भक्तिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परिस्थितियाँ

हिंदी साहित्य के इतिहास में संवत 1375 से संवत 1700 तक का काल भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है | किसी भी काल की परिस्थितियां उसके साहित्य को प्रभावित करती हैं | भक्तिकाल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रवृत्तियों का वर्णन इस प्रकार है : (1) राजनीतिक परिस्थितियाँ राजनीतिक दृष्टि से भक्ति … Read more

महत्त्वपूर्ण प्रश्न ( बी ए द्वितीय सेमेस्टर – हिंदी )

प्रश्न – 1. व्याख्या — ध्रुवस्वामिनी ( जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक ) से अवतरित चार गद्यांशों में से किन्हीं दो की सप्रसंग व्याख्या करनी होगी | यह प्रश्न 12 ( 6+6 ) अंक का होगा | (2) ध्रुवस्वामिनी नाटक से निबंधात्मक प्रश्न ( दो में से एक करना होगा ) यह प्रश्न 8 अंक … Read more

संत काव्य-परंपरा एवं प्रवृत्तियां /विशेषताएं

हिंदी साहित्य का इतिहास मुख्य तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है : आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | संत काव्य-परंपरा हिंदी साहित्य के भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा से सम्बद्ध है | हिंदी साहित्येतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आरेख के माध्यम से समझा जा सकता है : – निर्गुण काव्य धारा … Read more

स्वरों का वर्गीकरण

देवनागरी लिपि की मानक वर्णमाला में 12 स्वर हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ | स्वरों का वर्गीकरण मुख्यतः तीन आधार पर किया जा सकता है — 1️⃣ मात्रा के आधार पर 2️⃣ प्रयत्न के आधार पर 3️⃣ स्थान के आधार पर 1️⃣ मात्रा के आधार पर … Read more

चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण ( ध्रुवस्वामिनी )

‘ध्रुवस्वामिनी’ ( Dhruvswamini ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है | नाटक के शीर्षक से ही पता चलता है कि नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र ध्रुवस्वामिनी है | नाटक के पुरुष पात्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र चंद्रगुप्त, रामगुप्त,  शिखर स्वामी और शकराज हैं | नाटक में चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण नायक के रूप … Read more

ध्रुवस्वामिनी नाटक की कथावस्तु की समीक्षा

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी नाटक विधा को नए आयाम प्रदान किए | उन्होंने  प्राय: ऐतिहासिक नाटक लिखे हैं | ध्रुवस्वामिनी नाटक भी एक ऐतिहासिक नाटक है परन्तु प्रसाद जी ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की कथावस्तु को साहित्यिक रोचकता व रसमयता प्रदान कर दी है | प्रस्तुत नाटक में प्रसाद जी ने … Read more

ध्रुवस्वामिनी नाटक की तात्विक समीक्षा

‘ध्रुवस्वामिनी‘ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है | इस नाटक में सम्राट समुद्रगुप्त के पश्चात के उस काल को दिखाया गया है जिसमें गुप्त वंश की बागडोर एक निर्बल व कायर शासक रामगुप्त के हाथों में आ गई थी और गुप्त वंश पतन की ओर अग्रसर था | यद्यपि सम्राट समुद्रगुप्त अपने छोटे … Read more

ध्रुवस्वामिनी का कथानक/कथासार ( Dhruvsvamini Ka Kathanak/kathasar )

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी नाटक विधा को नए आयाम प्रदान किए | उन्होंने प्राय: ऐतिहासिक नाटक लिखे हैं | ध्रुवस्वामिनी नाटक भी एक ऐतिहासिक नाटक है जिसे प्रसाद जी ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर एक रसमय साहित्यिक रचना में परिवर्तित कर दिया है | ध्रुवस्वामिनी का कथानक गुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय … Read more

ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद कृत ध्रुवस्वामिनी नाटक का सबसे प्रमुख तथा केंद्रीय पात्र है |  संपूर्ण नाटक की कथा ध्रुवस्वामिनी के इर्द-गिर्द घूमती है | वह चंद्रगुप्त की वाग्दत्ता पत्नी है लेकिन रामगुप्त शिखर स्वामी के षड्यंत्र से न केवल ध्रुवस्वामिनी से जबरन विवाह  कर लेता है बल्कि राज्य भी हड़प लेता है | शकराज नाटक का … Read more

भाषा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप

भाषा का मूल अर्थ – बोलना या कहना है | साधारण शब्दों में मानव-मुख से निकलने वाली ध्वनियों को भाषा कहा जाता है | लेकिन मानव मुख से निकलने वाली प्रत्येक ध्वनि भाषा नहीं होती | वास्तव में मानव-मुख से निकलने वाली वह सार्थक ध्वनियां जो विचारों या भावों का संप्रेषण करती हैं, भाषा कहलाती … Read more

भाषा के विविध रूप / भेद / प्रकार ( Bhasha Ke Vividh Roop / Bhed / Prakar )

सामान्य शब्दों में भाषा शब्द का प्रयोग मनुष्य की व्यक्त वाणी के लिए किया जाता है | भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है और दूसरों के विचार समझ पाता है | यद्यपि कुछ कार्य संकेतों और शारीरिक कष्टों के द्वारा किया जा सकता है लेकिन यह पर्याप्त … Read more

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 में काशी में हुआ था | जयशंकर प्रसाद जी धनी परिवार से संबंध रखते थे | इनका बचपन बहुत खुशहाली से बीता | इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई परंतु वह केवल सातवीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई जारी रख सके | जब वे 12 वर्ष … Read more

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां/ विशेषताएं ( Krishna Kavya Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtaen )

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएँ  ( Krishna Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan/Visheshtayen )   हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली  प्रकार समझा जा … Read more

हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल ( Hindi Sahitya Ka Swarn Yug :Bhaktikal )

      हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल  ‘भक्तिकाल’ की समय सीमा संवत् 1375 से 1700 संवत् तक मानी  जाती है । भक्तिकाल हिंदी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण काल है जिसे इसकी विशेषताओं के कारण इसे स्वर्ण युग कहा जाता है । राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण … Read more

भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )

           भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास  ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )   ईश्वर के प्रति जो परम श्रद्धा, आस्था व प्रेम है – उसे भक्ति    कहते    हैं। नारद भक्ति-सूत्र    के अनुसार –“परमात्मा  के प्रति परम प्रेम को भक्ति कहते हैं |”  भक्ति शब्द की निष्पति … Read more

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