भारतेन्दु युग : प्रमुख कवि व विशेषताएँ ( Bhartendu Yug : Pramukh Kavi V Visheshtayen )

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ( Bhartendu Harishchandra ) आधुनिक युग के प्रवर्त्तक हैं। उनके आगमन से हिन्दी कविता में एक नया युग आरम्भ होता है। इस युग को साहित्यिक पुनरुथान, राष्ट्रीय चेतनापरक युग, सुधारवादी युग और आदर्शवादी युग कहा गया है। इस युग में रीतिकालीन श्रृंगार-प्रधान काव्य के स्थान पर सामान्य जनजीवन की विषय-वस्तु पर आधारित जनहित … Read more

भक्तिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परिस्थितियाँ

हिंदी साहित्य के इतिहास में संवत 1375 से संवत 1700 तक का काल भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है | किसी भी काल की परिस्थितियां उसके साहित्य को प्रभावित करती हैं | भक्तिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रवृत्तियों का वर्णन इस प्रकार है : (1) राजनीतिक परिस्थितियाँ राजनीतिक दृष्टि से भक्ति … Read more

हिंदी उपन्यास का विकास ( संक्षिप्त )

हिंदी में उपन्यास का लेखन 19वीं सदी में आरंभ हुआ | अंग्रेजी उपन्यासों से प्रभावित होकर पहले बांग्ला भाषा में उपन्यास लिखे गए | बाद में बांग्ला तथा अंग्रेजी के उपन्यासों से प्रभावित होकर हिंदी में उपन्यास लिखे जाने लगे | यह विवाद का विषय है कि हिंदी का प्रथम उपन्यास किसे माना जाए | … Read more

हिंदी नाटक का विकास ( संक्षिप्त )

भारत में नाटक लेखन की परंपरा बहुत पुरानी है | कालिदास द्वारा लिखित नाटक विश्व के श्रेष्ठ नाटकों में शामिल किये जाते हैं | कालिदास द्वारा रचित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ नाटक का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है | लेकिन हिंदी नाटक का इतिहास बहुत अधिक पुराना नहीं है | हिंदी नाटक का … Read more

रासो काव्य परंपरा ( Raso Kavya Parampara )

रासो काव्य परंपरा ( Raso Kavya Parampara ) को जानने से पूर्व ‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति को जानना आवश्यक होगा | ‘रासो’ शब्द की व्यत्पत्ति ‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं | ‘रास’, ‘रासउ’, ‘रासु’, “रासह’ और ‘रासो’ आदि शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयुक्त होते रहे हैं। … Read more

संत काव्य-परंपरा एवं प्रवृत्तियां /विशेषताएं

हिंदी साहित्य का इतिहास मुख्य तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है : आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | संत काव्य-परंपरा हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा से सम्बद्ध है | हिंदी साहित्येतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आरेख के माध्यम से समझा जा सकता है : – निर्गुण काव्य धारा … Read more

आदिकाल का नामकरण और सीमा निर्धारण ( Aadikaal Ka Naamkaran aur Seema Nirdharan)

आदिकाल का नामकरण और सीमा-निर्धारण विद्वानों के बीच विवाद का विषय है | हिंदी साहित्य के इतिहास पर विमर्श करने वाले विद्वानों एवं लेखकों ने इस संबंध में अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए हैं | मिश्र बंधुओं, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि विद्वानों ने इस विषय में अपने अलग-अलग विचार … Read more

आदिकाल / वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ ( Aadikal / Veergathakal Ki Pramukh Visheshtaen )

हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | सम्वत 1050 से सम्वत 1375 तक का साहित्य आदिकाल के नाम से जाना जाता है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को वीरगाथा काल की संज्ञा दी है | परंतु परंतु इस काल में मिली … Read more

द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan )

हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है आदिकाल,  मध्यकाल और आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्य काल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है |  भक्तिकाल की समय-सीमा … Read more

हिंदी नाटक : उद्भव एवं विकास ( Hindi Natak : Udbhav Evam Vikas )

हिंदी में नाटक के उद्भव एवं विकास को 19वीं सदी से  स्वीकार किया जाता है लेकिन दशरथ ओझा ने नाटक को 13वीं सदी से स्वीकार करते हुए ‘गाय कुमार रास’ को हिंदी का पहला नाटक ( Hindi ka Pahla Natak ) माना है | उन्होंने मैथिली नाटकों, रासलीला तथा अन्य पद्यबद्ध नाटकों की चर्चा करते … Read more

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां/ विशेषताएं ( Krishna Kavya Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtaen )

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएँ  ( Krishna Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan/Visheshtayen )   हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली  प्रकार समझा जा … Read more

हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल ( Hindi Sahitya Ka Swarn Yug :Bhaktikal )

      हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल  ‘भक्तिकाल’ की समय सीमा संवत् 1375 से 1700 संवत् तक मानी  जाती है । भक्तिकाल हिंदी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण काल है जिसे इसकी विशेषताओं के कारण इसे स्वर्ण युग कहा जाता है । राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण … Read more

भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )

           भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास  ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )   ईश्वर के प्रति जो परम श्रद्धा, आस्था व प्रेम है – उसे भक्ति    कहते    हैं। नारद भक्ति-सूत्र    के अनुसार –“परमात्मा  के प्रति परम प्रेम को भक्ति कहते हैं |”  भक्ति शब्द की निष्पति … Read more

आदिकाल : प्रमुख कवि, रचनाएं व नामकरण ( Aadikal ke Pramukh Kavi, Rachnayen Evam Naamkaran )

       आदिकाल की प्रमुख रचनाएं एवं नामकरण  Aadikal ki Pramukh Rachnayen Evam Namkaran  ▪️ सरहपाद ( 769 ईस्वी ) – दोहाकोश▪️ स्वयंभू (आठवीं सदी) –  पउम चरिउ, णयकुमार चरिउ, नागकुमार चरिउ👉 [ पउम चरिउ ( राम कथा)  के कारण स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा जाता है | ] ▪️ जोइंदु (आठवीं सदी) … Read more

राम काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां /विशेषताएं ( Rama Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan )

राम काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएं  ( Rama Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtayen )   हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल , मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आरेख के माध्यम से भली प्रकार … Read more

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