थके हुए कलाकार से ( Thake Hue Kalakar Se ) : डॉ धर्मवीर भारती
सृजन की थकन भूल जा देवता ! अभी तो पड़ी है धरा अधबनी अभी तो पलक में नहीं खिल सकी नवल कल्पना की मधुर चाँदनी अभी अधखिली ज्योत्सना की कली नहीं जिंदगी की सुरभि में सनी – अभी तो पड़ी है धरा अधबनी, अधूरी धरा पर नहीं है कहीं अभी स्वर्ग की नींव का भी … Read more