जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत

जॉन ड्राइडन का पाश्चात्य आलोचना जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे | वे आलोचक के साथ-साथ प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा व्यंग्यकार थे। उनके आलोचना सिद्धान्त उनकी रचनाओं की भूमिकाओं में मिलते हैं। उन्होंने सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाओं के बारे में अपने मत व्यक्त किए। वे एक … Read more

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत

पाश्चात्य काव्यशास्त्र में प्लेटो तथा अरस्तू के पश्चात लोंजाइनस एक महत्वपूर्ण काव्यशास्त्री हुए हैं | लोंजाइनस ने अपनी काव्य संबंधी अवधारणा अपनी पुस्तक पेरिइप्सुस में प्रस्तुत की है | बहुत लंबे समय तक यह पुस्तक अंधकार के गर्त में रही | आरंभ में इसके केवल कुछ अंश प्राप्त हुए ; 1554 ईस्वी में इस ग्रंथ … Read more

अरस्तू का विरेचन सिद्धांत

अरस्तू यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो का शिष्य था | अरस्तू का विरेचन सिद्धांत अपने गुरु प्लेटो के काव्य संबंधी सिद्धांत का प्रतिवाद कहा जा सकता है | प्लेटो की यह धारणा थी कि काव्य हमारी क्षुद्र वासनाओं को उभरता है और आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधा बनता है | उनका मानना था कि … Read more

अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत

अरस्तू प्लेटो के प्रतिभाशाली शिष्य होने के साथ-साथ एक महान् चिन्तक भी थे | यही कारण है कि उन्होंने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, उन्हें सभी परवर्ती पाश्चात्य विद्वानों ने स्वीकार किया। प्लेटो का शिष्य होते हुए भी अरस्तू ने प्लेटो के विचारों का खंडन करके अपना भौलिक चिंतन प्रस्तुत किया। अरस्तू के पिता राजवैद्य … Read more

प्लेटो की काव्य संबंधी अवधारणा

प्लेटो एक महान पाश्चात्य विचारक थे | एक महान दार्शनिक होने के साथ-साथ साहित्य जगत में एक आलोचक के रूप में भी विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे | प्लेटो से पूर्व, होमर, हैसीयाड, अरिस्टोफेनिस आदि विद्वानों के मत मिलते हैं। ये विद्वान् काव्य का लक्ष्य शिक्षा देना और आनन्द प्रदान करना मानते थे। प्लेटो कवि … Read more

काव्यात्मा संबंधी विचार

वेदों व अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में आत्मा शब्द का प्रयोग श्वास, प्राण, जीवन, परमात्मा आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है| विभिन्न दार्शनिकों का विचार है कि यह आत्मा परमात्मा का एक अंश है। अतः आत्मा और परमात्मा में अंश-पूर्ण का सम्बन्ध है। मानव शरीर इसी आत्मा के कारण जीवित है। काव्यशास्त्र में काव्यात्मा … Read more

औचित्य सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएं

औचित्य सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र सिद्धांतों में सबसे नवीन सिद्धांत है | भारतीय काव्यशास्त्र के अन्य सभी सिद्धांतों के अस्तित्व में आने के पश्चात इस सिद्धांत का आविर्भाव हुआ | दूसरे शब्दों में इसे संस्कृत काव्यशास्त्र का अंतिम सिद्धांत भी कह सकते हैं | आचार्य क्षेमेंद्र ने औचित्य सिद्धांत का प्रवर्तन किया | यह सिद्धांत आने … Read more

ध्वनि सिद्धांत ( Dhvani Siddhant )

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि-सिद्धांत का अभ्युदय 9वीं सदी में हुआ | इससे पूर्व रस सिद्धांत, अलंकार सिद्धांत तथा रीति सिद्धांत को पर्याप्त लोकप्रियता मिल चुकी थी | ध्वनि-सिद्धांत के संस्थापक आनंदवर्धन ने ध्वनि की मौलिक उदभावना करके काव्य के अंतर्तत्त्वों की विशद व्याख्या की | उन्होंने काव्यात्मा के संदर्भ में प्रचलित भ्रांतियों पर व्यापक प्रकाश … Read more

वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

वक्रोक्ति सिद्धांत ( Vakrokti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है | वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्त्तक आचार्य कुंतक थे | आचार्य कुंतक से पहले के आचार्य वक्रोक्ति को अलंकार मात्र मानते थे परन्तु आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को विशेष महत्त्व प्रदान किया | कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य के सौंदर्य का आधार मानते … Read more

रीति सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत के पश्चात रीति सिद्धांत ( Riti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण देन कही जा सकती है | रीति सिद्धांत का प्रवर्तन अलंकारवादी सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप माना जाता है | रीति सिद्धांत के प्रवर्तक श्रेय आचार्य वामन माने जाते हैं जिन्होंने अपनी रचना ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’ में इसका विस्तृत विवेचन किया है … Read more

अलंकार सिद्धांत : अवधारणा एवं प्रमुख स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र में सर्वाधिक प्राचीन सिद्धांत है | प्रत्येक आचार्य ने अलंकारों को किसी न किसी रूप में महत्व दिया है | अलंकार सिद्धांत के प्रतिपादक भामह माने जाते हैं परंतु भामह के अतिरिक्त दंडी, उद्भट तथा रूद्रट ने भी अलंकारों की अनिवार्यता का जोरदार समर्थन किया है | अलंकार सिद्धांत के विषय … Read more

सहृदय की अवधारणा ( Sahridya Ki Avdharna )

‘रस सिद्धांत’ के अंतर्गत रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण आदि की विस्तृत चर्चा हुई है | इसके पश्चात साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदय की अवधारणा की चर्चा हुई | इसका कारण यह है कि रसानुभूति सहृदय ही करता है | सहृदय का अर्थ एवं स्वरूप ( Sahridya Ka Arth Evam Swaroop ) ‘सहृदय’ शब्द का अर्थ है – … Read more

साधारणीकरण : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

साधारणीकरण के सिद्धांत की चर्चा रस-निष्पत्ति के संदर्भ में ही की जाती है | आचार्य भरतमुनि के रस सूत्र – ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगादरसनिष्पत्ति:’ – की व्याख्या करते हुए भट्टनायक ने इस सिद्धांत का प्रवर्त्तन किया | पाश्चात्य विचारकों टी एस इलियट आदि ने भी इस सिद्धांत के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है | विद्वान प्रायः यह … Read more

रस सिद्धांत ( Ras Siddhant )

भरत मुनि का रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) की विवेचना करने से पूर्व ‘रस’ के अर्थ को जानना आवश्यक होगा | ‘रस’ का सामान्य अर्थ आनंद से लिया जाता है | भारतीय साहित्य शास्त्र में रस की अवधारणा अत्यंत प्राचीन है … Read more

गीतिकाव्य : अर्थ, परिभाषा, प्रवृत्तियाँ /विशेषताएँ व स्वरूप ( Gitikavya : Arth, Paribhasha, Visheshtayen V Swaroop )

सामान्य शब्दों में गीतिकाव्य का अर्थ ( Geetikavya Ka Arth ) है – ‘गाया जा सकने वाला काव्य‘ परंतु प्रत्येक गाए जाने वाले काव्य को गीतिकाव्य नहीं कहा जा सकता | जिस गीत में तीव्र भावानुभूति, संगीतात्मकता, वैयक्तिकता आदि गुण होते हैं, उसे गीतिकाव्य कहते हैं | मानव सभ्यता में गीत की प्राचीन परंपरा है … Read more

error: Content is proteced protected !!