भूमि संसाधन : भूमि निम्नीकरण, गुणवत्तावृद्धि

भूमि संसाधन (Land Resources) ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं जो पृथ्वी की सतह से संबंधित होते हैं और मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इसमें खेत, जंगल, पहाड़, मैदान, रेगिस्तान, चरागाह आदि शामिल हैं।

भूमि के गुणात्मक निम्नीकरण के कारण

(1) मृदा अपरदन (Soil Erosion): वनों की कटाई, अत्यधिक चराई और अनुचित कृषि पद्धतियों (जैसे ढलानों पर जुताई) के कारण मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है, जिससे उर्वरता कम होती है।

(2) लवणीकरण (Salinization): सिंचाई के लिए अत्यधिक जल के उपयोग या खराब जल निकासी से भूमि में लवण जमा हो जाते हैं, जिससे मिट्टी अनुपजाऊ बनती है।

(3) रासायनिक प्रदूषण ( Chemical Pollution) : कीटनाशकों, उर्वरकों और औद्योगिक अपशिष्टों के अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी विषैली हो जाती है।

(4) जलभराव (Waterlogging): अत्यधिक सिंचाई या खराब जल निकासी प्रणाली से भूमि में पानी भर जाता है, जिससे पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं।

(5) भूमि का अत्यधिक दोहन: एक ही फसल की बार-बार खेती (मोनोकल्चर) से मिट्टी के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं।

(6) शहरीकरण और औद्योगीकरण: कंक्रीट के निर्माण, खनन और प्रदूषण से भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता नष्ट होती है।

(7) अम्लीकरण (Acidification): अम्लीय वर्षा या रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी का pH स्तर गिरता है और मिट्टी अम्लीय हो जाती है |

    इन कारणों से भूमि की उत्पादकता कम होती है, जिसका कृषि, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सतत भूमि प्रबंधन जैसे वनीकरण, जैविक खेती आदि इसे रोकने में मदद कर सकता है।

    भूमि की गुणवत्ता में सुधार

    (Soil Quality Enhancement)

    भूमि की गुणवत्ता में सुधार (Soil Quality Enhancement) के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं :

    1. जैविक खेती (Organic Farming)

    रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट, हरी खाद का उपयोग करें। फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाकर मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखें।

    2. वृक्षारोपण (Afforestation) और वायु रोधक पट्टियाँ (Windbreaks)

    वनों की कटाई रोककर और पेड़ लगाकर मृदा अपरदन को कम करें। खेतों के किनारे वायु रोधक पट्टियाँ बनाएँ ताकि हवा से मिट्टी का कटाव न हो। झाड़ियाँ या पेड़ लगाकर इस पट्टी को बनाया जा सकता है |

    3. समोच्च जुताई (Contour Ploughing) और सीढ़ीनुमा खेती (Terracing)

    ढलान वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के अनुरूप जुताई करें ताकि मिट्टी का कटाव रुके। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर जल और मिट्टी का संरक्षण करें।

    4. मल्चिंग (Mulching)

    मिट्टी की सतह पर पत्तियों, भूसे या प्लास्टिक शीट बिछाकर नमी बनाए रखें और खरपतवार को नियंत्रित करें।

    5. जल प्रबंधन (Water Management)

    ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिस्टम का उपयोग करके जल की बर्बादी रोकें। जलभराव वाली भूमि में उचित जल निकासी (Drainage) की व्यवस्था करें।

    6. हरी खाद (Green Manure) और कवर क्रॉप्स (Cover Crops)

    दलहनी फसलें जैसे मूँग, ग्वार आदि उगाकर मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाएँ। खाली खेतों में कवर क्रॉप्स (जैसे सनई, ढेंचा) उगाएँ ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।

    7. लवणीकरण नियंत्रण (Salinity Control)

    अत्यधिक सिंचाई से बचें और जिप्सम (Gypsum) का प्रयोग करके लवणीय भूमि को सुधारें।

    8. मृदा परीक्षण (Soil Testing)

    नियमित रूप से मिट्टी की जाँच करके उसकी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करें।

    9. जैव-उर्वरक (Biofertilizers) का प्रयोग

    राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और माइकोराइजा जैसे जैव-उर्वरकों का उपयोग कर मिट्टी को समृद्ध बनाएँ।

    10. कम जुताई (Minimum Tillage) या शून्य जुताई (Zero Tillage)

    अत्यधिक जुताई से मिट्टी की संरचना खराब होती है, इसलिए कम जुताई या बिना जुताई की तकनीकें अपनाएँ।

    निष्कर्ष:

    भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ ( Sustainable Agricultur ) अपनाना आवश्यक है। इन उपायों से न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता भी सुनिश्चित होगी।

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