उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका ( अभी गीला पड़ा है ) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो सलेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे … Read more

सहर्ष स्वीकारा है ( गजानन माधव मुक्तिबोध )

जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है ; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है | गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब मौलिक है, मौलिक है इसलिए कि पल-पल में जो कुछ भी जाग्रत है … Read more

कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिमान हम एक दुर्बल को लाएंगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ? तो आप क्यों अपाहिज हैं? आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है ? ( कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा ) हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है ? जल्दी बताइए … Read more

पतंग ( आलोक धन्वा )

( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | ) सबसे तेज बौछारें गयी भादो गया सवेरा हुआ खरगोश की आंखों जैसा लाल सवेरा शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नई … Read more

कविता के बहाने ( कुंवर नारायण )

( यहाँ NCERT हिंदी की 12वीं की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कुंवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | ) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने बाहर भीतर इस घर, उस … Read more

बात सीधी थी पर ( कुंवर नारायण )

( ‘बात सीधी थी पर’ कुंवर नारायण द्वारा रचित कविता है जिसमें भाषा के सरल, सहज व स्वाभाविक प्रयोग का संदेश दिया गया है | कवि के मतानुसार कभी-कभी आकर्षक शब्दों के चयन से भाषा अपने उद्देश्य से भटक जाती है और भावाभिव्यक्तति नहीं हो पाती | ) बात सीधी थी पर एक बार भाषा … Read more

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ( हरिवंश राय बच्चन )

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है | ) हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं – यह सोच थका … Read more

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्मपरिचय’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं ) मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ ; फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ ; कर दिया किसी ने … Read more

रस सिद्धांत ( Ras Siddhant )

भरत मुनि का रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) की विवेचना करने से पूर्व ‘रस’ के अर्थ को जानना आवश्यक होगा | ‘रस’ का सामान्य अर्थ आनंद से लिया जाता है | भारतीय साहित्य शास्त्र में रस की अवधारणा अत्यंत प्राचीन है … Read more

कबीरदास के पदों की व्याख्या ( बी ए – हिंदी, प्रथम सेमेस्टर )

( यहाँ KU, MDU, CDLU विश्वविद्यालयों द्वारा बी ए प्रथम सेमेस्टर -हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित ‘कबीरदास’ के पदों की सप्रसंग व्याख्या दी गई है | ) सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार | लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार || (1) प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन … Read more

स्वतंत्र जुबान ( Swatantra Juban ) : लीलाधर जगूड़ी

मेरी कल्पना में एक ऐसा भी दृश्य आया आत्मा के खोजी कुत्ते सफेद रंग को घसीट कर ला रहे थे और सफेद रंग के काले खून में घुसे हुए पक्ष व विपक्ष बाहर न आने के लिए छटपटा रहे थे एक आदमी जो हर बार मेरे साथ उठता-बैठता है अमूमन हम एक-दूसरे की जासूसी करते … Read more

परिवार की खाड़ी में ( Parivar Ki Khadi Mein ) : लीलाधर जगूड़ी

बिस्तरे के मुहाने पर जंगली नदी का शोर हो रहा है और थपेड़े मकान की नींव से मेरे तकिये तक आ रहे हैं काँपते हुए पेड़ों को – भांपते हुए पत्नी ने कहा – आँधी और फिर बक्से के पास लौट आयी | 1️⃣ मेरे उठते ही खिड़की के रास्ते कमरे से हाथ मिला रहा … Read more

वृक्ष हत्या ( Vriksh Hatya ) : लीलाधर जगूड़ी

मुझे भी देखने पड़ेंगे अपनी छोटी-छोटी आंखों से बड़े-बड़े कौतुक मैं ही हूँ वह स्प्रिंगदार कुर्सी के सामने टंगा हुआ वसंत का चित्र मुझे ही झाड़ने पड़ेंगे सब पत्ते मुझे ही उघाड़नी पड़ेंगी एक-एक ठूंठ की गयी-गुजरी आँखें सभ्यता फैलाने वाले एक आदमी से मिलकर ऐसा सोचते हुए मैं जब लौट रहा था 15 तारीख … Read more

जब आदमी आदमी नहीं रह पाता ( Jab Aadami Aadami Nahin Rah Pata ) : कुंवर नारायण

दरअसल मैं वह आदमी नहीं हूँ जिसे आपने जमीन पर छटपटाते हुए देखा था | आपने मुझे भागते हुए देखा होगा दर्द से हमदर्द की ओर | 1️⃣ वक्त बुरा हो तो आदमी आदमी नहीं रह पाता | वह भी मेरी ही और आपकी तरह आदमी रहा होगा | लेकिन आपको यकीन दिलाता हूँ वह … Read more

एक जले हुए मकान के सामने ( Ek Jale Hue Makan Ke Samne ) : कुंवर नारायण

शायद वह जीवित है अभी, मैंने सोचा इसने इनकार किया – मेरा तो कत्ल हो चुका है कभी का ! साफ दिखाई दे रहे थे उसकी खुली छाती पर गोलियों के निशान | 1️⃣ तब भी उसने कहा – ऐसे ही लोग थे, ऐसे ही शहर रुकते ही नहीं किसी तरह मेरी हत्याओं के सिलसिले … Read more

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