हिंदी का विरोध: कुछ गैर-हिंदी भाषी राज्यों, खासकर दक्षिण भारत में, हिंदी को अनिवार्य करने का विरोध होता है। इसे हिंदी थोपने के रूप में देखा जाता है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान को खतरा महसूस होता है।

शिक्षकों की कमी: कई स्कूलों में तीनों भाषाओं को पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षकों की कमी है। उदाहरण के लिये उत्तर भारत में तमिल, तेलुगू जैसी दक्षिण भारतीय भाषाओं को पढ़ाने के लिए योग्य अध्यापक नहीं मिलते और दक्षिण भारतीय अध्यापक हिंदी ना आने के कारण छात्रों से संवाद नहीं कर पाते |

पाठ्यक्रम का बोझ: तीन भाषाएँ पढ़ने से छात्रों पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, खासकर जब अन्य विषयों का दबाव भी हो।

भाषा चयन में लचीलापन: कुछ राज्यों में तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी के अलावा अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं होते, जिससे छात्रों की रुचि प्रभावित होती है।

असमान कार्यान्वयन: विभिन्न राज्यों और बोर्डों में इस नीति को लागू करने का तरीका अलग-अलग है, जिससे एकरूपता की कमी रहती है।

नई शिक्षा नीति -2020 और त्रिभाषा सूत्र

NEP 2020 ने त्रिभाषा सूत्र को बनाए रखने की बात की है, लेकिन इसे अधिक लचीला बनाया है। इसमें मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को प्राथमिक शिक्षा में प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया है। साथ ही, हिंदी या अंग्रेजी को अनिवार्य करने के बजाय, राज्यों को भाषा चयन में स्वायत्तता दी गई है | वर्ष 2019 में जब NEP ( New Education Policy ) का मसौदा प्रस्तुत किया गया, तो इसमें हिंदी को अनिवार्य करने का सुझाव था, जिसका तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भारी विरोध हुआ। बाद में सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया।

त्रिभाषा सूत्र के राज्यवार उदाहरण

तमिलनाडु में प्रथम भाषा तमिल, दूसरी भाषा अंग्रेजी, और तीसरी भाषा हिंदी या संस्कृत।

उत्तर प्रदेश में प्रथम भाषा हिंदी, दूसरी भाषा अंग्रेजी, और तीसरी भाषा संस्कृत या उर्दू।

कर्नाटक में प्रथम भाषा कन्नड़, दूसरी भाषा अंग्रेजी, और तीसरी भाषा हिंदी।

निष्कर्षत्रिभाषा सूत्र भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण नीति है जो भाषाई विविधता, राष्ट्रीय एकता और वैश्विक अवसरों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में क्षेत्रीय भावनाओं, संसाधनों की कमी और शैक्षिक बोझ जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं। NEP 2020 के तहत इस नीति को और लचीला बनाया गया है ताकि यह सभी राज्यों और समुदायों के लिए स्वीकार्य हो।

1 thought on “त्रिभाषा सूत्र ( Three Language Formula )”

Leave a Comment

error: Content is proteced protected !!