सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं | प्रयोगवाद के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले अज्ञेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सन 1911 में हुआ | 1925 ईस्वी में इन्होंने मैट्रिक और 1929 ईस्वी में विज्ञान संकाय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की | ये … Read more

नाच ( Naach ) : अज्ञेय

एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ | जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ | वह दो खंभों के बीच है | रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ | वह एक खंभे से दूसरे खंबे तक का नाच है | दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं … Read more

उड़ चल, हारिल ( Ud Chal Haaril ) : अज्ञेय

उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका उषा जाग उठी प्राची में -कैसी बाट भरोसा किनका ! शक्ति रहे तेरे हाथों में – छूट ना जाय यह चाह जीवन की ; शक्ति रहे तेरे हाथों में – रुक ना जाय यह गति जीवन की ! (1) ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढा चीरता चल दिक् मण्डल, अनथक … Read more

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 में काशी में हुआ था | जयशंकर प्रसाद जी धनी परिवार से संबंध रखते थे | इनका बचपन बहुत खुशहाली से बीता | इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई परंतु वह केवल सातवीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई जारी रख सके | जब वे 12 वर्ष … Read more

गीतिकाव्य : अर्थ, परिभाषा, प्रवृत्तियाँ /विशेषताएँ व स्वरूप ( Gitikavya : Arth, Paribhasha, Visheshtayen V Swaroop )

सामान्य शब्दों में गीतिकाव्य का अर्थ ( Geetikavya Ka Arth ) है – ‘गाया जा सकने वाला काव्य‘ परंतु प्रत्येक गाए जाने वाले काव्य को गीतिकाव्य नहीं कहा जा सकता | जिस गीत में तीव्र भावानुभूति, संगीतात्मकता, वैयक्तिकता आदि गुण होते हैं, उसे गीतिकाव्य कहते हैं | मानव सभ्यता में गीत की प्राचीन परंपरा है … Read more

जागो फिर एक बार ( Jago Fir Ek Bar ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

जागो फिर एक बार ( निराला ) : सप्रसंग व्याख्या जागो फिर एक बार ! समर में अमर कर प्राण, गान गाये महासिंधु-से, सिंधु-नद तीरवासी ! सेंधव सुरंगों पर चतुरंग-चमू-संग ; “सवा-सवा लाख पर एक को चढाऊंगा, गोविंद सिंह निज नाम जब कहाऊंगा |” किसी ने सुनाया यह वीर-जनमोहन, अति दुर्जय संग्राम-राग, फाग था खेला … Read more

तोड़ती पत्थर ( Todti Patthar ) (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला): व्याख्या व प्रतिपाद्य

‘तोड़ती पत्थर’ कविता की व्याख्या वह तोड़ती पत्थर ; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर नहीं छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार ; श्याम तन भर बंधा यौवन, नत-नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार | (1) चढ़ रही थी धूप, गर्मियों के … Read more

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

‘बादल राग’ कविता की व्याख्या तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी, भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नव जीवन की, ऊंचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के … Read more

विधवा ( Vidhva ) : सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ( सप्रसंग व्याख्या व प्रतिपाद्य ) ( BA Hindi – 3rd Semester )

‘विधवा’ कविता का प्रतिपाद्य / विषय या संदेश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ छायावाद के चार आधार-स्तंभों में से एक हैं | निराला संभवत: प्रथम छायावादी कवि हुए हैं जिन्होंने सर्वप्रथम प्रगतिशील विचारों को अपनी कविता में स्थान दिया | भिक्षुक, विधवा, तोड़ती पत्थर, बादल राग और कुकुरमुत्ता जैसी कविताएं ऐसी ही कवितायें हैं जिनमें निराला जी … Read more

पवनदूती काव्य में निहित संदेश / उद्देश्य ( Pavandooti Kavya Mein Nihit Sandesh / Uddeshya )

‘पवनदूती’ ( पवन दूतिका ) नामक काव्य अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ शीर्षक महाकाव्य का एक अंश है | इस महाकाव्य में श्री कृष्ण के मथुरा जाने की घटना का उल्लेख है | श्री कृष्ण के मथुरा गमन करते ही ब्रजवासी विरह-वेदना से व्यथित हो उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का स्मरण करते … Read more

खंडकाव्य : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं ( तत्त्व ) व स्वरूप ( Khandkavya : Arth, Paribhasa, Visheshtayen V Swaroop )

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद हैं – दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य | शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन भेद माने गए हैं – पद्य, गद्य और चंपू | पद्य के पुनः दो भेद हैं – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के भी दो भेद … Read more

महाकाव्य : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं ( तत्त्व ) व स्वरूप ( Mahakavya : Arth, Paribhasha, Visheshtayen V Swaroop )

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद हैं – दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य | शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन भेद माने गए हैं – पद्य, गद्य और चंपू | पद्य के पुनः दो भेद हैं – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के भी दो भेद … Read more

काव्य के भेद / प्रकार ( Kavya Ke Bhed / Prakar )

संस्कृत काव्यशास्त्र में ‘काव्यादर्श’ के रचयिता दण्डी ने कहा है कि वाणी के वरदान से ही मानव जीवन की विकास यात्रा पूरी होती है | वाणी के कारण मनुष्य अपने अतीत के ज्ञान को सुरक्षित रखता है तथा वर्तमान ज्ञान व अनुभवों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाता है | प्राचीन काल में वाणी के … Read more

काव्य-प्रयोजन : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप ( Kavya Prayojan : Arth, Paribhasha, Swaroop )

काव्य सोद्देश्य रचना होती है | वैसे तो संसार में प्रत्येक घटना व प्रत्येक कार्य का कोई न कोई उद्देश्य आवश्यक होता है लेकिन बिना उद्देश्य ( प्रयोजन ) के काव्य की कल्पना नहीं की जा सकती | सामान्यत: काव्य-रचना के उपरांत जो फल या परिणाम प्राप्त होता है, उसे काव्य-प्रयोजन कहा जाता है | … Read more

काव्य हेतु : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप और प्रासंगिकता या महत्त्व ( Kavya Hetu : Arth, Paribhasha V Swaroop )

काव्य-हेतु का अर्थ ( Kavya Hetu Ka Arth ) सामान्यत: उन तत्वों को जो काव्य-रचना के मूल कारण होते हैं, काव्य हेतु कहा जाता है | इनको निमित्त कारण भी कहते हैं | निमित्त कारण उन कारणों को कहते हैं जो काव्य-रचना के निमित्त होते हैं अर्थात जिनके बिना काव्य रचना नहीं हो सकती | … Read more

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