“अंधेर नगरी” नाटक में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने तत्कालीन समाज और शासन व्यवस्था की विभिन्न समस्याओं को व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। नाटक के माध्यम से निम्नलिखित समस्याओं को उजागर किया गया है :
(1) भ्रष्ट शासन व्यवस्था
“अंधेर नगरी” नाटक में राजा की शासन प्रणाली पूरी तरह से भ्रष्ट और अव्यवस्थित दिखाई गई है। राजा बिना किसी विचार-विमर्श के निर्णय लेता है और निर्णयों में किसी भी प्रकार की न्यायिक या प्रशासनिक समझ नहीं होती। जब एक बकरी मर जाती है, तो उसके लिए दोषियों की पूरी कड़ी बनाई जाती है जिसमें अंततः एक निर्दोष गोबर्धन दास को फाँसी की सजा सुनाई जाती है। यह दिखाता है कि न्यायिक प्रक्रिया का कोई मापदंड नहीं है और शासन में विवेक, नैतिकता तथा ईमानदारी का अभाव है। लेखक ने यह स्पष्ट रूप से बताया है कि यदि शासक बुद्धिहीन और भ्रष्ट हो, तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है। इससे समाज में अराजकता और भय का वातावरण बनता है।
(2) अंधविश्वास और मूर्खता
नाटक के पात्रों में अंधविश्वास और मूर्खता गहराई से फैली हुई है। राजा शकुन-अपशकुन, काल-गणना और अन्य तर्कहीन बातों में विश्वास करता है और उसी आधार पर राज्य के निर्णय लेता है। यह दिखाया गया है कि कैसे मूर्खता और अंधविश्वास से जुड़ी धारणाएँ शासक के कार्यों को प्रभावित कर सकती हैं। जनता भी इन बातों को बिना सवाल किए स्वीकार कर लेती है। गुरु और चेला का संवाद भी यह दर्शाता है कि एक समझदार व्यक्ति इस मूर्खता का लाभ उठाकर अपनी जान तक बचा सकता है। यह समस्या आज भी समाज में देखी जा सकती है, जहाँ वैज्ञानिक सोच के अभाव में लोग अंधविश्वास का शिकार हो जाते हैं।
(3) न्याय की अव्यवस्था
इस नाटक में न्याय की व्यवस्था पूरी तरह हास्यास्पद और अन्यायपूर्ण दिखाई गई है। जब एक व्यक्ति की दीवार गिरने से बकरी मर जाती है, तो न्यायालय में एक के बाद एक कई लोगों को दोषी ठहराया जाता है — दीवार बनाने वाला, चूने वाला, भीश्ती, कसाई और कोतवाल । अंत में गुरु पर दोष मढ़ा जाता है। यह न्याय नहीं, बल्कि व्यर्थ की दोषारोपण की प्रक्रिया है। नाटक यह स्पष्ट करता है कि जब न्याय का आधार तर्क, प्रमाण और निष्पक्षता न होकर मूर्खता और अंधापन हो, तो समाज में न्याय का कोई मूल्य नहीं रह जाता। लेखक ने इस समस्या को अत्यंत व्यंग्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है।
(4) मूर्खतापूर्ण नेतृत्व
राजा का चरित्र मूर्खतापूर्ण नेतृत्व का प्रतीक है। वह अपनी सत्ता का प्रयोग सोच-समझकर नहीं करता, बल्कि हर निर्णय बिना विचार के लेता है। उसकी नीतियाँ हास्यास्पद होती हैं, जैसे कि “टके सेर भाजी, टके सेर खाजा”। यह निर्णय आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पूरी तरह विफल है, क्योंकि यह मूल्य निर्धारण की मूलभूत प्रणाली को नकार देता है। एक मूर्ख राजा के हाथ में सत्ता होने का परिणाम है कि पूरी प्रजा दुखों से ग्रस्त हो जाती है। लेखक यह संदेश देता है कि बुद्धिहीन नेतृत्व समाज के लिए अभिशाप होता है।
(5) आर्थिक अव्यवस्था
राज्य में जब राजा यह घोषणा करता है कि हर चीज़ की कीमत एक समान होगी — “टके सेर भाजी, टके सेर खाजा”, तो इससे राज्य की आर्थिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है। व्यापारी राज्य छोड़ने लगते हैं, उत्पादन रुक जाता है और बाजार में अव्यवस्था फैल जाती है। ऐसी नीति आर्थिक सिद्धांतों के विरुद्ध है और इससे राज्य की समृद्धि के स्थान पर विपन्नता आती है। यह समस्या बताती है कि जब शासन नीति में आर्थिक समझ नहीं होती, तो समाज में भुखमरी और अव्यवस्था फैलती है। यह व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण से बाजार व्यवस्था की गंभीरता को दर्शाता है।
(6) जनता की चुप्पी और सहमति
राज्य की जनता राजा की मूर्खताओं और अन्यायपूर्ण निर्णयों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाती। वे हर बात को नियति मानकर स्वीकार करते हैं, जिससे शासक और अधिक निरंकुश और स्वेच्छाचारी बन जाता है। यह चुप्पी ही अंधेर नगरी की सबसे बड़ी कमजोरी है। जब जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं होती, तो व्यवस्था का पतन सुनिश्चित हो जाता है। लेखक यह दिखाता है कि यदि जनता जागरूक हो और अन्याय के विरुद्ध खड़ी हो, तो शासन की मूर्खता और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह समस्या आज के लोकतांत्रिक समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक है।
(7) गुरु-चेला की चतुराई और व्यावहारिक बुद्धि का महत्व
नाटक के अंत में गुरु (महंत ) और चेला ( गोबर्धन दास ) की चतुराई यह संदेश देती है कि व्यावहारिक बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या से निकला जा सकता है। अपने गुरु की बुद्धिमता से चेला राजा की मूर्खता का लाभ उठाकर अपनी फाँसी को मोक्ष का द्वार बताकर राजा को भ्रम में डाल देता है। राजा स्वयं फाँसी पर चढ़ जाता है। इस प्रकार गुरु अपने चेले के साथ-साथ सारे नगरवासियों को मूर्ख राजा से बचाता है | यह घटना दर्शाती है कि जहाँ मूर्खता और अंधेर का राज होता है, वहाँ भी चतुर व्यक्ति अपनी समझदारी से अपनी प्राण-रक्षा कर सकता है।