काव्यात्मा संबंधी विचार

वेदों व अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में आत्मा शब्द का प्रयोग श्वास, प्राण, जीवन, परमात्मा आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है| विभिन्न दार्शनिकों का विचार है कि यह आत्मा परमात्मा का एक अंश है। अतः आत्मा और परमात्मा में अंश-पूर्ण का सम्बन्ध है। मानव शरीर इसी आत्मा के कारण जीवित है। काव्यशास्त्र में काव्यात्मा … Read more

पुरस्कार ( जयशंकर प्रसाद )

( ‘पुरस्कार’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध कहानी है जिसमें प्रेम पर राष्ट्रप्रेम की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है | ) आर्द्रा नक्षत्र, आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव दुंदुभि का गंभीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था-देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अंचल में समतल … Read more

‘यशोधरा’ काव्य का भाव पक्ष एवं कला पक्ष

मैथिलीशरण गुप्त जी द्विवेदी युग के प्रमुख कवि थे। उन्होंने ‘यशोधरा’ में गाँधी जी के व्यावहारिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। उनका जीवन-सन्देश वैयक्तिक जीवन को परिष्कृत करने वाला और लोक में वासना, कामना और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने का दिशा-निर्देश करने वाला है। ‘यशोधरा’ काव्य में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-वेदना … Read more

औचित्य सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएं

औचित्य सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र सिद्धांतों में सबसे नवीन सिद्धांत है | भारतीय काव्यशास्त्र के अन्य सभी सिद्धांतों के अस्तित्व में आने के पश्चात इस सिद्धांत का आविर्भाव हुआ | दूसरे शब्दों में इसे संस्कृत काव्यशास्त्र का अंतिम सिद्धांत भी कह सकते हैं | आचार्य क्षेमेंद्र ने औचित्य सिद्धांत का प्रवर्तन किया | यह सिद्धांत आने … Read more

ध्वनि सिद्धांत ( Dhvani Siddhant )

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि-सिद्धांत का अभ्युदय 9वीं सदी में हुआ | इससे पूर्व रस सिद्धांत, अलंकार सिद्धांत तथा रीति सिद्धांत को पर्याप्त लोकप्रियता मिल चुकी थी | ध्वनि-सिद्धांत के संस्थापक आनंदवर्धन ने ध्वनि की मौलिक उदभावना करके काव्य के अंतर्तत्त्वों की विशद व्याख्या की | उन्होंने काव्यात्मा के संदर्भ में प्रचलित भ्रांतियों पर व्यापक प्रकाश … Read more

रसखान का साहित्यिक परिचय

जीवन-परिचय रसखान भक्तिकालीन कृष्ण काव्यधारा के प्रमुख कवि थे | उनका जन्म सन 1533 ईस्वी में एक पठान परिवार में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिला में पिहानी नामक स्थान पर हुआ | इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था लेकिन इनके काव्य में अत्यधिक रसिकता होने के कारण लोग इन्हें रसखान कहने लगे | वल्लभाचार्य के … Read more

घनानंद का साहित्यिक परिचय ( Ghananand Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय घनानंद रीतिकाल की रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि हैं | इनका जन्म 1683 ईस्वी में माना जाता है | इनके जन्म स्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है | अधिकांश विद्वानों के अनुसार घनानंद का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में हुआ था | वे मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला के दरबार … Read more

तुलसीदास के पदों की व्याख्या

( यहाँ KU /MDU /CDLU द्वारा निर्धारित बी ए प्रथम सेमेस्टर – हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित तुलसीदास के पदों की सप्रसंग व्याख्या की गई है | ) दैहिक दैविक भौतिक तापा | राम राज नहिं काहुहि ब्यापा || सब नर करहिं परस्पर प्रीति | चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती || … Read more

मीराबाई का साहित्यिक परिचय

मीराबाई भक्तिकालीन हिंदी साहित्य की सगुण भक्तिधारा की कृष्णकाव्य धारा की प्रमुख कवयित्री हैं | मीराबाई का साहित्यिक परिचय निम्नलिखित बिंदुओं में दिया जा सकता है — जीवन-परिचय मीराबाई भक्तिकालीन कृष्णकाव्य धारा की प्रसिद्ध कवियत्री हैं | इनके आराध्य श्री कृष्ण हैं | इनका जन्म राव दादू जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर … Read more

कवि बिहारी का साहित्यिक परिचय ( Kavi Bihari Ka Sahityik Parichay )

जीवन-परिचय कवि बिहारी रीतिकाल के सबसे लोकप्रिय कवि माने जाते हैं | इनका जन्म संवत् 1652 ( 1595 ईस्वी ) में ग्वालियर के निकट बसुआ गोविंदपुर गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | इनके पिता का नाम केशवराय था इन्होंने रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि केशवदास से काव्य और शास्त्र की शिक्षा ग्रहण की … Read more

सूरदास के पदों की व्याख्या ( बी ए हिंदी – प्रथम सेमेस्टर )

यहाँ हरियाणा के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा बी ए प्रथम सेमेस्टर ( हिंदी ) की पाठ्य पुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित सूरदास के पदों की सप्रसंग व्याख्या दी गई है | अविगत-गति कछु कहत न आवै | ज्यों गूंगे मीठे फल कौ रस अन्तरगत ही भावै | परम स्वाद सबही सु निरन्तर अमित तोष उपजावै … Read more

वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

वक्रोक्ति सिद्धांत ( Vakrokti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है | वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्त्तक आचार्य कुंतक थे | आचार्य कुंतक से पहले के आचार्य वक्रोक्ति को अलंकार मात्र मानते थे परन्तु आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को विशेष महत्त्व प्रदान किया | कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य के सौंदर्य का आधार मानते … Read more

रीति सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत के पश्चात रीति सिद्धांत ( Riti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण देन कही जा सकती है | रीति सिद्धांत का प्रवर्तन अलंकारवादी सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप माना जाता है | रीति सिद्धांत के प्रवर्तक श्रेय आचार्य वामन माने जाते हैं जिन्होंने अपनी रचना ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’ में इसका विस्तृत विवेचन किया है … Read more

अलंकार सिद्धांत : अवधारणा एवं प्रमुख स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र में सर्वाधिक प्राचीन सिद्धांत है | प्रत्येक आचार्य ने अलंकारों को किसी न किसी रूप में महत्व दिया है | अलंकार सिद्धांत के प्रतिपादक भामह माने जाते हैं परंतु भामह के अतिरिक्त दंडी, उद्भट तथा रूद्रट ने भी अलंकारों की अनिवार्यता का जोरदार समर्थन किया है | अलंकार सिद्धांत के विषय … Read more

सहृदय की अवधारणा ( Sahridya Ki Avdharna )

‘रस सिद्धांत’ के अंतर्गत रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण आदि की विस्तृत चर्चा हुई है | इसके पश्चात साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदय की अवधारणा की चर्चा हुई | इसका कारण यह है कि रसानुभूति सहृदय ही करता है | सहृदय का अर्थ एवं स्वरूप ( Sahridya Ka Arth Evam Swaroop ) ‘सहृदय’ शब्द का अर्थ है – … Read more

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