पाश्चात्य काव्यशास्त्र एवं साहित्यालोचन ( बी ए चतुर्थ सेमेस्टर ) महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(1) प्लेटो की काव्य संबंधी मान्यताएँ (2) अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत (3) अरस्तू का विरेचन सिद्धांत (4) लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत (5) वर्ड्सवर्थ का काव्य-भाषा सिद्धांत (6) अंधेर नगरी नाटक का कथासार (7) अंधेर नगरी नाटक की तात्विक समीक्षा (8) अंधेर नगरी नाटक का उद्देश्य (9) अभिनेयता की दृष्टि से अंधेर नगरी नाटक की समीक्षा … Read more

लोंजाइनस का उदात्त सिद्धांत

लोंजाइनस प्राचीन यूनान के महान साहित्यशास्त्री व आलोचक थे | उनके जन्म को लेकर विद्वान् एकमत नहीं हैं | अधिकांश विद्वान् ईसा की तीसरी सदी उनका जीवन काल मानते हैं | उनकी रचना ‘पेरिइप्सुस’ पाश्चात्य काव्यशास्त्र की महत्वपूर्ण पुस्तक है | लोंजाइनस (Longinus) का उदात्त सिद्धांत (Sublime Theory) प्राचीन साहित्यिक आलोचना का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत … Read more

अरस्तू का विरेचन सिद्धांत

अरस्तू (Aristotle) प्राचीन ग्रीस का एक महान दार्शनिक और वैज्ञानिक था। अरस्तू का जन्म 384 ईo पूo में स्तगिरा, यूनान में हुआ था | वह प्लेटो (Plato) का शिष्य और सिकंदर महान (Alexander the Great) का गुरु था। अरस्तू ने तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र, राजनीति, काव्य, जीव विज्ञान और भौतिकी जैसे कई विषयों पर गहन अध्ययन किया … Read more

अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत

अरस्तू ( Aristotle ) (384 ईसा पूर्व – 322 ईसा पूर्व) प्राचीन ग्रीस के एक महान दार्शनिक, वैज्ञानिक और शिक्षक थे। वे प्लेटो (Plato) के शिष्य और सिकंदर महान (Alexander the Great) के गुरु थे। अरस्तू को “पश्चिमी दर्शन का जनक” कहा जाता है, क्योंकि उनकी शिक्षाओं ने दर्शन, विज्ञान, राजनीति, काव्य, नाटक, नैतिकता और … Read more

प्लेटो की काव्य संबंधी मान्यताएँ

प्लेटो (Plato) प्राचीन ग्रीस के महान दार्शनिक थे, जो सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे। वे पश्चिमी दर्शन के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने कई दार्शनिक ग्रंथ लिखे, जिनमें “रिपब्लिक” (Republic), “फैड्रस” (Phaedrus), “आयोन” (Ion) और “पोएटिक्स” (Poetics, जिसे अरस्तू ने आगे बढ़ाया) प्रमुख हैं। प्लेटो की काव्य सम्बन्धी … Read more

पत्र लेखन : अर्थ, परिभाषा, भेद व विशेषताएँ

पत्र एक लिखित संवाद का रूप है, जिसे किसी व्यक्ति, संगठन, या संस्था को भेजा जाता है। यह एक औपचारिक या अनौपचारिक तरीके से जानकारी, विचार, अनुरोध, या संवाद सांझा करने का एक साधन है। पत्र आमतौर पर एक निश्चित प्रारूप और संरचना का पालन करता है | इसमें निम्नलिखित तत्त्व शामिल होते हैं : … Read more

पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )

पल्लवन किसी भाव का विस्तार है जो उसे समझने में सहायक सिद्ध होता है | विद्वान, संत-महात्मा आदि समास -शैली और प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करते हुए ऐसी गंभीर बात कह देते हैं जो उनके लिए तो सहज-सरल होती है पर सामान्य व्यक्ति के लिए उसके भाव को समझने में कठिनाई होती है | ऐसे … Read more

संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )

संक्षेपण एक कला है जिसका संबंध किसी विस्तृत विषय वस्तु या संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत करने से होता है | विभिन्न संस्थानों, कार्यालयों और विद्यार्थियों के लिए इसका विशेष महत्व है | इसके अंतर्गत अनावश्यक और अप्रासंगिक अंशों को छोड़कर मूल भाव को ध्यान में रखकर उपयोगी तथ्यों को संक्षेप में प्रकट किया जाता … Read more

रीतिकाल : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Reetikal : Parampara Evam Pravritiyan )

             रीतिकाल : परंपरा एवं प्रवृतियां     ( Reetikal : Parampara Evam Pravrityan )   हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल,  मध्यकाल व आधुनिक काल | मध्यकाल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल ( Reetikal ) के नाम … Read more

रीतिसिद्ध काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Reetisiddh kavya: Parampara Evam Pravritiya )

              रीतिसिद्ध काव्य परंपरा    हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बाँटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल व आधुनिक काल | मध्यकाल के पूर्ववर्ती काल को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है |  रीतिकाल की समय-सीमा संवत 1700 से संवत … Read more

रीतिमुक्त काव्य : परंपरा व प्रवृत्तियां ( Reetimukt Kavya: Parampara Evam Pravrittiya )

हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है अधिकार मध्यकाल और आधुनिक काल | मध्य काल के उत्तर भर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है | हिंदी साहित्य में संवत 1700 से संवत 1900  तक का काल रीतिकाल है जिसमें तीन प्रकार का साहित्य मिलता है – रीतिबद्ध … Read more

रीतिबद्ध काव्य-परंपरा व प्रवृत्तियां ( Reetibaddh Kavya Parampara v Pravritiyan )

             रीतिबद्ध काव्य परंपरा एवं प्रवृत्तियां                Ritibadh Kavya Parampara  हिंदी साहित्य के मध्यकाल के परवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है | अतः स्पष्ट है कि संवत 1700 से संवत 1900 तक का काल रीतिकाल कहलाता है | रीतिकाल में … Read more

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